सदन भी सोचती है, किनको चुनकर भेजा मेरे देश के लोगों ने !
चाहे हो भक्त या बैरी ये नेता।
#सोशल_मीडिया से... (मप्र विधानसभा की झलक सत्र आज 9 अगस्त से)
पहले दिन की कार्यवाही व प्रतिक्रिया
-अनुराधा त्रिवेदी**
ये केवल दर्शक दीर्घा में बैठे बच्चों का अनुभव नहीं था, बल्कि देश में टीवी के सामने बैठकर सदन की कार्यवाही देखने वाले तमाम दर्शकों का भी भाव था। सोमवार को ही केरल विधानसभा में विधायक के आचरण पर सुप्रीम कोर्ट ने बहुत तीखी टिप्पणी देते हुए कहा, सदन के भीतर इस तरह के आचरणों पर गंभीर कार्यवाई की जानी चाहिए। संसद अपनी हर बैठक के पहले अपनी गरिमा, पवित्रता और सर्वोच्च स्थान बनाए रखने का संकल्प पारित करती है, जिससे लोकतांतत्रिक मूल्य और सिद्धांत मजबूत हो सकें। संसद और विधानसभा की लोगों के प्रति जवाबदेही बढ़ाने का संकल्प होता है। सुप्रीम कोर्ट ने जब ये कहा, कि सदन में हंगामा करने वाले सांसदों और विधायकों को आज कड़ा संदेश देने की जरूरत है, संसद और विधानसभा में सांसदों और विधायकों का अनुचित व्यवहार लगातार चर्चा का विषय रहता है, जिसको अब बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस डॉ. धनन्जय वाई चंद्रचूड और जस्टिस एमआर शाह वाली दो जजों की बेंच ने सीपीआईएम के प्रमुख नेताओं द्वारा विधानसभा में हंगामें का मामला वापस लेने के लिए दाखिल की गई अर्जी पर ये टिप्पणी दी।
भारत लोकतांत्रिक देश है एवं संसदीय व्यवस्था इसका महत्वपूर्ण हिस्सा है। संसदीय व्यवस्था और परंपरा के अनुरूप ही सारगर्भित बहस द्वारा भविष्य की संभावनाओं को खंगाला जाता है। विपक्ष का कार्य सदन में सत्ता-पक्ष के कार्यों एवं प्रत्येक योजनाओं की समीक्षा और जमीनी हकीकत को सदन में प्रश्नांकित करना होना चाहिए, ताकि सरकार की जवाबदेही और समय-सीमा तय की जा सके। सदन में होने वाली बहस सारे देश में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। देश की जनता राजनेताओं के विचारों से, सामाजिक मुद्दों से, उनके सरोकार से अवगत होती है। आने वाली पीढ़ी समाज को नवीन दृष्टिकोण से देखने के लिए दिशा-निर्देश भी प्राप्त करती है। आज जो कुछ भी देश की सदनों में चलता है, वो न केवल शर्मनाक है, बल्कि सांसदों और विधायकों की भाषा से शर्मिंदा होने की स्थितियां निर्मित करती है।
देश के पास ऐसे अनेक उदाहरण हैं, कि आज 70 साल बाद भी सदन में पूर्ववर्ती नेताओं के भाषण, उनकी नैतिकता, उनकी भाषा, उनका विषय प्रस्तुतिकरण विपक्ष के नेताओं के साथ सार्थक बहस के अनेकों उदाहरण देश के समक्ष हैं। आज चूंकि जो सांसद विधायक चुनकर आते हैं, उनकी पृष्ठभूमि, उनके आचरण की प्रस्तुति सदन में स्वयं कर देती है। शायद इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने अपराधियों के चुनाव लडऩे पर प्रतिबंध लगा दिया।
मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष गिरीश गौतम ने कल एक भव्य समारोह करते हुए एक पुस्तक का विमोचन किया, जिसमें करीब 1100 ऐसे शब्द या वाक्यांश थे, जिनका उच्चारण भी विधानसभा में प्रतिबंधित किया गया। जिसमें निहायत ही घटिया शब्दों का प्रयोग- गाड़ दूंगा, मार दूंगा, चोर-उचक्के, कुत्ते, तवायफ जैसे शब्दों के साथ ही पप्पू, तड़ीपार, फेंकू, घोटालेबाज, फर्जी पत्रकार ऐसे कई शब्दों पर रोक लगाई गई। निश्चित ही मप्र विधानसभा के अध्यक्ष गिरीश गौतम ने सदन में नैतिकता, शालीनता और सांस्कृतिक परंपराओं को सुरक्षित करने के लिए नवाचार कर रहे हैं। इससे सदन में बैठी महिला विधायक, सांसद, महिला पत्रकार और सदन की महिला कर्मचारी निश्चित ही राहत महसूस कर रही होंगी।
पिछले कुछ वर्षों में सदनों में विधायक, सांसदों की भाषा-शैली और आचरण अत्यंत शर्मनाक रहा है। आज मप्र विधानसभा अध्यक्ष की इस सार्थक पहल का यदि देश के सारे सदन अनुकरण करें, तो निश्चित ही देश के सदनों की गरिमा और सम्मान को स्थापित होने में देर नहीं लगेगी। आज तो सदन असभ्य और असंस्कृत लोगों का अड्डा बना हुआ लगता है। इस नवाचार से देश के सारे सदन पे्ररणा लेंगे और एक प्रतिबंध भी सांसदों और विधायकों पर लगेगा, कि वो बोलते समय मर्यादा का ध्यान रखें।
पूर्व प्रधानमंत्री अटलजी जब सदन में बोलते थे, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू उनको मंत्रमुग्ध होकर सुना करते थे। सुषमा स्वराज जब सदन में बोलती थीं, तब उनके बोले गए शब्द अपनी गरिमा में इतराते थे। जब पूर्व प्रधानमंत्री रहे चंद्रशेखर जिन्हें युवा तुर्क कहा जाता था, तो शब्द गंभीरता से ओतप्रोत होते थे। स्वयं राजीव गांधी ने सदन में कहा, कि ऊपर से जब 10 रु जनता को भेजा जाता है वो नीचे पहुंचते-पहुंचते एक रु में बदल जाता है। इससे उन नेताओं के शब्दों की ईमानदारी झलकती थी। लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाले सदनों में जब असभ्य भाषा शैली, असभ्य आचरण और असभ्य प्रदर्शन होता है तो जनता अपना सिर पीट लेती है, कि हमने किन गुंडे, छिछोरों को अपना नेता चुना।
सालों से मेरे घर की मुंडेर पर
कोई गौरैया पानी पीने नहीं आई...
हां! गाहे बगाहे, दुनियाभर के
गिद्ध दिख जाया करते हैं, एक साथ...
कभी संसद के गलियारों में
तो कभी टीवी पर... समाचार पढ़ते !
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सांसद और विधायकों की जिम्मेदारी होती है, कि वो जनता के प्रति जवाबदेह हों, न कि दल के प्रति। वर्तमान मानसून सत्र के दोनों सदनों में जो अवरोध चल रहा है, विपक्ष बहस से भाग रहा है, लगातार हंगामें की स्थिति निर्मित करके सदन को चलने से रोक रहा है, वो देश की जनता देख रही है और इनकी वजह से संसद में सामान्य कामकाज भी नहीं हो पा रहा है। जनता के पैसों का ऐसा नुकसान विपक्षियों द्वारा किया जाना भी देश देख रहा है। सदन होता है सार्थक बहस के लिए, जनता की सुविधा के लिए कानून बनाने के लिए, न कि अपनी करतूत छिपाने के लिए जनता के हित के विषयों को भी खत्म कर देना।
सुप्रीम कोर्ट को देश के सांसदों और विधायकों के आचरण को लेकर जवाबदेही तय करके दंडात्मक कानून बनाया जाना चाहिए। जिस सांसद, विधायक की भाषा से, आचरण से, हंगामें से सदन की कार्यवाही बाधित हो उसे दंड दिए जाने की व्यवस्था हो, क्योंकि इनके आचरण से न केवल जनता का विश्वास टूटता है, बल्कि देश का विकास भी बाधित होता है। ऐसे लोगों को दुबारा चुनाव लडऩे पर भी रोक लगनी चाहिए। मध्य प्रदेश विधानसभा की सकारात्मक पहल की पहली सीढ़ी पर आज सदन के मुखिया विराजमान हैं। एक अच्छी बात ये है, कि जब इस पुस्तक का विमोचन हो रहा था, तब विपक्ष के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और नेता प्रतिपक्ष गोविन्द सिंह सहित वर्तमान मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान मंचासीन थे। जब दोनों ही दल मिलकर ये फैसला कर रहे थे, कि सदन में विधायकों का आचरण, भाषा और व्यवहार कुलीन हो, तो मध्य प्रदेश विधानसभा को देश की आदर्श विधानसभा बनने में संदेह नहीं है।
कलयुग को बनने न देंगे त्रेता,
चाहे हो भक्त या बैरी ये नेता।
संसद की कुर्सी शकुनि या विदुषी,
यम से पूछ रहा नचिकेता।
**लेखक वरिष्ठ पत्रकार (भोपाल) एवं सलाहकार सम्पादक "धर्म नगरी" / DN News हैं
-अनुराधा त्रिवेदी**
(धर्म नगरी / DN News वा.एप 8109107075 -न्यूज़, कवरेज, विज्ञापन/शुभकामना हेतु)
विगत एक दशक से संसद और देश की तमाम विधानसभाओं में सांसदों और विधायकों के आचरणों ने देश की जनता के सामने शर्मनाम आचरण प्रस्तुत किया है। इससे न केवल देश, बल्कि विदेशों में भी हमारी सदनों की गरिमा खंडित हुई। कल मध्य प्रदेश विधानसभा में अपने उद्बोधन में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने एक वाकये का जिक्र किया, कि प्रदेश के कुछ स्कूलों के बच्चें विधानसभा की कार्यवाही देखने भोपाल में विधानसभा आए थे। विधानसभा समाप्त होने के बाद शिवराजसिंह ने उन बच्चों से विधानसभा के बारे में उनसे अनुभव पूछा। तब एक बच्चे ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह से कहा, कि हम यहां सीखने आए थे। यह देखने आए थे, कि प्रदेश के विकास के लिए किस तरह की प्रक्रिया का यहां प्रस्तुतिकरण होता है। पर हमको निराशा हुई, यहां तो मच्छी बाजार लगा हुआ था।
ये केवल दर्शक दीर्घा में बैठे बच्चों का अनुभव नहीं था, बल्कि देश में टीवी के सामने बैठकर सदन की कार्यवाही देखने वाले तमाम दर्शकों का भी भाव था। सोमवार को ही केरल विधानसभा में विधायक के आचरण पर सुप्रीम कोर्ट ने बहुत तीखी टिप्पणी देते हुए कहा, सदन के भीतर इस तरह के आचरणों पर गंभीर कार्यवाई की जानी चाहिए। संसद अपनी हर बैठक के पहले अपनी गरिमा, पवित्रता और सर्वोच्च स्थान बनाए रखने का संकल्प पारित करती है, जिससे लोकतांतत्रिक मूल्य और सिद्धांत मजबूत हो सकें। संसद और विधानसभा की लोगों के प्रति जवाबदेही बढ़ाने का संकल्प होता है। सुप्रीम कोर्ट ने जब ये कहा, कि सदन में हंगामा करने वाले सांसदों और विधायकों को आज कड़ा संदेश देने की जरूरत है, संसद और विधानसभा में सांसदों और विधायकों का अनुचित व्यवहार लगातार चर्चा का विषय रहता है, जिसको अब बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस डॉ. धनन्जय वाई चंद्रचूड और जस्टिस एमआर शाह वाली दो जजों की बेंच ने सीपीआईएम के प्रमुख नेताओं द्वारा विधानसभा में हंगामें का मामला वापस लेने के लिए दाखिल की गई अर्जी पर ये टिप्पणी दी।
भारत लोकतांत्रिक देश है एवं संसदीय व्यवस्था इसका महत्वपूर्ण हिस्सा है। संसदीय व्यवस्था और परंपरा के अनुरूप ही सारगर्भित बहस द्वारा भविष्य की संभावनाओं को खंगाला जाता है। विपक्ष का कार्य सदन में सत्ता-पक्ष के कार्यों एवं प्रत्येक योजनाओं की समीक्षा और जमीनी हकीकत को सदन में प्रश्नांकित करना होना चाहिए, ताकि सरकार की जवाबदेही और समय-सीमा तय की जा सके। सदन में होने वाली बहस सारे देश में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। देश की जनता राजनेताओं के विचारों से, सामाजिक मुद्दों से, उनके सरोकार से अवगत होती है। आने वाली पीढ़ी समाज को नवीन दृष्टिकोण से देखने के लिए दिशा-निर्देश भी प्राप्त करती है। आज जो कुछ भी देश की सदनों में चलता है, वो न केवल शर्मनाक है, बल्कि सांसदों और विधायकों की भाषा से शर्मिंदा होने की स्थितियां निर्मित करती है।
देश के पास ऐसे अनेक उदाहरण हैं, कि आज 70 साल बाद भी सदन में पूर्ववर्ती नेताओं के भाषण, उनकी नैतिकता, उनकी भाषा, उनका विषय प्रस्तुतिकरण विपक्ष के नेताओं के साथ सार्थक बहस के अनेकों उदाहरण देश के समक्ष हैं। आज चूंकि जो सांसद विधायक चुनकर आते हैं, उनकी पृष्ठभूमि, उनके आचरण की प्रस्तुति सदन में स्वयं कर देती है। शायद इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने अपराधियों के चुनाव लडऩे पर प्रतिबंध लगा दिया।
मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष गिरीश गौतम ने कल एक भव्य समारोह करते हुए एक पुस्तक का विमोचन किया, जिसमें करीब 1100 ऐसे शब्द या वाक्यांश थे, जिनका उच्चारण भी विधानसभा में प्रतिबंधित किया गया। जिसमें निहायत ही घटिया शब्दों का प्रयोग- गाड़ दूंगा, मार दूंगा, चोर-उचक्के, कुत्ते, तवायफ जैसे शब्दों के साथ ही पप्पू, तड़ीपार, फेंकू, घोटालेबाज, फर्जी पत्रकार ऐसे कई शब्दों पर रोक लगाई गई। निश्चित ही मप्र विधानसभा के अध्यक्ष गिरीश गौतम ने सदन में नैतिकता, शालीनता और सांस्कृतिक परंपराओं को सुरक्षित करने के लिए नवाचार कर रहे हैं। इससे सदन में बैठी महिला विधायक, सांसद, महिला पत्रकार और सदन की महिला कर्मचारी निश्चित ही राहत महसूस कर रही होंगी।
पिछले कुछ वर्षों में सदनों में विधायक, सांसदों की भाषा-शैली और आचरण अत्यंत शर्मनाक रहा है। आज मप्र विधानसभा अध्यक्ष की इस सार्थक पहल का यदि देश के सारे सदन अनुकरण करें, तो निश्चित ही देश के सदनों की गरिमा और सम्मान को स्थापित होने में देर नहीं लगेगी। आज तो सदन असभ्य और असंस्कृत लोगों का अड्डा बना हुआ लगता है। इस नवाचार से देश के सारे सदन पे्ररणा लेंगे और एक प्रतिबंध भी सांसदों और विधायकों पर लगेगा, कि वो बोलते समय मर्यादा का ध्यान रखें।
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सालों से मेरे घर की मुंडेर पर
कोई गौरैया पानी पीने नहीं आई...
हां! गाहे बगाहे, दुनियाभर के
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कभी संसद के गलियारों में
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सुप्रीम कोर्ट को देश के सांसदों और विधायकों के आचरण को लेकर जवाबदेही तय करके दंडात्मक कानून बनाया जाना चाहिए। जिस सांसद, विधायक की भाषा से, आचरण से, हंगामें से सदन की कार्यवाही बाधित हो उसे दंड दिए जाने की व्यवस्था हो, क्योंकि इनके आचरण से न केवल जनता का विश्वास टूटता है, बल्कि देश का विकास भी बाधित होता है। ऐसे लोगों को दुबारा चुनाव लडऩे पर भी रोक लगनी चाहिए। मध्य प्रदेश विधानसभा की सकारात्मक पहल की पहली सीढ़ी पर आज सदन के मुखिया विराजमान हैं। एक अच्छी बात ये है, कि जब इस पुस्तक का विमोचन हो रहा था, तब विपक्ष के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और नेता प्रतिपक्ष गोविन्द सिंह सहित वर्तमान मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान मंचासीन थे। जब दोनों ही दल मिलकर ये फैसला कर रहे थे, कि सदन में विधायकों का आचरण, भाषा और व्यवहार कुलीन हो, तो मध्य प्रदेश विधानसभा को देश की आदर्श विधानसभा बनने में संदेह नहीं है।
कलयुग को बनने न देंगे त्रेता,
चाहे हो भक्त या बैरी ये नेता।
संसद की कुर्सी शकुनि या विदुषी,
यम से पूछ रहा नचिकेता।
**लेखक वरिष्ठ पत्रकार (भोपाल) एवं सलाहकार सम्पादक "धर्म नगरी" / DN News हैं
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