#ISKCON : भगवान कृष्‍ण के महान भक्‍त व जाने-माने देशभक्‍त भी थे स्‍वामी प्रभुपाद : PM


"भारत के लिए आस्था का मतलब है,
उमंग, उत्साह, उल्लास और मानवता पर विश्वास"
प्रभुपादजी की स्मृति में 125 रु का सिक्का PM ने जारी किया
भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी
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"हम सब जानते हैं कि प्रभुपाद स्वामी एक अलौकिक कृष्णभक्त तो थे ही, साथ ही वो एक महान भारत भक्त भी थे। उन्होंने देश के स्वतन्त्रता संग्राम में संघर्ष किया था। असहयोग आंदोलन के समर्थन में स्कॉटिश कॉलेज से अपना डिप्लोमा तक लेने से मना कर दिया था। आज ये सुखद संयोग है कि ऐसे महान देशभक्त का 125वां जन्मदिन एक ऐसे समय में हो रहा है, जब भारत अपनी आज़ादी के 75 साल का पर्व- अमृत महोत्सव मना रहा है..."

"...आज दुनिया के अलग अलग देशों में सैकड़ों इस्कॉन मंदिर हैं, कितने ही गुरुकुल भारतीय संस्कृति को जीवंत बनाए हुये हैं। इस्कॉन ने दुनिया को बताया है, कि भारत के लिए आस्था का मतलब है- उमंग, उत्साह, उल्लास और मानवता पर विश्वास...। आज विद्वान इस बात का आकलन करते हैं, अगर भक्तिकाल की सामाजिक क्रांति न होती तो भारत न जाने कहाँ होता, किस स्वरूप में होता ! लेकिन उस कठिन समय में चैतन्य महाप्रभु जैसे संतों ने हमारे समाज को भक्ति की भावना से बांधा, उन्होने ‘विश्वास से आत्मविश्वास’ का मंत्र दिया... एक समय अगर स्वामी विवेकानंद जैसे मनीषी आए जिन्होंने वेद-वेदान्त को पश्चिम तक पहुंचाया, तो वहीं विश्व को जब भक्तियोग को देने की ज़िम्मेदारी आई तो श्रील प्रभुपाद जी और इस्कॉन ने इस महान कार्य का बीड़ा उठाया। उन्होंने भक्ति वेदान्त को दुनिया की चेतना से जोड़ने का काम किया...।


ये विचार श्रील भक्तिवेदांत स्‍वामी प्रभुपाद की 125वीं जयंती पर प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने आज (एक सितंबर) वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से 125 रुपये का एक स्‍मारक सिक्‍का जारी करते हुए व्यक्त किया। प्रधानमंत्री ने मेक इन इंडिया उत्पादों को दुनिया के कोने-कोने में पहुंचाने के लिए स्वामी प्रभुपाद के हरे कृष्ण आंदोलन की भाँति आंदोलन चलाने का आह्वान किया।


मैं कई बार जब आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया के लक्ष्यों की बात करता हूं, तो मैं अपने अधिकारियों को, बिज़नसमेन को इस्कॉन के हरे कृष्णा मूवमेंट की सफलता का उदाहरण देता हूं। हम जब भी किसी दूसरे देश में जाते हैं, और वहां जब लोग 'हरे कृष्ण' बोलकर मिलते हैं तो हमें कितना अपनापन लगता है, कितना गौरव भी होता है। कल्पना करिए, यही अपनापन जब हमें मेक इन इंडिया प्रोडक्‍ट्स के लिए मिलेगा, तो हमें कैसा लगेगा! इस्कॉन से सीखकर हम इन लक्ष्यों को भी हासिल कर सकते हैं।


प्रधानमंत्री ने कहा, भारत का योग का ज्ञान, यहां की स्‍थायी जीवन शैली और आयुर्वेद जैसा विज्ञान विश्‍वभर में फैला हुआ है। हमारा यह संकल्‍प है कि पूरा विश्‍व इससे लाभान्वित हो। उन्होंने कहा- 


मानवता के हित में भारत दुनिया को कितना कुछ दे सकता है, आज इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण है विश्‍वभर में फैला हुआ हमारा योग का ज्ञान। हमारी योग की परम्परा। भारत की जो सस्‍टेनेबल लाइफस्‍टाइल है, आयुर्वेद जैसे जो विज्ञान हैं, हमारा संकल्प है कि इसका लाभ पूरी दुनिया को मिले। आत्मनिर्भरता के भी जिस मंत्र की श्रील प्रभुपाद अक्सर चर्चा करते थे, उसे भारत ने अपना ध्येय बनाया है और उस दिशा में देश आगे बढ़ रहा है।


प्रधानमंत्री ने देश के विकास में भक्ति आंदोलन का उल्लेख करते हुए कहा-
"... भक्ति आंदोलन ने देश में एकता और समानता का भाव पैदा किया है। भक्ति योग को विश्‍व तक ले जाने की जिम्‍मेदारी आई तो श्रील प्रभुपाद और इस्‍कॉन ने यह महान काम किया। विद्वान इस बात का आकलन करते हैं कि अगर भक्तिकाल की सामाजिक क्रांति न होती तो भारत न जाने कहां होता, किस स्वरूप में होता। लेकिन, चैतन्य महाप्रभु जैसे संतों ने हमारे समाज को भक्ति की भावना से बांधा। सामाजिक ऊंच-नीच, अधिकार-अनाधिकार, भक्ति ने इन सबको खत्म करके शिव और जीव के बीच एक सीधा संबंध बना दिया। भक्ति की इस डोर को थामे रहने के लिए अलग-अलग कालखंड में ऋषि-महर्षि और मनीषी समाज में आते रहे। स्वामी विवेकानंद जैसे मनीषी आए, जिन्होंने वेद-वेदान्त को पश्चिम तक पहुंचाया।


प्रधानमंत्री ने कहा, इस्‍कॉन ने विश्‍व को ज्ञान दिया कि भारत के लिए आस्‍था का अर्थ उत्‍साह, उल्‍लास और मानवता में आस्‍था है। स्‍वामी प्रभुपाद ने इस्‍कॉन की स्‍थापना किया,  जिसे हरे कृष्‍ण आंदोलन के रूप में भी जाना जाता है।

स्वामीजी ने किया 100 से अधिक मंदिरों की स्थापना- 
उल्लेखनीय है, स्वामीजी ने 100 से अधिक मंदिरों की स्थापना की और दुनिया को भक्ति योग का मार्ग दिखाने वाली कई पुस्तकें लिखी हैं. वैदिक साहित्य के प्रसार में इस्कॉन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस्कॉन ने ही श्रीमद्भगवद् गीता और अन्य वैदिक साहित्य का 89 भाषाओं में अनुवाद किया, जो दुनिया भर में लोकप्रिय हुआ। सम्प्रति, 125 रु का सिक्के दिखने में आकर्षक है। इसके एक ओर राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ के साथ 125 रु मुद्रित है, तो दूसरी ओर स्वामी प्रभुपाद का चित्र उभरा है।
 
अब तक 7 बार 125 रु के स्मारक सिक्के-
पहले भी ऐसे स्मृति सिक्के जारी किए गए हैं। इस वर्ष के आरम्भ में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती पर सरकार ने 125 रुपये का सिक्का हुआ था। वहीं, इससे पहले 9 अक्टूबर 2019 को प्रसिद्ध योगी और योगदा सत्संग सोसायटी ऑफ इंडिया और सेल्फ-रियलाइजेशन फेलोशिप के संस्थापक परमहंस योगानंद की 125वीं जयंती पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 125 रु का स्मारक सिक्का जारी किया था। परमहंस योगानंद को पश्चिमी देशों में ‘योग पिता के रूप पर जाना जाता है। 

सरकार द्वारा भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद के 125 रुपये के सिक्के से पहले भी देश में 7 बार 125 रु के स्मारक सिक्के जारी किया गया है। भारत सरकार की कोलकता टक्साल द्वारा स्वामी प्रभुपाद की स्मृति में बनाये जाने वाले 35 ग्राम वजन के सिक्के में अन्य धातुओं के साथ 50% चाँदी का मिश्रण भी होगा। यह 125 रु का सिक्का कभी प्रचलन में नही आएगा।
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ऐसे हैं ये सिक्के-  
महापुरुषों की स्मृति में जारी किए जाने वाले ये सिक्के आम सिक्कों की तरह ही होते हैं, लेकिन विशेष होने के कारण इनका मूल्य चलन में मौजूद अन्य सिक्कों से ज्यादा होता है सिक्कों को एकत्र करने के शौकीन लोग, महापुरुषों को मानने वाले लोग या फिर आम लोग भी इन सिक्कों को सहेजने की चाहत रखते हैं ऐसे लोग रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित की गई कीमत पर सिक्के खरीद सकते हैं। 

कहां, कैसे ले सकते हैं सिक्के ?
यदि आप यह सिक्का खरीदना चाहते हैं, तो इसकी बुकिंग करा सकते हैं। RBI के मुंबई और कोलकाता स्थित भारत सरकार मिंट ऑफिस इस तरह के स्पेशल एडिशन सिक्के और स्मृति सिक्के जारी करते हैं। ये भारतीय प्रतिभूति मुद्रण और मुद्रा निर्माण निगम लिमिटेड के अंतर्गत आते हैं। इन सिक्कों को पाने के लिए निगम की वेबसाइट पर आवेदन करना होता है
 इसके लिए रजिस्ट्रेशन जरूरी होता है रजिस्टर्ड ग्राहक ही स्मृति सिक्कों के लिए आवेदन कर सकते हैं इस तरह के सिक्कों के लिए आरबीआई की वेबसाइट पर आप भी रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। 
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