दूरदर्शन की वो ‘आंख’... विश्व टेलीविजन दिवस : "सत्यम् शिवम् सुदरम" Logo देखते हुए जब सुनते थे ट्यून...
-
2⇒ 1975 में हुआ दूरदर्शन
साल 1975 में ‘टेलीविज़न इंडिया’ का नाम बदलकर ‘दूरदर्शन’ कर दिया गया. साल 1982 में 'रंगीन दूरदर्शन' का शुभारंभ हुआ। वर्ष 1986 में आरंभ हुआ 'रामायण', इसके बाद शुरू हुए 'महाभारत' के प्रसारण के समय हर रविवार को देशभर की सड़कों पर सन्नाटा छा जाता था। कई लोग पहले घरों की साफ़-सफ़ाई करके अगरबत्ती जलाकर का 'रामायण' के आने की प्रतीक्षा करते थे। 3 नवंबर 2003 में दूरदर्शन का 24 घंटे चलने वाला समाचार चैनल शुरू हुआ।
बात 1996 की है, संयुक्त राष्ट्र ने वर्ल्ड टेलिविजन फोरम की पहली बैठक बुलाई थी। उसमें दुनिया भर की टीवी इंडस्ट्री के प्रमुख लोग शामिल हुए थे। सब ने वैश्विक राजनीति में टीवी की भूमिका पर चर्चा की। बैठक में सभी ने स्वीकार किया कि समाज में टीवी की भूमिका दिनबदिन बढ़ती जा रही है। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN) ने 21 नवंबर को "विश्व टेलिविजन दिवस" घोषित कर दिया। हालांकि, जर्मनी ने इसका विरोध भी किया था। हरमनी का कहना था, प्रेस के लिए पहले से तीन दिवस मनाए जा रहे हैं, जिसमें वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे, वर्ल्ड टेलिकम्यूनिकेशन डे और वर्ल्ड डिवेलपमेंट इन्फर्मेशन डे सम्मिलित हैं।
3⇒ दूरदर्शन के 'Logo' की कहानीदूरदर्शन के 'Logo' को किसने डिज़ाइन किया, इसके पीछे की कहानी भी अत्यंत रोचक है। दूरदर्शन के 'Logo' को NID के पूर्व छात्र देवाशीष भट्टाचार्य ने अपने 8 मित्रों के साथ बनय्या था। जब दूरदर्शन ने ऑल इंडिया रेडियो (AIR) से अलग होने का निर्णय लिया, उस समय उनको अपना एक अलग 'Logo' भी चाहिए था। इसके लिए उन्होंने NID के छात्रों की एक टीम को ये दायित्व दिया।
ऐसे में एक अन्य दिवस की घोषणा ठीक नहीं। जर्मनी के पक्ष को सुना अवश्य गया, लेकिन माना नहीं गया और 21 नवंबर को विश्व टेलिविजन दिवस मान लिया गया। आपकी जानकारी के लिए हम बता दें कि टेलीविजन शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला ग्रीक शब्द ‘टेले’ और दूसरा लैटिन शब्द ‘विजीओ।’
4⇒ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, देवाशीष भट्टाचार्य ने इंसान की आंख के आकार का एक चित्र बनाया, जिसके दोनों तरफ़ दो घुमावदार कर्व 'यिन और यांग' के आकार बनाकर, इसे अपने टीचर विकास सतवालेकर को सौंप दिया। NID के 8 छात्रों और 6 फ़ैकल्टी मेंबर्स के 14 डिज़ाइन में से तत्कालीन प्रधानमंत्री ने देवाशीष भट्टाचार्य के डिज़ाइन को चुना। देवाशीष के इस डिज़ाइन के लिए एनीमेशन NID के ही एक अन्य छात्र आरएल मिस्त्री ने तैयार किया। मिस्त्री ने देवाशीष द्वारा बनाए स्केच को (कैमरे से शूट कर) तब तक रोटेट किया, जब तक कि वो एक 'Logo' का अंतिम रूप न ले ले। इसी आंख को 'डीडी आई' के नाम गया।
भारत में दूरदर्शन व्यापक प्रसार 1982 में आयोजित एशियाड खेलों के आयोजन से हुआ। इससे ब्लैक एंड व्हाइट में दिखने वाली बोलते दृश्य रंगीन हो गई थीं। आरंभ में दूरदर्शन का नाम टेलीविजन इंडिया था जो 1975 में दूरदर्शन हो गया। 26 जनवरी 1993 को दूरदर्शन ने अपना दूसरा चैनल, “मेट्रो चैनल“ के नाम से आरंभ किया। बाद में पहला चैनल डीडी-1 और दूसरा डीडी-2 कहलाने लगा। आज दूरदर्शन के लगभग तीस राष्ट्रीय व क्षेत्रीय चैनल अपना प्रसारण कर रहे हैं। 80-90 के दशक में रामायण व महाभारत जैसे धारावाहिकों ने टेलीविजन प्रसार में क्रांति ला दी। लोग इन्हें मनोरंजन के साथ साथ भारतीय धर्म और संस्कृति के डाक्यूमेंट मानते थे।
वेद, उपनिषद और पुराणों में इस संबंध में अलग अलग मत मिलते हैं, लेकिन सभी उसके एक मूल अर्थ पर एकमत हैं। धर्म और दर्शन की धारणा इस संबंध में क्या हो सकती है यह भी बहुत गहन गंभीर मामला है। दर्शन में भी विचारधाएं भिन्न-भिन्न मिल जाएगी, लेकिन आखिर सत्य क्या है इस पर सभी के मत भिन्न हो सकते हैं। योग में यम का दूसरा अंग है सत्य।
दूरदर्शन का Logo बनाने वाले व्यक्ति के रोचक प्रसंग
1⇒ दूरदर्शन की वो ‘आंख’
(राजेशपाठक अवै.संपादक)
Whatsapp- 8109107075 (न्यूज़, कवरेज, विज्ञापन व सदस्यों हेतु)
भारत में टेलीविज़न इतिहास की वास्तविक कहानी दूरदर्शन से ही शुरू होती है। दूरदर्शन का नाम सुनते ही आज भी हम अपने अतीत में खो जाते हैं। उस समय के आज घटनाएं हमारे (विशेषकर को 45 वर्ष या अधिक आयु के हैं) लिए अविस्मरणीय है। आज भले ही टीवी चैनल्स की बाढ़ आ गई हो, लेकिन उस काल में हमारे पास मनोरंजन के लिए दूरदर्शन के गिने-चुने कार्यक्रम ही होते थे। दिल्ली में 15 सितंबर, 1959 को पहली बार ‘टेलीविज़न इंडिया’ की शुरुआत हुई। उस समय इसका प्रसारण सप्ताह सप्ताह में केवल तीन दिन, वो भी आधे-आधे घंटे के लिए होता था।
आज विश्व टेलीविजन दिवस है। आज के समय में टेलीविजन केवल मनारंजन का साधन ही नहीं बल्कि आधुनिक जीवन शैली का अभिन्न अंग बन गया है। लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब टेलीविजन शब्द सुनते ही एक गोल प्रतीक चिह्न की याद आती थी जिसके नीचे ’सत्यम् शिवम् सुदरम’ अंकित होता था। ये पंक्ति और प्रतीक चिह्न राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन की याद दिलाते हैं। आज अधिकतर घरों में टेलीविजन है, लेकिन सच्चाई यह है, आज भी अधिकांश लोग न तो "विश्व टेलीविजन दिवस" के बारे में या टेलीविजन की कहानी के बारे में।
------------------------------------------------
आवश्यकता है- संरक्षक / NRI.. एक सूचनात्मक व रोचक (factual & informative & interesting), स्तरीय, राष्ट्रवादी एवं समसामयिक साप्ताहिक मैगजीन हेतु हमें संरक्षक अथवा NRI की आवश्यकता है। मैगजीन के विस्तार हेतु हमें तुरंत राष्ट्रवादी विचारधारा के पार्टनर या इन्वेस्टर की खोज है। राज्यों की राजधानी में मार्केटिंग-सर्कुलेशन हेड भी चाहिए। संपर्क 9752404020, W.app- 8109107075 ट्वीटर / Koo- @DharmNagari
अपनी प्रतिक्रिया नीचे कमेंट बॉक्स में अवश्य दें, इस कवरेज / लेख को फारवर्ड करें, #RT करें...
------------------------------------------------
साल 1975 में ‘टेलीविज़न इंडिया’ का नाम बदलकर ‘दूरदर्शन’ कर दिया गया. साल 1982 में 'रंगीन दूरदर्शन' का शुभारंभ हुआ। वर्ष 1986 में आरंभ हुआ 'रामायण', इसके बाद शुरू हुए 'महाभारत' के प्रसारण के समय हर रविवार को देशभर की सड़कों पर सन्नाटा छा जाता था। कई लोग पहले घरों की साफ़-सफ़ाई करके अगरबत्ती जलाकर का 'रामायण' के आने की प्रतीक्षा करते थे। 3 नवंबर 2003 में दूरदर्शन का 24 घंटे चलने वाला समाचार चैनल शुरू हुआ।
बात 1996 की है, संयुक्त राष्ट्र ने वर्ल्ड टेलिविजन फोरम की पहली बैठक बुलाई थी। उसमें दुनिया भर की टीवी इंडस्ट्री के प्रमुख लोग शामिल हुए थे। सब ने वैश्विक राजनीति में टीवी की भूमिका पर चर्चा की। बैठक में सभी ने स्वीकार किया कि समाज में टीवी की भूमिका दिनबदिन बढ़ती जा रही है। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN) ने 21 नवंबर को "विश्व टेलिविजन दिवस" घोषित कर दिया। हालांकि, जर्मनी ने इसका विरोध भी किया था। हरमनी का कहना था, प्रेस के लिए पहले से तीन दिवस मनाए जा रहे हैं, जिसमें वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे, वर्ल्ड टेलिकम्यूनिकेशन डे और वर्ल्ड डिवेलपमेंट इन्फर्मेशन डे सम्मिलित हैं।
3⇒ दूरदर्शन के 'Logo' की कहानी
ऐसे में एक अन्य दिवस की घोषणा ठीक नहीं। जर्मनी के पक्ष को सुना अवश्य गया, लेकिन माना नहीं गया और 21 नवंबर को विश्व टेलिविजन दिवस मान लिया गया। आपकी जानकारी के लिए हम बता दें कि टेलीविजन शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला ग्रीक शब्द ‘टेले’ और दूसरा लैटिन शब्द ‘विजीओ।’
इसका अर्थ ये हुआ कि टेलीविजन एक वैज्ञानिक उपकरण है, जो जनसंचार का ऑडियो विजुअल माध्यम है। 1927 में टेलीविजन का आविष्कार करने वाले अमरीकी वैज्ञानिक जॉन लॉगी बेयर्ड 1938 में इसे मार्केट में लेकर आए। भारत में इसके पहुंचने में तीन दशक से अधिक का समय लग गया। आज हर घर में टेलीविजन है, लेकिन देश में टेलीविजन का प्रयोग पहली बार 15 सितंबर 1959 को दिल्ली में दूरदर्शन केंद्र की स्थापना के साथ हुआ। हालांकि, आम जनता में इसका प्रसार 80 के दशक में हुआ।
4⇒ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, देवाशीष भट्टाचार्य ने इंसान की आंख के आकार का एक चित्र बनाया, जिसके दोनों तरफ़ दो घुमावदार कर्व 'यिन और यांग' के आकार बनाकर, इसे अपने टीचर विकास सतवालेकर को सौंप दिया। NID के 8 छात्रों और 6 फ़ैकल्टी मेंबर्स के 14 डिज़ाइन में से तत्कालीन प्रधानमंत्री ने देवाशीष भट्टाचार्य के डिज़ाइन को चुना। देवाशीष के इस डिज़ाइन के लिए एनीमेशन NID के ही एक अन्य छात्र आरएल मिस्त्री ने तैयार किया। मिस्त्री ने देवाशीष द्वारा बनाए स्केच को (कैमरे से शूट कर) तब तक रोटेट किया, जब तक कि वो एक 'Logo' का अंतिम रूप न ले ले। इसी आंख को 'डीडी आई' के नाम गया।
5⇒ दूरदर्शन या डीडी के 'Logo' के साथ जो म्यूज़िक सुनाई देता है, उसे पंडित रवि शंकर ने उस्ताद अली अहमद हुसैन के साथ मिलकर बनाया। 'Logo' के साथ ये धुन पहली बार 1 अप्रैल, 1976 को टेलीविज़न स्क्रीन पर सुनाई दी गयी थी।
अस्सी और 90 के दशक में जब डीडी न्यूज, डीडी स्पोर्ट्स और कुछ रीजनल चैनल लांच हुए थे, उस समय इसके Symbol या मोंटाज में भी कुछ परिवर्तन किए गए। विशेषकर डीडी स्पोर्ट्स के मोंटाज में डिस्कस फेंकते हुए एथलीट को दिखाया गया था, जो बाद में दूरदर्शन का Symbol बन गया था।
मीडिया से बात करते हुए भट्टाचार्य ने कहा था, "हमने इसके लोगो और प्रतीक को बेहद सरल रखा ताकि हर किसी की समझ में आ सके। इसका Symbol विभिन्न संस्कृतियों को दर्शाता है। आरंभ (शुरूआत) के दिनों में डीडी के 'Logo' के साथ 'सत्यम शिवम सुंदरम' भी लिखा हुआ आता था, जिसे बाद में घटिया राजनीति के चलते साथ हटा दिया गया था। अस्सी और 90 के दशक में जब डीडी न्यूज, डीडी स्पोर्ट्स और कुछ रीजनल चैनल लांच हुए थे, उस समय इसके Symbol या मोंटाज में भी कुछ परिवर्तन किए गए। विशेषकर डीडी स्पोर्ट्स के मोंटाज में डिस्कस फेंकते हुए एथलीट को दिखाया गया था, जो बाद में दूरदर्शन का Symbol बन गया था।
(Inpute एवं सभी फोटो #साभार मीडिया एवं Social_Media से)
-
Doordarshan evokes so many unforgettable nostalgic memories. Nurturing our childhood, giving us Ramayan and Mahabharat during Covid-19 time in 2020, @DDNational continues to rule our hearts and bind us. Best wishes on completing 62 glorious years!
#DDNostalgia-
------------------------------------------------
राष्ट्रहित हिन्दूहित में संरक्षक बनें- तथ्यों से पूर्ण, स्तरीय, पठनीय, राष्ट्रवादी समसामयिक साप्ताहिक राजनीतिक मैगजीन का प्रकाशन हेतु इन्वेस्टर या "संरक्षक" की आवश्यकता है। जिले स्तर पार्टनर एवं ब्यूरो चीफ (बिना नियुक्ति वाले जिलों में) बनने के इक्छुक संपर्क करें- 9752404020, वाट्सएप-8109107075 ट्वीटर / Koo- @DharmNagari
------------------------------------------------
इसे भी पढ़ें-
इच्छित वर अथवा विवाह में अड़चन, अनावश्यक विलंब का ये है उसका उपाय
☟
http://www.dharmnagari.com
सूर्य के "आरोग्य मंत्र" का करें सही जाप, होगी यश में वृद्धि, मिलेगी बीमारियों से मुक्ति...
☟
http://www.dharmnagari.com/2021/11/Surya-Mantra-Rog-se-Mukti-Paane-Swasthya-hetu-Surya-Mantra-for-good-Health-in-this-way.html
ग्रह-गोचर, प्लानेट पोजीशन, सिचुएशन, इंवाल्मेंट, प्लानिंग, मेंटेलिटी, थिंकिंग इन सबके समावेश से बनता है ''योग''- आचार्य नित्यानन्द गिरि
☟
http://www.dharmnagari.com/2020/03/blog-post.html
इच्छित वर अथवा विवाह में अड़चन, अनावश्यक विलंब का ये है उसका उपाय
☟
http://www.dharmnagari.com/2019/04/Navratrai-Marriage-Problem-Solution-of-marriage.html
------------------------------------------------
दूरदर्शन के लोगों में "सत्यम, शिवम और सुंदरम" का अर्थ
सत्यम, शिवम और सुंदरम, इन तीन शब्दों को आप सबने सुना और पढ़ा होगा। परन्तु अधिकांश लोग इसका भावार्थ नहीं जानते होंगे। वे सत्य का अर्थ ईश्वर, शिवम का अर्थ भगवान शिव से और सुंदरम का अर्थ कला आदि सुंदरता बताते हैं, लेकिन सनातन हिन्दू धर्म और दर्शन का इस बारे में मत क्या है ?वेद, उपनिषद और पुराणों में इस संबंध में अलग अलग मत मिलते हैं, लेकिन सभी उसके एक मूल अर्थ पर एकमत हैं। धर्म और दर्शन की धारणा इस संबंध में क्या हो सकती है यह भी बहुत गहन गंभीर मामला है। दर्शन में भी विचारधाएं भिन्न-भिन्न मिल जाएगी, लेकिन आखिर सत्य क्या है इस पर सभी के मत भिन्न हो सकते हैं। योग में यम का दूसरा अंग है सत्य।
सनातन हिन्दू धर्म में ब्रह्म को ही सत्य माना गया है। जो ब्रह्म (परमेश्वर) को छोड़कर सबकुछ जाने का प्रयास करता है, वह व्यक्ति जीवन पर्यन्त भ्रम में ही अपना जीवन बिता देता है। यह ब्रह्म निराकार, निर्विकार और निर्गुण है। उसे जानने का विकल्प है स्वयं को जानना। अर्थात आत्मा ही सत्य है, जो अजर अमर, निर्विकार और निर्गुण है। शरीर में रहकर वह खुद को जन्मा हुआ मानती है जो कि एक भ्रम है। इस भ्रम को जानना ही सत्य है।
'सत (ईश्वर) एक ही है। कवि उसे इंद्र, वरुण व अग्नि आदि भिन्न नामों से पुकारते हैं।'-ऋग्वेद
'जो सर्वप्रथम ईश्वर को इहलोक और परलोक में अलग-अलग रूपों में देखता है, वह मृत्यु से मृत्यु को प्राप्त होता है अर्थात उसे बारम्बार जन्म-मरण के चक्र में फँसना पड़ता है।'-कठोपनिषद
सुंदरम्- संपूर्ण प्रकृति सुंदरम कही गई है। इस दृश्यमान (दिखाई देने वाले) जगत को प्रकृति का रूप कहा गया है। प्रकृति हमारे स्वभाव और गुण को प्रकट करती है। पंच कोष वाली यह प्रकृति आठ तत्वों में विभाजित है। वहीं, त्रिगुणी प्रकृति, परम तत्व से प्रकृति में तीन गुणों की उत्पत्ति हुई सत्व, रज और तम। ये गुण सूक्ष्म तथा अतिंद्रिय हैं, इसलिए इनका प्रत्यक्ष नहीं होता। इन तीन गुणों के भी गुण हैं- प्रकाशत्व, चलत्व, लघुत्व, गुरुत्व आदि इन गुणों के भी गुण हैं, अत: स्पष्ट है कि यह गुण द्रव्यरूप हैं। द्रव्य अर्थात पदार्थ। पदार्थ अर्थात जो दिखाई दे रहा है और जिसे किसी भी प्रकार के सूक्ष्म यंत्र से देखा जा सकता है, महसूस किया जा सकता है या अनुभूत किया जा सकता है। ये ब्रहांड या प्रकृति के निर्माणक तत्व हैं।
'सत (ईश्वर) एक ही है। कवि उसे इंद्र, वरुण व अग्नि आदि भिन्न नामों से पुकारते हैं।'-ऋग्वेद
'जो सर्वप्रथम ईश्वर को इहलोक और परलोक में अलग-अलग रूपों में देखता है, वह मृत्यु से मृत्यु को प्राप्त होता है अर्थात उसे बारम्बार जन्म-मरण के चक्र में फँसना पड़ता है।'-कठोपनिषद
-
शिवम- शिवम का संबंध प्रायः लोग भगवान शंकर से जोड़ते हैं, जबकि भगवान शंकर अलग हैं और शिव अलग। शिव निराकार, निर्गुण और अमूर्त सत्य है। निश्चित ही माता पार्वती के पति भी ध्यानी होकर उस परम सत्य में लीन होने के कारण शिव स्वरूप ही है, लेकिन शिव नहीं। शिव का अर्थ है शुभ। अर्थात सत्य होगा तो उससे जुड़ा शुभ भी होगा अन्यथा सत्य हो नहीं सकता। वह सत्य ही शुभ अर्थात भलिभांति अच्छा है। सर्वशक्तिमान आत्मा ही शिवम है। दो भोओं के बीच आत्मा लिंगरूप में विद्यमान है।
सुंदरम्- संपूर्ण प्रकृति सुंदरम कही गई है। इस दृश्यमान (दिखाई देने वाले) जगत को प्रकृति का रूप कहा गया है। प्रकृति हमारे स्वभाव और गुण को प्रकट करती है। पंच कोष वाली यह प्रकृति आठ तत्वों में विभाजित है। वहीं, त्रिगुणी प्रकृति, परम तत्व से प्रकृति में तीन गुणों की उत्पत्ति हुई सत्व, रज और तम। ये गुण सूक्ष्म तथा अतिंद्रिय हैं, इसलिए इनका प्रत्यक्ष नहीं होता। इन तीन गुणों के भी गुण हैं- प्रकाशत्व, चलत्व, लघुत्व, गुरुत्व आदि इन गुणों के भी गुण हैं, अत: स्पष्ट है कि यह गुण द्रव्यरूप हैं। द्रव्य अर्थात पदार्थ। पदार्थ अर्थात जो दिखाई दे रहा है और जिसे किसी भी प्रकार के सूक्ष्म यंत्र से देखा जा सकता है, महसूस किया जा सकता है या अनुभूत किया जा सकता है। ये ब्रहांड या प्रकृति के निर्माणक तत्व हैं।
-
--
Reactions on Doordarshan / Television will be updated later
------------------------------------------------"Dharm Nagari" is non-commercial publication. Therefore, we send the copies with the name of concern person, Ashram, organisation, NGO, leader of the Political Party or NRI etc. We have expansion plan of Dharm Nagari & DN News. Therefore, we request to the Hindu, pro-nationalists people to support. It is important that we give details of the support/donation we get from the person etc.
☞ Kindly send your financial support or donation to the A/c of "Dharm Nagari" current in State Bank of India (SBI). The current A/c no. is- 325397 99922 and IFS Code- CBIN0007932, Bhopal-
Details of Dharm Nagari
☞ Kindly send your financial support or donation to the A/c of "Dharm Nagari" current in State Bank of India (SBI). The current A/c no. is- 325397 99922 and IFS Code- CBIN0007932, Bhopal-
Details of Dharm Nagari
Post a Comment