#Afganistan : तालीबानियों का महिमा मंडन देश में ध्रुवीकरण की कोशिश या...


असल मुद्दों को पीछे छोडऩे का षड़यंत्र 
-अनुराधा त्रिवेदी*
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भारत सरकार ने एक अगस्त को इस्लामिक महिला आजादी दिवस घोषित किया। तीन तलाक जैसे मुद्दों पर मुस्लिम महिलाओं को भारत सरकार ने कानून दिया, जिससे उनको तलाक देना आसान नहीं होगा और यदि तलाक होता है तो उनके भविष्य की सुरक्षा व्यवस्था होगी। हाल ही में अफगानिस्तान में तालीबान ने सत्ता हथियाई है। बीते 1996 से 2001 तक तालीबान ने अफगानिस्तान पर शासन किया। उस शासनकाल में तालीबान ने महिलाओं की जो दुर्दशा की थी, सारी दुनिया उससे परिचित है। अब जब इन्होंने गनी को देश छोडक़र भागने को मजबूर करके जिस तरह से सत्ता हथियाई है, सारी दुनिया की नजरें अफगानी महिलाओं पर टिक गई हैं।
इतिहास गवाह है और वर्तमान देख रहा है, जब भी आततायियों ने सत्ता हथियाई है, उनका पहला निशाना महिला और बच्चियां रही हैं। मुझे आज तक ये बात समझ नहीं आई, कि महिला उपत्पीडऩ द्वारा पुरुष शक्तिशाली होने का दंभ कैसे भर सकता है। लड़ाई तो बराबरी वालों में होती है, जो परिवार या समाज का प्रमुख पुरुष होता है, यदि उसका उत्पीडऩ हो तो बात समझ में आती है, लेकिन अपने से बेहद कमजोर, नाजुक और कोमल महिला या बच्ची का उत्पीडऩ करके पुरुष शक्तिशाली समाज की रचना कैसे कर सकते हैं? पुरुष को यदि किसी को गाली देना हो, तो भी उसे मां-बहन के शब्दों की जरूरत है, क्योंकि पुरुष प्रधान गालियां कभी सुनने में नहीं आतीं। शक्ति प्रदर्शन के लिए भी यदि आपको महिला की जरूरत है, तो निश्चित ही आपसे ज्यादा कमजोर और कायर पृथ्वी का कोई दूसरा जीव नहीं है।

तालीबान ने महिला शिक्षा को लेकर दुनियाभर की बातें कहीं। सिर्फ बातें हैं। शिक्षा जैसी कोई चीज नहीं। तकलीफ तब होती है, जब पुरुष ये तय करते हैं, कि महिलाएं क्या करें और क्या न करें। अफगानिस्तान का दुर्भाग्य ये कि शिक्षा मंत्री का पद ऐसे व्यक्ति को दिया गया है, जो दुर्दान्त आतंकवादी है और स्वयं अनपढ़ है। जिन हाथों ने बंदूकों से काम किया, उनसे कलम पकडऩे की बात समझ के बाहर है। अभी दो दिन पहले ही हिन्दुस्तान के एक बड़े मौलाना जिनका बड़ा सम्मान है देश में, तालीबान की नीतियों से इतने प्रभावित हो गए, कि उन्होंने बयान दिया कि महिलाओं और बच्चियों को को-एजुकेशन में नहीं पढ़ाना चाहिए। उससे उनका चरित्र खराब होता है।

सिर पीटने को दिल कर रहा है, कि हम एक खुले समाज में रहने वाले लोग जिनकी बेटियां ओलंपिक में देश में झंडे गाड़ रही हैं, चांद पर जा रही हैं, मंगल ग्रह की खोज के यान बना रही हैं, हवाई जहाज से लेकर फाइटर प्लेन तक उड़ा रही हैं, जिन्होंने हर क्षेत्र में चाहे वो सेना हो, पुलिस हो, वैज्ञानिक हो, प्राध्यापक हो, खिलाड़ी हो या अंतरिक्ष विज्ञानी हो, पूरे विश्व में भारतीय बेटियां और महिलाएं अपनी कामयाबी का परचम लहरा रही हैं। वहां शिक्षा को लेकर जबरदस्ती शरीया थोपने की बात बेहद नागवार है। एक महिला पढ़ती है, तो वह दो परिवारों को शिक्षित करती है। आप आदम-ईव के जमाने की फिलॉस्फी लेकर आज के आधुनिक युग में कदमताल नहीं कर सकते।
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आजादी के इतने बरस बाद मौलाना को याद आया कि को-एजुकेशन बुरी चीज है। इससे चरित्र गिरता है। मौलाना ने यदि अपने देश के बेटों को ये संदेश दिया होता, कि बेटियों को संरक्षण दें, उनका सम्मान करें, तो शायद को-एजुकेशन का विरोध करने की नौबत नहीं आती। मुझे ये समझ नहीं आता कि ईश्वर के बाद महिला ही है, जो सृष्टि का विस्तार करती है। मेरे धर्मग्रंथ कहते हैं, नारी जाति पूजनीय है, इस्लाम में भी, कुरान में भी खुद पैगंबर साहब ने भी शिक्षा पर भयंकर जोर दिया है। कुरान का काफी हिस्सा शिक्षा लेने के लिए इंगित करता है। कुरान में महिलाओं को असीमित अधिकार दिए गए हैं। अफसोस इस बात से है, कि समाज के कर्ताधर्ता स्त्री के अधिकारों पर तो मौन हैं, फतवे देते हैं शिक्षा के खिलाफ। महिलाओं को क्या करना है, ये बताते हैं पुरुष, लेकिन पुरुष क्या करे या क्या न करे, इसको बताने की कहीं कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में ऐसी व्यवस्था, समाज में आराजकता फैलाती है।
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अफानिस्तान में तालीबान का शासन आने के बाद अफरा-तफरी का माहौल है। छोटी बच्च्चियों, जवान बेटियों और महिलाओं की आंखों में खौफ है, लेकिन भारत में कुछ लोग ऐसे हैं, जिनको तालीबानियों पर बहुत मुहब्बत उमड़़ रही है। इनमें शायर से लेकर सांसद तक तालीबान के मोहब्बती बने हुए हैं। जरा इन्हीं के घरों से तालीबानी नीतियों को लागू करिए, फांसी का फंदा लगाकर लटक लेंगे और चीखेंगे- हमें बचाइये। ये वो आग तापने वाले लोग हैं, जब इनके अपने घरों में आग लगती है, तो बचाने के लिए चीखते हैं। इन्हें शर्म आना चाहिए, क्या ये जानते नहीं कि बच्चों और महिलाओं के साथ तालीबान में कैसी क्रूरता हो रही है। जो

लोग तालीबानियों का महिमा मंडन कर रहे हैं और हिन्दुस्तान के अंदर उनके प्रसंशक बने घूम रहे हैं, दरअसल ये राजनीति है। ये इस महिमा मंडन के जरिए ध्रु्रवीकरण को जन्म दे रहे हैं। इससे सांप्रदायिक धु्रवीकरण की जमीन तलाशी जा रही है। इस तरह के लोग इस जमीन को और उपजाऊ बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं, ये नहीं जानते कि यदि ध्रुवीकरण हुआ, तो सारे असल मुद्दे पीछे छूट जाएंगे। नुकसान उनको होगा, जिनके अंदर मुहब्बत बेतहाशा उमड़ रही है। उनके लिए तो मैं केवल एक शेर पढ़ सकती हूं-
रहनुमाओं की अदाओं पे फिदा है दुनिया,
इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारो,
लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की,
तुमने कह दी है तो कहने की सजा लो यारों।
*वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रबंध सम्पादक- "धर्म नगरी" / DN News भोपाल।

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