माँ वैष्णो देवी की कथा, पढ़ें -सुनें, माता वैष्णो देवी यात्रा...


माँ के मंदिर का निर्माण ब्राह्मण पुजारी पंडित श्रीधर द्वारा हुआ
- शारदीय नवरात्रि में माँ वैष्णो देवी यात्रा, मौसम सर्वाधिक अनुकूल

(धर्म नगरी / DN News वाट्सएप 8109107075 -न्यूज़, कवरेज, विज्ञापन, कॉपी भिजवाने हेतु)
त्रिकुटा की पहाडियों पर स्थित एक गुफा में माता वैष्णो देवी की स्वयंभू तीन मूर्तियां हैं। देवी काली (दाएं), सरस्वती (बाएं) और लक्ष्मी (मध्य), पिण्डी के रूप में गुफा में विराजित हैं। इन तीनों पिण्डियों के सम्मिलित रूप को वैष्णो देवी माता कहा जाता है। इस स्थान को माता का भवन कहा जाता है। पवित्र गुफा की लंबाई 98 फीट है। इस गुफा में एक बड़ा चबूतरा बना हुआ है। चबूतरे पर माता का आसन है, जहां देवी त्रिकुटा अपनी माताओं के साथ विराजमान रहती हैं। कटरा से ही वैष्णो देवी की पैदल चढ़ाई शुरू होती है जो भवन तक करीब 13 किलोमीटर और भैरो मंदिर तक 14.5 किलोमीटर है।

माँ वैष्णो देवी उत्तर भारत के सबसे पूजनीय और पवित्र स्थलों में से एक है। मंदिर पहाड़ पर स्थित होने के कारण अपनी भव्यता व सुंदरता के कारण भी प्रसिद्ध है। वैष्णो देवी भी ऐसे ही स्थानों में एक है, जिसे माता का निवास स्थान माना जाता है। मंदिर, 5,200 फीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हर साल लाखों तीर्थ यात्री मंदिर के दर्शन करते हैं। यह भारत में तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक दर्शनीय वाला धार्मिक तीर्थस्थल है। वैसे माता वैष्णो देवी के सम्बन्ध में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, परन्तु निम्न मुख्य कथाएँ सर्वाधिक प्रचलित हैं।
वैष्णो देवी जाने वाले रखें ध्यान
दुनियाभर के श्रद्धालुओं के मन में माता वैष्णो देवी मंदिर को लेकर अलग ही आस्था रहती है। मंदिर तक की यात्रा को देश के सबसे पवित्र और कठिन तीर्थ यात्राओं में से एक माना जाता है। नवरात्रि में वैष्णो देवी यात्रा का विशेष महत्व है। इस समय यहां श्रद्धालुओं की भीड़ सर्वाधिक होती है। माता वैष्णो देवी भवन तक की चढ़ाई से पहले श्रद्धालु कटरा रुकते हैं। इसे वैष्णो देवी का बेस कैंप भी कहा जाता है। कटरा से ही वैष्णो देवी की पैदल चढ़ाई शुरू होती है, जो भवन तक लगभग 13 किलोमीटर और भैरव मंदिर तक 14.5 किलोमीटर है।
मौसम सबसे अनुकूल-
वैष्णो देवी यात्रा के लिए नवरात्रि सबसे अच्छा समय है हालांकि इस समय भीड़ अधिक होती है। इस मौसम में यहां न अधिक ठंड, न ही गर्मी पड़ती है। फिर भी आप साथ में एक स्वेटर अवश्य रखें, क्योंकि रात में ऊपर ठंड बढ़ जाती है।

ठहरने की व्यवस्था-
कटरा में कई लग्जरी, मिड बजट और बजट होटल हैं। यहां कई धर्मशालाएं भी हैं, जहां निःशुक्ल या बहुत कम खर्च में रुका जा सकता है। भीड़ के समय कटरा में वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड श्रद्धालुओं के लिए मुफ्त या बेहद कम कीमत में आवास उप्लब्ध कराता है। इनकी बुकिंग आप काउंटर से या फिर श्राइन बोर्ड की वेबसाइट से कर सकते हैं। भीड़ को देखते हुए अडवांस बुकिंग कराना ज्यादा अच्छा है।

हेलीकाप्टर से माता के भवन तक 
कटरा से आप हेलीकाप्टर के द्वारा भी माता के भवन के करीब पहुच सकते है, जिसके लिया आपको एडवांस बुकिंग करनी पडती है इसके लिय आप Mata Vaishno Devi Shrine Board की वेबसाइट से एडवांस बुकिंग कर सकते है 
हेलीकाप्टर केवल अच्छे मौसम में ही  उड़ान भरेंगे अन्यथा यात्रा रद्द भी हो सकती है
 कटरा हेलिपैड मुख्य शहर कटरा से 3.5 किमी की दूर है, जहाँ आपको उड़ान से दो घंटे पहले ही पहुचना पड़ता है कटरा से आपको हेलीकाप्टर आपको संजिछ्त पहुचाता है, जो माता भवन से केवल  3 किमी दूर पर है शेष यात्रा आप पैदल या खच्चरों से कर सकते है और आपको भवन पहुचने में लगभग 1 या 1.5 घंटा लगेगा हेलीकाप्टर से जाने वालो को VIP पास भी दिया जाता है, जिससे उनको गेट न.-5 से सीधे भवन में प्रवेश मिल जाता है  
वैष्णो देवी-भैरो घाटी रोपवे, 5 मिनट में 3 घंटे की यात्रा- 
माँ वैष्णो देवी मंदिर जाने वाले यात्रियों के लिए वैष्णो देवी भवन से भैरो मंदिर जाने के लिए रोप-वे सेवा (28 दिसंबर 2018) शुरू हुई एक यात्री को रोपवे सेवा के लिए सौ रु किराया रखा गया भवन से भैरो घाटी की दूरी ज्यादा नहीं है, लेकिन तीखी चढ़ाई के कारण सभी भक्त वहां नहीं पहुंच पाते, लेकिन रोप-वे सेवा शुरू होने के बाद वहां जाना आसान हो गया
उल्लेखनीय है, भवन से भैरो घाटी की दूरी 1.5 किलोमीटर है कठिन चढ़ाई के कारण यात्रियों के लिए भैरो घाटी पहुंचना बहुत पीड़ादायक होता है भूस्खलन व बर्फबारी के समय फिसलन होने से भी भक्तों का भैरो घाटी पहुंचना संभव नहीं होता था एक सर्वे के अनुसार, मां वैष्णो देवी के दर्शनों को आने वाले श्रद्धालुओं में से 30 से 40 % भक्त ही भैरो घाटी पहुंच पाते हैं

दिल्ली से श्रद्धालुओं की यात्रा केवल 6 घंटे में होगी- 
माता वैष्णो देवी जाने वाले श्रद्धालुओं की यात्रा केवल 6 घंटे में पूरी होगी, जब दिल्ली-कटरा एक्सप्रेस-वे ( Katra Delhi Expressway) का निर्माण कार्य पूरा हो जाएगा। अगस्त 2020 में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा था, यह प्रोजेक्ट वर्ष 2023 तक पूरा होने की संभावना है। इससे राष्ट्रीय राजधानी से माता वैष्णो देवी मंदिर के लिए जाने वाले भक्तों को बहुत सुविधा होगी। यह सड़क कॉरिडोर कटरा और अमृतसर के पवित्र शहरों को जोड़ेगा। साथ ही दोनों गंतव्यों के बीच कुछ अन्य प्रमुख धार्मिक स्थलों के लिए कनेक्टिविटी प्रदान करेगा।
-----------------------------------------------
राजनीतिक मैगजीन- तथ्यों से पूर्ण, साफ़-सुधरी, स्तरीय, पठनीय, राष्ट्रवादी समसामयिक साप्ताहिक राजनीतिक मैगजीन का प्रकाशन शुरू करने हेतु इन्वेस्टर या "संरक्षक" की आवश्यकता है। जिले स्तर पर इक्छुक पार्टनर एवं ब्यूरो चीफ  (बिना नियुक्ति वाले जिलों में) हेतु संपर्क करें- 9752404020, वाट्सएप-8109107075 ट्वीटर / Koo- @DharmNagari
------------------------------------------------

माता वैष्णो देवी की प्रथम कथा-
मान्यतानुसार, एक बार पहाड़ों वाली माता ने अपने एक परम भक्त पंडित श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी लाज बचाई और पूरे सृष्टि को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया। वर्तमान कटरा कस्बे से 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। वह नि:संतान होने से दु:खी रहते थे। एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को बुलवाया। माँ वैष्णो कन्या वेश में उन्हीं के बीच आ बैठीं। पूजन के बाद सभी कन्याएं तो चली गई, पर माँ वैष्णो देवी वहीं रहीं और श्रीधर से बोलीं- ‘सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ।’ श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस-पास के गाँवों में भंडारे का संदेश पहुँचा दिया।

वहाँ से लौटकर आते समय गुरु गोरखनाथ व उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ जी के साथ उनके दूसरे शिष्यों को भी भोजन का निमंत्रण दिया। भोजन का निमंत्रण पाकर सभी गांववासी अचंभित थे, कि वह कौन सी कन्या है, जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है ? इसके बाद श्रीधर के घर में अनेक गांववासी आकर भोजन के लिए एकत्रित हुए। तब कन्या रुपी माँ वैष्णो देवी ने एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया।

भोजन परोसते हुए जब वह कन्या भैरवनाथ के पास गई। तब उसने कहा कि मैं तो खीर – पूड़ी की जगह मांस भक्षण और मदिरापान करुंगा। तब कन्या रुपी माँ ने उसे समझाया कि यह ब्राह्मण के यहां का भोजन है, इसमें मांसाहार नहीं किया जाता। किंतु भैरवनाथ ने जान – बुझकर अपनी बात पर अड़ा रहा। जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकडऩा चाहा, तब माँ ने उसके कपट को जान लिया। माँ ने वायु रूप में बदलकरत्रिकूट पर्वत की ओर उड़ चली। भैरवनाथ भी उनके पीछे गया। माना जाता है कि माँ की रक्षा के लिए पवनपुत्र हनुमान भी थे।
देखें,  

जलधारा बाणगंगा @DharmNagari 

मान्यता के अनुसार, उस समय भी हनुमानजी माता की रक्षा के लिए उनके साथ ही थे। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर बाण चलाकर एक जलधारा निकाला और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा बाणगंगा के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से श्रद्धालुओं की सारी थकावट और पीड़ा दूर हो जाती हैं।

मान्यता है, कि माता रानी ने इस गुफा (गर्भजून गुफा) में नौ महीने बिताए थे, ठीक उसी प्रकार जैसे कोई शिशु अपनी मां के गर्भ में रहता है। इसलिए इस गुफा को गर्भजून कहते हैं, कहते कि मंदिर का निर्माण कराने वाले पंडित श्रीधर को बच्ची के रूप में प्रकट हुई माता ने स्वयं इस गुफा के बारे में बताया था।

इस अवधि में माता ने एक गुफा में प्रवेश कर नौ माह तक तपस्या की। भैरवनाथ भी उनके पीछे वहां तक आ गया। तब एक साधु ने भैरवनाथ से कहा कि तू जिसे एक कन्या समझ रहा है, वह आदिशक्ति जगदम्बा है। इसलिए उस महाशक्ति का पीछा छोड़ दे। भैरवनाथ साधु की बात नहीं मानी। तब माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं। यह गुफा आज भी अर्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है।

अर्धक्वाँरी के पहले माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते – भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। गुफा से बाहर निकल कर कन्या ने देवी का रूप धारण किया। माता ने भैरवनाथ को चेताया और वापस जाने को कहा। फिर भी वह नहीं माना। माता गुफा के भीतर चली गई। तब माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने गुफा के बाहर भैरव से युद्ध किया।

भैरव ने फिर भी हार नहीं मानी जब वीर हनुमान निढाल होने लगे, तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया। भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किमी. दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा।

उस स्थान को भैरोनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता है। जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान पवित्र गुफा’ अथवा ‘भवन के नाम से प्रसिद्ध है। इसी स्थान पर माँ काली (दाएँ), माँ सरस्वती (मध्य) और माँ लक्ष्मी (बाएँ) पिंडी के रूप में गुफा में विराजित हैं।

इन तीनों के सम्मिलत रूप को ही माँ वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है। इन तीन भव्य पिण्डियों के साथ कुछ श्रद्धालु भक्तों एव जम्मू कश्मीर के भूतपूर्व नरेशों द्वारा स्थापित मूर्तियाँ एवं यन्त्र इत्यादी है। कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने माँ से क्षमादान की भीख माँगी।

माता वैष्णो देवी जानती थीं, कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी।उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे, जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा। उसी मान्यता के अनुसार आज भी भक्त माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद 8 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़कर भैरवनाथ के दर्शन करने जाते हैं। इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिंड (सिर) सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं।
सुनें, माँ वैष्णो की कथा (#साभार टी सिरीज)- 
इस बीच पंडित श्रीधर अधीर हो गए। वे त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते आगे बढ़े, जो उन्होंने सपने में देखा था, अंततः वे गुफ़ा के द्वार पर पहुंचे, उन्होंने कई विधियों से ‘पिंडों’ की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली, देवी उनकी पूजा से प्रसन्न हुईं, वे उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया। तब से, श्रीधर और उनके वंशज देवी मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं।


माता वैष्णो देवी की अन्य कथा 
 ️
हिन्दू पौराणिक मान्यताओं में जगत में धर्म की हानि होने और अधर्म की शक्तियों के बढऩे पर आदिशक्ति के सत, रज और तम तीन रूप महासरस्वती, महालक्ष्मी और महादुर्गा ने अपनी सामूहिक बल से धर्म की रक्षा के लिए एक कन्या प्रकट की। यह कन्या त्रेतायुग में भारत के दक्षिणी समुद्री तट रामेश्वर में पण्डित रत्नाकर की पुत्री के रूप में अवतरित हुई।

कई सालों से संतानहीन रत्नाकर ने बच्ची को त्रिकुटा नाम दिया, परन्तु भगवान विष्णु के अंश रूप में प्रकट होने के कारण वैष्णवी नाम से विख्यात हुई। लगभग 9 वर्ष की होने पर उस कन्या को जब यह मालूम हुआ, भगवान विष्णु ने भी इस भू-लोक में भगवान श्रीराम के रूप में अवतार लिया है। तब वह भगवान श्रीराम को पति मानकर उनको पाने के लिए कठोर तप करने लगी।

जब श्रीराम सीता हरण के बाद सीता की खोज करते हुए रामेश्वर पहुंचे। तब समुद्र तट पर ध्यानमग्र कन्या को देखा। उस कन्या ने भगवान श्रीराम से उसे पत्नी के रूप में स्वीकार करने को कहा। भगवान श्रीराम ने उस कन्या से कहा, कि उन्होंने इस जन्म में सीता से विवाह कर एक पत्नी व्रत का प्रण लिया है।

किंतु, कलियुग में मैं कल्कि अवतार लूंगा और तुम्हें अपनी पत्नी रूप में स्वीकार करुंगा। उस समय तक तुम हिमालय स्थित त्रिकूट पर्वत की श्रेणी में जाकर तप करो और भक्तों के कष्ट और दु:खों का नाश कर जगत कल्याण करती रहो। जब श्रीराम ने रावण के विरुद्ध विजय प्राप्त किया, तब मां ने नवरात्र मनाने का निर्णय लिया।

इसलिए उक्त संदर्भ में लोग, नवरात्र के 9 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ करते हैं। श्रीराम ने वचन दिया था, 
कि समस्त संसार द्वारा मां वैष्णो देवी की स्तुति गाई जाएगी, त्रिकुटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सदा के लिए अमर हो जाएंगी।
----------------------------------------------
नीचे कमेंट बॉक्स में लेख / कॉलम को लेकर अपनी प्रतिक्रिया व सुझाव अवश्य लिखें 
वाट्सएप पर चुनिंदा व उपयोगी समाचार / कॉलम, राष्ट्रवादी लेख, सन्तों के सारगर्भित प्रवचन आदि तुरंत पाने हेतु हमारे वाट्सएप ग्रुप ☟ Link- (टच करें)


आधिकारिक वेबसाइट माँ वैष्णो देवी की (official website)- https://www.maavaishnodevi.org
----------------------------------------------
मंदिर का निर्माण 700 साल पहले ब्राह्मण पुजारी द्वारा हुआ  
माँ वैष्णो देवी के मंदिर का निर्माण लगभग 700 साल पहले पंडित श्रीधर द्वारा हुआ मानते हैपंडित श्रीधर जो एक ब्राह्मण पुजारी थे, उनको मां के प्रति सच्ची श्रद्धा भक्ति थी, यद्यपि वह निर्धन थे।  
कथा-
कथा आज से 700 साल पहले उस स्थान की है, आज जहाँ कटरा (जम्मू) बसा हुआ है, उससे लगभग दो किलोमीटर दूर बसे हंसाली नामक गाँव की। गाँव चारों ओर वृक्षों और लताओं से घिरा था, हरा-भरा रमणीक स्थल,नीचे कल-कल स्वर में बहती हुई जलधारा, मन्थर गति से बहता पवन। ऐसे सुखद वातावरण में त्रिकूट पर्वत की उपत्यकाओं से टकराकर मन्त्रों एवं स्तुति की मधुर ध्वनि गूंज रही थी-

"जय महादेवी, जय अम्बे, जय भवानी जय..." एकाएक गला रुंध गया, आँख भर आयीं, उन्नत ललाट पर चन्दन के तिलक के साथ पसीने की बँदें, उभर आयीं-"... मेरी पूजा चना में आखिर क्या त्रुटि है? हे भगवती! तम तो घट-घट का जानने वाली हो। मेरी विनती. मेरी प्रार्थनाएँ क्यों स्वीकार नहीं करती? हे जगद्माता। कृपा करो। मेरी भूल, और अवगुण क्षमा करो। नहीं तो... नहीं तो सामने आकर स्पष्ट कह दो कि मेरे भाग्य में सन्तान सुख नहीं है। परन्तु मेरा वंश कैसे चलगा कैसे ?"

पं. श्रीधर जी भावातिरेक में जैसे अपने आप से ही बात करते जा रहे थे, बुदबुदाहट करते हुए होंठ फड़फड़ा रहे थे, शरीर कांपने लगा था--तभी पत्तों की खड़खड़ाहट के साथ-आहट सुनाई दी, फिर-
"छन-छन-छन..."

पाजेब की ध्वनि सुनाई दे। पंडित जी ने सिर उठाकर ऊपर देखा तो पत्तों के बीच से छनकर आता सूर्य का प्रकाश उनके मुख पर पड़ा, एक अजीब सी चमक थी। श्रीधर जी कुछ समझ नहीं पाए। आस-पास दृष्टि दौड़ाई, कोई भी तो नहीं था। अपना भ्रम समझकर उन्होंने पुष्प अर्पण किए लोटा सम्भाला और ऊपर गाँव की ओर चल दिए, कन्या पूजन की तैयारी भी करनी थी।

कन्या-पूजन शुरू हुआ! छः छोटी-छोटी बालिकाएं पंक्तिबद्ध होकर पालथी मार कर बैठी हुई थीं। पं. श्रीधर जी एक-एक करके सबके चरण बहुत श्रद्धा एवं भक्ति से पानी से धोकर साफ कर रहे थे कि अकस्मात् फिर वही आवाज उनके कानों में गूंजी... छन...छन... छन...

श्रीधरजी ने पाँव धोते हुए दृष्टि ऊपर उठाई तो एक अनुपम सौन्दर्य एवं आभा से युक्त बालिका को सन्मुख खड़ें पाया। पंडित जी आश्चर्य में डूब गए। ऐसा अलौकिक तेज उस कन्या के मुखमंडल पर विराज रहा था जैसे सैकड़ों सूर्य एक साथ आकाश में उदय हो गए हों! ऐसा भोलापन! मानो हजारों कमल- पुष्प एकदम खिल गए हों!! यह कन्या तो पहले कभी उन्होंने देखी न थी, न ही उनके गाँव की प्रतीत हो रही थी। लाल- लाल कपड़े, पैरों में छन-छन करती पाजेब!!!

कन्या ने अपना पैर आगे बढ़ा दिया। श्रीधर जी विस्मय में डूबे हुए चरण धोने लगे। फिर सातों कन्याओं की चरण वंदना करके उन्होंने जलपान परोसा, और भोजन के बाद दक्षिणा दी। अन्य कन्यायें तो दक्षिणा लेकर चली गयीं, पर वह दिव्य रूप वाली कन्या वहीं बैठी रही। श्रीधर जी उससे कुछ प्रश्न करने वाले थे कि कन्या-रूपी महाशक्ति स्वयं ही बोली-

"मैं तुम्हारे पास एक आवश्यक कार्य लेकर आई हूं" छोटी सी कन्या के मुँह से ऐसी विचित्र बात सुनकर भक्त जी और भी हैरान हो गए।

कन्या बोली-आप अपने गाँव में और आसपास यह संदेश दे आओ, कि कल दोपहर को आपके यहाँ महान भंडारा होगा। इससे पहले कि पंडितजी कोई प्रश्न पूछे वह कन्या न जाने किधर लोप हो चुकी थी। श्रीधर जी विचारों में डूब गए। आखिर यह कन्या कौन थी ?

हो न हो, यह अवश्य ही कोई दिव्य-बालिका थी, परन्त भंडारे वाली समस्या से श्रीधर जी परेशान हो गए। सोचने लगे कि निमन्त्रण तो में दे आऊंगा, परन्तु भंडारे का प्रबन्ध कौन करेगा? मुझमें तो इतनी सामर्थ्य नहीं कि भंडारा कर सकँ... फिर क्या करूँ? न जाऊँ? परन्तु... यदि कन्या कोई दिव्य शक्ति है तो अवश्य ही यह मेरी परीक्षा की घड़ी है। काफी सोच- विचार के बाद उन्होंने कन्या की कही बात को ही मुख्य रखा और निकल पड़े, आस-पास के कछ गांव और घरों में भंडारे का निमन्त्रण देने।

"देख लीजिए पंडित जी, एक बार फिर सोच-विचार कर बताइए। अभी भी समय है। ऐसा न हो कि ऐन मौके पर आपको हमारे गुरु जी के कोप का सामना करना पड़े। हमारे गुरुजी चाहें तो क्षण भर में अपनी क्रोधाग्नि से आपके पूरे ग्राम को जलाकर भस्म कर दें।"भैरवनाथ ने पंडित श्रीधर जी को समझाने का प्रयत्न किया "पंडित जी, आप शायद नहीं जानते कि हमें एक बार देवराज इन्द्र ने भी भोजन का निमन्त्रण दिया था। वह भोजन लाते रहे। हम योगी-जन खाते रहे। बेचारे... इन्द्रदेव! पूरी इन्द्रपुरी में भोजन का अकाल पड़ गया। सभी भागे-भागे फिरते रहे और अन्त में हमें भर पेट खाना न खिलाकर क्षमा माँगने लगे... हा-हा-हा-हा हमें तो देवराज इन्द्र भी भर पेट भोजन न खिला सके। आप हमें भोजन का निमन्त्रण देकर बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं, पंडित जी!"

आप साधु-सन्त हैं, योगी हैं। भाग्य से आपके दर्शन हुए। हैं। भण्डारे का निमन्त्रण मैंने आस-पास सभी जगह दिया है। मैंने अपना कर्तव्य जानकर ही आपको कल अपने घर पधारने की प्रार्थना की है। यद्यपि मैं जानता हूँ कि मुझमें इतनी सामर्थ्य नहीं है कि मैं इतने बड़े भंडारे का आयोजन कर सकूँ। फिर भी...' श्रीधर जी हाथ जोड़कर कह रहे थे-

"फिर भी क्या ?"
"योगीनाथ! उस कन्या का यही आदेश है, श्रीधर जी ने कुछ हिचकिचाहट के साथ निवेदन किया। "कन्या ? कौन कन्या ? यह भी खुब रही। एक अकेली कन्या पूरे योगियों के दल को खाना खिलाएगी। पूरे गाँव का भंडारा कर देगी? अरे वाह! देखिए तो गुरुजी, यह पंडित जी क्या कह रहे हैं? अकेली कन्या सबको खाना देगी! भैरवनाथ ठहाका लगाकर हँसने लगे परन्तु उनके गुरु गोरखनाथ ने बीच में ही उन्हें रोककर कहा-

'भई परीक्षा करने में क्या नुकसान है। हमें कल इनके घर चलकर देख लेना चाहिए कि ऐसी कौन कन्या है ?' हाथ उठाकर गुरुजी ने पंडित श्रीधर से कह दिया, 'हमें भोजन स्वीकार है, कल समय पर हम पहुँच जायेंगे।

उस दिन तो श्रीधर जी गाँव-गाँव घूमते थके-हारे रात को आकर सो गए। प्रातःकाल होते ही वे फिर इस विचार में खो गए कि भंडारे का प्रबन्ध कैसे हो सकेगा ? न मालूम समय कैसे "बीत गया और भीड़ एकत्रित होने लगी।

दोपहर का समय! चमकीली धूप ! चमकीली धूप...
श्रीधर जी अपनी कुटिया के बाहर मिट्टी के बने चबूतरे पर बैठे हुए थे। कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्या करें? कैसे होगा? तभी उनके कानों में चिमटा बजाते हुए अलख ध्वनि सुनाई पड़ी... अलख निरंजन! जय भोलेनाथ ! सामने देखा तो पूरे दल-बल के साथ जोगी भैरवनाथ और गुरु गोरखनाथ आ रहे थे।

कौतुहल बढ़ गया, गाँव के सभी लोग कुटिया के बाहर इकट्ठे होकर देखने लगे। तरह-तरह की आपस में 
बातें करने लगे। कोई कहता पंडितजी, तो आज फंस गए हैं। दूसरा कहता- देखो तो सही अभी पूरे गाँव की नाक कटेगी, बिना सोचे समझे इतने गाँव वालों को भंडारा कह दिया, कोई हंसी खेल है क्या ? स्त्रियाँ भी फुसफुसाने लगीं।

तभी धूप अचानक फीकी पड़ गई। कुछ बादल घिर आए
 फिर एक क्षण के लिए अंधेरा हआ और एकदम पहले से भी कहीं अधिक प्रकाश निखर आया, धूप कड़कने लगी और। आश्चर्य यह कि... दिव्य कन्या लाल-सुए वस्त्र धारण किए, कमण्डल हाथों में लिए, त्रिशल कांधे पर रखे, श्रीधर जी के सन्मुख खड़ी थी। किसी को पता ही नहीं लगा कि वह कन्या का कब और कहाँ से प्रकट हो गई ?

'भक्तजी चिन्ता छोडो। अब सारा प्रबन्ध हो जायगा।
उठिए और सबसे पहले जोगियों से कहिए, कि कुटिया में चल कर भोजन ग्रहण करें।' श्रीधर जी उत्साह से उठे और गुरुजी से भोजन के लिए कुटिया में पधारने को कहा।

गुरु गोरखनाथ जी बोले-हम अपने 360 चेलों सहित आपकी छोटी सी कुटिया में कैसे बैठ सकेंगे ? हमारे लिए तो बाहर खुला स्थान ठीक रहेगा। कुटिया तो बहुत ही छोटी है। पंडितजी आप भोजन यहाँ ले आइये।

इस पर श्रीधरजी ने कहा, उस कन्या ने आपको कुटिया में एधारने के लिए ही कहा है। गुरुजी के पीछे एक-एक करके सभी शिष्य कुटिया में जाते और बैठ जाते। ऐसा लगता कि अभी कुछ स्थान खाली है। धीरे-धीरे सभी शिष्य आराम से कुटिया में समा गए और चमत्कार यह हुआ कि कोने में | फिर भी थोड़ा स्थान खाली बच रहा!! बाहर सब गाँव वाले बैठ गए। भंडारा प्रारम्भ हुआ। दिव्य कन्या ने जब अपने कमण्डल से सबको भोजन देना प्रारम्भ किया तो श्रीधर जी प्रसन्न हुए और बाकी सब हैरान! सबको अपनी-अपनी रुचि के अनुसार भोजन मिल रहा था। भाँति-भाँति के व्यंजन अपनी-अपनी इच्छानुसार लेकर सब रुचि-रुचि कर खाने लगे।

यह देखकर गोरखनाथ और भैरवनाथ ने परस्पर विचार किया कि यह कन्या अवश्य ही कोई शक्ति है। पर यह वास्तव में कौन है? इसका पता लगाना चाहिए। कन्या धीरे-धीरे भोजन | परासता हई भरवनाथ कपास पहुचा।

'बालिके ! तूने सबको उनकी इच्छानुसार भोजन परोसा है, मुझे भी मेरा मनपसन्द भोजन मिलना चाहिए।

'बोलो योगीनाथ, क्या चाहिए तुम्हें ?'
माता सब कुछ जानते हुए भी... अन्तर्यामी होने पर भी... जैसे कोई लीला करना चाहती थी। जिस प्रकार कोई बालक अपने खिलौने से खेल करता है, उसके आगे-पीछे भागता है, बातें करता है, ठीक उसी प्रकार माता ने भी कोई खेल रचाना। चाहा होगा। इसलिए भैरव के मन की सारी बातें जानते हए भी कन्या-रूपी माता ने प्रत्यक्ष में भैरव के मुख से ही सुनना चाहा-

"तो ला फिर कन्या ! मुझे मांस-मदिरा का भोजन दे।' 'नाथ जी आपको यह नहीं भूलना चाहिये कि आप एक वैष्णव ब्राह्मण की कुटिया में विराजमान हैं और यह भंडारा केवल वैष्णव-भंडारा है। अब जो कुछ एक वैष्णव-भंडारे में मिल सकता है, वही माँगिये।

भैरवनाथ अपने हठ पर ही रहा। वह कन्या की परीक्षा लेना चाहता था। तर्क-वितर्क करता रहा, जिद करता रहा और क्रोध करके भैरव ने जैसे ही कन्या का हाथ थामना चाहा वह कन्या-रूपी-महाशक्ति अन्तर्ध्यान हो गई। भैरों भी कोई साधारण योगी नहीं था। आँखें मूंदकर, समाधि लगाकर बैठ गया और थोड़ी देर में ही योग-विद्या के बल प्रभाव से उसने जान लिया कि कन्या पवन-रूप होकर त्रिकूट-पर्वत की ओर बढ़ रही है। उसकी जिज्ञासा और भी बढ़ गई आखिर यह कन्या है कौन? कौन-सी शक्ति है? इसी जिज्ञासा के वशीभूत होकर वह अपने गुरु गोरखनाथ से आज्ञा मांगने लगा-

"गुरु जी, मैं कन्या का पीछा करता हूँ और पता लगा कर आऊँगा कि यह कौन है ? कहाँ इसका निवास स्थान है ?"

यदि इसे कोई सिद्धि प्राप्त है तो कहाँ से हुई, कैसे हुई? इन सब बातों की जानकारी हमें अवश्य प्राप्त करनी चाहिये। इस कार्य पर जाने के लिए क्या आप आज्ञा देंगे?"

"जैसी तुम्हारी इच्छा वत्स, ईश्वर कल्याण करेंगे ?"
भैरवनाथ अकेले ही त्रिकूट-पर्वत की ओर बढ़ चला। उसे तो कन्या को पकड़ लेने की धुन सवार हो गई थी। वह समाधिस्थ होकर कुछ देर तक पवन रूपी कन्या का मार्ग देखता और उसी ओर पीछे-पीछे चल पड़ता।

पं. श्रीधर जी की कुटिया से दिव्य कन्या को लोप हुए आज दूसरा दिन था। पंडितजी अत्यन्त बेचैन हो उठे। उनकी दशा ठीक उसी प्रकार हो गई, जैसे किसी मछली को तालाब से निकालकर बाहर फेंक दिया गया हो-जल के बिना मछली जिए तो कैसे? वह निरीह भाव से लगातार शून्य की ओर देखे जा रहे थे। न खाना, न पीना, न किसी से कोई बात-चीत। उनेको ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो किसी प्यासे के हाथ से सागर छिन।गया हो। दिन ढल गया, रात्रि आ गई। भूखे-प्यासे ही सो गये।

सोते हुए पंडित श्रीधर को ऐसा लगा, कि उनके सिर पर कोई हाथ फेर रहा हो। कोमल स्पर्श पाते ही श्रीधर जी ने दृष्टि घुमाकर देखा कि साक्षात् देवी दुर्गा सिंह पर विराजमान होकर विशल, आभूषण एवं समस्त आयुधों से सुसज्जित उनके सामने बैठी है। पंडित जी ने साष्टांग प्रणाम किया, नतमस्तक होकर स्तुति की, दीप जलाया। माता ने उनसे कहा कि आपने अन्न- जल क्यों त्याग दिया ? भूखे रहकर भी कभी भजन होता है ? चलिए, आज मैं आपको अपने धाम के दर्शन करवा देती है।

श्रीधर जी माता के पीछे हाथ जोड़ कर चलने लगे। ऐसा जान पड़ता था, जैसे सबकुछ यन्त्रवत् हो रहा है
 उन्होंने पर्वत पर चढ़ना आरम्भ किया। किसी अदृश्य गुफा तक जा पहुंचे।

गुफा का प्रवेश द्वार काफी छोटा होने के कारण वह लेटकर अन्दर गये। गुफा के अन्दर माता ने उन्हें अपना स्थान दिखाया। दर्शन करके भक्त जी गद्गद् हो उठे। बारम्बार शीश झुकाकर विनती की और स्वयं को कृतार्थ किया। फिर गुफा के बाहर निकले और जैसे ही बाहर की तेज रोशनी उनकी आँखों पर पड़ी उनकी निद्रा खुल गई। प्रातः हो चुकी थी। सूर्यदेव की लालिमा आसमान पर उभरने लगी थी। श्रीधर जी आँखें मलते हुए, जय माता की कहते हुए उठ बैठे।

पंडित श्रीधर जी उठे तो बहुत प्रसन्न थे। स्वप्न में देखे हुए स्थानों से उनका हृदय अब तक पुलकित था। माता का सिंह वाहनी-स्वरूप अब तक उनके मानस पटल पर अंकित था। पर्वतीय मार्ग के स्थान, सुन्दर गुफा का प्रवेश द्वार और गुफा के अंदर भगवती के पिंडी रूप में दर्शन उन्हें किसी फिल्म के दृश्यों की भाँति पूरी तरह याद थे।

पूरे नौ महीने बीत चुके थे। भैरवनाथ पर्वत पर इधर-उधर भटक रहा था। कई बार उसने अपनी समस्त चित्तवत्तियों को एकाग्र करके समाधि लगाई थी। योग-विद्या की जितनी भी जानकारी थी, सारी प्रयोग करके भी वह निश्चित न कर पाया कि कन्या कहाँ गई है। उसे लगता था कि है तो वह कन्या इसी पर्वत के किसी भाग में, परन्तु कहाँ है ? उसके जाने का मार्ग स्पष्ट नहीं था। पहली बार उसने देखा था कि उसके साथ बन्दर (लांगुर वीर) झण्डा लेकर चल रहा है। फिर कन्या ने तीर चलाकर पत्थरों से पानी निकाला। उस स्थान पर पहुँचने के बाद भैरव ने फिर समाधिस्थ होकर देखा कि वह कन्या ऊपर जाकर खड़ी है। 

भैरव ने वहाँ जाकर देखा पैरों के चिन्ह साफ-साफ पत्थर पर दिखाई दे रहे थे। ऊपर का मार्ग भी उसने अनुमान लगा लिया था। फिर अचानक ही उसे ऐसा लगा कि कन्या कहीं पर भी दिखाई नहीं दे रही। वह सारे पर्वत पर नौ माह तक खोजता रहा, परन्तु जिज्ञासा इतनी प्रबल थी कि उसने फिर भी खोजने का काम जारी रखा।

"क्या आपने किसी कन्या को यहाँ आते-जाते देखा है ?" एक वृद्ध तपीश्वर साधु को देखकर भैरों ने पूछा। "नाथ जी शायद आपको मालूम नहीं कि इस पर्वत पर स्वयं महादेवी निवास करती हैं। उनके अतिरिक्त यहाँ और कौन हो सकता है ?"

"परन्तु मैं तो उस कन्या को ढूंढ़ रहा है जो पूरे नौ महीने से इसी पर्वत पर कहीं छिपी हुई है, जिसको मैंने स्वयं इधर आते हए देखा था-वह कन्या कहीं इस गुफा में तो नहीं?" ऐसा कहते हुए भैरोनाथ सामने एक छोटी गुफा देखकर उसमें घसने का उपक्रम करने लगा।

तपीश्वर ने भैरों का मार्ग रोक लिया गुफा के द्वार के सामने खड़े हो गये और बोले-अरे मूर्ख! जिसे तू साधारण कन्या समझता है, वह तो महाशक्ति है और आदिकुमारी' है। अब तेरी भलाई इसी में है, कि तू वापिस चला जा।

शास्त्रों में लिखा है- 'विनाश काले विपरीत बुद्धि।'
अर्थात जब एक मनुष्य का अन्त समीप आ जाए तो उसकी अक्ल भी मारी जाती है। बिल्कुल ऐसा ही भैरव नाथ के साथ भी हो रहा था। ज्यों-ज्यों तपीश्वर उसे समझाने का प्रयत्न कर रहे थे त्यों-त्यों उसकी बुद्धि में हठ प्रवेश करता जा रहा था। जैसे किसी की बद्धि अथवा ज्ञान हर लिया जाए तो उसकी विचार शक्ति कुण्ठित हो जाती है, वैसे ही भैरोनाथ की सोचनेया विचारने की शक्ति क्षीण हो गई थी। वह निरन्तर हठ कर रहा था।

"यह कोई गुफा है या गर्भयोनि जहाँ यह कन्या नौ महीने से अन्दर छिपी बैठी है, मैं तो उसे ढूँढ़कर ही दम लूँगा" ऐसा कहते हुए भैरों हठात (जबरन) गुफा के अन्दर घुसने लगा।

गुफा के अन्दर बैठी जगत्माता यह सब देख रही थीं। उन्हीं की आज्ञा से तो यह सारी लीला हो रही थी
वह चाहतीं तो वहीं भैरव का काम तमाम कर सकती थीं परंतु...

जगत् की स्वामिनी यदि कोई खेल रचाना चाहें, तो उन्हें कौन रोक सकता है ? संसार के प्राणी तो उसके हाथों में खिलौनों की तरह हैं। वह जैसे चाहे खेल करे, चाहे तो उसी क्षण तोड़ दे. कुछ इसी प्रकार से माता, भैरोनाथ के साथ कौतुक कर रही थीं उन्होंने अपनी शक्ति से त्रिशूल द्वारा गुफा में पीछे से दूसरा मार्ग बनाया और बाहर निकल गईं। महाशक्ति आगे बढ़ीं भैरव पीछा करता रहा।

अन्ततः देवी त्रिकूट पर्वत की सुन्दर-गुफा तक जा पहुँची। देवी ने भैरों को आदेश दिया 'जोगी तुम वापिस चले जाओ, किन्तु भैरव न माना । देवी ने गुफा के द्वार पर वीर लांगुर को प्रहरी बना कर खड़ा कर दिया ताकि भैरों अन्दर न आ सके। स्वयं दिव्यकन्या गुफा में प्रवेश कर गई। यह देखकर भैरों भी अन्दर घुसने की चेष्टा करने लगा। लांगुर वीर ने रोका-

'महामाई की आज्ञानुसार गुफा के अन्दर जाना मना है।'
'तुम कौन होते हो मुझे रोकने वाले ? मैं भैरवबली हूँ, जहाँ मेरा जी चाहे, जा सकता हूँ !' यह कहते हुए भैरोनाथ ने गदा छीन ली। क्रोधित होकर लाँगुर वीर ने अपनी गदा वापिस लेकर भैरों पर पूरी शक्ति से प्रहार किया। भैरों वार बचा गया। फिर गदा लेकर काफी देर तक खींचातानी होती रही। गुफा के अन्दर विराजमान जगत्माता सारा खेल देख रही थीं। धीरे-धीरे वीर-लाँगुर परास्त होने लगा। भैरों ने उसे दूर धकेल दिया और गुफा में प्रवेश करना चाहा। यह देखकर शक्ति ने स्वयं चण्डी रूप धारण करके तलवार से भैरव का वध कर दिया।

सम्भवतः देवी माता को इतना ही खेल रचाना था। जब कोई बालक चाबी घुमाता रहे और खिलौना उसकी मनमानी गतिविधि न करे, उसका प्रिय खेल न दिखाए, तो वह उसे तोड़ भी सकता है. चूँकि वह तो खिलौनों का स्वामी है, मालिक है। इसी प्रकार प्राणियों की स्वामिनी महादेवी ने भी एक खिलौना तोड़ दिया। तलवार का वार इतना तेज हुआ, कि भैरों का धड़ तो वहीं गुफा के पास गिरा,  सिर ऊपर पर्वत को चाटा पर जा गिरा, जिसे आजकल भैरोंघाटी कहा जाता है।
भैरोनाथ कोई साधारण प्राणी नहीं था। वह एक सिद्धपुरुष महाबली तथा योगी था। सिर धड़ से जुदा हो गया। फिर उसकी चेतना नष्ट नहीं हुई। वह अपने किए पर पशेमान है। गया। पश्चाताप करने लगा-

'आदिशक्ति ! कल्याणकारिणी माता ! मुझे मरने का कोई दुःख नहीं, क्योंकि मेरी मृत्यु जगत रचयिता माँ के हाथों से हुई है। सो मुझे मोक्ष मिलेगा। परन्तु हे मातेश्वरी ! मुझे क्षमा कऱ देना। मैं आपके इस रूप से अपरिचित था। हे माँ ! अगर तूने क्षमा न किया, तो आने वाला युग मुझे पापी समझेगा और लोग मेरे नाम से घृणा करेंगे। माता कुमाता नहीं हो सकती, पुत्र कुपुत्र हो सकता है...!

भैरों के मुख से वारंबार 'माँ' शब्द सुनकर माता का हृदय पसीज गया। जगकल्याणी मातेश्वरी ने उसे वरदान दिया- मेरी पूजा के बाद तेरी भी पूजा हुआ करेगी, तथा तू मोक्ष का अधिकारी होगा। श्रद्धालु मेरे दर्शन के पश्चात् तेरे भी दर्शन किया करेंगे। तेरे स्थान का दर्शन करने वालों की मनोकामनाएँ भी पूर्ण होंगी। इसी वरदान के अनुसार यात्री माता वैष्णो के दरबार होकर, माता के दर्शन करने के बाद भैरों बाबा के दर्शनों के लिए भैरों मंदिर जाते हैं। जिस स्थान पर भैरों का सिर गिरा था उसी जगह भैरों मंदिर का निर्माण हुआ है।
----------------------------------------------
भैरों मंदिर
भक्तों को भैरों मंदिर(गुफा) के दर्शन करने की ललक रहती है। कहते हैं इस गुफा में आज भी भैरों का शरीर है। माता ने यहीं पर भैरों का संहार किया था। तब उसका शरीर यहीं रह गया था और सिर घाटी में जाकर गिरा था। माता वैष्णो देवी भैरों को वरदान दिया था कि कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएंगे, जब तक कोई भक्त, मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा। प्राचीन गुफा के समक्ष भैरो का शरीर उपस्थित है और उसका सिर उडक़र तीन किलोमीटर दूर भैरो घाटी में चला गया और शरीर यहां रह गया। जिस स्थान पर सिर गिरा, आज उस स्थान को ‘भैरोनाथ के मंदिर’ के नाम से जाना जाता है।
----------------------------------------------

जिस दिन से भक्त श्रीधर ने स्वप्न में माता के साथ उनके धाम में गुफा के दर्शन किए थे, उसी दिन से उन्होंने वैष्णो देवी के साक्षात दरबार का खोज प्रारम्भ कर दिया। स्वप्र में देखे मार्ग के अनुसार वह त्रिकूट-पर्वत पर चढ़ते गए। कई बार उन्हें ऐसा लगता, कि वह भूल गए हैं, फिर स्वयं ही स्वप्न के दृश्य याद आ जाते और रास्ता दिखाई दे जाता। इस प्रकार खोजते-खोजते उन्होंने एक दिन गुफा का द्वार देख लिया और फिर गुफा में प्रवेश करके, माता के पिण्डी रूप में दर्शन करके ने जीवन सफल बना लिया। 

श्रीधर जी ने बारम्बार हाथ जोड़कर माँ आदिशक्ति जगदम्बे की आराधना की। कई प्रकार से स्तुति एवं प्रार्थना करते रहे। वे नित्यप्रति पवित्र पिण्डियों का स्नान, पूजन एवं व आरती आदि करके भाँति-भाँति से सेवा करते। उनकी श्रद्धा एवं भक्ति देखकर माता ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए और चार पुत्रों का वरदान दिया। माता ने आशीर्वाद देकर कहा- तुम्हारा वंश युगों-युगों तक मेरी पूजा करता रहेगा और सुख- शांति, धन-धान्य वैभव सभी कुछ प्राप्त होगा। अब तक पंडित श्रीधर जी के वंशज माँ की पूजा करते आ रहे हैं।

इसके बाद श्रीधर जी ने गुफा का प्रचार किया। भक्तों की मनोकामनायें पूर्ण होती रहीं। प्रचार बढ़ता रहा। हजारों लाखों यात्री प्रतिवर्ष वैष्णो देवी के दर्शन के लिए आने लगे और तीर्थ वैष्णो देवी के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
----------------------------------------------
संबंधित लेख-
शारदीय नवरात्रि : किस रूप की कैसी पूजा व भोग...
http://www.dharmnagari.com/2021/10/Shardiya-Navratri-7-October-Ghat-sthapna-vidhi-Tithi-anusar-kya-kare.html

रामलीला की अविश्वसनीय "सत्य घटना" जिसे देखकर हजारों लोग भय और श्रद्धा से जयकारे लगाने लगे
☛पण्डित कृपाराम दूबे के चौपाई पढ़ते ही आसमान में भीषण बिजली कड़की और... बनारस के तुलसी गाँव में रामलीला की "सत्य घटना"

http://www.dharmnagari.com/2021/10/Ramleela-A-true-Incident-Ek-Sacchi-Ghatna-Jise-dekh-sabhi-Dar-gaye.html

आखिर घाटी में गैर-मुस्लिम कितने सुरक्षित हैं ?

http://www.dharmnagari.com/2021/10/Srinagar-Terrorist-attacked-and-killed-Two-non-Muslim-teachers-including-the-Principal.html
भारत के पराधीन [गुलाम] होने का मुख्य कारण धन और भोगवासना है... महाभारत के उद्योग पर्व के संदर्भ में  
http://www.dharmnagari.com/2021/09/Why-India-has-been-a-slave-Country-Spiritual-reason-accordingly-Mahabharat-are-money-andlust-Bharat-Paradheen-kyo-raha.html
------------------------------------------------
आवश्यकता है- तथ्यों से पूर्ण, साफ़-सुधरी, स्तरीय, पठनीय, राष्ट्रवादी समसामयिक साप्ताहिक मैगजीन का प्रकाशन शुरू हो रहा रहा, जिसके विस्तार के लिए राष्ट्रवादी विचारधारा के पार्टनर / इन्वेस्टर / "संरक्षक" चाहिए। संपर्क करें- 9752404020, वाट्सएप-8109107075 ट्वीटर / Koo- @DharmNagari
------------------------------------------------------------------------------------------------


"धर्म नगरी" की सदस्यता, शुभकामना-विज्ञापन या दान देने अथवा अपने नाम (की सील के साथ) से
लेख/कॉलम/इंटरव्यू सहित "धर्म नगरी" की प्रतियां अपनों को देशभर में भिजवाने हेतु बैंक खाते का डिटेल।
 
----------------------------------------------------
कथा हेतु सम्पर्क करें-
व्यासपीठ की गरिमा एवं मर्यादा के अनुसार श्रीराम कथा, वाल्मीकि रामायण, श्रीमद भागवत कथा, शिव महापुराण या अन्य पौराणिक कथा करवाने हेतु संपर्क करें। कथा आप अपने बजट या आर्थिक क्षमता के अनुसार शहरी या ग्रामीण क्षेत्र में अथवा विदेश में करवाएं, हमारा कथा के आयोजन की योजना (मीडिया आदि) में पूर्ण सहयोग रहेगा। 
-प्रसार प्रबंधक आरके द्धिवेदी "धर्म नगरी / DN News" मो.9752404020, 8109107075-वाट्सएप ट्वीटर / Koo / इंस्टाग्राम- @DharmNagari ईमेल- dharm.nagari@gmail.com यूट्यूब- DharmNagari News  Link- https://www.youtube.com/channel/UCJd2xFXRHoFGImZMClnxVOg      
------------------------------------------------

No comments