शारदीय नवरात्रि : महाष्टमी - व्रत, पूजा-विधि, मुहूर्त, मंत्र, भोग, महत्व
-पूजा में माता को श्वेत, पीले फूल अर्पित करें, लगाएं नारियल का भोग
(धर्म नगरी / DN News वा.एप 8109107075 -न्यूज़, कवरेज, विज्ञापन हेतु)
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शारदीय नवरात्रि में महाष्टमी व्रत या दुर्गा अष्टमी व्रत का विशेष महत्व होता है। जो लोग नवरात्रि के प्रारंभ वाले दिन व्रत रखते हैं, वे दुर्गा अष्टमी का भी व्रत रखते हैं। दुर्गा अष्टमी के दिन मां दुर्गा के महागौरी स्वरुप की आराधना की जाती है। भगवती महागौरी की आराधना सभी मनोवांछित कामना को पूर्ण करने वाली और भक्तों को अभय, रूप व सौंदर्य प्रदान करने वाली है अर्थात शरीर में उत्पन्न नाना प्रकार के विष-व्याधियों का अंत कर जीवन को सुख-समृद्धि व आरोग्यता से पूर्ण करती हैं।
महाष्टमी या दुर्गा अष्टमी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष आश्विन शुक्ल अष्टमी तिथि का प्रारंभ आज 12 अक्टूबर (मंगलवार) की रात 9:47 बजे होकर 13 अक्टूबर (बुधवार) रात 8:07 बजे रहेगी। ऐसे में दुर्गा अष्टमी का व्रत 13 अक्टूबर दिन बुधवार को रखा जाएगा। इस दिन ही मां महागौरी की पूजा की जाएगी।
श्री दुर्गा अष्टमी (महाष्टमी) सुकर्मा योग में है। जिस योग को मांगलिक कार्यों के लिए उत्तम माना गया है। दुर्गा अष्टमी के दिन राहुकाल दोपहर 12:07 बजे से दोपहर 1:34 बजे तक है। अतः आप राहुकाल का ध्यान रखते हुए दुर्गा अष्टमी की पूजा और हवन कर सकते हैं।
श्री दुर्गा अष्टमी (महाष्टमी) सुकर्मा योग में है। जिस योग को मांगलिक कार्यों के लिए उत्तम माना गया है। दुर्गा अष्टमी के दिन राहुकाल दोपहर 12:07 बजे से दोपहर 1:34 बजे तक है। अतः आप राहुकाल का ध्यान रखते हुए दुर्गा अष्टमी की पूजा और हवन कर सकते हैं।
देवी का स्वरुप-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव को पाने के लिए कई वर्षों तक मां पार्वती ने कठोर तप किया था, जिससे उनके शरीर का रंग काला हो गया था। जब भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए तो उन्होंने उनको गौर वर्ण का वरदान भी दिया। इससे मां पार्वती महागौरी भी कहलाईं। महाष्टमी या दुर्गा अष्टमी को व्रत करने और मां महागौरी की आराधना करने से व्यक्ति को सुख, सौभाग्य और समृद्धि भी मिलती है। सब पाप भी नष्ट हो जाते हैं। आइए जानते हैं कि दुर्गा अष्टमी की सही तिथि, व्रत एवं पूजा विधि, मंत्र आदि क्या हैं? दुर्गा अष्टमी के दिन कई स्थानों पर कन्या पूजन और हवन भी किया जाता है।
व्रत एवं पूजा विधि-
अष्टमी के दिन स्नान आदि से निवृत होकर आप स्वच्छ वस्त्र धारण करें। उसके बाद हाथ में जल और अक्षत् लेकर दुर्गा अष्टमी व्रत करने तथा मां महागौरी की पूजा करने का संकल्प लें। इसके बाद पूजा स्थान पर मां महागौरी या दुर्गा जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित कर दें। कलश स्थापना किया है, तो वहीं पूजा करें। पूजा में मां महागौरी को सफेद और पीले फूल अर्पित करें। नारियल का भोग लगाएं। ऐसा करने से देवी महागौरी प्रसन्न होती हैं। नारियल का भोग लगाने से संतान संबंधी समस्याएं दूर होती हैं। पूजा के समय महागौरी बीज मंत्र का जाप करें और अंत में मां महागौरी की आरती करें।
बीज मंत्र-
श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
अन्य मंत्र-
माहेश्वरी वृष आरूढ़ कौमारी शिखिवाहना।
श्वेत रूप धरा देवी ईश्वरी वृष वाहना।।
ओम देवी महागौर्यै नमः
दुर्गा अष्टमी का हवन-
कुल-परिवार परंपरा अनुसार या अनेक स्थानों पर दुर्गा-अष्टमी के दिन नौ-दुर्गा का के लिए हवन किया जाता है। आरती के बाद हवन सामग्री अपने पास रखें। कर्पूर से आम की सूखी लकड़ियों को जला लें। अग्नि प्रज्ज्वलित होने पर हवन सामग्री की आहुति दें।
कन्या पूजा-
यदि आपके कुल, परिवार में दुर्गा-अष्टमी को ही कन्या पूजन होता है, तो आप हवन के बाद 2 से 10 वर्ष की कन्याओं का अपनी क्षमता के अनुसार पूजन, दान, दक्षिणा और भोजन कराएं। उनका आशीष लें। जबकि, अधिकांश ज्योतिषियों एवं विद्वान कर्मकांडी ब्राह्मण के अनुसार,महानवमी के दिन कन्या-पूजन करना चाहिए। इसके बाद दिन भर फलाहार रहते हुए दुर्गा अष्टमी का व्रत करें। रात्रि के समय माता का जागरण करें। अगले दिन सुबह नवमी को पूजा के बाद पारण करके व्रत को पूरा करें।
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व्रत एवं पूजा विधि-
अष्टमी के दिन स्नान आदि से निवृत होकर आप स्वच्छ वस्त्र धारण करें। उसके बाद हाथ में जल और अक्षत् लेकर दुर्गा अष्टमी व्रत करने तथा मां महागौरी की पूजा करने का संकल्प लें। इसके बाद पूजा स्थान पर मां महागौरी या दुर्गा जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित कर दें। कलश स्थापना किया है, तो वहीं पूजा करें। पूजा में मां महागौरी को सफेद और पीले फूल अर्पित करें। नारियल का भोग लगाएं। ऐसा करने से देवी महागौरी प्रसन्न होती हैं। नारियल का भोग लगाने से संतान संबंधी समस्याएं दूर होती हैं। पूजा के समय महागौरी बीज मंत्र का जाप करें और अंत में मां महागौरी की आरती करें।
बीज मंत्र-
श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
अन्य मंत्र-
माहेश्वरी वृष आरूढ़ कौमारी शिखिवाहना।
श्वेत रूप धरा देवी ईश्वरी वृष वाहना।।
ओम देवी महागौर्यै नमः
दुर्गा अष्टमी का हवन-
कुल-परिवार परंपरा अनुसार या अनेक स्थानों पर दुर्गा-अष्टमी के दिन नौ-दुर्गा का के लिए हवन किया जाता है। आरती के बाद हवन सामग्री अपने पास रखें। कर्पूर से आम की सूखी लकड़ियों को जला लें। अग्नि प्रज्ज्वलित होने पर हवन सामग्री की आहुति दें।
कन्या पूजा-
यदि आपके कुल, परिवार में दुर्गा-अष्टमी को ही कन्या पूजन होता है, तो आप हवन के बाद 2 से 10 वर्ष की कन्याओं का अपनी क्षमता के अनुसार पूजन, दान, दक्षिणा और भोजन कराएं। उनका आशीष लें। जबकि, अधिकांश ज्योतिषियों एवं विद्वान कर्मकांडी ब्राह्मण के अनुसार,महानवमी के दिन कन्या-पूजन करना चाहिए। इसके बाद दिन भर फलाहार रहते हुए दुर्गा अष्टमी का व्रत करें। रात्रि के समय माता का जागरण करें। अगले दिन सुबह नवमी को पूजा के बाद पारण करके व्रत को पूरा करें।
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Ma Durga is a mother of the universe, she represents the infinite power of the universe and is a symbol of female dynamism. Happy Durga Ashtami! #MahaAshtami -@immmoond
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