दीपावली : वर्षभर में केवल चतुर्दशी को होती है यमराज की पूजा, महादेव ने दिया था यमराज को ये वरदान ...


... ताकि परिवार में अकाल मृत्यु का भय न रहे !
- एकमात्र यमराज मंदिर, नरक चौदस पर होती है विशेष पूजा-अर्चना
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-रा.पाठक 
धनतेरस के दूसरे दिन- नरक चतुर्दशी या यम चतुर्दशी को यमराज की पूजा की जाती है। पूरे वर्ष में एक मात्र यही दिन है, जब मृत्‍यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है। यह पूजा दिन में नहीं, रात में की जाती है। रात्रि में यम के निमित्त एक दीपक प्रज्वलित करना चाहिए। इसके लिए आटे का दीपक जलाकर के घर के मुख्य द्वार पर रखें और उसकी पूजा करें। मान्यता है, ऐसा करने से परिवार में अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है।

नरक-चतुर्दशी को सूर्योदय-काल में सर्वार्थसिद्ध योग-
दीपावली को माँ लक्ष्मी-गणेश (दोनों की) पूजा होती है और पूजन का मुख्य समय प्रदोष-काल होता है, जिसमे स्थिर लग्न की प्रमुखता होती है। अतः वृष, सिंह, कुम्भ लग्न में दीपावली-पूजन करना चाहिए। रात्रि 12 बजे महानिशा-काल एवं प्रतिष्ठानों, दुकानों, फैक्ट्रियों आदि में दोपहर 12 बजे अभिजीत-काल श्रेष्ठ माना गया है। वहीं, पाँच पर्वों / दिन के इस महापर्व दीपावली के मध्य नरक-चतुर्दशी या छोटी दीपावली (3 अक्टूबर, बुधवार) को सूर्योदय से प्रातःकाल 8:47 बजे तक सर्वार्थसिद्ध-योग रहेगा।

यमराज की पूजा-
नरक चतुर्दशी दीपावाली के एक दिन पहले मनाते हैं। जिसमें घर के बाहर मुख्य द्वार पर दीया जलाया जाता है और यमराज की पूजा भी की जाती है। आपको जानकार आश्चर्य होगा, दीपावाली जैसे आनंद के त्यौहार पर मृत्यु के देवता यमराज की पूजा क्यों होती है, इसके पीछे की पौराणिक कथा है... 
"धर्म नगरी" के संपादकीय सलाहकार डॉ. अल्प नारायण त्रिपाठी "अल्प" के अनुसार अग्नि पुराण में यमराज का मंत्र इस प्रकार है-
"यमावटटमवाय माटमोटटमोटमाटा वामभूरीरिभूमावा टटरीत्वरीटट"      
   
सनातन हिन्दू धर्म में तीन दंड नायक है- यमराज, शनिदेव और भैरव। मार्कण्डेय पुराण  के अनुसार, यमराज को दक्षिण दिशा के दिग्पाल एवं मृत्यु का देवता कहा गया है। यमराज का पुराणों में विचित्र विवरण मिलता है। पुराणों के अनुसार यमराज का रंग हरा है और वे लाल वस्त्र पहनते हैं। यमराज भैंसे की सवारी करते हैं और उनके हाथ में गदा होती है। स्कन्द पुराण में कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को दीये जलाकर यम को प्रसन्न किया जाता है।

यमराज के मुंशी 'चित्रगुप्त' हैं, जिनके माध्यम से वे सभी प्राणियों के कर्मों और पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं। चित्रगुप्त की बही 'अग्रसन्धानी' में प्रत्येक जीव के पाप-पुण्य का हिसाब है। स्मृतियों के अनुसार 14 यम माने गए हैं- यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुम्बर, दध्न, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त।
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मुख्य द्वार पर रखते हैं दीपक-
एक कथा के अनुसार इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। नरकासुर ने 16,000 महिलाओं को बंदी बना रखा था जिन्हें कृष्ण ने उसका वध करके मुक्त किया था। इसलिए दीपावाली के त्यौहार में एक दिन इसे विजय के रूप में मनाया जाता है, दीप जलाकर आनंद मनाया जाता है।

प्राचीन कथा के अनुसार, एक धर्मात्मा राजा रतिदेव थे। राजा रतिदेव ने अपने जीवनकाल में कभी कोई पाप नहीं किया था। लेकिन उसके बावजूद जब उनकी मृत्यु हुई, तो उन्हें नरक प्राप्त हुआ। नरक लोक पहुंचते ही राजा यमदूत से बोले, मैंने अपने जीवन में कोई पाप नहीं किया इसके बाद भी मुझे नरक क्यों मिला। तब यमदूत नें उन्हें उत्तर देते हुए कहा- हे वत्स ! एकबार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा पेट लौट गया था, यह आपके उसी कर्म का फल है।

यह बात सुनते ही राजा ने यमराज से एक वर्ष का समय मांगा और ऋषियों के पास अपनी इस समस्या को लेकर पहुंचे तब ऋषियों ने उन्हें कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत रखने और ब्राह्मणों को भोजन कराकर उनसे माफी मांगने को कहा। एक साल बाद यमदूत राजा को फिर लेने आए, इसबार उन्हें नरक के स्थान पर स्वर्ग ले गए। तभी से कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष को दीप जलाने की परंपरा आरम्भ हुई, जिससे भूल से हुए पाप को भी क्षमादान मिल सके।
... Article will be updated soon 
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(Disclaimer : उक्त लेख में दी जानकारियां धार्मिक ग्रंथों, ज्योतिर्विदों के मत, प्राचीन आस्था एवं मान्यताओं पर आधारित हैं, समस्त जानकारी शत प्रतिशत सत्य हों, प्रमाणित हों, इसकी पुष्टि हम नहीं करते।)
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यमराज-पूजन की पौराणिक कथा-
यमराज की नरक चौदस पर पूजा अर्चना करने को लेकर पौराणिक कथा है। कथा के अनुसार, यमराज ने भगवान शिव की तपस्या की थी. जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने यमराज को वरदान दिया था की आज से तुम हमारे गण माने जाओगे और दीपावली से एक दिन पहले नरक चौदस पर तुम्हारी पूजा की जाएगा। जो भी तुम्हारी पूजा अर्चना और अभिषेक करेगा उसे जब सांसारिक कर्म से मुक्ति मिलेनी. तो उस इंसान की आत्मा को कम से कम यातनाएं सहनी होंगी. जिसके बाद से ही नरक चौदस के दिन यमराज की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।

यमराज मंदिर, ग्वालियर (फोटो- सोशल मीडिया)
यमराज मंदिर : नरक चौदस पर होती है विशेष पूजा-अर्चना
"यमराज मंदिर" मध्य प्रदेश के ग्वालियर में स्थित है। मृत्यु के देवता यमराज का मंदिर मारकंडेश्वर के नाम से प्रसिद्ध   है, जो लगभग 300 वर्ष प्राचीन हैं। मंदिर में यमराज की विशेष पूजा दीपावाली के एक दिन पहले यम चतुर्दशी, नरक चौदस या रूप चौदस, दीपावली के दो दिन पश्चात यम-द्वितीया एवं मकर-संक्रांति पर की जाती है। 

पूजा में सम्मिलित होने दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। ग्वालियर शहर के बीचों-बीच फूलबाग पर बने मार्कडेश्वर मंदिर के अंदर ही यमराज का यह मंदिर बना है। इस मंदिर की स्थापना सिंधिया वंश के राजाओं ने लगभग 300 साल पहले करवाई थी।
यमराज का सरसों के तेल से अभिषेक किया जाता है। दूध, दही, शकर और शहद से भोग लगाया जाता है। शाम को चार बाती का दीपक दान किया जाता है, जो भक्त अपनी क्षमता के अनुसार चांदी, मिट्टी और आटे का करते हैं। मान्यता है कि यमराज की पूजा करने से उम्र के अंतिम दौर में इंसान को कष्ट नहीं होता। यह मंदिर श्रद्धा और आस्था का केंद्र माना जाता है।

मान्यतानुसार, नरक चौदस को इसलिए यमराज की पूजा की जाती है, जिससे जीवन के अंतिम समय में व्यक्ति को कष्ट न हो। यमराज का ये मंदिर देशभर में श्रद्धा व आस्था का केंद्र माना जाता है। यमराज का सरसों के तेल से अभिषेक किया जाता है। दूध, दही, शकर और शहद से भोग लगाया जाता है। शाम को चार बाती का दीपक दान किया जाता है, जो भक्त अपनी क्षमता के अनुसार चांदी, मिट्टी और आटे का करते हैं। मान्यता है कि यमराज की पूजा करने से उम्र के अंतिम दौर में इंसान को कष्ट नहीं होता। यह मंदिर श्रद्धा और आस्था का केंद्र माना जाता है।

नरक चतुर्दशी के दिन यमराज की पूजा का विशेष पहल मिलता है शाम के समय घर के द्वार पर, मंदिर, देववृक्ष और सरोवर के किनारे दीप जलाए जाते हैं त्रयोदशी से तीन दिन तक दीप प्रज्ज्वलित करने से यमराज प्रसन्न होते हैं कहा जाता है कि ऐसा करने से अंतकाल में व्यक्ति को यम यातना का भय नहीं होता दीपदान से यम की पूजा करने पर नरक का भय भी नहीं सताता यही कारण है, नरक चौदस के रूप में मनाया जाता है। 

नरक चौदस पर यमराज की पूजा-अर्चना को लेकर पौराणिक कथा है। यमराज ने भगवान शिव की तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने यमराज को वरदान दिया, कि आज से तुम हमारे गण माने जाओगे। दीपावली से एक दिन पहले नरक चौदस पर तुम्हारी पूजा की जाएगी।
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