#जनजातीय_गौरव_दिवस : पहले की सरकारों ने आदिवासियों को अनदेखा किया, जनजातीय महासम्मेलन में PM ने...


...देखी प्रदर्शनी, योजनाओं का किया शुभारंभ  


धर्म नगरी / DN News 
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-अनुराधा त्रिवेदी / राजेश पाठक  
देश की आबादी का करीब करीब 10% होने के बावजूद दशकों तक, जनजातीय समाज को, उनकी संस्कृति, उनके सामर्थ्य को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। आदिवासियों का दुःख, उनकी तकलीफ, बच्चों की शिक्षा उन लोगों के लिए कोई मायने नहीं रखती थी। आज का दिन पूरे देश के लिए पूरे जनजातीय समाज के लिए बहुत बड़ा दिन है। आज भारत अपना पहला जनजातीय गौरव दिवस मना रहा है...

...जनजातीय समाज के योगदान के बारे में या तो देश को बताया ही नहीं गया और अगर बताया भी गया तो बहुत ही सीमित दायरे में जानकारी दी गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आज़ादी के बाद दशकों तक जिन्होंने देश में सरकार चलाई, उन्होंने अपनी स्वार्थ भरी राजनीति को ही प्राथमिकता दी... गोंड महारानी वीर दुर्गावती का शौर्य हो या फिर रानी कमलापति का बलिदान, देश इन्हें भूल नहीं सकता। वीर महाराणा प्रताप के संघर्ष की कल्पना उन बहादुर भीलों के बिना नहीं की जा सकती जिन्होंने कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी और बलिदान दिया...
ये बातें जम्बूरी मैदान में बिरसा मुंडा जयंती के अवसर पर आयोजित "जनजातीय गौरव दिवस" महासम्मेलन में बोलते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कही। उन्होंने देशवासियों को शुभकामनाएं देते हुए जनजातीय समुदाय से जुड़ी विभिन्न योजनाओं का शुभारंभ किया। आदिवासी कलाकारों ने पारंपरिक नृत्य के साथ उनका स्वागत किया। मंच पर प्रधानमंत्री को झाबुआ से लाई आदिवासियों की पारंपरिक जैकेट और डिंडोरी का आदिवासी साफा पहनाया गया।

प्रधानमंत्री ने कहा, जब देश ने मुझे 2014 में आप सब देशवासियों की सेवा का मौका दिया तो मैने जनजातीय समुदाय के हितों को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता में रखा। आज सही मायने में आदिवासी समाज के हर साथी को देश के विकास में उचित हिस्सेदारी और भागीदारी दी जा रही है।

इससे पूर्व कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा, रानी कमलापति भूला दी गईं, उनको इतिहास में उ​चित स्थान न अंग्रेजों ने दिया और न कांग्रेस ने दिया, लेकिन प्रधानमंत्री ने हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति रेलवे स्टेशन रखकर रानी का सम्मान बढ़ाया है।  
देखें, जम्बूरी मैदान पर मंच- पत्रकार दीर्घा जम्बूरी मैदान से...
देखें-
जम्बूरी मैदान जनजातीय समाज के कलाकारों के नृत्य व 
मधुर संगीत से गूँज उठा-   

PM मोदी ने ये भी कहा-
 
- अभी हाल में पद्म पुरस्कार दिए गए हैं। जनजातीय समाज से आने वाले साथी जब राष्ट्रपति भवन पहुंचे तो दुनिया हैरान रह गई। आदिवासी और ग्रामीण समाज में काम करने वाले ये देश के असली हीरे हैं 

- देश का जनजातीय क्षेत्र, संसाधनों के रूप में, संपदा के मामले में हमेशा समृद्ध रहा है। लेकिन जो पहले सरकार में रहे, वो इन क्षेत्रों के दोहन की नीति पर चले। हम इन क्षेत्रों के सामर्थ्य के सही इस्तेमाल की नीति पर चल रहे हैं 

- आज चाहे गरीबों के घर हों, शौचालय हों, मुफ्त बिजली और गैस कनेक्शन हों,
स्कूल हो, सड़क हो, मुफ्त इलाज हो, ये सबकुछ जिस गति से देश के बाकी हिस्से में हो रहा है, उसी गति से आदिवासी क्षेत्रों में भी हो रहा है 

- आज जब हम राष्ट्रीय मंचों से, राष्ट्र निर्माण में जनजातीय समाज के योगदान की चर्चा करते हैं, तो कुछ लोगों को हैरानी होती है। ऐसे लोगों को विश्वास ही नहीं होता कि जनजातीय समाज का भारत की संस्कृति को मजबूत करने में कितना बड़ा योगदान रहा है  

- इसकी वजह ये है कि जनजातीय समाज के योगदान के बारे में या तो देश को बताया ही नहीं गया और अगर बताया भी गया तो बहुत ही सीमित दायरे में जानकारी दी गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आज़ादी के बाद दशकों तक जिन्होंने देश में सरकार चलाई, उन्होंने अपनी स्वार्थ भरी राजनीति को ही प्राथमिकता दी 

- ‘पद्म विभूषण’ बाबासाहेब पुरंदरे जी ने छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन को, उनके इतिहास को सामान्य जन तक पहुंचाने में जो योगदान दिया है, वो अमूल्य है। यहां की सरकार ने उन्हें कालिदास पुरस्कार भी दिया था 

- छत्रपति शिवाजी महाराज के जिन आदर्शों को बाबासाहेब पुरंदरे जी ने देश के सामने रखा, वो आदर्श हमें निरंतर प्रेरणा देते रहेंगे। मैं बाबासाहेब पुरंदरे जी को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि देता हूं 

- आजादी की लड़ाई में जनजातीय नायक-नायिकाओं की वीर गाथाओं को देश के सामने लाना, उसे नई पीढ़ी से परिचित कराना, हमारा कर्तव्य है। गुलामी के कालखंड में विदेशी शासन के खिलाफ खासी-गारो आंदोलन, मिजो आंदोलन, कोल आंदोलन समेत कई संग्राम हुए  

- गोंड महारानी वीर दुर्गावती का शौर्य हो या फिर रानी कमलापति का बलिदान, देश इन्हें भूल नहीं सकता। वीर महाराणा प्रताप के संघर्ष की कल्पना उन बहादुर भीलों के बिना नहीं की जा सकती जिन्होंने कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी और बलिदान दिया 

- आज भारत, अपना पहला जनजातीय गौरव दिवस मना रहा है। आज़ादी के बाद देश में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर, पूरे देश के जनजातीय समाज की कला-संस्कृति, स्वतंत्रता आंदोलन और राष्ट्रनिर्माण में उनके योगदान को गौरव के साथ याद किया जा रहा है, उन्हें सम्मान दिया जा रहा है 
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जनजातीय गौरव दिवस कार्यक्रम में सम्मिलित होने जंबूरी मैदान में पहुंचे पीएम मोदी का सीएम शिवराज सिंह चौहान ने स्वागत किया। सीएम और केंद्रीय मंत्रियों ने जनजातीय प्रतीकों बैगा माला, पगड़ी, जैकेट एवं तीर-कमान भेंटकर किया। PM मोदी को झाबुआ की जैकेट और डिंडौरी का साफा पहनाया गया।  वहीं, जब  भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री और आदिवासी नेता ओमप्रकाश धुर्वे समेत कुछ अन्य BJP नेताओं ने उनका पैर छूना चाहा, तो उन्होंने सबको पैर छूने से रोक दिया। 
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जम्बूरी मैदान (भोपाल) में लगी चित्र प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए PM मोदी, राज्यपाल व CM शिवराजसिंह। 
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनजातीय समुदाय के लिए 'राशन आपके ग्राम' योजना का शुभारंभ किया। पीएम श्री मोदी ने योजना से संबंधितों को प्रतीक स्वरूप वाहन की चाबी भी सौंपी। योजना में ग्राम स्तर पर जनजातीय समुदाय को उचित मूल्य पर राशन प्रदान किया जाएगा।
PM नरेंद्र मोदी  हेल्थ कार्ड प्रदान करते हुए 
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को CM शिवराजसिंह चौहान, मप्र भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने जनजातीय नायकों की पुण्यभूमि 23 जिलों एकत्र की गई मिट्टी का अमृत कलश भेंट किया।  #जनजातीय_गौरव_दिवस
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- भोपाल में महासम्मेलन से पहले सुबह PM ने वर्चुअल सम्बोधन में बोलते हुए कहा-
- भारत की सत्ता, भारत के लिए निर्णय लेने की अधिकार-शक्ति भारत के लोगों के पास आए, ये स्वाधीनता संग्राम का एक स्वाभाविक लक्ष्य था। लेकिन साथ ही, ‘धरती आबा’ की लड़ाई उस सोच के खिलाफ भी थी जो भारत की, आदिवासी समाज की पहचान को मिटाना चाहती थी 

- आधुनिकता के नाम पर विविधता पर हमला, प्राचीन पहचान और प्रकृति से छेड़छाड़, भगवान बिरसा जानते थे कि ये समाज के कल्याण का रास्ता नहीं है। वो आधुनिक शिक्षा के पक्षधर थे, वो बदलावों की वकालत करते थे, उन्होंने अपने ही समाज की कुरीतियों के, कमियों के खिलाफ बोलने का साहस दिखाया 

- भगवान बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान सह स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय के लिए पूरे देश के जनजातीय समाज, भारत के प्रत्येक नागरिक को बधाई देता हूं। ये संग्रहालय, स्वाधीनता संग्राम में आदिवासी नायक-नायिकाओं के योगदान का, विविधताओं से भरी हमारी आदिवासी संस्कृति का जीवंत अधिष्ठान बनेगा

धरती आबा बहुत लंबे समय तक इस धरती पर नहीं रहे थे। लेकिन उन्होंने जीवन के छोटे से कालखंड में देश के लिए एक पूरा इतिहास लिख दिया, भारत की पीढ़ियों को दिशा दे दी

- भगवान बिरसा ने समाज के लिए जीवन जिया, अपनी संस्कृति और अपने देश के लिए अपने प्राणों का परित्याग किया। इसलिए, वो आज भी हमारी आस्था में, हमारी भावना में हमारे भगवान के रूप में उपस्थित हैं  

- आज के ही दिन हमारे श्रद्धेय अटल जी की दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण झारखण्ड राज्य भी अस्तित्व में आया था। ये अटल जी ही थे जिन्होंने देश की सरकार में सबसे पहले अलग आदिवासी मंत्रालय का गठन कर आदिवासी हितों को देश की नीतियों से जोड़ा था 

- आज़ादी के इस अमृतकाल में देश ने तय किया है कि भारत की जनजातीय परम्पराओं को, इसकी शौर्य गाथाओं को देश अब और भी भव्य पहचान देगा। इसी क्रम में ऐतिहासिक फैसला लिया गया है कि आज से हर वर्ष देश 15 नवम्बर यानी भगवान विरसा मुंडा के जन्म दिवस को ‘जन-जातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाएगा   
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सुनें- CM शिवराजसिंह चौहान ने रानी कमलापति रेलवे स्टेशन (हबीबगंज स्टेशन) के शुभारंभ से पहले क्या कहा- 
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