भाई दूज : शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा-विधि, तिलक की विधि, कथा, इस दिन क्या न करें...


पांच दिवसीय दीपावली महापर्व का अंतिम पर्व है भाई दूज 
- टीका के लिए भाई को उत्तर-पश्चिम की ओर मुंह कर चौकी पर बैठाएं 
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भाई-बहन के स्नेह, त्याग और समर्पण का प्रतीक है भाई दूज का पर्व। इस दिन बहनें अपने भाई की दीघार्यु एवं समृद्धि की कामना करती है। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष या (दीपावली के तीसरे दिन) यह भाई-दूज का पर्व मनाते हैं, जो दीपावली महापर्व का अंतिम एवं पाँचवाँ पर्व होता है। भाई दूज रक्षा बंधन के समान है, जब एक भाई और बहन एक दूसरे के लिए प्रार्थना करते हैं, लंबे जीवन और उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं। 

भाई दूज भाई-बहन का एक ऐसा निश्छल त्यौहार है, जिसमें भाई और बहन के बीच के "बंधन का उत्सव" के रूप में मनाते है। इस त्यौहार को भाबीज, भाई-फोंटा, भाई-टीका के नाम से भी जाना जाता है। यह दीपावाली के दो दिन बाद मनाया जाता है। इस दिन, भाई-बहन पल को मनाते हैं और एक साथ उपवास का आनंद लेते हैं। इस भाई दूज त्यौहार के साथ, पांच दिवसीय दिवाली उत्सव समाप्त हो जाता है।

मान्यता है, कि भाई दूज के दिन भाई को लंबी आयु के साथ सुख-संपन्नता का आशीर्वाद भी मिलता है पौराणिक कथा के अनुसार, गोवर्धन-पूजा के दूसरे दिन मनाए जाने वाले इस त्यौहार का का संबंध सूर्य पुत्र यम और पुत्री यमुना से जुड़ा हुआ है

कथा के अऩुसार यमुना के आदर-सत्कार से प्रसन्न होकर उन्होंने वरदान दिया था कि जो भी भाई इस दिन अपनी बहन का आतिथ्य स्वीकार करेगा, उसके भाई को किसी प्रकार से यम का भय नहीं रहेगा इसलिए इस दिन भाई बहनों के घर जाकर भोजन करते हैं और बहनें अपने भाई को यमदेव के प्रकोप से बचाने के लिए उनका तिलक करती हैं 

भाई दूज के दिन क्या करने से बचें-  
मान्यताओं के अनुसार, भाई-दूज के दिन कुछ चीजों को वर्जित माना गया है, जिसे नहीं करना चाहिए-
- भाई दूज के दिन भाई अपनी बहन के घर जाते हैं इस दिन भाई को बहन के होते हुए भी अपने घर पर भोजन नहीं करना चाहिए यदि बहन के पास पहुंचना संभव न हो सके तो गाय के समीप बैठकर भोजन करें
- भाई दूज के दिन जब भाई अपनी बहन के घर जाएं, तो वहां बनाए गए भोजन का निरादर न करेंऐसा करने से भाई को जीवन में समस्याओं का सामना करना पड़ता सकता है
- भाई दूज के दिन बहन को भी अपने भाई का निरादर नहीं करना चाहिए
- इस दिन भाई को अपनी बहन से झूठ न बोलें, क्योकि कहा जाता है यमराज के प्रकोप झेलना पड़ सकता है
- इस दिन मांसाहार (नॉन वेज) का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए। शराब भी नहीं पीनी चाहिए, क्योकि इससे यम देव का प्रकोप को झेलना पड़ सकता है
- बहनों को भाई का तिलक करने से पहले कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। इस दिन बहनों को अपने भाई की पसंद का ही खाना बनाना चाहिए
- भाई दूज के दिन भाई का तिलक कर उसे मीठा खिलाना चाहिए। ऐसा करने से भाई-बहन में सदैव प्रेम बना रहता है
- भाई दूज के दिन बहन-भाई को किसी भी बात पर बहस या झगड़ा नहीं करना चाहिए।

भाई दूज का महत्व-
पुराणों के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल द्वितीया के दिन ही भाई दूज के दिन सूर्य देव की पुत्री यमुना ने अपने भाई यमदेव को अपने घर भोजन के लिए बुलाया था। जिसे यमराज ने स्वीकार कर लिया था और अपनी बहन के यहां भोजन के लिए गए थे। तब ही से भाई दूज के त्योहार को मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई को प्रेमपूर्वक अपने घर पर भोजन के लिए आमंत्रित करती हैं। बहन अपने भाई की विधि-पूर्वक पूजा एवं तिलक कर उन्हें भोजन कराती है और भाई उपहार देते हैं। 

भाई दूज की तिथि, जो यम द्वितीया के नाम से जानी जाती है, तीनों लोकों में विख्यात है। जो भी भाई इस दिन अपनी बहन के हाथ का भोजन करता है, उसके घर में कभी भी अन्न की कमी नहीं होती और साथ ही धन की प्राप्ति भी होती है। शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को सूर्योदय से पहले यमदेव की पूजा करने के बाद यमुना नदी में स्नान (यदि संभव हो उत्तर है, परन्तु  आवश्यक नहीं है) करना चाहिए। ऐसा करने से उस मनुष्य को यमलोक की यातनाएं नहीं सहनी पड़ती और उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
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भाई दूज पूजा विधि-

भाई दूज के दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर भाई को घर पर भोजन के लिए (पुनः) आमंत्रित करें। नए (अथवा धुले हुए स्वच्छ) कपड़े पहनें। शुभ-मुहूर्त में पूजा का शुभारंभ भगवान गणेश का आह्वान के साथ करनी चाहिए। फिर उनका आशीर्वाद लेकर देवताओं से प्रार्थना करने के बाद अपने भाई को उत्तर-पश्चिम की ओर मुंह करके दूसरी चौकी पर बैठाना चाहिए। अब, अपने भाई को रूमाल से अपना सिर ढँक दें। अब अपने भाई के माथे पर टीका लगाएं और उन्हें नारियल दें। फिर आरती करें, अक्षत को अपने सिर पर रखें, और उन्हें मिठाई खिलाकर अनुष्ठान का समापन करें। भाई को एक पाट पर बैठाकर तिलक करें। अब भाई की लंबी आयु, आरोग्य और सुखी जीवन की कामना करें। भाई की आरती उतारें और भोजन करवाएं।

भाई दूज तिलक विधि-

भाईदूज के विधि-विधान के अनुसार सबसे पहले एक पाट बिछाकर उसके ऊपर चावल के घोल से पांच शंक्वाकार आकृति बनाएं। आकृतियों के बीचोबीच सिंदूर लगा दें। पाट के आग स्वच्छ जल से भरा हुआ कलश , 6 कुम्हरे के फूल, सिंदूर, 6 पान के पत्ते, 6 सुपारी, बड़ी इलायची, छोटी इलाइची, हर्रे, जायफल इत्यादि रखें। कुम्हरे के फूल के स्थान पर गेंदे का फूल प्रयोग में लाया जा सकता है। बहन भाई को आदरपूर्वक पाट पर बिठाती है। भाई के दोनों हाथों में चावल का घोल एवं सिंदूर लगाती है।

उसके बाद भाई के हाथ में शहद, गाय का घी और चंदन लगाती है। भाई की अंजलि (हाथ) में पान का पत्ता, सुपारी, कुम्हरे या गेंदे का फूल, जायफल इत्यादि देकर कहती है- "यमुना ने निमंत्रण दिया यम को, मैं निमंत्रण दे रही हूं अपने भाई को; जितनी बड़ी यमुना जी की धारा, उतनी बड़ी मेरे भाई की आयु।" यह कहकर अंजलि में सारी सामग्री डाल देती है। इस तरह इसका तीन बार उच्चारण करती है, अब भाई के जल से हाथ-पैर धो देती है और कपड़े से पोंछ देती है। बहन भाई का तिलक करती है। भुना हुआ मखाना खिलाती है। भाई बहन को उपहार देता है। अब बहन घर आए भाई को भोजन करवाती है।

भाई दूज की कथा-
एक बार सूर्यदेव और छाया की पुत्री यमुना ने अपने भाई यमराज को प्रेमपूर्वक उनके घर आने और भोजन करने का निमंत्रण दिया, कि वे उनके घर आएं और भोजन ग्रहण करें। परन्तु यमराज अपनी व्यस्तता के कारण यमुना की बात को टाल देते हैं। फिर कार्तिक माह के शुक्ल द्वितीया के दिन यमराज यमुना के घर अचानक पहुंच जाते हैं।


अपने भाई को दरवाजे पर खड़ा देखकर यमुनाजी के आनंद की सीमा नहीं रहती। यमुना अपने भाई का स्वागत सत्कार करती हैं। प्रेमपूर्वक उन्हें भोजन कराती हैं। यमराज अपनी बहन का स्नेह और प्रेम देखकर भाव-विभोर हो गए और उन्हें वर मांगने के लिए कहा। 

तब यमुना ने अपने भाई से वर-स्वरूप यह मांगा, कि हर वर्ष वे इसी दिन वह उनके यहां भोजन के करने के लिए आएं और जो भी बहन इस दिन अपने भाई का टीका करके उसे भोजन खिलाए, उसे आपसे किसी भी प्रकार का भय न हो। इसके बाद यमराज यमुना को 'तथास्तु' कहकर यमलोक लौट गए। उसी दिन सभी बहने अपने भाई का तिलक करके उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन कराती हैं। जिससे भाई और बहन को यमदेव का किसी भी प्रकार का भय नही होता।

भाई दूज मुहूर्त- 
तिलक का शुभ समय- अपराह्न 1:10 बजे से 3:21 बजे तक रहेगा।
अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11:19 से दोपहर 12:04 बजे तक।
विजय मुहूर्त- दोपहर 01:32 से 02:17 तक।
अमृत काल मुहूर्त- दोपहर 02:26 से 03:51 तक।
गोधूलि मुहूर्त- शाम 05:03 से 05:27 तक।
संध्या मुहूर्त- शाम 05:14 से 06:32 तक।
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Bhai dooj. A festival which displays infinite love, affection, bond and respect between brother and sister. Wherein sister prays and wishes for well-being and progress of his brother and brother promise to protect his sister.


Bhai Dooj festival is a symbol of affection of sister and brother. On this day, those who eat satvik and nutritious food made by their sisters will increase their sattvik qualities. -@DharmNagari  


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