"पूर्वोत्तर क्षेत्र भारत के जैव आर्थिक केन्द्र के रूप में विकसित होगा", भारत 2025 तक...
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पूर्वोत्तर क्षेत्र भारत के जैव आर्थिक केन्द्र के रूप में विकसित होगा। पूर्वी हिमालय क्षेत्र विशाल जैव विविधता समृद्ध क्षेत्र है और विश्व के 34 जैव विविधता केन्द्रों में से एक है। इन अमूल्य आनुवंशिक संसाधनों का जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से इस क्षेत्र के आर्थिक वृद्धि में उपयोग करने की आवश्यकता है।
ये बात केन्द्रीय मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने (20 अक्टूबर) इम्फाल में पूर्वोत्तर क्षेत्र की समग्र समृद्धि के लिए फसल, फल एवं पादप अनुसंधान में डीबीटी परियोजनाओं की समीक्षा करने के लिए इंफाल के जैव-संसाधन एवं सतत विकास संस्थान (IBSD) का भ्रमण करने के बाद कही।
उन्होंने कहा, एनडीए सरकार के लगातार और बार-बार ध्यान देने के कारण भारत 2025 तक वैश्विक जैव विनिर्माण केन्द्र के रूप में पहचाना जायेगा और विश्व के प्रमुख पांच देशों में इसकी गिनती होगी। भारत की जैव अर्थव्यवस्था वर्तमन 70 अरब डॉलर से बढ़कर वर्ष 2025 तक 150 अरब डॉलर के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रही है और यह 2024-25 तक भारत की 50 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था की कल्पना को साकार करने में महत्वपूर्ण योगदान करेगी।
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रोजगार की दिशा में प्रौद्योगिकी पैकेज भी तैयार करें-
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, IBSD को न केवल अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ क्षेत्र में उत्कृष्टता का केंद्र बनना चाहिए, बल्कि लोगों के कल्याण के लिए रोजगार सृजन करने की दिशा में प्रौद्योगिकी पैकेज भी तैयार करना चाहिए। संस्थान को जन केंद्रित होना चाहिए और उसे अपने काम के माध्यम से लोगों का विश्वास जीतने के लिए कल्पनाशील और नवीन दृष्टिकोणों का पालन करना चाहिए। इस संस्थान को अनुसंधान अनुप्रयोग और प्रौद्योगिकी, उत्पादों और प्रक्रियाओं के व्यावसायीकरण के लिए एक जीवंत सक्रिय और प्रतिबद्ध केंद्र के रूप में उभरना चाहिए और समस्त पूर्वोत्तर क्षेत्र में समृद्धि लाने के लिए क्षेत्र के समृद्ध जैव संसाधनों के आधार पर उद्यमों को बढ़ावा भी देना चाहिए।
फाइटो-फार्मास्युटिकल मिशन को भी बढ़ावा-
डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया, आईबीएसडी में डीबीटी द्वारा वित्त पोषित फाइटो-फार्मास्युटिकल लैब सुविधा पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए फाइटो-फार्मास्युटिकल मिशन को भी बढ़ावा दे रही है। मिशन का उद्देश्य पारंपरिक स्वास्थ्य प्रथाओं के प्रलेखन, वैज्ञानिक सत्यापन और मूल्यांकन को बढ़ावा देना है। यह एक बहुत महत्वपूर्ण कदम है और यह पूर्वोत्तर क्षेत्र के विशाल पादप संसाधनों और विविध पारंपरिक स्वास्थ्य प्रक्रियाओं के संदर्भ में विशेष महत्व रखता है। उन्होंने कहा कि जैव-संसाधनों के साथ उत्पादों, प्रक्रियाओं और प्रौद्योगिकियों के विकास में परिवर्तनकारी दृष्टिकोण पारंपरिक ज्ञान-आधारित चिकित्सीय एजेंटों के विकास में सहायता प्रदान करेगा। इससे क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास के साथ-साथ पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल चिकित्सकों को भी लाभ होगा।
विभिन्न सफल उपायों का उदाहरण देते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि डीबीटी ने जैव-संसाधन विकास केंद्र में संयुक्त रूप से मेघालय में किसानों के खेतों में उच्च गुणवत्ता वाली रोपण सामग्री का उपयोग करके स्थायी कृषि-तकनीकी उपाय को अपनाकर स्ट्रॉबेरी की खेती के प्रदर्शन से संबंधित परियोजना का समर्थन किया है। बायो जैव संसाधन विकास केंद्र शिलांग और बागवानी प्रौद्योगिकी संस्थान, मंदिरा, असम ने इस काम में संयुक्त रूप से योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि मणिपुर में किसानों को स्ट्रॉबेरी की अच्छी किस्मों के लगभग 50 टिशू-कल्चर से उगाए पौधे वितरित किए जाने का प्रस्ताव है।
इसी तरह, डीबीटी ने शूट-टिप ग्राफ्टिंग प्रोद्यौगिकी के माध्यम से गुणवत्ता रोपण सामग्री का उत्पादन करके एक महत्वपूर्ण फ्रूट क्रॉप खासी मंदारिन में उत्पादन और उत्पादकता में सुधार करने का कार्यक्रम तैयार किया है। इस कार्यक्रम का लक्ष्य परियोजना की तीन साल की अवधि के दौरान खासी मंदारिन और स्वीट ऑरेंज के चार लाख प्रमाणित रोग मुक्त गुणवत्ता वाले पौधों का उत्पादन करना और क्षेत्र में कम से कम 1,000 किसानों का क्षमता निर्माण करना है। उन्होंने कहा कि ग्राफ्टेड खासी मंदारिन के पचास पौधे एएयू-साइट्रस रिसर्च स्टेशन, तिनसुकिया, असम में तैयार किए गए हैं और जल्दी ही मणिपुर में किसानों को सौंपे जाएंगे।
उल्लेखनीय है, डीबीटी ने बागवानी अनुसंधान स्टेशन, असम कृषि विश्वविद्यालय (एएयू), काहिकुची में एक बायोटेक-किसान केंद्र स्थापित किया है। इसका उद्देश्य मालभोग केले की गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री का बड़े पैमाने पर उत्पादन करना है। इस केले की असम राज्य में बहुत मांग है। मणिपुर के किसानों को लगभग 50 मैक्रो-उत्पादित मालभोग केले वितरित करने का प्रस्ताव है।
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