भोपाल की वास्तविक रानी कमलापति, जो हुईं दोस्त मोहम्मद की क्रूरता की शिकार, बड़े तालाब में ली जलसमाधि...


#रानी_कमलापति_रेलवे_स्टेशन नामकरण ; PM मोदी ने किया शुभारंभ   
हासिए पर गए जनजाति आदिवासी समाज को देश की मुख्यधारा में जोड़कर उनके सर्वांगीण विकास के शुभारंभ का दिन
-अनुराधा त्रिवेदी* /राजेशपाठक 
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रानी कमलापति, जो भोपाल की वास्तविक रानी थीं, अफगानिस्तान से आए खान सेनापति दोस्त मोहम्मद की क्रूरता की शिकार हुईं और धोखे से कमलापति के बेटे को लालघाटी में कत्ल कर दिया। इससे आशंकित रानी ने अपनी आबरू बचाने बड़े तालाब में कूदकर जलसमाधि ले ली। मध्य प्रदेश राज्य के वास्तविक शासक गोंड रहे हैं। रानी कमलापति भी गोंड जाति आती थी। एक तरफ रानी दुर्गावती थीं, वहीं शंकर शाह, रघुनाथ शाह, झलकारी बाई जैसे वीर-वीरांगनाओं ने राज्य की स्वतंत्रता को अक्षुण्य बनाए रखने के लिए समय-समय पर मुगलों और अंग्रेजों से युद्ध किया और आसानी से कभी भी उन्हें जीतने नहीं दिया।
बड़ा तालाब, भोपाल 
आज भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नामकरण उन्हीं रानी कमलापति के नाम पर रखा गया, जो भोपाल की रूह में धड़कता है। वहीं रानी कमलापति, जिनकी कहानी परी-कथा की तरह भोपाल के बचपन में शामिल रहीं और जवानी में स्मृतियों में। देश के भूले-बिसरे आदिवासी जनजाति समाज के वो वीर-वीरांगनाएं, वो नायक-नायिकाएं जिन्होंने इस देश की संस्कृति, संस्कार और परंपराओं को सदियों तक सहेज कर रखा। प्रकृति को आध्यात्मिकता से जोड़कर रखा।


जनजातियों, आदिवासियों का वो समाज सदियों से हासिये पर रहा, आजादी के पहले और आज़ादी के बाद भी, आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हासिए पर गए इस समाज को देश की मुख्यधारा में शामिल कर उनके सर्वांगीण विकास के लिए एक नई शुरुवात की। शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सड़क, बिजली और रोजगार को लेकर एक विस्तृत कार्ययोजना शुरू की। इसका परिणाम समय के साथ निश्चित रूप से देश के सामने आएगा। ये हासिए पर गया समाज मुख्य धारा से जुड़कर आने वाले समय में देश के विकास का एक नया अध्याय लिखेगा।

इसी बात को बिरसा मुंडा की जयंती पर भोपाल के जम्बूरी मैदान "जनजातीय गौरव महासम्मेलन" में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा। उन्होंने कहा, देश की आबादी का करीब 10 प्रतिशत होने के बावजूद दशकों तक, जनजातीय समाज को, उनकी संस्कृति, उनके सामर्थ्य को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। आदिवासियों का दुःख, उनकी तकलीफ, बच्चों की शिक्षा उन लोगों के लिए कोई मायने नहीं रखती थी। आज का दिन पूरे देश के लिए पूरे जनजातीय समाज के लिए बहुत बड़ा दिन है। आज भारत अपना पहला "जनजातीय गौरव दिवस" मना रहा है।
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प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा- जनजातीय समाज के योगदान के बारे में या तो देश को बताया ही नहीं गया और अगर बताया भी गया तो बहुत ही सीमित दायरे में जानकारी दी गई। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि आज़ादी के बाद दशकों तक जिन्होंने देश में सरकार चलाई, उन्होंने अपनी स्वार्थ भरी राजनीति को ही प्राथमिकता दी। गोंड महारानी वीर दुर्गावती का शौर्य हो या फिर रानी कमलापति का बलिदान, देश इन्हें भूल नहीं सकता। वीर महाराणा प्रताप के संघर्ष की कल्पना उन बहादुर भीलों के बिना नहीं की जा सकती जिन्होंने कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी और बलिदान दिया।

महासम्मेलन के अवसर पर पीएम मोदी ने देशवासियों को शुभकामनाएं देते हुए जनजातीय समुदाय से जुड़ी विभिन्न योजनाओं का शुभारंभ भी किया। मंच झाबुआ के आदिवासियों की पारंपरिक जैकेट और डिंडोरी का आदिवासी साफा पहने प्रधानमंत्री ने कहा, जब 2014 में उनकों देशवासियों की सेवा का मौका दिया, तभी से उन्होंने जनजातीय समुदाय के हितों को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता में रखा। आज सही मायने में आदिवासी समाज के हर साथी को देश के विकास में उचित हिस्सेदारी और भागीदारी दी जा रही है।

हाल में पद्म पुरस्कार का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, जनजातीय समाज से आने वाले साथी जब राष्ट्रपति भवन पहुंचे तो दुनिया हैरान रह गई। आदिवासी और ग्रामीण समाज में काम करने वालों को प्रधानमंत्री ने देश का असली हीरा बताया। देश का जनजातीय क्षेत्र, संसाधनों के रूप में, संपदा के मामले में हमेशा समृद्ध रहा है, लेकिन सरकार में रहे लोग इन क्षेत्रों के दोहन की नीति पर चले। हम इन क्षेत्रों के सामर्थ्य के सही इस्तेमाल की नीति पर चल रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, आज जब हम राष्ट्रीय मंचों से, राष्ट्र निर्माण में जनजातीय समाज के योगदान की चर्चा करते हैं, तो कुछ लोगों को हैरानी होती है। ऐसे लोगों को विश्वास ही नहीं होता कि जनजातीय समाज का भारत की संस्कृति को मजबूत करने में कितना बड़ा योगदान रहा है।

महासम्मेलन में बोलते हुए, सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा, रानी कमलापति भूला दी गईं, उनको इतिहास में उचित स्थान न अंग्रेजों ने दिया और न कांग्रेस ने दिया, लेकिन प्रधानमंत्री ने हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति रेलवे स्टेशन रखकर रानी का सम्मान बढ़ाया है।

कौन थीं रानी कमलापति ?
जब दिल्ली में शाहजहाँ  शासन कर रहा था, तब भोपाल का विस्तृत भू-भाग गोंडो के अधिकार में आ गया था तब गोंड जाति के अलग-अलग चकले या राज्य बन गएएक चकला, गोंडी भाषा का शब्द, जिसका अर्थ राज्य होता है। एक चकला गिन्नौर गढ़, जिसमे शाहपुर, मरदानपुर, ताल परगना, शाहगंज, छीपानेर, समसगढ़ और भोपाल क्षेत्र थादूसरा चकला चैनपुर बाड़ी था, जिसमें उदयपुरा, बाड़ी बरेली और सुल्तानपुर आदि परगने थे। भोपाल का गोंड राजा आलम सिंह था, जो दिल्ली तख्त पर बैठे शाहजहाँ को वार्षिक धन-राशि पहुँचाता था। शाहजहां के बीमार होने पर उसने राशि भेजना बंद कर दिया। 
गोंडवाना के रियासत में गिन्नौर गढ़ किले का निर्माण 13वीं शताब्दी में हुआ, जिसे गोंड वंश के महाराज उदय वर्धन ने बनवाया था। दुर्ग में 17वीं शताब्दी के समय राजा निजाम शाह का शासन था, जिनकी सात  पत्नियां थी। इनमें सातवीं पत्नी बहुत सुंदर, सुशील, वीर व साहसी थी जिनका नाम रानी कमलापति था। गिन्नौरगढ़ भोपाल शहर से पूर्व की ओर 55 किमी. दूर रायसेन जिले में स्थित है।
उस समय दिल्ली का प्रभारी दारा शिकोह था। उसने जागीर को बाँटने की घोषणा कर दिया। तब 1557 में गोंड राजा ने माफ़ी मांगकर प्रतिवर्ष लगान चुकाने की सन्धि करके अपने राज्य को सुरक्षित किया। गोंड राजाओं के पूर्वजों को कभी संग्राम शाह और भामा शाह की उपाधियाँ मिली थीं। तब से गोंड राजा अपने नाम के साथ शाह लगाने लगे। सन 1710 में गोंड राजा निजाम शाह ने गिन्नौरगढ़ का शासन संभाला। गोंड राजा निजाम शाह की सात पत्नियाँ थीं, जिसमें कृपाराम, जो ब्राह्मण थे, उनकी  बेटी रानी कमलापति सबसे सुंदर, विदुषी, बुद्धिमान और साहसी महिला थीं। वह अपने पति के प्रति अत्यंत निष्ठावान थीं। निजाम शाह का भतीजा चैन शाह रानी की सुंदरता पर मुग्ध हो गया और उसने षड्यंत्र करके अपने चाचा निजाम शाह को मरवाकर स्वयं को राजा घोषित कर दिया। 

जगदीशपुर (
इस्लाम नगर) पहले हिन्दुओं का शासन था, 18वीं सदी में अफगानों ने कब्जा कर लिया।
रानी रात को अपने विश्वस्थ सैनिकों के साथ भागकर भोपाल आ गईं और बड़े तालाब के किनारे सन 1702 में जो महल बनवाया, उसमे आकर रहें लगीं
। वह चैन शाह से अपने पति की हत्या का बदला लेना चाहती थीं। उन्होंने नवाब दोस्त मोहम्मद खान से, जो जगदीशपुर (इस्लाम नगर) का शासक था, उससे गिन्नौर गढ़ वापस दिलाने के लिए एक लाख मोहरें देने का अनुबंध किया। नवाब दोस्त मोहम्मद खान ने अपनी सेना भेजकर रानी के पति के हत्यारों का कत्ल करवा दिया और एक लाख मुहरों की माँग की। रानी के पास धन नहीं था, इसलिए रानी ने गिन्नौर गढ़ का शासन और महल नवाब को दे दिया को अपने पास रखा  
रानी कमलापति का महल
रानी की सुंदरता और पानीदार आँखें देखकर दोस्त मोहम्मद खान रानी को हासिल करने के लिए षड्यंत्र रचने लगा
। उसने 
नरसिंह राव चौहान को संधी के लिए एक मैत्री भोज पर आमंत्रित किया।मोहम्मद खां ने थाल नदी के किनारे तंबू लगवाए और एक शानदार मैत्री भोज का आयोजन किया।  गिन्नौरगढ़ के मुख्य सैनिकों और कमलापति महल के सुरक्षा-अधिकारियों को इस्लाम नगर में दावत पर बुलाकर खूब शराब पिलाई। जब गिन्नौरगढ़ (राजा नरसिंह राव चौहान) के सभी सैनिक- अधिकारी बेहोश हो गए, तो उन सबका वीभत्स तरीके से कत्ल करके हलाली नदी में फेक दिया।नरसंहार इतना भीषण था, कि नदी का पानी खून से लाल हो गया। तभी से इस नदी का नाम हलाली नदी पड़ा। हलालपुर बस स्टैंड भी इसी नदी के नाम पर है।
लालघाटी व ऊपर मनुआभान (की पहाड़ी) टेकरी 
मनुआभान टेकरी 
दोस्त मोहम्मद खान के नापाक इरादे को देखते हुए रानी कमलापति का 14 वर्षीय बेटा नवल शाह अपने 100 लड़ाकों के साथ लालघाटी में युद्ध करने गया। इस घमासान युद्ध में मोहम्मद खान ने नवल शाह को मार दिया। इस स्थान पर इतना खून बहा, कि यहां की जमीन लाल हो गई और इस कारण इसे लालघाटी कहा जाने लगा। इस युद्ध में 2 लड़के बच गए थे, जो किसी तरह अपनी जान बचाते हुए मनुआभान की पहाड़ी पर पहुंच गए। उन्होंने वहां काला धुआं कर रानी कमलापति को संकेत दिया, कि वे युद्ध हार गए हैं और आपकी जान को खतरा है।

तब इस हताश रानी कमलापति ने विषम परिस्थति को देखते हुए अपनी इज्जत बचाने बड़े तालाब बांध का संकरा रास्ता खुलवाया। इससे बड़े तालाब का पानी रिसकर दूसरी तरफ आने लगा, जो आज छोटा तालाब के रूप में जाना जाता है। रानी कमलापति ने महल का समस्त धन-दौलत, जेवरात, आभूषण आदि इसमें डालकर स्वयं जलसमाधि ले ली। दोस्त मोहम्मद खान जब अपनी सेना को साथ लेकर लालघाटी से इस किले तक पहुंचा, उतनी देर में सब कुछ खत्म हो गया था।

रानी कमलापति भोपाल की अंतिम गोंड आदिवासी और हिंदू रानी थीं रानी कमलापति। 16वीं सदी में सलकनपुर जिला सीहोर रियासत के राजा कृपाल सिंह सरौतिया थे। उनके शासन काल में वहां की प्रजा बहुत खुश और संपन्न थी। उनके यहां एक खूबसूरत कन्या का जन्म हुआ। वह बचपन से ही कमल की तरह खूबसूरत थी। इस कन्या की सुंदरता को देखते हुए उसका नाम कमलापति रखा गया।

सलकनपुर में जन्मी महारानी-  
रानी कमलापति बचपन से ही बहुत बुद्धिमान, वीर और साहसी थी। शिक्षा, घुड़सवारी, मल्लयुद्ध, तीर-कमान और हथियार चलाने में कमलापति को महारथ थी। वह अनेक कलाओं में पारंगत होकर कुशल प्रशिक्षण प्राप्त कर सेनापति बनी। अपने पिता के सैन्य-बल और अपने महिला साथी दल के साथ युद्धों में शत्रुओं से लोहा लेती थी। पड़ोसी राज्य अकसर खेत-खलिहान, धन-सम्पत्ति लूटने के लिए आक्रमण किया करते। सलकनपुर राज्य की देख-रेख करने की पूरी जिम्मेदारी राजा कृपाल सिंह सरौतिया और उनकी बेटी राजकुमारी कमलापति की थी, जो आक्रमणकारियों से लोहा लेकर अपने राज्य की रक्षा करती रही। आज सलकनपुर में लोग यहाँ पहाड़ पर विराजमान (जिस प्रकार मैहर में माँ शारदा विराजमान हैं) सलकनपुर देवी के दर्शन-पूजन को जाते हैं।

रानी कमलापति का विवाह राजा सुराज सिंह शाह (सलाम) से हुआ। 16वीं सदी में भोपाल से 55 किमी. दूर 750 गांवों को मिलाकर (जो देहलावाड़ी के पास है) गिन्नौरगढ़ राज्य बनाया गया। इसके राजा सुराज सिंह शाह (सलाम) थे। इनके पुत्र निजामशाह थे, जो बहुत बहादुर, निडर तथा हर कार्य-क्षेत्र में निपुण थे। उन्हीं से रानी कमलापति का विवाह हुआ। उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम नवल शाह था।





*वरिष्ठ पत्रकार, भोपाल।
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भोपाल का हर हिस्सा रानी कमलापति की कहानी सुनाता है
"...दोस्त मोहम्मद खान के इस नापाक इरादे को देखते... बड़े तालाब बांध का संकरा रास्ता खुलवाया, जिससे बड़े तालाब का पानी रिसकर छोटे तालाब में आने लगा। इसमें रानी कमलापति ने महल की समस्त धन-दौलत, आभूषण डालकर स्वयं जल-समाधि ले ली। दोस्त मोहम्मद खान जब तक किले तक पहुंचा, तब तक सबकुछ खत्म हो गया था। रानी कमलापति ने जीते जी भोपाल पर परधर्मी को नहीं बैठने दिया। स्रोतों के अनुसार रानी कमलापति ने सन् 1723 में अपनी जीवन-लीला खत्म की थी। उनकी मृत्यु के बाद भोपाल में नवाबों का कब्जा हुआ। नारी अस्मिता और अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए रानी कमलापति ने जल-समाधि लेकर इतिहास में अमिट स्थान बनाया है।

उनका यह कदम उसी जौहर परंपरा का पालन था, जिसमें हमारी नारी शक्ति ने अदम्य साहस के साथ अपनी अस्मिता, धर्म और संस्कृति को बचाया। गोंड रानी कमलापति आज तीन सौ वर्ष बाद भी प्रासंगिक हैं और उनके बलिदान का सम्मान करके हम कृतज्ञ हैं। भोपाल का हर हिस्सा उनकी कहानी सुनाता है। यहां के तालाबों के पानी में उनके बलिदान की गूंज आज भी सुनी जा सकती है। लगता है मानो गोंड रानी अब पानी बनकर भोपाल की रवानी में अविरल बहती हैं। -शिवराजसिंह चौहान (मुख्यमंत्री मप्र)
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