सूर्य के "आरोग्य मंत्र" का करें सही जाप, होगी यश में वृद्धि, मिलेगी बीमारियों से मुक्ति...


आरोग्य व सौभाग्यदायी है चमत्कारी "सूर्य कवचम"

धर्म नगरी / DN News 
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-राजेश पाठक (अवैतनिक संपादक) 
कलयुग में सूर्य देव प्रत्यक्ष रूप से दर्शन देने वाले देवता हैं। पौराणिक उल्लेखों में सूर्य का उल्लेख विश्व की आत्मा और ईश्वर के नेत्र के रूप में हुआ है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को मान-सम्मान, आरोग्य प्रदान करने वाला भी माना गया है। सूर्य की पूजा से जीवनशक्ति, मानसिक शांति, ऊर्जा और जीवन में सफलता की प्राप्ति होती है। सूर्यदेव को उगते और डूबते दोनों तरह से अर्घ्य दिया जाता है। शास्‍त्रों में सबसे ऊपर सूर्य देवता का स्‍थान रखा गया है। अगर सूर्य देव की पूजा की जाए तो कहा जाता है कि व्यक्ति के हर तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं।

मुहूर्त के अनुसार सूर्य का काल- 
वायु पुराण के अनुसार, सूर्य जब अपनी रेखा पर उदयकाल से तीन मुहूर्त तक चल चुके होते हैं, तब वह काल "प्रातस्तन" कहलाता है और वह दिन का पाँचवा भाग कहलाता है। उसके पश्चात का तीन महूर्त "संगव", उसके पश्चात तीन महूर्त मध्यान्ह-काल, फिर तीन मुहूर्त अपराह्न-काल, फिर उसके पश्चात तीन मुहूर्त सायं-काल कहलाता है। जब विषुवत रेखा पर सूर्य स्थिर रहते हैं, तब मुहूर्तों का दिन और 15 मुहूर्तों लग रात होती । सूर्य के उत्तरायण व दक्षिणायन होने पर रात और दिन घटते-बढ़ते रहते हैं। इसी कारण कभी दिन रत को ग्रस लेता है, कभी रात दिन को।

अग्नि पुराण के अनुसार, सूर्य चार मुँह वाले हैं। सूर्य को प्रातःकाल अर्घ्य देने का मंत्र है-
यों रों ह्रीं अर्काय भूर्भुवः स्वरश्च ज्वालिनी कुलमुद्गर। 

सूर्य देव की पूजा का विधान-
रविवार सूर्य देव का दिन है, इसी दिन इनके पूजा का विधान है. सूर्य का धार्मिक महत्व होने के साथ चिकित्सा पद्धति में भी बहुत महत्व माना जाता है। योग में भी सूर्य नमस्कार को बहुत लाभदायक माना गया है।शास्त्रों के अनुसार किसी भी देवी-देवता की विशेष कृपा प्राप्त करने हेतु मंत्र जप सबसे उत्तम रहता है। यदि मंत्रों का जाप एक सही विधि, नियम और निष्ठा से किया जाए तो जीवन में अनेक तरह के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मंत्र यदि सही प्रकार से करने पर निश्चित रूप से लाभ होता है। यदि आप या आपके परिवार में कोई भी किसी भी प्रकार के रोग से पीड़ित है तो सूर्य के आरोग्य दायक मंत्र का जप कर सकते हैं
 इससे रोग से मुक्ति मिलने के साथ अन्य कई तरह से लाभ प्राप्त होते हैं।
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वैदिक मंत्र- 
ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च ।
हिरण्ययेन सविता रथेन  देवो याति  भुवनानि पश्यन ।।

तांत्रोक्त मंत्र- 
ऊँ घृणि: सूर्यादित्योम
ऊँ घृणि: सूर्य आदित्य श्री
ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय: नम:
ऊँ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नम:


सूर्य नाम मंत्र- 
ऊँ घृणि सूर्याय नम:

सूर्य का आरोग्य दायक मंत्र-
ऊँ नम: सूर्याय शान्ताय सर्वरोग निवारिणे।
आयु ररोग्य  मैस्वैर्यं  देहि  देव:  जगत्पते।।


प्रतिदिन अथवा प्रत्येक रविवार के दिन निम्न मंत्रों द्वारा सूर्य देव का पूजन-अर्चन करें। फिर अपनी मनोकामना मन ही मन बोलें। भगवान सूर्य नारायण आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करेंगे।
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।
ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ
ऊं घृ‍णिं सूर्य्य: आदित्य:
प्रतिदिन श्री आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ अवश्‍य करें। 

भगवान सूर्य का एक ऐसा कल्याणमय स्तोत्र, जो सभी स्तुतियों का सारभूत है। जो भगवान भास्कर के पवित्र, शुभ एवं गोपनीय नाम हैं। ब्रह्म पुराण (31.31-33) में उल्लेख है-

विकर्तनो विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो रविः।
लोक प्रकाशकः  श्री माँल्लोक चक्षुर्मुहेश्वरः॥
लोकसाक्षी  त्रिलोकेशः कर्ता  हर्ता तमिस्रहा।
तपनस्तापनश्चैव  शुचिः सप्ताश्ववाहनः॥
गभस्तिहस्तो ब्रह्मा च सर्वदेवनमस्कृतः।
एकविंशतिरित्येष  स्तव  इष्टः सदा रवेः॥
"विकर्तन, विवस्वान, मार्तण्ड, भास्कर, रवि, लोकप्रकाशक, श्रीमान, लोकचक्षु, महेश्वर, लोकसाक्षी, त्रिलोकेश, कर्ता, हर्त्ता, तमिस्राहा, तपन, तापन, शुचि, सप्ताश्ववाहन, गभस्तिहस्त, ब्रह्मा और सर्वदेव नमस्कृत- इस प्रकार 21 नामों का यह स्तोत्र भगवान सूर्य को सदा प्रिय है।"

यह शरीर को निरोग बनाने वाला, धन की वृद्धि करने वाला और यश-कीर्ति फैलाने वाला स्तोत्र राज है। इसकी तीनों लोकों में प्रसिद्धि है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक सूर्य के उदय और अस्तकाल में दोनों संध्याओं के समय इस स्तोत्र के द्वारा भगवान सूर्य की स्तुति करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है।
भगवान सूर्य के सान्निध्य में एक बार भी इसका जप करने से मानसिक, वाचिक, शारीरिक तथा कर्मजनित सब पाप नष्ट हो जाते हैं। अतः यत्नपूर्वक संपूर्ण अभिलक्षित फलों को देने वाले भगवान सूर्य का इस स्तोत्र के द्वारा स्तवन करना चाहिए।

मंत्र जाप की विधि-
-सूर्य मंत्र का चमत्कारी लाभ प्राप्त करने के लिए इस तरह से जाप करें,
-सूर्य की उपासना के लिए सुबह जल्दी उठना चाहिए,
-रविवार को सूर्योदय से पहले नित्यक्रियाओं से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें,
-उगते हुए सूर्य के समक्ष खुले आकाश के नीचे आसन बिछाकर बैठें,
-सूर्य की ओर मुख करके अपनी आंखें बंद करके सूर्य का ध्यान करें और एक गहरी-लंबी सांस लें,
-अब सूर्यदेव का इस प्रकार ध्यान करें, जैसे आपके रोम-रोम में उनका दिव्य प्रकाश प्रवेश कर रहा हो,
-इसी ध्यान अवस्था में लगभग 10 से 15 मिनट तक भगवान सूर्य नारायण का ध्यान करें,
-जब ध्यान की प्रक्रिया पूरी होने पर तुलसी की माला से 251 बार इस मंत्र को बिना बोले अपने मन में जाप करें,
-जब मंत्र जाप पूर्ण हो जाए, उसके बाद भगवान सूर्य को प्रणाम कर तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें थोड़ा सा दूध और शक्कर डालकर अर्ध्य दें।

आरोग्य, सौभाग्यकर्ता दिव्य चमत्कारी है "सूर्य कवचम"-
याज्ञवल्क्य उवाच-
श्रणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम्।
शरीरारोग्दं दिव्यं सव सौभाग्य दायकम्।1।
याज्ञवल्क्यजी बोले- हे मुनि श्रेष्ठ! सूर्य के शुभ कवच को सुनो, जो शरीर को आरोग्य देने वाला है तथा संपूर्ण दिव्य सौभाग्य को देने वाला है।
देदीप्यमान मुकुटं स्फुरन्मकर कुण्डलम।
ध्यात्वा सहस्त्रं किरणं स्तोत्र मेततु दीरयेत् ।2।
चमकते हुए मुकुट वाले डोलते हुए मकराकृत कुंडल वाले हजार किरण (सूर्य) को ध्यान करके यह स्तोत्र प्रारंभ करें।
शिरों में भास्कर: पातु ललाट मेडमित दुति:।
नेत्रे  दिनमणि:  पातु  श्रवणे  वासरेश्वर: ।3।
मेरे सिर की रक्षा भास्कर करें, अपरिमित कांति वाले ललाट की रक्षा करें। नेत्र (आंखों) की रक्षा दिनमणि करें तथा कान की रक्षा दिन के ईश्वर करें।
ध्राणं धर्मं  धृणि:  पातु  वदनं  वेद  वाहन:।
जिव्हां में मानद: पातु कण्ठं में सुर ‍वन्दित: ।4।
मेरी नाक की रक्षा धर्मघृणि, मुख की रक्षा देववंदित, जिव्हा की रक्षा मानद् तथा कंठ की रक्षा देव वंदित करें।
सूर्य रक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्ज पत्रके।
दधाति य: करे तस्य वशगा: सर्व सिद्धय: ।5।
सूर्य रक्षात्मक इस स्तोत्र को भोजपत्र में लिखकर जो हाथ में धारण करता है तो संपूर्ण सिद्धियां उसके वश में होती हैं।
सुस्नातो यो जपेत् सम्यग्योधिते स्वस्थ: मानस:।
सरोग मुक्तो दीर्घायु सुखं पुष्टिं च विदंति ।6।
स्नान करके जो कोई स्वच्छ चित्त से कवच पाठ करता है, वह रोग से मुक्त हो जाता है, दीर्घायु होता है, सुख तथा यश प्राप्त होता है।

रविवार को करें ये विशेष उपाय- 
रविवार को सूर्य देवता का दिन माना गया है। इस दिन सूर्य का पूजन, जल से अर्घ्य तथा सूर्य मंत्र का जाप करने का विशेष महत्व हैं। रविवार के दिन सूर्य मंत्रों का 108 बार जाप करने से जीवन में अवश्य अनुकूल फल, उनकी कृपा मिलती है, निम्न उपाय से सभी मनोकामना की पूर्ति होती है-
रविवार के दिन सूर्य देव को जल चढ़ाएं।
लाल या गुलाबी फूल सूर्यदेव को अर्पित करें।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौ स: सूर्याय नम: मंत्र जप करें।
गुड़ का सेवन करें।
 लाल रंग की ड्रेस पहनें या लाल रूमाल रखें।
सूर्यदेव का सरल मंत्र 'ॐ घृ‍णिं सूर्य्य: आदित्य:' की एक माला (108 बार मंत्र जाप) फेरें।
 शुद्ध उच्चारण करते हुए श्री आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करें।
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सूर्य देव के नामों में छिपी पौराणिक कथा 
सूर्य देव के अनेक नाम हैं। सभी नामों का महत्व अलग है और सबके पीछे एक छिपी पौराणिक कथा इस प्रकार है-
सूर्य- शास्त्रों में सूर्य का अर्थ चलाचल बताया गया है। इसका अर्थ है जो हर समय चलता हो। भगवान सूर्य ब्रह्माण्ड में भ्रमण करते हुए अपनी कृपा प्रदान करते हैं, जिसके चलते इन्हें सूर्य कहा जाता है।
रवि- जिस दिन ब्रह्मांड की शुरुआत हुई थी उस दिन रविवार था। मान्यता है, इस दिन के नाम पर सूर्यदेव का नाम रवि पड़ गया।
दिनकर- सूर्यदेव दिन पर राज करते है।. इसी के चलते इन्हें दिनकर भी कहा जाता है. दिन की शुरुआत और अंत सूर्य से ही होता है। इसी के चलते इन्हें सूर्य देव भी कहा जाता है। 
आदित्‍य- देवमाता अदिति ने असुरों के अत्याचारों से परेशान होकर सूर्यदेव की तपस्या की थी. साथ ही उनसे उनके गर्भ से जन्म लेने की विनती की थी। उनकी तपस्या के प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने अदिति के गर्भ से जन्म लिया और इस कारण वह आदित्य कहलाए। अन्य कथाओं में, अदिति ने सूर्यदेव के वरदान से हिरण्यमय अंड को जन्म दिया था तेज के कारण यह मार्तण्‍ड कहलाए।
भुवनेश्‍वर- अर्थात भुवन (पृथ्वी) पर राज करने वाला होता है। सूर्य से ही पृथ्वी का अस्तित्व है। अगर सूर्यदेव न हो तो धरती का कोई अस्तित्व नहीं होगा. इसके चलते इन्हें भुवनेश्वर कहा जाता है।
आदिदेव- ब्रह्मांड का आरम्भ सूर्य से और अंत भी सूर्य में ही समाहित है। इसलिए इन्हें आदिदेव भी कहा जाता है।
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