#गोपाष्टमी : बछड़े सहित करें गौ-पूजा, ग्वालों का सम्मान, गौ-सेवा से पाएं दैहिक, दैविक व भौतिक कष्टों से मुक्ति


संध्याकाल करें गाय के खुर के नीचे की मिट्टी से तिलक 
धर्म नगरी / DN News
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-राजेशपाठक 
कार्तिक शुक्ल अष्टमी को प्रतिवर्ष गोपाष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस वर्ष गोपाष्टमी 12 नवंबर (शुक्रवार) को मनाई जाएगी। गोपाष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गौ-चारण लीला आरंभ की थी। गाय को गौमाता भी कहा जाता है। सूर्य के कर्क राशि में गमन काल में आषाढ़ी शुक्ल एकादशी हो और कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी न आ जाए, तब तक प्रतिवर्ष चार मॉस तक भगवान निद्रित रहते हैं। स्कन्द पुराण के अनुसार, श्रीहरि के आराधनार्थ यह चार मास अति उत्तम पुण्यप्रद है।आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी तथा कार्तिक मास की एकादशी को देवोत्थान एकादशी कहते हैं. इस समय तेल मालिश, दिन में सोना तथा झूठ बोलना वर्जित है।   

गौ-सेवा से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं, क्योंकि गौवंश श्रीकृष्ण को सर्वाधिक प्रिय है। इसलिए आप किसी पूजा, कथा या आरती के पश्चात "गौ-माता की जय" नहीं, "गौ-माता की रक्षा हो" बोलें व करें, आप स्वयं अपने सामर्थ्य के अनुसार आसपास दिखने वाली गौवंश की सेवा करें। जन्मदिन, किसी शुभ-कार्य का आरंभ किसी गौशाला में जाकर अपने सामर्थ्य के अनुसार सेवा करके करें, व्यर्थ के सामजिक दिखावे, केक काटना, अनावश्यक पार्टी देने से कहीं श्रेष्ठ एवं पुण्यदायी है (जिसका प्रभाव आपके परिवार, बच्चों पर होगा) गौ-सेवा @DharmNagari  
पुराणों के अनुसार, कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन मां यशोदा ने भगवान कृष्ण को गौ चराने के लिए जंगल भेजा था। गोपाष्टमी पर गौ, ग्वाल और कृष्ण को पूजने का महत्व है। इस दिन विशेषरूप से देशभर की गौ-शाालाओं में, घरों में गाय के चरणों समेत पूरे शरीर में रोली के थाप लगाते हैं, गायों को सजाया जाता है, उनका टीका करते है। इसके बाद गाय को उसका प्रिय का भोजन हाथों से खिलाते हैं। इसके बाद गाय के साथ-साथ कुछ दूर तक चला जाता है। यह प्रक्रिया गौचारण अर्थात गाय को चराने से जुड़ी है। 

सनातन हिंदू धर्म की संस्कृति और आत्मा गाय को माना है। गौ-पूजा देवी-देवताओं की भाँति की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक गाय में अनेक देवी-देवता निवास करते हैं। इसलिए भी हिंदू धर्म में गाय की पूजा करना अत्यंत महत्वपूर्ण मानते है। गाय को आध्यात्मिक और दिव्य गुणों का स्वामी भी कहा गया है। 
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मान्यताओं के अनुसार, जो लोग गोपाष्टमी की पूर्व संध्या पर गाय की विधिवत पूजा करते हैं उन्हें जीवन में आनन्द एवं आशीर्वाद प्राप्त होता है, सौभाग्य में वृद्धि होता है। गौ-सेवा से दैहिक, दैविक व भौतिक कष्टों में कमी या मुक्ति मिलती है, वहीं गोपाष्टमी के दिन श्रद्धापूर्वक पूजा करने वाले, गौ-ग्रास देने वाले व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती हैं।

सनातन हिंदू धर्म में गाय को माता का पद (दर्जा) प्राप्त है। वहीं, ऐसी भी मान्याता है कि गायों में 33 कोटि (33 प्रकार) के देवी-देवताओं का वास है, जिसमें- 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र, और 2 अश्विन कुमार हैं। वैदिक विद्वानों एवं शास्त्रों के अनुसार, आत्मा के विकास यात्रा में पशु-पक्षी की योनि से मुक्ति पाने का द्वार गाय से होकर ही जाता है। मान्यता है, गाय योनि के बाद मनुष्य योनि में आना होता है।

Gopashtami is celebrated on the Shukla Paksha of Kartik month. It is believed that on this day Lord Shri Krishna and Balaram started the pastime of Gaucharan. Gopashtami has great importance in Hindu beliefs Gopashtami festival marks the importance of Gau Mata in Indian culture. Those who worship Gau Mata on the auspicious day of Gopashtami receive blessings of a happy life. Thirty three Koti (types) Gods and Goddesses i.e. sattvik particles, sattvik waves reside in the hair follicles of the cow. The cow should be bowed with reverence and devotion.

Deshi (Indian) Cow's milk is extremely tasty, balsamic, tender, sweet, intelligent, strong, enhancing blood and height, instant semen enhancer and is also an easy medicine. Cow service is service to the nation, because cow's milk increases the physical, mental and spiritual power of human, as well as it is eye-lightening, radiance, meritorious, tasty, aliphatic, powerful and pleasing to the mind. Darshan (sight) and touch of the Gau Mata, purity comes and sins are destroyed. The specialty of cow mother's cows that milk, curd, ghee, dung and cow urine are boon for the entire human race. Milk is rich in memory, energizing, vitamins and immunity power. 
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The 'Skanda Purana' mentions the abode of all the pilgrims and all the deities in the Gau Mata. By giving Gogras to the cows, Parikrama (circumambulating) them and wearing their Charanraj on their heads and going with them for a short distance, all kinds of desires are fulfilled and good fortune increases. Cows are regarded as the soul of Hindu religion and culture. They are pure and worshiped like Hindu deities. Cows (Gau-mata) protects us in every way, selflessly provides milk, ghee, cow urine etc. things beneficial for health. We should always be ready to protect the Gau-mata and should also serve her continuously.

गौवंश का है 
वैज्ञानिक महत्व- 
वैज्ञानिक भी अब गौवंश को एक अद्भुत प्राणी मानते हैं। वहीं, हिन्दू प्राचीन काल से गाय को देवी और देवता तुल्य क्यों मानते आ रहे हैं। गाय के रीढ़ में सूर्यकेतू नाड़ी होती है, जिसमें सर्व-रोगनाशक और सर्व-विषनाशक गुण होते हैं। सूर्यकेतू नाड़ी जब सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आती है, तो स्वर्ण का उत्पादन करती है। ये स्वर्ण गाय के दूध, मूत्र और गोबर में मिल जाता है. इस तरह गाय के मिलने वाले इन चीजों का विशेष महत्त्व होता है इसका प्रयोग दैनिक जीवन में हमारे पूर्वज करते आए हैं

गौवंश का है आध्यात्मिक महत्व-
श्रीमद्भागवत के अनुसार, जब देवता और असुरों ने समुद्र-मंथन किया, तो समुद्र से कामधेनु निकली। पवित्र होने के कारण इसे ऋषियों ने अपने पास रख लिया। माना जाता है, कि कामधेनु से ही अन्य गायों की उत्पत्ति हुई। भगवान श्रीकृष्ण भी गायों की सेवा करते थे। श्रीकृष्ण प्रतिदिन सुबह गायों की पूजा करते थे और ब्राह्मणों को गौदान करते थे। महाभारत के अनुसार, गाय के गोबर और मूत्र में देवी लक्ष्मी का निवास है। इसलिए इन दोनों चीजों का उपयोग शुभ काम में किया जाता है।

अग्नि पुराण के अनुसार, गोमूत्र, गोबर, गो-दुग्ध, दही, घृत और कुश का पानी, ये छह वस्तुएँ पीने से दुःस्वप्न आदि निवारण में अति उत्तम है। सम्पूर्ण अशुभों के नाश के लिए ईश्वर ने पूर्वकाल में गौ की रचना की थी. सम्पूर्ण प्राणियों की शरण गौ ही है। गौ परम पवित्र है. गौ उत्तम मांगल्य वस्तु है. गौ ही स्वर्ग की सीढ़ी है और गौ ही धन्य एवं सनातन है। गौ और ब्राह्मण, इन दोनों का कुल एक ही था, किन्तु प्रयोजन की दृष्टि से वह पृथक-पृथक कर दिया गया।

ऑक्सीजन छोड़ने वाला एकमात्र प्राणी- 
वैज्ञानिक रूप से यह प्रमाणित हो चुका है, कि गौवंश एकमात्र ऐसा पशु है, जो ऑक्सीजन लेता है और छोड़ता भी है। वहीं, मनुष्य सहित दूसरे प्राणी ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं।इस तरह गाय के आसपास रहने से ही ऑक्सीजन की भरपुर मात्रा पाई जा सकती है गाय को घर में पालने की परम्परा भी सदियों से चल रही है. पहले लोग गाय को चराने जाते थे

ऐसे मनाएं गोपाष्टमी पर्व- 
- कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन प्रात:काल में उठकर नित्य-कर्म से निवृत्त होकर स्नान आदि करें।
- प्रात:काल में ही गायों को भी स्नान आदि कराकर गौमाता के अंग में मेहंदी, हल्दी, रंग के छापे आदि लगाकर सजाया जाता है।
- इस दिन बछड़े सहित गाय की पूजा करने का विधान है।
- प्रात:काल में ही धूप-दीप, अक्षत, रोली, गुड़ आदि वस्त्र तथा जल से गाय का पूजन किया जाता है और धूप-दीप से आरती उतारी जाती है।
- गौ-पालकों (ग्वालों) को उपहार आदि देकर उनका भी श्रद्धालु सम्मान करते हैं।
- गायों को सजाया जाता है। इसके बाद गाय को गौ-ग्रास, चारा आदि डालकर परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा के बाद कुछ दूर तक गायों के साथ चलते हैं।
- संध्याकाल में गायों के जंगल से वापस लौटने पर उनके चरणों को धोकर तिलक लगाना चाहिए।
- ऐसी आस्था है, कि गोपाष्टमी के दिन गाय के नीचे से निकलने वालों को बड़ा पुण्य मिलता है।
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गोपाष्टमी की कथा-
कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी (गोपाष्टमी) के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गौ-चारण लीला आरंभ की थी, जिसके लिए गौ-माता की सेवा की जाती है। भगवान् ने जब छठे वर्ष की आयु में प्रवेश किया, तब एक दिन भगवान् माता यशोदा से बोले- “मैय्या अब हम बड़े हो गए हैं” मैय्या यशोदा बोली-“अच्छा लल्ला अब तुम बड़े हो गए हो, तो बताओ अब क्या करें ?” भगवान् ने कहा- “अब हम बछड़े चराने नहीं जाएंगे, अब हम गाय चराएंगे।”
मैय्या बोली, “ठीक है बाबा से पूंछ लेना।” मैय्या के इतना कहते ही झट से भगवान् नन्द बाबा से पूंछने पहुंच गए। बाबा ने कहा– “लाला अभी तुम बहुत छोटे हो अभी तुम बछड़े ही चाराओं” भगवान् ने कहा– “बाबा अब में बछड़े नहीं जाएंगे, गाय ही चराऊँगा ” जब भगवान नहीं मने तब बाबा बोले- “ठीक है लाल तुम पंडितजी को बुला लाओ- वह गौ-चारण का महुर्त देख कर बता देंगे” बाबा की बात सुनकर भगवान् झट से पंडित जी के पास पहुंचे और बोले– “पंडित जी ! आपको बाबा ने बुलाया है, गौ चारण का महुर्त देखना है, आप आज ही का महुर्त बता देना में आपको बहुत सारा माखन दूंगा।” पंडितजी नन्द बाबा के पास पहुंचे और बार-बार पंचांग देख कर गड़ना करने लगे तब नन्द बाबा ने पूंछा “पंडित जी के बात है ? आप बार-बार के गिन रहे हैं ?

पंडितजी बोले, “क्या बताएं नन्दबाबा जी केवल आज का ही मुहुर्त निकल रहा है, इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहुर्त नहीं है” पंडित जी की बात सुन कर नंदबाबा ने भगवान् को गौ-चारण की स्वीकृति दे दी। भगवान जी समय कोई कार्य करें वही शुभ-मुहुर्त बन जाता है। उसी दिन भगवान ने गौ चारण आरम्भ किया और वह शुभ तिथि थी- “कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष अष्टमी” भगवान के गौ-चारण आरम्भ करने के कारण यह तिथि गोपाष्टमी कहलाई।
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इसे भी पढ़ें, देखें, सुनें -
पंढरपुर यात्रा भारत की उस शाश्वत शिक्षा का प्रतीक, जो हमारी आस्था को मुक्त करती है : PM
http://www.dharmnagari.com/2021/11/Pandharpur-Yatra-Palkhi-Marg-NH-965-NH-965G-to-be-4-Lane.html

#Kedarnath : "पहाड़ का पानी, पहाड़ की जवानी कभी पहाड़ के काम नहीं आती, हमने इसे बदला है"
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#गोपाष्टमी के दिन गायो को स्नान कराकर तिलक लगाए, पूजन करें, फिर गोग्रास खिलाकर गाय को सात परिक्रमा करे और चरणरज को सिर पर लगाएं,तो सौभाग्य में वृद्धि होती है। -@DharmNagari
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#गोपाष्टमी की आप सभी भाई बहन को हार्दिक हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं ।। -@26_862646
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कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत धारण किया था। आठवें दिन देव इंद्र अहंकाररहित होकर श्रीकृष्ण की शरण में आए तथा क्षमायाचना की। तभी से कार्तिक शुक्ल अष्टमी को #गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जा रहा है। ये पर्व गौधन से जुड़ा है। -@kamadhenugf
देखें गौ-शाला  : देशी गौ-वंश...
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