श्राद्ध या पितृ पक्ष में ध्यान रखें...


श्राद्ध के प्रकार, पितृ-पक्ष की सावधानियां... 


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श्राद्ध के पांच प्रकार हैं- नित्य, नैमित्तिक काम्य, वृद्धि (नान्दी श्राद्ध) एवं पार्वण श्राद्ध। प्रतिदिन पितृ-देवों के निमित्त जो श्राद्ध किया जाता है उसे नित्य-श्राद्ध कहते हैं। शास्त्रानुसार, इसमें यदि जल से श्राद्ध कराया जाये तो भी पर्याप्त होता है। एकोदिष्ट-श्राद्ध को नैमित्तिक-श्राद्ध कहते हैं। किसी विशेष कामना की पूर्ति के लिए जब पितृों का श्राद्ध किया जाता है तो वह काम्य श्राद्ध कहलाता है। 
जब कुल (खानदान) में किसी प्रकार की वृद्धि का अवसर उपस्थित हो- जैसे पुत्र जन्म, विवाह कार्य आदि हों और श्राद्ध किया जाता है, तो वह नान्दी-श्राद्ध अथवा वृद्धि-श्राद्ध कहा जाता है इसके अतिरिक्त पितृ पक्ष अमावस्या या अन्य पर्व तिथियों पर जो श्राद्ध किया जाता है, उसे पार्वण श्राद्ध कहते हैं।

अपने  पितरों का स्मरण करते हुए श्राद्ध पक्ष में नियमित श्राद्धकर्म करते हैं, कुछ बातों का आप ध्यान रखें। धर्म ग्रन्थों में श्राद्ध-पक्ष एवं पितरों के महत्व को बताया गया है। पितरों (पितृ गणों) की प्रसन्नता अत्यन्त आवश्यक होती है, इसलिए श्राद्ध पक्ष में श्रद्धापूर्वक पितरों का ध्यान  रखकर श्राद्ध का कर्म करें। इसे पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देतें हैं- 

तर्पण विधि-
पूर्व दिशा की ओर अपना मुँह कर कुशा का मोटक बनाकर, चावल (अक्षत्) से देव-तर्पण करना चाहिए। देव-तर्पण के समय यज्ञोपवीत सब्य (अर्थात् बाएँ कन्धे) पर ही होता है। देव-तर्पण के बाद उत्तर दिशा की ओर मुख करके “कण्ठम भूत्वा” जनेऊ गले में माला की तरह करके, कुश के साथ जल में जौ डालकर ऋषि-मनुष्य तर्पण करना चाहिए। 
अन्त में जनेऊ दाहिने कन्धे पर कर (अपसव्य अवस्था) में दक्षिण की ओर मुख कर अपना बायाँ पैर मोड़कर, कुश-मोटक के साथ जल में काला तिल डालकर पितर तर्पण करें।

पुरुष-पक्ष के लिए “तस्मै स्वधा” तथा स्त्रियों के लिए “तस्यै स्वधा” का उच्चारण करना चाहिए। इस प्रकार देव-ऋषि-पितर-तर्पण करने के बाद कुल (परिवार), समाज में भूले-भटके या जिनके वंश में कोई न हो, तो ऐसी आत्मा के लिए भी तर्पण का विधान बताते हुए शास्त्र में उल्लिखित है कि अपने कन्धे पर रखे गमछे के कोने में काला तिल रखकर, उसे जल में भिंगोकर, अपने बाईं तरफ निचोड़ देना चाहिए। इस प्रक्रिया का मन्त्र इस प्रकार है- 
ये के चास्मत्कूले कुले जाता, अपुत्रा गोत्रिणो मृता। 
ते तृप्यन्तु  मया  दत्तम  वस्त्र  निष्पीडनोदकम।। 
तत्पश्चात् “भीष्म:शान्तनवो वीर:..” इस मन्त्र से आदि पितर भीष्म पितामह को जल देना चाहिए।
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श्राद्ध में इनका रखें ध्यान-
- यदि दो वर्ष से पूर्व किसी बालक की मृत्यु हो जाये, तो इसके लिए श्राद्ध या तर्पणादि करने की आवश्यकता नहीं है।

- दिन का आठवां मुहुर्त कुतप-काल होता है, जिका काल 11:36 बजे से 12:24 बजे के मध्य होता हैं। यह समय श्राद्ध-काल में विशेष प्रशस्त होता है। इसमें किया गया श्राद्ध अत्यन्त फलदायक होता है।

श्राद्ध पक्ष में कम्बल, चांदी, कुशा, काले तिल, गौ और दोहित्र का विशेष महत्व होता है।

- पिण्ड दान करते (श्राद्ध में) समय तुलसी का प्रयोग अवश्य करें, क्योंकि इससे पितृ प्रसन्न व संतुष्ट होते हैं।
- गौ निर्मित वस्तुयें जैसे- दूध, दही, घी आदि श्राद्ध में उपयोक करना श्रेष्ठ है। धान्यों में जौ, तिल, गेंहू, मूंग, सावा, कंगनी आदि सभी को उत्तम माना गया है।

- आम, बेल, अनार, बिजौरा, नीबू, पुराना आवंला, खीर, नारियल, खालसा, नारंगी, खजूर, अंगूर, परवल, चिरौंजी, बैर, इन्द्र जौ, बथुआ, मटर, कचनार, सरसो इत्यादि पितरों को विशेष प्रिय होती हैं। अत: भोजन आदि में इनका प्रयोग करना श्रेष्ठ रहता है।


- श्राद्ध के निमित्त ब्राह्मण भोजन कराया जाता है। ब्राह्मण यदि नित्य गायत्री का जाप करता हो, सदाचारी हो तो उसे कराया गया भोजन का विशेष फलदायी होता है।

- भोजन करने वाले ब्राह्मण को (श्राद्ध में) यथासम्भव मौन रखना चाहिए।
- पितृ पक्ष में तम्बाकू, तेल लगाना, उपवास करना, दवाई लेना, दूसरों का भोजना करना, दातून करना आदि वर्जित माना गया है।

- श्राद्ध के निमित्त आये ब्राह्मणों को भोजन पकाते व खिलाते समय लोहे के पात्र का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

- श्राद्ध पक्ष में मांस एवं मदिरा का सेवन कदापि नहीं करना चाहिए।


गाय का दान 
श्राद्ध-पक्ष में श्रेष्ठ माना गया है। यदि पितृों के निमित्त इस अवधि में गो दान किया जाये तो पितृगणों को विष्णु-लोक प्राप्त होता है।

- पितृ पक्ष में "पितृसूक्त" का पाठ करने से पितृगण अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। ब्राह्मण भोजन के समय पितृसूक्त का पाठ करने से इसका तुरन्त फल प्राप्त होता है। पितृ-पक्ष में निम्न (मंत्र"पितृ गायत्री" नित्य पाठ करना चाहिए।
ऊँ देवताभ्य: पितृभ्यच्क्ष महायोगिभ्य एव च।
नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:।।
- शास्त्रनुसार, पितृगणों का मुख सुई की नोक के बराबर  है। अतः पितृ गण अधिकांशत: असंतिृप्त व भूखे-प्यासे रहते हैं। श्राद्ध पक्ष में, नान्दी श्राद्ध के समय पितृगणों का मुख ऊखल के समान बड़ा हो जाता है। ऐसे समय में उनके निमित्त जो भी भोज्य सामग्री प्रदान की जाती है, वह पूर्णरूपेण उन्हें प्राप्त होती है।

- यदि किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु हुई हो या अपने पितरों के मोक्ष हेतु पितृ-पक्ष सर्वश्रेष्ठ है।

पिता का श्राद्ध ज्येष्ठ पुत्र को ही करना चाहिए। स्मृति ग्रन्थों के अनुसार पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, दौहित्र, पत्नी, भाई, भतीजा, पिता, माता, पुत्र-वधु, बहन, भांजा तथा सपिण्डजनों को श्राद्ध करने का अधिकार है। यथासम्भव पुरूष को ही श्राद्ध करना चाहिए।

- श्राद्ध से सम्बन्धित पूजा एवं कार्यों में चन्दन, खस और कपूर की गंध को उत्तम बताया गया है, परन्तु लाल चन्दन का प्रयोग कदापि नहीं करना चाहिए। इसके स्थान पर सफेद चन्दन का प्रयोग करना चाहिए। गंधहीन पुष्पों, उग्र-गंध वाले पुष्पों, काले या नीले रंग के पुष्पों अथवा किसी अशुद्ध स्थान पर उत्पन्न हुये पुष्पों का प्रयोग कदापि नहीं करना चाहिए।

- सब्जी या सलाद आदि बनाते समय (श्राद्ध में) बैंगन का प्रयोग अत्यन्त निषेध है। इसके अलावा उड़द, मसूर, अरहर, गाजर, लौकी, शलजम, हींग, प्याज, लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, कुल्थी, महुआ, अल्सी एवं चना यह वस्तुयें भी श्राद्ध में वर्जित होती हैं।

- श्राद्ध से केवल पितृगण ही प्रसन्न नहीं होते बल्कि जो व्यक्ति श्राद्ध करता है वह चराचर रूप में विद्यमान सभी सूक्ष्म देवताओं को भी प्रसन्न करता है। श्रद्धापूर्वक किये श्राद्ध से ब्रह्मा इन्द्र, रूद्र, अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, वायु, पशुगण, समस्त भूतगण, सर्पगण, वायु देव एवं दिव्य रूप में स्थित ऋषिगण भी प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

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