भारत-चीन 1962 युद्ध को लेकर, 'सरदार' की चेतावनी भी नेहरू ने नहीं सुनी


चीनी हमले से पहले 'सरदार' की चेतावनी को भी नेहरू ने नहीं सुना 
धर्म नगरी / DN News (मो.9752404020, वाट्सएप-6261868110 -केवल सदस्य, सहयोग, विज्ञापन व सदस्यों हेतु)  
22 अक्टूबर 1962 को प्रधानमंत्री नेहरू राष्ट्र के नाम संदेश में छल की वह कहानी सुना रहे थे, जिसके वह खुद एक लेखक भी थे, किरदार भी और आखिरकार छल के शिकार भी। साथ ही छला गया था पूरा भारत। महावीर और बुद्ध की शांतिपूर्ण धरती युद्ध भूमि में बदल गई थी। 
चीन ने भारत पर कैसे हमला कर दिया, इस पर संसद में नेहरू लगातार वक्तव्य दे रहे थे। तब करनाल के सांसद स्वामी रामेश्वरनंद व्यंग भरे अंदाज में कहा- चलो अब तो आपको चीन का असली चेहरा दिखने लगा... फिर से नेहरू जब बोलने लगे, विस्तार से बताने लगे, कि चीन ने कैसे-कैसे हमला दिया, तब करनाल के सांसद स्वामी रामेश्वरनंद व्यंग भरे अंदाज में कहा- चलो अब तो आपको चीन का असली चेहरा दिखने लगा। इस टिप्पणी पर नेहरू नाराज हो गए।

1962 में चीन से सम्मान और अपनी भूमि खोने वाले भारत ने डोकलाम में चीन की औकात समझा दी थी। डोकलाम विवाद पर भारत को बार-बार 1962 की याद दिलाने वाला चीन पीछे मुड़ गया था। पहले कभी स्मरण में नहीं आता कि चीन ने इस तरह से कभी रक्षात्मक रुख अपनाया हो। वो डोकलाम पर मात खाने के बाद चुप हो गया था। इसे कहते हैं पुनर्मुसिको भाव। उसे इस समय समझ में आ गया था, कि ये 1962 का भारत नहीं है। कुछ माह चुप रहने के बाद उसने गलवान में फिर अपनी पुरानी हरकत दोहराई। नतीजा मरने वाले चीनी सैनिकों की संख्या बताने में आज भी चीन चुप्पी साधे है।


डोकलाम पर चीन को शिकस्त देना भारत की अब तक की सबसे बड़ी ऐतिहासिक सफलता थी। विस्तारवादी चीन को युद्ध की पूर्व भूमिका बना रहा था, लेकिन भारत को पीछे न हटता देखकर चीन की आंखें भी फटी रह गई थीं। चीन अपनी विस्तारवादी नीति से बाज नहीं आता है। साम्राज्य विस्तार को लेकर आज विश्व की 18 देशों की सीमाओं से चीन का विवाद है। चाहे वो हांगकांग का मामला हो, भारत का हो, तुर्कमेनिस्तान का हो या ताईवान का। कमोवेश हर देश चीन की विस्तारवादी नीति से परेशान हैं।

नेहरू की पिलपिली चीन नीति का परिणाम यह रहा, कि देश को अपने ही पड़ोसी से 1962 में युद्ध लडऩा पड़ा और मुंह की खानी पड़ी। चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई को गले लगाने और हिन्दी-चीनी भाई-भाई के नेहरू के उदारवादी नारों को धूर्त चीन ने भारत की कमजोरी समझा। उस युद्ध के 58 सालों के बाद आज भी चीन ने हमारे महत्वपूर्ण अक्साई चीन पर अपना कब्जा जमा रखा है। चीन की तरफ से कब्जाए हुए भारतीय इलाके का क्षेत्रफल 37 हजार 244 वर्ग किमी. है। जितना क्षेत्रफल कश्मीर घाटी का है, उतना ही बड़ा है अक्साई चीन।

सरदार पटेल ने नेहरू को एक पत्र में लिखा था, कि चीन तथा तिब्बत के प्रति उसकी (नेहरू की) नीति से सावधान रहने को कहा था। अपने पत्र में पटेल ने चीन को भावी शत्रु कहा था। पर, चूंकि प्रधानमंत्री नेहरू किसी की सुनते नहीं थे, इसलिए उन्होंने सरदार पटेल की इस अति महत्वपूर्ण सलाह को अनसुना कर दिया। चीन से पराजय के बाद 14 नवंबर 1963, यानी नेहरूजी के जन्मदिन पर संसद में भारत-चीन युद्ध के बाद की स्थिति पर चर्चा हुई। नेहरू ने प्रस्ताव रखते हुए कहा, मुझे दु:ख और हैरानी होती है, कि अपने को विस्तारवादी शक्तियों से लडऩे का दावा करने वाला चीन खुद विस्तारवादी ताकतों के नक्शे कदम पर चलने लगा है।

नेहरू लगातार चीन ने कैसे-कैसे हमला दिया, इस पर वक्तव्य दे रहे थे। तब करनाल के सांसद स्वामी रामेश्वरनंद व्यंग भरे अंदाज में कहा- चलो अब तो आपको चीन का असली चेहरा दिखने लगा। इस टिप्पणी पर नेहरू नाराज हो गए। कहने लगे, अगर माननीय सदस्य चाहें तो उन्हें सरहद पर भेजा जा सकता है। सदन को नेहरू की ये बात समझ में नहीं आई। नेहरू लगातार बोले जा रहे थे। तब एक और सदस्य एचवी कामथ ने कहा, आप बोलते रहिए हम बीच में व्यवधान नहीं डालेंगे। तब नेहरू विस्तार से चीन ने भारत पर हमले से पहले कितनी तैयारी की थी, बताने लगे।

इस बीच स्वामी रामेश्वरानन्द ने तेज आवाज में नेहरू से कहा, कि मैं तो ये जानने को उत्सुक हूं, कि जब चीन तैयारी कर रहा था, तब आप क्या कर रहे थे ? इस बात से नेहरू अपना आपा खो बैठे। उन्होंने कहा, मुझे लगता है, कि स्वामीजी को मेरी बात समझ में नहीं आ रही है और सदन में इतने सारे सदस्यों को भी रक्षा मामलों की पर्याप्त समझ नहीं है। यानी जिस नेहरू को बहुत डेमोक्रेटिक व्यक्ति सिद्ध करने की कोशिश होती रही है, वह दरअसल छोटी सी आलोचना झेलने की माद्दा भी नहीं रखते थे। अपने को गुट-निरपेक्ष आंदोलन का मुखिया बताने वाले भारतीय नेता चीन के साथ संबंधों को मजबूत करना तो छोडिय़े, संबंधों को सामान्य भी बना नहीं सके। तब पूंछा गया था, कि कहां चली गई थी उनकी विदेश मामलों में तथाकथित पकड़ ?

यही गलतियां कश्मीर में भी सामने आती रही हैं। 2019 तक जब तक कि कश्मीर से धारा-370 हटाकर उसे केन्द्र शासित प्रदेश न बना दिया गया, तब तक तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू की राजनीतिक गलतियों की वजह से कश्मीर विवाद का विषय बना रहा। न केवल पाकिस्तान, बल्कि पाकिस्तान के समर्थक देश कश्मीर को अंतर्राष्ट्रीय विवादित क्षेत्र बनाने पर लगातार तुले रहे। हजारों की संख्या में कश्मीरी हिन्दू मारे गए और लाखों कश्मीर से खदेड़ दिए गए। चरमपंथियों और मजहबी उन्मादियों ने एक तरफा इसे इस्लामिक राज्य बनाने की चेष्टा की। धारा-370 के तहत जिस तरह की सुविधाएं कश्मीर राज्य को दी गई थीं, वो एक विधान-दो संविधान की अवधारणा को प्रतिपादित करता था। और भी इस तरह की बहुत सारी गलतियां कश्मीर में दोहराई गईं। जिसका परिणाम आजादी के बाद से आजतक देश भुगत रहा है। भला हो राष्ट्रवादी सरकार का, जिसने कश्मीर का विलय केन्द्र के अधीन किया और धारा-370 समाप्त कर कश्मीर को देश की मुख्य धारा में जोड़ते हुए बाकी राज्यों की तरह बनाया।

चलिए अगर हम मान भी लें, कि देश बरसों की गुलामी के बाद आजाद हुआ था। देश में संसाधन सीमित थे, रक्षा संबंधी संसाधन कम थे, तब प्राकृतिक स्थितियां अनुकूल नहीं थीं। जब चीन ने हमला किया, लेकिन तब देश में सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, डॉ. आंबेडकर, खुद फिरोज गांधी जैसे बुद्धिजीवी मौजूद थे। पर नेहरू की हमेशा से आदत थी, किसी को न सुनने की। नेहरू की इसी आदत के कारण कश्मीर और चीन जैसी स्थाई समस्याएं भारत को मिली और लगातार सिरदर्द बनी रहीं।
 - अनुराधा त्रिवेदी, वरिष्ठ पत्रकार, भोपाल।
----

प्रसंग- PM नेहरू को सांसद महावीर त्यागी का ये जवाब, जो अब चर्चा में है...
महावीर त्यागी
1962 के युद्ध को लेकर संसद में काफी बहस हुई. PM नेहरू ने संसद में ये बयान दिया कि, अक्साई चिन में तिनके के बराबर भी घास तक नहीं उगती, वो बंजर इलाका है. युद्ध चल रहा था तब  तक विपक्ष और कांग्रेस के सांसद भी देश की सुरक्षा को लेकर परेशान थे, लेकिन जैसे 21 नवम्बर 1962 को चीन ने युद्ध विराम किया, विपक्ष ने अक्साई चिन चीन के कब्जे में चले जाने को लेकर जबरदस्त हंगामा काट दिया. लेकिन नेहरू को उम्मीद नहीं थी कि उनके विरोध में सबसे बडा चेहरा उनके अपने मंत्रिमंडल का होगा, महावीर त्यागी का, अंग्रेजी फौज का एक अधिकारी, जो इस्तीफा देकर स्वतंत्रता सेनानी बना और देश आजाद होने के बाद मंत्री बन गया. भरी संसद में महावीर त्यागी ने अपना गंजा सर नेहरू को दिखाया और कहा, यहां भी कुछ नहीं उगता तो क्या मैं इसे कटवा दूं या फिर किसी और को दे दूं. सोचिए इस जवाब को सुनकर नेहरू का क्या हाल हुआ होगा, ऐसे मंत्री हों तो विपक्ष की किसे जरूरत. लेकिन महावीर त्यागी ने ये साबित कर दिया कि वो व्यक्ति पूजा के बजाय देश की पूजा को महत्व देते थे. 
महावीर त्यागी को देश की एक इंच जमीन भी किसी को देना गवारा नहीं था, चाहे वो बंजर ही क्यों ना हो और व्यक्ति पूजा के खिलाफ कांग्रेस में बोलने वालों में वो सबसे आगे थे, कांग्रेस के इतिहास में वो पहला नेता था, जिसने पैर छूने की परम्परा पर रोक लगाने की मांग की. महावीर त्यागी का जन्म मुरादाबाद में हुआ था. मेरठ में पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अंग्रेजी फौज ज्वॉइन कर ली और उनकी नियुक्ति पर्सिया यानी ईरान में कर दी गई. लेकिन जलियां वाला बाग कांड के बाद देश में अंग्रेजों के खिलाफ नफरत का ज्वार उठा कि महावीर त्यागी भी फौज की नौकरी से इस्तीफा देकर चले आए, सेना ने उनका कोर्ट मार्शल कर दिया, उसके बाद वो गांधीजी के साथ देश की आजादी के आंदोलन में कूद गए. अंग्रेजों द्वारा वो 11 बार गिरफ्तार किए गए, एक किसान आंदोलन के दौरान जब उनको गिरफ्तार करके यातनाएं दी गईं तो गांधीजी ने इसके लिए अंग्रेजों की आलोचना यंग इंडिया में लेख लिखकर की.
हालांकि उस वक्त उन पर इतनी यातनाओं की वजह किसी एक अंग्रेज मजिस्ट्रेट की व्यक्तिगत नाराजगी थी, जिसने उन पर देशद्रोह का केस लगा दिया था और पूरी कोशिश थी कि महावीर त्यागी की अकड़ को खत्म कर सके, लेकिन एक सैन्य अधिकारी रहने वाले महावीर त्यागी को ना झुकना कुबूल था और ना ही माफी मांगना. वैसे भी वो सब कुछ कुर्बान करने की मंशा के साथ तो देश की आजादी की इस जंग में उतरे थे. बाद में अंग्रेजी सरकार ने भी इस मामले से खुद को अलग कर लिया था. वो मजिस्ट्रेट बुलंद शहर का था और त्यागी की पकड़ उस वक्त पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में काफी तगड़ी थी. मजिस्ट्रेट के साथ उनकी तनातनी और होने वाले अत्याचारों के चलते ना केवल जनता की सुहानुभूति उनके साथ हुई बल्कि कांग्रेस के बड़े दिग्गजों की नजर में वो सीधे आ गए. 1921 में गांधी ने उनको लेकर अपनी आवाज उठाई. त्यागी को उस वक्त बुलंद शहर में चार हजार लोगों की एक सभा को सम्बोधित करे वक्त गिरफ्तार कर लिया गया था.
जेल में ही उनकी मुलाकात पंडित मोतीलाल नेहरू से हुई और जब एक बार बाप-बेटे के बीच कोई गलतफहमी हुई तो वो महावीर त्यागी ने ही दूर की थी. इसी के चलते नेहरू उन्हें मानते थे और वो भरी संसद में नेहरू के मुंह पर उन्ही के खिलाफ बोल पाए. असहयोग आंदोलन के बाद महावीर त्यागी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी जोर शोर से हिस्सा लिया, ढाई साल जेल में रहे, नतीजतन वो कांग्रेस की चुनावी राजनीति में भी हिस्सा लेने लगे. चुनावी राजनीति में होने के वाबजूद महावीर के रिश्ते कांग्रेस के विरोधी क्रांतिकारियों के साथ भी थे, उनके सबसे करीबी थे सचिन्द्र नाथ सान्याल, जिनके संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) में ही चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त और सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों को आगे बढ़ाया था.
देश की आजादी के बाद वो लोकसभा के लिए चुने गए और नेहरू केबिनेट में उन्हें मिनिस्टर ऑफ रेवेन्यू एंड एक्सपेंडीचर बनाया गया और सबसे दिलचस्प है इस पद पर रहते उनकी एक खास उपलब्धि. हर सरकार काला धन वापस लाने के लिए वोलंटरी डिसक्लोजर स्कीम लेकर आती है, आपको जानकर हैरत होगी कि वो स्कीम पहली बार देश में महावीर त्यागी ही लेकर आए थे. त्यागी ही वो पहले व्यक्ति थे, जिसने धारा 356 लगाने पर केरल की ईएस नम्बूरापाद की सरकार गिराने का विरोध किया था. त्यागी को वो बयान भी काफी चर्चा में रहा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर कांग्रेस जाति या संम्प्रदाय की राजनीति में पड़ती है तो वो अपनी कब्र खुद ही खोद लेगी.
बाद में त्यागी को पांचवे फाइनेंस कमीशन का अध्यक्ष भी बनाया गया, वित्त और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में उन्होंने कई सुधार किए. आखिरी समय तक वो राजनीतिक व्यवस्थाओं में सुधार के लिए बयान जारी करते रहे, उन्होंने एक कांग्रेसी होने के नाते ना केवल जयप्रकाश नारायण के आंदोलन पर सवाल उठाए बल्कि इंदिरा गांधी द्वारा थोपी गई इमरजेंसी पर भी जमकर निशान साधा. आज कांग्रेस में ऐसे नेता कम हैं जो सोनिया या राहुल की भरी महफिल में गलत बात पर खुलकर विरोध (मुखालफत) कर सकें.
------------------------------------------------
इसे भी पढ़ें-
क्या चाउ की मक्कारियों से प्रेरित हैं शी जिनपिंग ?
"सत्ता बंदूक की नली से ही निकलती है" ऐसा कहने वाले और अपने मन में भारत के प्रति अपार घृणा रखने वाले माओत्से तुंग की राह पर हैं चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ! 
 
http://www.dharmnagari.com/2020/06/IndiaChinaWasNehruvsModiMaovsZinping.html


नेपाल में हमारी विदेश नीति असफल क्यों ?
...बड़ी संख्या में भारत आने वाले नेपाली भारत में प्रापर्टी खरीद सकते हैं, नौकरी कर सकते हैं, व्यापार कर सकते हैं, ऊंचे पदों पर पहुंच सकते हैं, लेकिन वे आईएएस, आईएफएस नहीं बन सकते और चुनाव नहीं लड़ सकते। संधि में कहा गया था, कि

----------------------------------------------------------------------
For your News, Coverage, Contribution or Advt to  "Dharm Nagari" Pls call us- +91-6261868110
---------------------------------------------------------------------------
''धर्म नगरी'' मो. 9752404020, वाट्सएप- 6261868110 (केवल न्यूज, कवरेज, विज्ञापन हेतु)
ट्वीटर- www.twitter.com/DharmNagari
ईमेल- dharm.nagari@gmail.com 

---------------------------------------
आपसे निवेदन-वर्तमान में राष्ट्रवादी सरकारों (केंद्र में मोदी व राज्यों में भाजपा की सरकारों) से भी किसी प्रकार का कोई सहयोग हम राष्ट्रवादी पत्रकारों व मीडिया को नहीं है. किसी प्रकार की कोई योजना भी नहीं है, परन्तु प्रिंटिंग प्रेस से लेकर कार्यालय सही विभिन्न व्यय है. अनेक बार हमने इसे लेकर इस ओर संगठन एवं सरकार में सक्षम लोगों RSS BJP से बात उठाई, लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला। अतः हम राष्ट्रवादी हिन्दुओं, धर्मनिष्ठ संतों-धर्माचार्यों से इस संबंध में अपील करते हैं-  


"धर्म नगरी" के नाम से मिले शुभकामना या किसी प्रकार के सहयोग, विज्ञापन द्वारा आपके नाम से प्रतियां भेजते हैं, क्योंकि प्रकाशन पूर्णतः अव्यावसायिक है। कुछ संपन्न (अरबपति) संत / धर्माचार्य द्वारा अपने वचन देकर भी उसको पूरा न करने (सहयोग न देने) के कारण प्रकाशन में संकट है। अतः निर्बाध प्रकाशन हेतु हमे संरक्षक की भी आवश्यकता है, क्योकि अब हम सम्पन्न संत-धर्माचार्य पर विश्वास नहीं कर सकते।
हम किसी दावा, दिखावा करके किसी भी धर्मनिष्ठ साधु-संतों से रुपए नहीं मांगते, फिर भी सहयोगियों के वेतन, प्रिंटिंग प्रेस के भुगतान हेतु हमें न्यूनतम धर्म की आवश्यकता है, जिसे हम केवल "धर्म नगरी" के चालू खाते नंबर- 325397 99922, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया (SBI) IFS Code- CBIN0007932, भोपाल के माध्यम से लेते हैं...


No comments