#चित्रगुप्त_पूजा : कर्मों का लेखा-जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त की पूजा, मंत्र, विधि व महत्व


भगवान चित्रगुप्त एवं उनका परिवार (पुत्र एवं पत्नियां) @DharmNagari 
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कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है। इस तिथी (6 नवंबर) को चित्रगुप्त के वशंज को कलम (लेखनी) की पूजा करेंगे। शाश्वत सत्य है, कि जो भी प्राणी या जीव, मनुष्य के साथ पशु-पक्षी आदि इस पृथ्वी पर जन्म लेता है, उसकी मृत्यु निश्चित है, क्योंकि यही भगवान की बनाई सृष्टि का विधान है. जन्म के बाद मृत्यु से क्या आम आदमी, स्वयं भगवान तक नहीं बच पाए. उन्हें भी किसी न किसी बहाने से अपना शरीर त्याग कर परलोक जाना पड़ा है. भगवान राम-कृष्ण से लेकर तमाम दैवीय आत्माओं को एक निश्चित समय पर पृथ्वी पर अपने शरीर को छोड़ना पड़ा है. 

मान्यता है कि प्राणी की जब जीवनलीला समाप्त हो जाती है तो यमलोक जाने पर भगवान चित्रगुप्त उसके कर्मों का लेखा-जोखा उसके सामने रखते हैं और उसी के अनुसार उसे आगे स्वर्ग या नर्क लोक की अगली यात्रा तय होती है. मान्यता है कि भगवान चित्रगुप्त किसी भी प्राणी के पृथ्वी पर जन्म लेने से लेकर मृत्यु तक उसके कर्मों को अपने पुस्तक में लिखते रहते हैं.

परमपिता ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न-  
परमपिता ब्रह्मा जी के अंश से भगवान चित्रगुप्त उत्पन्न हुए है. मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की और इसके लिए देव-असुर, गंधर्व, अप्सरा, स्त्री-पुरुष, पशु-पक्षी आदि को जन्म दिया तो उसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ. जिन्हें धर्मराज कहा जाता है, क्योंकि वे धर्म के अनुसार ही प्राणियों को उनके कर्म का फल देते हैं. यमराज ने इस बड़े कार्य के लिए जब ब्रह्मा जी से एक सहयोगी की मांग की तो ब्रह्मा जी ध्यानलीन हो गए और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरुष उत्पन्न हुआ, जिसे भगवान चंद्रगुप्त के नाम से जाना गया. चूंकि इस पुरुष का जन्म ब्रह्मा जी की काया हुआ था, अतः इन्हें कायस्थ भी कहा जाता है. यम द्वितीया के दिन यम और यमुना की पूजा के साथ भगवान चित्रगुप्त जी की भी विशेष पूजा की जाती है क्योंकि भगवान चित्रगुप्त यमदेव के सहायक हैं।

चित्रगुप्त भगवान की पूजा विधि-
भगवान चित्रगुप्त और यमराज की मूर्ति या उनकी तस्वीर रखकर श्रद्धापूर्वक फूल, अक्षत, कुमकुम, एवं नैवेद्य आदि को अर्पित करके विधि-विधान से पूजा करें. इसके बाद एक सादे कागज पर रोली घी से स्वातिक का निशान बनायें, फिर पांच देवी- देवता का नाम लिखें। साथ में 
मषीभाजन संयुक्तश्चरसित्वं! महीतले. लेखनी- कटिनीहस्त चित्रगुप्त नमोऽस्तुते. चित्रगुप्त! नमस्तुभ्यं लेखकाक्षरदायकम्. कायस्थजातिमासाद्य चित्रगुप्त! नमोऽस्तुते!! मंत्र भी लिखें। 
अब अपना नाम, स्थायी एवं वर्तमान पता, हिन्दी महीना की तारीख, साल भर के आय-व्यय का लेखा-जोखा लिखकर कागज को मोड़ते हुए भगवान के चरणों में अर्पित करते हुए कामना करें कि भगवान आप धन और वंश में और वृद्धि करें अंत में श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान चित्रगुप्त की आरती करें

पूजा की विधि-
पूजा विधि के अंतर्गत ये मान्यता है कि चित्रगुप्त पूजा के दिन एक सफेद कागज पर श्री गणेशाय नम: और 11 बार ॐ चित्रगुप्ताय नमः लिखकर पूजन स्थल के पास रख दिया जाता है। इसके अलावा ऊं नम: शिवाय और लक्ष्‍मी माता जी सदा सहाय भी लिखा जाता है। फिर उसपर स्‍वास्‍तिक बनाकर बुद्धि, विद्या और लेखन का अशीर्वाद मांगा जाता है।
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पढ़ें-  

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चित्रगुप्त भगवान की पूजा का महत्व-
व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए चित्रगुप्त की पूजा का बहुत महत्व होता है. इस दिन नए बहीखातों पर ‘श्री’ लिखकर कार्य का आरंभ किया जाता है. इसके पीछे मान्यता है कि कारोबारी अपने कारोबार से जुड़े आय-व्यय का ब्योरा भगवान चित्रगुप्त जी के सामने रखते हैं और उनसे व्यापार में आर्थिक उन्नति का आशीर्वाद मांगते हैं. भगवान चित्रगुप्त की पूजा में लेखनी-दवात का बहुत महत्व है।

#सोशल_मीडिया में प्रतिक्रिया...
कलम, दवात से हम नई इबारत लिखते हैं, हम चित्रगुप्त भगवान के वंशज हैं ,जय चित्रांश #चित्रगुप्त_पूजा
#chitraguptapuja -@gopalsharan3
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आज #चित्रगुप्त_पूजा के शुभ अवसर पर #कायस्थ कुल के समस्त परिजनों को हार्दिक शुभकामनाएं।
भगवान श्री #चित्रगुप्त महाराज सबका कल्याण करें, सबके जीवन में मंगल हो और सद्कर्म का आशीर्वाद मिले। -@snikhil_social

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