शारदीय नवरात्रि : किस रूप की कैसी पूजा, कैसा भोग, मनोकामना हेतु क्या करें, विशेष उपाय...

"शक्ति की साधना" का पर्व 7 अक्टूबर से, घट स्थापना की सामग्री व विधि...
- माता के स्वरुप के अनुरूप पूजा की वस्तु
- राशि अनुसार कौन सा फूल है शुभ


या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

(
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-राजेश पाठक (अवैतनिक संपादक)  
सनातन हिन्दू धर्म की परंपरा में "शक्ति की साधना" का प्राचीन काल से बहुत महत्व रहा है। इस वर्ष "शक्ति की साधना" का महापर्व- शारदीय नवरात्रि आश्विन माह के शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा 7 अक्टूबर (गुरुवार) से आरम्भ होकर 15 अक्टूबर (शुक्रवार) 2021 को संपन्न होगी। इस बार शारदीय नवरात्रि 8 दिन की होंगी, जिनमें मां दुर्गा के सभी 9 स्वरूपों की पूजा होगी।

अत्यंत पवित्र एवं प्रभावी नवरात्री पर्व में मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना होती है। शास्त्रों में मां दुर्गा को शक्ति की देवी बताया गया है, इसलिए इसे शक्ति की उपासना का पर्व की कहा जाता है। नवरात्र में व्रत किये जाते हैं। मान्यता है, नवरात्र के व्रत रखने वालों को मां दुर्गा का आशीर्वाद मिलता है और उनके सभी संकट दूर हो जाते हैं। माँ उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।

सनातन हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का महत्व सर्वाधिक होता है। इस नवरात्रि में मां की मूर्ति विराजी जाती है
। नवरात्रि-पर्यन्त माता के दरबार में भक्तों का तांता लगा रहता है। प्राचीन काल से मान्यता है, नवरात्रि पर्यंत विधि-विधान से पूजा करने पर माता रानी अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। मां को प्रसन्न करने भक्त उपवास भी रखते हैं, कोई पूरे नवरात्रि या केवल प्रतिपदा, अष्टमी का।

चतुर्थी तिथि का क्षय-
चतुर्थी तिथि का क्षय होने से शारदीय नवरात्रि आठ दिन का होगा। इस कारण 7 अक्टूबर को प्रतिपदा तिथि होगी, 10 अक्टूबर को पंचमी तिथि लगेगी। इसके पश्चात प्रत्येक तिथि पूरे एक दिन रहेगी और महाअष्टमी 13 अक्टूबर,   महानवमी 14 अक्टूबर को और दशहरा 15 अक्टूबर शुक्रवार को मनाया जाएगा। 9 अक्टूबर को एक साथ मां चंद्रघंटा व मां कुष्मांडा की पूजा की जाएगी।
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अष्टभुजी माँ आदि शक्ति दुर्गा 
नवरात्रि तिथि-काल व माँ का स्वरूप-

प्रतिपदा- घटस्थापना- मां शैलपुत्री, गुरुवार (7 अक्टूबर) दोपहर 1:46 तक प्रतिपदा, तत्पश्चात द्वितीया तिथि आरंभ, 
द्वितीया- मां ब्रह्मचारिणी, शुक्रवार (8 अक्टूबर) प्रातः 10:48 तक, तत्पश्चात तृतीया लगेगी
तृतीया- मां चंद्रघंटा, शनिवार 8 अक्टूबर प्रातः 10:48 से 9 अक्टू. प्रातः7:48 तक तृतीया तिथि मान्य 
चतुर्थी- मां कूष्मांडा, शनिवार (9 अक्टूबर) सुबह 7:48 के बाद चतुर्थी (चौथ) तिथि मान्य 
पंचमी- मां स्कंदमाता, रविवार (10 अक्टूबर)
षष्ठी‌- मां कात्यायनी, सोमवार (11 अक्टूबर)
सप्तमी- मां कालरात्रि, मंगलवार (12 अक्टूबर)
अष्टमी- मां महागौरी, दुर्गा महाष्टमी पूजा, बुधवार (13 अक्टूबर)
नवमी- मां सिद्धिदात्री, महानवमी नवरात्रि-पारण, गुरुवार (14 अक्टूबर)
दशमी- दुर्गा विसर्जन, विजय दशमी, शुक्रवार (15 अक्टूबर)

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घट (कलश) स्थापना- 
श्री देवी पुराण के अनुसार, मां भगवती की पूजा-अर्चना करते समय सर्वप्रथम कलश (घट) की स्थापना की जाती है। नवरात्रि में कलश (घट) स्थापना का बहुत महत्व है नवरात्रि का शुभारंभ घट स्थापना से की जाती है कलश को सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता हैइससे घर की सभी विपदा-दायक तरंगें नष्ट हो जाती हैं तथा घर में सुख-शांति तथा समृद्धि बनी रहती है। घट स्थापना करना, अर्थात नवरात्रि की कालावधि में ब्रह्मांड में कार्यरत शक्ति तत्त्व का घट में आवाहन कर उसे कार्यरत करना। कार्यरत शक्ति तत्त्व के कारण वास्तु में विद्यमान कष्टदायक तरंगें समूल नष्ट हो जाती है। धर्मशास्त्रों के अनुसार, कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं।

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कलश (घट) स्थापना की सामग्री-
जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र, जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी, पात्र में बोने के लिए जौ (गेहूं भी ले सकते हैं), घट-स्थापना के लिए मिट्टी का कलश (हैमो वा राजतस्ताम्रो मृण्मयो वापि ह्यव्रणः” अर्थात 'कलश' सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी का छेद रहित और सुदृढ़ उत्तम माना गया है। वह मङ्गल कार्यों में मङ्गलकारी होता है)
कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल, मौली (Sacred Thread), सुगंध (इत्र), साबुत सुपारी, दूर्वा, कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के (किसी भी प्रकार का, कुछ लोग चांदी या सोने का सिक्का भी रखते हैं), अशोक या आम के 5 पत्ते, कलश ढकने के लिए ढक्कन, ढक्कन में रखने के लिए अक्षत (बिना टूटे चावल), पानी वाला नारियल, नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा, फूल-माला, फल तथा मिठाई, दीपक, धूपबत्ती (अधिकांश साधु-संत अगरबत्ती बांस से बनी होने के कारण इसका उपयोग निषिद्ध मानते हैं)

🌷 कलश स्थापना की विधि -
सर्वप्रथम जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें। पात्र में मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब एक परत जौ की बिछाएं। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब फिर एक परत जौ की बिछाएं। जौ के बीच चारों तरफ बिछाएं, जिससे जौ कलश के नीचे न दबे। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब कलश के कंठ पर मौली बाँध दें। कलश के ऊपर रोली से ॐ लिखें और स्वास्तिक बनाए। अब कलश में शुद्ध जल व थोड़ा गंगाजल से कंठ तक पूरा भर दें। कलश में साबुत सुपारी, दूर्वा, फूल डालें। कलश में थोडा सा इत्र डाल दें। कलश में कुछ सिक्के रख दें। कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते रख दें। अब कलश का मुख ढक्कन से बंद कर दें। ढक्कन में चावल भर दें।
 
अब नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर मौली बांध दें इस नारियल को कलश पर रखें नारियल का मुंह आपकी तरफ होना चाहिए ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है। अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार किए गए पात्र के बीच में रख दें। अब कलश को उठाकर जौ के पात्र में बीचो-बीच रख दें। कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें। "हे सभी देवी देवता और माँ दुर्गा आप सभी नौ दिनों के लिए इसमें पधारें।" अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें। धूपबत्ती कलश को दिखाएं। कलश को माला अर्पित करें। कलश को फल मिठाई अर्पित करें। कलश को सुगंध (इत्र) समर्पित करें।

श्री देवी भागवत पुराण के अनुसार-
“पञ्चपल्लवसंयुक्तं वेदमन्त्रैः सुसंस्कृतम्। 
सुतीर्थजलसम्पूर्णं हेमरत्नैः समन्वितम्॥” 
अर्थात कलश पंच पल्लव युक्त, वैदिक मन्त्रों से भली भाँति संस्कृत, उत्तम तीर्थ के जल से पूर्ण और सुवर्ण तथा पंचरत्न मई होना चाहिए।
नारियल पर लाल कपडा लपेट कर मौली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रखें। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है- 
“अधोमुखं  शत्रु  विवर्धनाय, ऊर्ध्वस्य  वस्त्रं  बहुरोग  वृध्यै। 
प्राचीमुखं वित विनाशनाय,तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं” 
अर्थात् नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है। नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकि पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिए नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए, कि उसका मुख साधक की तरफ रहे।
 
कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा की चौकी स्थापित की जाती है। नवरात्रि के प्रथम दिन एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए। इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए। इसको कलश के दायीं ओर रखना चाहिए। उसके बाद माँ भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ फोटो स्थापित करना चाहिए। मूर्ति के अभाव में नवार्णमन्त्र युक्त यन्त्र को स्थापित करें। माँ दुर्गा को लाल चुनरी ओढ़ानी चाहिए। माँ दुर्गा से प्रार्थना करें "हे माँ दुर्गा आप नौ दिन के लिए इस चौकी में विराजिये।" उसके बाद सबसे पहले माँ को दीपक दिखाइए। उसके बाद धूप, फूलमाला, इत्र समर्पित करें। फल, मिठाई अर्पित करें।
नवरात्रि में नौ दिन मां भगवती का व्रत रखने का तथा प्रतिदिन श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ करने का विशेष महत्व है। हर एक मनोकामना पूरी हो जाती है। सभी कष्टों से छुटकारा दिलाता है।

नवरात्रि के प्रथम दिन ही अखंड ज्योत जलाई जाती है, जो नौ दिन तक जलती रहती है। (जिनका सामर्थ्य न हो, तो पूजा-आरती के समय दीपक जलाएं) दीपक के नीचे "चावल" रखने से माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा "सप्तधान्य" रखने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है

माता की पूजा "लाल रंग के कम्बल" के आसन पर बैठकर करना उत्तम माना गया है

नवरात्रि के प्रतिदिन माता रानी को फूलों का हार चढ़ाना चाहिए। प्रतिदिन घी का दीपक (माता के पूजन हेतु सोने, चाँदी, कांसे के दीपक का उपयोग उत्तम होता है) जलाकर माँ भगवती को मिष्ठान का भोग लगाना चाहिए। माँ भगवती को इत्र/अत्तर विशेष प्रिय है।

नवरात्रि के प्रतिदिन देशी गाय के गोबर के कंडे की धुनी जलाकर उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कर्पूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा अवश्य अर्पित करना चाहिए।
लक्ष्मी प्राप्ति हेतु नवरात्रि में पान और गुलाब की ७ पंखुरियां रखें तथा मां भगवती को अर्पित कर दें

मां दुर्गा को प्रतिदिन विशेष भोग लगाया जाता है। किस दिन किस चीज़ का भोग लगाना है ये भी विशेष महत्व रखता है।

प्रतिदिन कन्याओं का विशेष पूजन किया जाता है। 
श्रीदेवी भागवत पुराण के अनुसार- 
“एकैकां पूजयेत् कन्यामेकवृद्ध्या तथैव च। 
द्विगुणं  त्रिगुणं  वापि  प्रत्येकं नवकन्तु वा॥” 
अर्थात, नित्य ही एक कुमारी का पूजन करें अथवा प्रतिदिन एक-एक-कुमारी की संख्या के वृद्धिक्रम से पूजन करें अथवा प्रतिदिन दुगुने-तिगुने के वृद्धिक्रम से और / या तो प्रत्येक दिन नौ कुमारी कन्याओं का पूजन करें।  
यदि कोई व्यक्ति नवरात्रि पर्यन्त प्रतिदिन पूजा करने में असमर्थ हैं तो उसे अष्टमी तिथि को विशेष रूप से अवश्य पूजा करनी चाहिए। प्राचीन काल में दक्ष के यज्ञ का विध्वंश करने वाली महाभयानक भगवती भद्रकाली सहित करोङों योगिनियों सहित अष्टमी तिथि को ही प्रकट हुई थीं।
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माता की चौकी की स्थापना व पूजा-विधि  
लकड़ी की एक चौकी को गंगाजल और शुद्ध जल से धोकर पवित्र करें। साफ कपड़े से पोंछकर उस पर लाल कपड़ा बिछाएं। चौकी को कलश के दांयी तरफ रखें एवं इसके ऊपर मां दुर्गा की मूर्ती चित्र रखें। माता को लाल चुनरी ओढ़ाएं, फूल-माला चढ़ाएं, फिर धूप, दीपक आदि जलाएं। नौ दिन तक जलने वाली माता की अखंड ज्योत (यदि सामर्थ्य हो) जलाएं। यदि ऐसा संभव न हो तो आप केव पूजा के समय ही दीपक जला सकते हैं। अब देवीजी को तिलक लगाएं।

मां दुर्गा को वस्त्र, चंदन, सुहाग के सामान यानि हल्दी, कुमकुम, सिंदूर, अष्टगंध आदि अर्पित करें और काजल लगाएं. मंगलसूत्र, हरी चूड़ियां, फूल माला, इत्र, फल, मिठाई आदि अर्पित करें. प्रतिदिन श्रद्धानुसार दुर्गा सप्तशती का पाठ, देवी मां के स्रोत, दुर्गा चालीसा का पाठ, सहस्रनाम आदि का पाठ करें या सुनें. फिर अग्यारी तैयार कीजिए. अब एक मिटटी का पात्र और लीजिए उसमें गोबर के उपले को जलाकर अग्यारी जलाएं. घर में जितने सदस्य हैं उन सदस्यों के हिसाब से लौंग के जोड़े बनाएं. लौंग के जोड़े बनाने के लिए आप बताशों में लौंग लगाएं यानि कि एक बताशे में दो लौंग. ये एक जोड़ा माना जाता है और जो लौंग के जोड़े बनाए हैं फिर उसमें कपूर और सामग्री चढ़ाएं और अग्यारी प्रज्वलित करें ।

प्रतिदिन देवी मां की सपरिवार आरती करें। पूजन के पश्चात वेदी पर बोए अनाज पर थोड़ा-सा जल अवश्य छिड़के। प्रतिदिन देवीजी का पूजन करें, जौ वाले पात्र में जल का हल्का छिड़के। जल इतना हो कि जौ अंकुरित हो सकें। ये अंकुरित जौ शुभ माने जाते हैं। यदि इनमें से किसी अंकुर का रंग सफेद हो, तो उसे बहुत अच्छा माना जाता है।

नवरात्रि व्रत की पूजा-विधि 

नवरात्रि के दिनों में बहुत से लोग आठ दिनों- प्रतिपदा से अष्टमी तक व्रत रखते हैं एवं केवल फलाहार पर रहते हैं। फलाहार का अर्थ है, फल एवं और कुछ अन्य विशिष्ट सब्जियों से बना भोजन। फलाहार में सेंधा नमक का प्रयोग होता है। नौवें दिन भगवान राम के जन्म की रस्म और पूजा (राम नवमी) के बाद ही उपवास खोला जाता है। जो लोग आठ दिनों तक व्रत नहीं रखते, वे पहले और आख़िरी दिन उपवास रख लेते हैं। व्रत रखने वाले भूमि पर सोते हैं।

नवरात्रि व्रत में अन्न खाना निषेध है। सिंघाड़े के आटे की लप्सी, सूखे मेवे, कुटु के आटे की पूरी, समां के चावल की खीर, आलू, आलू का हलवा भी लें सकते हैं। इसके अलावा दूध, दही, घीया इन चीजों का फलाहार करना चाहिए। सेंधा नमक तथा काली मिर्च का प्रयोग करना चाहिए। दोपहर को (चाहें तो) फल भी ले सकते हैं।

माँ भगवती के मंत्र (लाल रंग में छपे मंत्रों का विशेष महत्व होता है, अतः आप मंत्र को यहाँ अपने मोबाइल या कंप्यूटर को देखकर जप कर सकते हैं)

प्रतिपदा अर्थात पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा होती है. माँ शैलपुत्री धन-धान्य, ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य तथा मोक्ष की देवी मानी जाती हैं। माँ शैलपुत्री का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:

माँ ब्रह्मचारिणी- संयम, तप, वैराग्य तथा विजय की देवी मानी जाती हैं. माता का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:
माँ चन्द्रघंटा- माता चन्द्रघंटा की पूजा से दुखों, कष्टों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्ति होती है. माता का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:
माँ कूष्मांडा- रोग, दोष, शोक का नाश करने वाली तथा यश, बल व आयु की वृद्धि करनी वाली देवी हैं. 
माता का  मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:
माँ स्कंदमाता- सुख-शांति व मोक्ष प्रदान करने वाली हैं. माता का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:
माँ कात्यायनी- भय, रोग, शोक-संतापों से मुक्ति तथा मोक्ष दिलाने वाली हैं. 
माता का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम:
माँ कालरात्रि- माता कालरात्रि शत्रुओं का नाश, बाधा दूर कर सुख-शांति प्रदान कर मोक्ष देने वाली मानी जाती हैं. इनका मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:
माँ महागौरी- माता महागौरी की पूजा साधक अलौकिक सिद्धियां प्राप्त करने के लिए करते हैं. इनका मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:
माँ सिद्धिदात्री- नवरात्रि के आखिरी दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती हैं. माँ सिद्धिदात्री सभी सिद्धियां प्रदान करने वाली हैं. 
माता का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्यै नम:
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माँ का स्वरुप, उसके अनुरूप पूजा की वस्तु- 
नवरात्रि में देवी दुर्गा को प्रतिदिन किस चीज का भोग लगाएं, जिससे उनकी कृपा मिले, कष्ट व समस्याओं से मुक्ति मिले, सुख-शांति, धन-वैभव की प्राप्ति हो, इस प्रकार है-

प्रतिपदा की पूजा- देवी की साधना सदैव गौ-घृत से षोडशोपचार पूजा करें। गाय का घी अर्पण करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं, विशेषरूप से आरोग्य लाभ होता है।

द्वितीया की पूजा- माता को शक्कर का भोग लगाकर उसका विशेष रूप से दान करना चाहिए. मान्याता है कि इस दिन शक्कर का दान करने से आयु बढ़ती है।

तृतीया की पूजा- दूध का महत्व होता है। माता की पूजा में विशेषरूप से दूध का उपयोग करें। फिर उस दूध को किसी ब्राह्मण को दान कर दें। दूध का दान दुःखों से मुक्ति का परम साधन है।

चतुर्थी की पूजा- देवी-पूजा में विशेष रूप से मालपुआ का नैवेद्य अर्पण करें। फिर इसे किसी सुयोग्य बाह्मण को दान कर दें। चतुर्थी को मालपुआ का दान करने से बुद्धि बल बढ़ता है।

पंचमी की पूजा का- देवी भगवती को केले का नैवेद्य चढ़ावें और यह प्रसाद किसी ब्राह्मण को दान करें। इससे विवेक बढ़ता है, निर्णय-शक्ति में असाधारण विकास होता है।

षष्ठी की पूजा- माता को शहद चढ़ाने का विशेष महत्व है। उस शहद को किसी ब्राह्मण को दान करने से व्यक्ति का सौंदर्य व आकर्षण बढ़ता है, समाज में उसको यश मिलता है।

सप्तमी की पूजा- विशेषरूप से गुड़ का नैवेद्य माँ को अर्पण करें। फिर गुड़ चढ़कार किसी ब्राह्मण को दान करने से जीवन के शोक, रोग दूर होते हैं, आकस्मिक विपत्ति से रक्षा होती है।

अष्टमी की पूजा- भगवती को नारियल का भोग अवश्य लगाये। इससे नाना प्रकार के पाप और पीड़ा का शमन होता है।

नवमी की पूजा- माता की पूजा धान के लावा से कर इसे किसी ब्राह्मण को दान करने से साधक को लोक–परलोक का सुख प्राप्त होता है।

दशमी की पूजा- दशमी तिथि के दिन माता को काले तिल का नैवेद्य का अर्पण करने से जीवन में किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता है एवं ज्ञात–अज्ञात शत्रुओं का नाश होता है।

राशि अनुसार शुभ पुष्प (फूल)-  
मेष- गुड़हल, गुलाब, लाल कनेर, लाल कमल अथवा किसी भी तरह के लाल पुष्प हों उससे पूजा करके मां भगवती को प्रसन्न कर मंगल जनित दोषों के कुप्रभाव से बचा जा सकता है।
वृष- श्वेत कमल, गुडहल, श्वेत कनेर, सदाबहार, बेला, हरसिंगार आदि जितने भी श्वेत प्रजाति के पुष्प हैं उनसे मां की आराधना करें। ऐसा कर पाने से शुक्र की शुभता में वृद्धि होगी।
मिथुन- मां की पूजा पीला कनेर, गुडहल, द्रोणपुष्पी, गेंदा और केवड़ा पुष्प से माँ की आराधना करके अभीष्ट कार्य सिद्ध के मार्ग खुलेंगे एवं बुध की कृपा भी प्राप्त होगी।
कर्क- श्वेत कमल, श्वेत कनेर, गेंदा, गुडहल, सदाबहार, चमेली, रातरानी सहित अन्य जितने भी प्रकार के श्वेत व गुलाबी पुष्प हैं उनसे मां की आराधना कर चन्द्र जनित दोषों से मुक्त हो सकते हैं।
सिंह- किसी भी तरह के पुष्प से कमल, गुलाब, कनेर, गुड़हल से मां की पूजा करके कृपा पा सकते हैं, गुड़हल का पुष्प सूर्य और मां दुर्गा को अति प्रिय है।
कन्या- गुड़हल, गुलाब, गेंदा, हरसिंगार एवं किसी भी तरह के अति सुगंधित पुष्पों से मां दुर्गा की आराधना करके अपने मनोरथ पूर्ति, बुध के साथ-साथ अन्य ग्रहों की अनुकूलता भी पा सकते हैं।
तुला- श्वेत कमल श्वेत, कनेर, गेंदा, गुड़हल, जूही, हरसिंगार, सदाबहार, केवड़ा,बेला चमेली आधी पुष्पों से मां भगवती की आराधना कर उनकी अनुकूलता एवं शुक्र की कृपा प्राप्त कर सकते है।
वृश्चिक- किसी भी प्रजाति के लाल, पीले एवं गुलाबी पुष्प से पूजा करके माता की कृपा प्राप्त की जा सकती है। लाल कमल से पूजा करने से घर-परिवार में समृद्धि बढ़ेगी, मंगल की कृपा भी प्राप्त होगी।
धनु- कमल पुष्प, कनेर, गुड़हल, गुलाब, गेंदा, केवडा और कनेर की सभी प्रजातियां के पुष्पों से मां का पूजन-अर्चन करने से मां का आशीर्वाद एवं वृहस्पति की कृपा, अधिक शुभता प्राप्त की जा सकती है।
मकर- नीले पुष्प, कमल, गेंदा, गुलाब, गुड़हल आदि से माँ शक्ति की पूजा-आराधना करके माँ की कृपादृष्टि मिलेगी। शनिजनित दुष्प्रभावों से बचते हुए सफलता प्राप्त की जा सकती है।
कुंभ- नीले पुष्प, गेंदा, सभी प्रकार के कमल, गुड़हल, बेला, चमेली, रातरानी आदि से भगवती की आराधना करने पर माता की कृपा के साथ शनिग्रह के दोष से मुक्त हो मनोरथ पूर्ण कर सकते हैं।
मीन- पीले कनेर की सभी प्रजातियां, सभी प्रकार के कमल, गेंदा, गुलाब, गुड़हल की सभी प्रजातियों से पूजा करके मां की कृपा प्राप्त करते हुए वृहस्पति संबंधी दोषों से भी मुक्त हो सकते हैं।

मनोकामना पूर्ति हेतु किस दिन क्या करें-
नवरात्र के समय कुछ कार्यों को करने से माता रानी प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि का वरदान देती हैं। ये कार्य इस प्रकार हैं-
- अपने हर काम में सफल होने के लिए और धन-सम्पदा प्राप्त करने के लिए नवरात्रि की अष्टमी के दिन माता महागौरी को कमल गट्टा जरूर चढ़ाएं। कमल गट्टे के साथ माता का सबसे प्रिय लाल गुड़हल का फूल भी चढ़ाएं।
- हर दिन नवरात्रि में देवी को ताजे फूल चढ़ाना चाहिए और पूजा घर की साफ-सफाई का विशेष ध्यान देना चाहिए। पुराने हो चुके फूलों की कभी भी कूड़े दान में नहीं फेंकना चाहिए, बल्कि किसी नदी या कुएं में प्रभावित करना चाहिए।
- अष्टमी और शुक्रवार के दिन झाडू जरूर खरीदकर घर लाना चाहिए। ऐसे करने से आपके ऊपर और परिवार के बाकी सदस्यों पर माता लक्ष्मी की कृपा होगी।
- नवरात्रि पर प्रतिदिन श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए। दुर्गा सप्तशी का पाठ करने से आपके सभी तरह के बिगड़े हुए काम पूरे होने लगते हैं।
- हर तरह की मनोकामना को पूरा करने के लिए नवरात्रि पर गाय को रोटी जरूर खिलाएं। नवरात्रि के नौ दिन तक ऐसा करने पर भाग्य का साथ मिलने लगता है।

कन्या पूजन
कुछ लोग महाअष्टमी और कुछ नवमी के दिन कन्या पूजन करते हैं। परिवार की रीति के अनुसार किसी भी दिन कन्या-पूजन किया जा सकता है। तीन साल से नौ साल तक आयु की कन्याओं को तथा साथ ही एक लांगुरिया (छोटा लड़का) को खीर, पूरी, हलवा, चने की सब्जी आदि खिलाए जाते हैं। कन्याओं को तिलक कर हाथ में मौली बांधकर, उपहार, दक्षिणा आदि देकर आशीर्वाद लेते हैं, फिर उन्हें विदा किया जाता है।

 
आपसे (Disclaimer)- उक्त लेख जानकारियां और सूचना ज्योतिर्विदों एवं पुस्तकों से साभार लिया गया है इनको करने से पूर्व कर्मकांडी ब्राह्मण या विद्वान से संपर्क करें। 
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नवरात्रि से पूर्व विशेष आग्रह / अपील आपसे- ब्राह्मण या विद्वान से किसी भी पूजा-पाठ के लिए यथासंभव सम्मानपूर्वक दक्षिणा देकर संतुष्ट करें, क्योंकि उसने कर्मकांड की शिक्षा ली है, आपके पूजा-पाठ के लिए समय-ऊर्जा दे रहा है, यह उसकी आजीविका है या परिवार के भरण-पोषण का माध्यम भी है -प्रबंध सम्पादक    
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धार्मिक-आध्यात्मिक लेख, समाचार- 
आज (6 अक्टूबर) सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर गजछाया योग, जाने मुहूर्त, करें उपाय जिससे पितरों के आशीर्वाद के साथ मिले... करें उपाय ऋण से मुक्ति, सुख-समृद्धि, हो घर-परिवार में धन का आगमन 
http://www.dharmnagari.com/2021/10/Sarv-Pitra-Moksh-Amavshya-par-Gajchhaya-yog-remeady.html
जब शरीर का संस्कार (अग्निदाह) किया जाता है, तब प्राण मन को लेकर चलता है...

http://www.dharmnagari.com/2021/09/Sraddh-Paksh-where-does-Soul-Mann-goes-after-the-cremation-Scientific-Aspect.html
जाने पितृ-दोष के लक्षण, पितृपक्ष...

http://www.dharmnagari.com/2020/08/Pitra-Paksh-Pitra-Dosh.html
भारत के पराधीन [गुलाम] होने का मुख्य कारण धन व भोगवासना है...महाभारत के उद्योग पर्व के संदर्भ में  
Why-India-has-been-a-slave-Country-Spiritual-reason-accordingly-Mahabharat-are-money-andlust-Bharat-Paradheen-kyo-raha
मासिक राशिफल : अक्टूबर 2021... न्याय व्यवस्था चुस्त होगी, फिल्मी व राजनीतिक क्षेत्र हेतु नहीं है शुभ
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http://www.dharmnagari.com/2021/09/Monthly-horoscope-October-2021-Masik-rashifal.html  

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फेसबुक, व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम ठप्प, मार्क जकरबर्ग ने गवाएं कुछ घंटों में लगभग 44,735 करोड़ रु
भारत में 53 करोड़ व्हाट्सऐप, 41 करोड़ फेसबुक, 21 करोड़ इंस्टाग्राम उपयोगकर्ता  
http://www.dharmnagari.com/2021/10/Facebook-Whatsapp-Instagram-down-globally-report-say-Mark-Zuckerberg-loss-44734-Crore-in-few-Hours.html
आज विशेष : देश-दुनिया । अनोखे शासक राजा रवि वर्मा, जिन्होंने बनाई हिंदू महाकाव्यों व धर्मग्रन्थों पर कालजयी कलाकृतियाँ .... जिन्‍होंने घर-घर पहुंचा दिए देवी-देवताओं के च‍ित्र
http://www.dharmnagari.com/2021/10/Todays-Special-2-October-www.DharmNagari.com-Dharm-Nagari.html
आज विशेष : देश-दुनिया । काका हाथरसी: ऊंट पर निकली शवयात्रा, मौत पर गूंजे ठहाके
http://www.dharmnagari.com/2021/09/Todays-Special-18-September-Dharm-Nagari.html
आज विशेष : देश-दुनिया । 'आधुनिक नृत्य के जन्मदाता प्रसिद्ध नर्तक, नृत्य निर्देशक, बैले निर्माता उदय शंकर  
http://www.dharmnagari.com/2021/09/Todays-Special-26-September-www.DharmNagari.comDharm-Nagari.html
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