#धन्वंतरी_जयंती : निरोगी रहने स्वास्थ्य के देवता की पूजा का दिन, ऐसे करें पूजा

धनतेरस या धन्वंतरि-त्रयोदशी को भगवान धन्वंतरि का प्राकट्य दिवस (जयन्ती) होती है, अर्थात आयुर्वेद के देवता का प्राकट्य-दिवस मनाते हैं। भगवान धन्वंतरि देवताओं के चिकित्सक है एवं भगवान विष्णु के अवतारों में से एक माने जाते हैं। भगवान धनवंतर‍ि को स्वास्थ्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सागर मंथन के समय भगवान धनवंतर‍ि अमृत कलश लेकर अवतरित हुए थे इसीलिए इस दिन बर्तन खरीदने की प्रथा प्रचलित हुई। 

भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद के प्रामाणिक देवता हैं। इस निमित्त मन्त्र चरक-संहिता में प्राप्त होता है- 
ॐ आयुर्दाय नमस्तुभ्यम अमृत पद्माधिपाय च। 
भगवन धन्वंतरि प्रसादेन आयु: आरोग्य संपद:।। 
दूसरा मन्त्र- 
“धन्वंतरि नमस्तुभ्यम आयु:आरोग्य स्थिर:कुरु। 
रुपम देहि यशो देहि, भाग्यम आरोग्य ददस्व में।।” 

जब गणपति ने तोडा कुबेर अहंकार-
शिव पुराण के अनुसार, कुबेर ने अपने धन और वैभव के घमंड में देवताओं को भोज के लिए आमंत्रित किया, ताकि वह अपनी संपन्नता दिखा सके। उसने शिव पुत्र गणेश जी को भी निमंत्रित किया। कुबेर का घमंड तोड़ने के लिए गणेश जी उसके भोज में पहुंचे और सारा भोजन चट कर गए। उसके बाद उनकी भूख बढ़ती गई और कुबेर के लिए मुश्किल खड़ी हो गई। वह गणेशजी की क्षुधा को शांत नहीं करा पा रहा था। गणेशजी ने उसके अन्न और धन के भंडार, हीरे-जवाहरात और धन अपने उदर में समा लिया और अंत में वे कुबेर को ही निगलने के लिए दौड़ पड़े। इस पर डरकर कुबेर गणेशजी के सामने शरणागत हो गए और इस तरह उनका घमंड टूट गया।

उक्त कथा के क्रम में उनके जन्‍म की भी कहानी है। एकबार, कुबेर के यहां भोज से लौटने के बाद गणेश जी के उदर में जलन होने लगी। उनको मधुमेह हो गया। दिन प्रति दिन उनका स्वास्थ्य खराब होने लगा। माता पार्वती काफी चिंतित थीं, उन्होंने भगवान शिव को ध्यान मुद्रा से जगाया। उसी समय त्रिकालदर्शी भगवान शिव के तीसरे नेत्र से भगवान धन्वंतरी का जन्म हुआ। उन्होंने गणेश जी को दूर्वा का रस पिलाया, तब जाकर गणेश जी के स्वास्थ्य में सुधार हुआ। इसीलिए गणपति के पूजन में दूर्वा अर्पित किया जाता है। इससे गणेश जी जल्द प्रसन्न होते हैं।
धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है। उनकी चार भुजाएं हैं। एक हाथ में चक्र, दूसरे में शंख, तीसरे में जलूका और औषधि तथा चौथे हाथ में अमृत कलश होता है। 

गणेशजी को दूर्वा का रस देने के बाद वे भगवान शिव से आशीर्वाद लेकर संसार के कल्याण के लिए अमृत कलश लेकर कैलास से प्रस्थान कर गए। कहा जाता है, कि धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन करने से परिवार में आरोग्य आता है। सभी सदस्य स्वस्थ रहते हैं। इसलिए धनतेरस को धन्वंतरी जयंती भी कहा जाता है। इस दिन वैद्य, हकीम और ब्राह्मण समाज धन्वंतरी भगवान का पूजन करता है।

भगवान धन्वतरि जब प्रकट हुए, तब उनके हाथों में अमृत से भरा पीतल का घड़ा था। मान्यतानुसार, तभी से इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा प्रारम्भ हुई। पीतल के बर्तन धनतेरस के दिन इसलिए खरीदते हैं, क्योंकि पीतल भगवान धन्वंतरी की धातु है। पीतल खरीदने से घर में आरोग्य, सौभाग्य और स्वास्थ्य की दृष्टि से शुभता आती है। पीतल गुरु या वृहस्पति की धातु होने से बहुत ही शुभ है। वृहस्पति ग्रह की शांति हेतु पीतल का उपयोग किया जाता है। 

निरोग रहने करें भगवान धन्वंतरि पूजा-   
मान्यता है, यदि धनतेरस के दिन विधि-पूर्वक भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाए, तो वह प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और घर के सभी सदस्य निरोगी रहते हैं। पूजा हेतु सर्वप्रथम भगवान धन्वंतरि की का चित्र को इस प्रकार रखें / स्थापित करें, कि आपका मुंह पूजा के समय  पूर्व की ओर रहे। अब हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें और भगवान धन्वंतरि का आवाह्न करें। अब चित्र पर रोली, अक्षत, पुष्प, जल, दक्षिणा, वस्त्र, कलावा, धूप और दीप अर्पित करें। फिर नैवेद्य चढ़ाएं और भगवान धन्वंतरि के मंत्रों का जाप करें। तत्पश्चात आरती करें और दीपदान करें। इन मंत्रों से करें जाप-
ॐ श्री धनवंतरै नम:

ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धनवंतराये:,
अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय,
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप,
श्री धन्वंतरि स्वरूप श्री श्री श्री अष्टचक्र नारायणाय नमः

ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः,
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम,
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम,
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम.

No comments