#Afganistan : दुनिया की छत कांधे पर संभाले हुए औरत, देश की बुनियाद और मीनार है औरत...


...देनें तो  पड़ेंगे तुम्हे  दे  क्यों  नहीं  देते,
वो तमाम हक, जिनकी हकदार है औरत।
- बीते दो दशक में महिलाओं की सारी उपलब्धियां हुईं व्यर्थ ! 
महिला विमर्श : अफगानिस्तान में तालीबानी शासन के संदर्भ में
-अनुराधा त्रिवेदी**

अफगानिस्तान में तालीबानियों का कब्जा होने के बाद देश रातों-रात महिलाओं के लिए बदल गया। बद से बदतर हालात झेल रही महिलाएं और बच्चियां चमरपंथी विद्रोह का शिकार हो गईं हैं। महिलाओं में बहुत डर बैठ गया है। ये उनके लिए सबसे बुरे सपने के सच होने के जैसा है। 2001 से पहले जब अफगानिस्तान पर तालीबान का शासन था, उस समय महिलाओं के लिए कानून काफी दमनकारी थे। महिलाओं को न पढऩे की अनुमति थी, न बाहर निकलने की। तालीबानी शासन लौटने के साथ ही महिलाओं की अपने भविष्य को लेकर सारी उम्मीदें टूट गई हैं।

पिछले दो दशक में महिलाओं ने जो कुछ उपलब्धियां हासिल की, वो सब व्यर्थ हो गया। अफगानों की एक पूरी पीढ़ी आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य के निर्माण के साथ ही जवान हुई। एक महिला पत्रकार ने जो नेशनल टीवी चैनल में एंकर थी, उन्होंने बताया, काबुल में तालीबान के कब्जे के बाद वो जब अपने चैनल के दफ्तर पहुंची और अपना आई-कार्ड दिखाकर अंदर जाना चाहा, तो उन्हें अंदर नहीं आने दिया गया। और उनकी नौकरी चली गई। काबुल की एक अन्य महिला रिपोर्टर, जो देश छोडऩे में असमर्थ है, उन्होंने कहा, हमने जीवनभर सहा है। आगे भी सहते रहेंगे।

एक अफगानी महिला याद करते हुए बताती है, हम सभी बड़ी उम्र की महिलाएं हैं। इस बारे में बात कर रही हैं, कि पुराने दिनों में एक महिला के रूप में सबकुछ कितना कठिन था। मुझे याद है, कैसे तालीबानी महिलाओं और लड़कियों को पीटते थे, जो बिना बुर्के के घर से निकल जाती थीं। एक और महिला पत्रकार ने अपनी व्यथा बताते हुए कहा, कि चरमपंथी समूह के सत्ता में आने के बाद वो देश छोडक़र जाने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन हवाईअड्डे के रास्ते बंदूक की नोक पर उन्हें लूट लिया गया। उनका पासपोर्ट और दस्तावेज छीन लिए गए, लेकिन वह हवाई अड्डे तक पहुंचने में कामयाब हो गईं।
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तालिबान से लड़ने के लिए महिला गवर्नर ने फौज बनाई
तालिबान को रोकने के लिए अफगानिस्तान की एक महिला गवर्नर अपने इलाके में फौज खड़ी कर रही थी अपनी जमीन और मवेशी बेच कर लोग हथियार खरीद रहे हैं और उनकी सेना में शामिल हो रहे थेऊपर चित्र में- पिकअप की फ्रंट सीट पर सलीमा माजरी मजबूती से बैठी हैं उत्तरी अफगानिस्तान के ग्रामीण इलाकों से गुजरती उनकी गाड़ी की छत पर लगे लाउडस्पीकर में एक मशहूर स्थानीय गाना बज रहा है पुरुष प्रधान अफगानिस्तान के एक जिले की महिला गवर्नर माजरी तालिबान से लड़ने के लिए मर्दों की फौज जुटाने निकली हैं गाड़ी पर गाना बज रहा है- "मेरे वतन... मैं अपनी जिंदगी तुझ पर कुर्बान कर दूंगा" लेकिन ये स्थिति काबुल पर तालिबान के कब्जे (16 अगस्त) से पहले की है, जब सलीमा अपने इलाके के लोगों से यही करने को कह रही थी। एक पखवारे के बाद अब वहां की स्थिति शायद बदल गई है
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एक और महिला पत्रकार ने बताया, तालीबान के आने के डर ने महिलाओं के लिए सार्वजनिक स्थानों में जहर बो दिया है, जब हम घर की तरफ आ रहे थे, तो लोग उनपर चिल्ला रहे थे कि तुम औरतों की वजह से तालीबान अफगानिस्तान में आ गए हैं और अब ये तुमको अनुशासित करेंगे। भले ही तालीबान ने अफगानिस्तान जीत लिया हो, लेकिन अपनी पहली मेयर को वो डरा नहीं सके। वहां की पहली महिला मेयर जरीफा गफ्फारी देश पर तालीबार के कब्जे के बाद बहुत ज्यादा चिन्तित हैं। अब जरीफा ने तालीबान को खुला चैलेंज दिया, कि तालीबान आए, मुझे और मेरे जैसे अन्य लोगों को मार डाले क्योंकि हम उनके खिलाफ हैं। जरीफा ने बदलते हालात में अपनी हिम्मत खो दी है। उन्होंने कहा, यहां मेरी या मेरे परिवार की मदद करने वाला कोई नहीं है। मैं अपने अपार्टमेंट में अपने पति और परिवार के साथ बैठी हुई हूं। वो मुझे और मेरे जैसे लोगों को मार डालेंगे, लेकिन मैं अपने परिवार को छोडक़र जा नहीं सकती। आखिर मैं जाऊँगी तो कहां?

ये हालात तकरीबन पूरे अफगानिस्तान में हैं। ऐसे कई वीडियो सामने आएं हैं, जिसमें तालीबानी आतंकवादी महलों और गवर्नर हाउस के भीतर अय्यासी करते दिख रहे हैं। घर-घर जाकर 12-15 साल की बच्चियों को अगवा कर उन्हें सेक्स गुलाम बना रहे हैं। ऐसी रिपोर्ट्स सामने आई हैं, कि देश के अलग-अलग शहरों में महिलाओं और लड़कियों के सामने खुद को बचाने का संकट खड़ा हो गया है।
एक अफगानी लडक़ी का वीडियो आया, जिसमें उसने मार्मिक अपील की, जिसने दुनिया को दहला दिया। उसने पूरी दुनिया से पूछा, कि क्या कोई हमारे को बचाने वाला नहीं है?

बीच में कुछ ऐसी भी तस्वीरे आईं जिसमें महिलाएं जुल्म के खिलाफ बेखौफ प्रदर्शन कर रही हैं। ये तस्वीरें बताती हैं, कि कैसे जब ये पूरी दुनिया जुल्म के सामने हार मान लेती है, तब महिलाएं क्रांति का बिगुल फूंकती हैं। इन महिलाओं ने सीधे तालीबानियों के आंखों में आंख डालकर ललकारा है, भले ही हमारी जान ले लो, लेकिन तुम्हारे घटिया, कट्टरपंथी राज को बर्दाश्त नहीं करेंगे। सोशल मीडिया पर इन महिलाओं की बहादुरी को लोग सलाम कर रहे हैं। यह भी सत्य है, कि आज अफगानिस्तान की महिलाएं 20 साल पुरानी महिलाओं की तरह नहीं हैं। आज की अफगानी महिला अपने अधिकारों के लिए लडऩा जानती है। भले ही अफगान सैनिकों ने तालीबार के सामने सरेंडर कर दिया हो, लेकिन महिलाओं ने अपने स्तर पर आंदोलन की शुरुआत कर दी है। ऐसी ही एक महिला- क्रिस्टल बायात, जिन्होंने तालीबानियों के सामने न हार मानी है, न उनकी मांगों की आगे झुकी हैं।
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अफगानिस्तान के स्वतंत्रता दिवस के दिन भी क्रिस्टल बायात ने महिलाओं को लेकर विरोध प्रदर्शन किया और अफगानिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाए। उस समय उनका तालीबानियों से भी सीधा सामना हुआ। उन्हें धमकी तक दे दी गई। क्रिस्टल कहती हैं कि हम तालीबान को ये बताना चाहते थे, कि अब सबकुछ बदल चुका है। सभी अपने अधिकारों को लेकर जागरूक हैं। उस आंदोलन के दौरान तालीबानियों ने अपनी कायरता दिखाते हुए भीड़ पर गोलियां चला दी थी। इतना सबकुछ होने के बाद भी किस्टल के हौसलें बुलंद हैं। उनका कहना है, हम भी सशक्त हैं, हमारे भी कुछ सपने हैं। अगर हम आज शांत रहें, तो हम अपना भविष्य खो देंगे। उन्होंने पूरी दुनिया के उन देशों से मदद मांगी है, जो महिलाओं के हक का सम्मान करते हैं।
अफगानिस्तान की पहली महिला पायलट नीलोफर
इन तमाम प्रताड़नाओं के बीच अफगानिस्तान की पहली महिला पायलट नीलोफर, जिसने तालीबान की धमकी के बाद भी मिलिस्ट्री का एयरक्रॉफ्ट उड़ाया। निलोफर अफगानिस्तान की पहली महिला हैं, जिन्होंने एयरफोर्स की यूनिफार्म पहनकर एक नया इतिहास रचा था। 2011 में नीलोफर एयरफोर्स एकेडमी से सेकंड लेफ्टीनेंट बनकर निकलीं। तब उन्हें और उनके परिवार को तालीबान की ओर से जान से मारने की धमकी मिली। तब उन्होंने हिम्मत न हारकार अपनी ड्यूटी पूरी की। नीलोफर का सपना सी-हर्कुलिस ट्रांसपोर्ट एयरक्रॉफ्ट को उड़ाने का था, जो दुनिया का सबसे एडवांस एयरक्रॉफ्ट है, लेकिन तालीबान के आते ही उन्हें अफगानिस्तान एयरफोर्स को अलविदा कहना पड़ा। ये कुछ बातें हैं, जो ये बताती हैं, कि पुरुष प्रधान समाज ने अपनी ही आधी इकाई को बेइज्जत, अपमानित और उपेक्षित करके खुद को बहादुर होने का खिताब अता किया है।

दुनिया की छत कांधे पर संभाले हुए औरत,
इस देश की बुनियाद और मीनार है औरत,
देनें तो पड़ेंगे तुम्हे दे क्यों नहीं देते,
वो तमाम हक, जिनकी हकदार है औरत।
-वरिष्ठ पत्रकार, सलाहकार संपादक- "धर्म नगरी" / DN News
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दोजख (नरक) जैसी यातना भोगने पर मजबूर थीं, क्‍या फिर लौट आए वो दिन ?

अपने घरों को छोड़कर भाग रहे लोग इस डर के साए में हैं, कि कहीं फिर से तालिबान शासन (Taliban Rule) का वह दौर न लौट आए, जिसमें महिलाओं की जिंदगी (Women's Life) नरक जैसी हो गई थी।
अफगानिस्‍तान (Afghanistan) की इंच-इंच जमीन पर बढ़ता तालिबान (Taliban) का कब्‍जा अफगानी महिलाओं (Afghani Women) को उस दौर की याद दिला रहा है, जिसमें उन्‍होंने नरक जैसी यातनाएं भुगती थीं। 1996 से 2001 के बीच देश में तालिबान का शासन था और यह समय यहां की महिलाओं के लिए बेहद बदतर और ढेरों प्रतिबंधों (Restrictions) वाला था.

तालिबानी दौर में महिलाएं अपने ही घरों में कैदी की तरह रहीं। ना तो उन्‍हें घर से निकलने की इजाजत थी, ना ही पढ़ने की, बाहर जाकर काम करने की। यदि मजबूरी में बाहर निकलना पड़े, तो इसके लिए उन्‍हें किसी पुरुष रिश्‍तेदार (Male Relative) का साथ लेना जरूरी होता था। हालांकि, अभी तालिबान द्वारा कई प्रांतों पर कब्‍जा जमाने के बाद ऐसे प्रतिबंध लागू किए गए हैं या नहीं, इसकी पुख्‍ता जानकारी नहीं मिली है, लेकिन हाल ही में तालिबानियों ने एक युवती की सिर्फ इसलिए हत्‍या कर दी, क्‍योंकि वह टाइट ड्रेस पहने थी।
1996 में तालिबानी राज में महिलाओं को आज़ादी छोड़िए मूल अधिकारों से भी वंचित हो गई (सांकेतिक)

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