इन पांच राशि पर है साढ़े-साती एवं ढैय्या, जातक करे स्तोत्र
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"शनि स्तोत्र" की कथा
त्रेता युग में प्रसिद्ध चक्रवती राजा थे जिनका नाम दशरथ था। राजा के कार्य से उनके राज्य (अयोध्या) की प्रजा सुखी जीवन यापन कर रही थी हर तरफ सुख और शांति का वातावरण था।
एक दिन ज्योतिषियों ने शनि को कृत्तिका नक्षत्र के अन्तिम चरण में देखकर कहा, अब शनि रोहिणी नक्षत्र का भेदन कर जायेगा। जिसे "रोहिणी-शकट-भेदन" भी कहा जाता हैं। शनि का रोहिणी में जाना देवता और असुर दोनों ही के लिये बहुत ही कष्टकारी और भय प्रदान करने वाला है। कहा जाता है, रोहिणी-शकट-भेदन से बारह वर्ष तक अत्यंत दुःखदायी अकाल पड़ता है।
जब राजा दशरथ ने ज्योतिषियों की यह बात सुनी और इससे अपनी प्रजा को व्याकुलता देखी। तब दशरथ वशिष्ठ ऋषि तथा प्रमुख ब्राह्मणों से कहने लगे- हे ब्राह्मणों ! इस समस्या का कोई तो समाधान शीघ्र ही मुझे बताइए।
इस पर ऋषि वशिष्ठ ने कहा- शनि के रोहिणी नक्षत्र में भेदन होने से प्रजा जन सुखी कैसे रह सकते हैं ? इसके योग के दुष्प्रभाव से तो ब्रह्मा एवं इन्द्रादि देवता भी रक्षा करने में असमर्थ हैं।
वशिष्ठ के यह वचन सुनकर राजा सोचने लगे, यदि इस संकट की घड़ी को न टाला गया, तो उन्हें कायर कहा जाएगा। अतः राजा विचार करके और साहस बटोरकर दिव्य धनुष तथा दिव्य आयुधों से युक्त होकर अपने रथ को वेग की गति से चलाते हुए चन्द्रमा से भी 3 लाख योजन ऊपर नक्षत्र मण्डल में ले गए।
वशिष्ठ के यह वचन सुनकर राजा सोचने लगे, यदि इस संकट की घड़ी को न टाला गया, तो उन्हें कायर कहा जाएगा। अतः राजा विचार करके और साहस बटोरकर दिव्य धनुष तथा दिव्य आयुधों से युक्त होकर अपने रथ को वेग की गति से चलाते हुए चन्द्रमा से भी 3 लाख योजन ऊपर नक्षत्र मण्डल में ले गए।
रत्नों तथा मणियों से सुशोभित स्वर्ण-निर्मित रथ में बैठे हुए महाबली राजा ने रोहिणी के पीछे आकर रथ को थाम लिया। श्वेत अश्वो से युक्त और ऊँची-ऊँची ध्वजाओं से सुशोभित मुकुट में जड़े हुए बहुमुल्य रत्नों से प्रकाशमान राजा दशरथ उस समय आकाश में दूसरे सूर्य की के समान चमक रहे थे।
शनि को कृत्तिका नक्षत्र के पश्चात् रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश का इच्छुक देखकर राजा दशरथ बाण युक्त धनुष कानों तक खींचा और भृकुटियां तान कर शनि के सामने डटकर खड़े हो गए।
अपने सामने देव-असुरों के संहारक अस्त्रों से युक्त दशरथ को खड़ा देखकर शनि थोड़ा घबरा गए और हंसते हुए राजा से कहने लगे- हे राजन ! तुम्हारे जैसा पुरुषार्थ तो मैंने किसी में नहीं देखा, क्योंकि देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और सर्प जाति के जीव मेरे मात्र देखने से ही भय-ग्रस्त हो जाते हैं। हे राजेंद्र ! मैं तुम्हारी तपस्या और पुरुषार्थ से अत्यन्त प्रसन्न हूँ। अतः हे रघुनन्दन ! जो तुम्हारी इच्छा हो वर मांग लो, मैं तुम्हें अवश्य दूंगा॥
राजा दशरथ ने विनम्र होकर कहा- हे सूर्य-पुत्र शनि-देव ! यदि आप मुझसे इतना ही प्रसन्न हैं, तो मैं एक ही वर मांगता हूँ, कि जब तक नदियां, चन्द्रमा, सागर, सूर्य और पृथ्वी इस संसार में है, तब तक आप रोहिणी शकट भेदन कदापि नहीं करेंगे। मैं केवल यही वर मांगना चाहता हूँ और मेरी कोई इच्छा नहीं है।
ऐसा वर माँगने पर शनि ने तथास्तु कहकर वर दे दिया। इस प्रकार शनि से वर प्राप्त करके राजा दशरथ अपने को धन्य समझने लगे।
फिर शनि देव बोले- मैं तुमसे बहुत ही प्रसन्न हूँ, तुम और भी वर मांग लो। तब राजा दशरथ प्रसन्न होकर शनि देव से दूसरा वर मांगने लगे।
शनि देव कहने लगे- हे दशरथ तुम निर्भय रहो। 12 वर्ष तक तुम्हारे राज्य में कोई अकाल नहीं पड़ेगा। तुम्हारी यश-कीर्ति तीनों लोकों में फैलेगी। ऐसा वर पाकर राजा प्रसन्न होकर धनुष-बाणो को रथ में रखकर सरस्वती देवी तथा गणपति का ध्यान करके शनि देव की स्तुति इस प्रकार करने लगे-
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प्रयागराज माघ मेला-2023 में धर्म नगरी / DN News का "सूचना केंद्र हेल्प-लाइन" सेवा शिविर-
मेले में सूचना केंद्र हेल्प-लाइन का शिविर श्रद्धालुओं एवं तीर्थयात्रियों की सुविधा हेतु शिविर लगाया जा रहा है। प्रयागराज एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसाइटी भोपाल के सहयोग से इस शिविर के आयोजन / संचालन में यदि आप भी किसी प्रकार का सहयोग करना चाहते हैं, तो कृपया संपर्क करें। आर्थिक सहयोग आप "धर्म नगरी" के बैंक खाते में सीधे दें और उसके पश्चात अपने सहयोग की जानकारी भी लें। सम्पर्क- वाट्सएप- 8109107075 मो. 9752404020 ईमेल- dharm.nagari@gmail.com हेल्प-लाइन नंबर- 8109107075 (पूर्ववत ही है)।
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यदि आपके ऊपर शनिदेव की कुदृष्टि चल रही है और आप अपने जीवन में अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहे हैं, तो आपको भी दशरथ कृत "शनि स्तोत्र" का पाठ करना चाहिए।
भक्तजनों को हर शनिवार श्री शनि चालीसा का गायन करना चाहिए और शनि आरती भी करनी चाहिए। जो भी शनि स्तुति करते हैं उन पर शनिदेव की कृपा हमेशा बनी रहती है। आप शनि अष्टक तथा शनि कवच स्तोत्र का पाठ कर के अपने जीवन में शनि की कृपा का अनुभव कर सकते हैं शनिदेव मंत्र बोलते समय हमें शब्दों के उच्चारण का बहुत ध्यान रखना चाहिए।
॥ अथ श्री शनैश्चरस्तोत्रम् ॥
॥ श्रीगणेशाय नमः॥
अस्य श्रीशनैश्चरस्तोत्रस्य। दशरथ ऋषिः। शनैश्चरो देवता। त्रिष्टुप् छन्दः॥ शनैश्चरप्रीत्यर्थ जपे विनियोगः।
भक्तजनों को हर शनिवार श्री शनि चालीसा का गायन करना चाहिए और शनि आरती भी करनी चाहिए। जो भी शनि स्तुति करते हैं उन पर शनिदेव की कृपा हमेशा बनी रहती है। आप शनि अष्टक तथा शनि कवच स्तोत्र का पाठ कर के अपने जीवन में शनि की कृपा का अनुभव कर सकते हैं शनिदेव मंत्र बोलते समय हमें शब्दों के उच्चारण का बहुत ध्यान रखना चाहिए।
॥ श्रीगणेशाय नमः॥
अस्य श्रीशनैश्चरस्तोत्रस्य। दशरथ ऋषिः। शनैश्चरो देवता। त्रिष्टुप् छन्दः॥ शनैश्चरप्रीत्यर्थ जपे विनियोगः।
दशरथ उवाच-
कोणोऽन्तको रौद्रयमोऽथ बभ्रुः कृष्णः शनिः पिंगलमन्दसौरिः ।
नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ १॥
सुरासुराः किं पुरुषोरगेन्द्रा गन्धर्व विद्याधर पन्नगाश्च।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥२॥
नरा नरेन्द्राः पशवो मृगेन्द्रा वन्याश्च ये कीटपतंगभृङ्गाः।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥३॥
देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र सेनानिवेशाः पुरपत्तनानि।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥४॥
तिलैर्यवैर्माष गुडान्नदानैर्लोहेन नीलाम्बरदानतो वा।
प्रीणाति मन्त्रैर्निजवासरे च तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥५॥
प्रयागकूले यमुनातटे च सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम्।
यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥६॥
अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्तदीयवारे स नरः सुखी स्यात् ।
गृहाद् गतो यो न पुनः प्रयाति तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥७॥
स्रष्टा स्वयंभूर्भुवनत्रयस्य त्राता हरीशो हरते पिनाकी।
एकस्त्रिधा ऋग्यजुःसाममूर्तिस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥८॥
शन्यष्टकं यः प्रयतः प्रभाते नित्यं सुपुत्रैः पशुबान्धवैश्च।
पठेत्तु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः प्राप्नोति निर्वाणपदं तदन्ते ॥ ९॥
कोणस्थः पिङ्गलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः।
सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः ॥ १०॥
एतानि दश नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत् ।
शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद्भविष्यति ॥ ११॥
॥ इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे श्रीशनैश्चरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
(Dashrath Krit Shani Stotra Path Vidhi)
- प्रतिदिन दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करना अत्यधिक लाभकारी है, किन्तु यदि आप प्रतिदिन यह पाठ करने में असमर्थ हैं, तो प्रत्येक शनिवार को इसका पाठ करने से आप शनि देव की विशेष कृपा व आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
- सर्वप्रथम स्नान आदि दैनिक कार्य समाप्त करके एक आसन पर पद्मासन में बैठ जाएँ।
- सर्वप्रथम स्नान आदि दैनिक कार्य समाप्त करके एक आसन पर पद्मासन में बैठ जाएँ।
- अब एक लकड़ी की चौकी पर काला कपड़ा बिछाकर उस पर शनि देव की एक प्रतिमा अथवा छायाचित्र को स्थापित करें।
- तदोपरान्त मानसिक ध्यान करते हुए शनि देव का आवाहन करें।
- अब शनिदेव को आसन ग्रहण करवाएं।
- आसन ग्रहण करवाने के पश्चात सरसों के तेल का एक चौमुखी (चार मुखी) दीपक शनिदेव के समक्ष प्रज्जवलित करें।
- तत्पश्चात दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पूर्ण भक्ति-भाव से पाठ करें।
- पाठ सम्पूर्ण होने के उपरान्त शनि बीज मन्त्र ॐ प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः का यथाशक्ति जप करें।
- अब शुद्ध सरसों के तेल के दीपक से शनिदेव की आरती करें तथा अपने व परिवार की कुशलता हेतु कामना करें।
- तदोपरान्त मानसिक ध्यान करते हुए शनि देव का आवाहन करें।
- अब शनिदेव को आसन ग्रहण करवाएं।
- आसन ग्रहण करवाने के पश्चात सरसों के तेल का एक चौमुखी (चार मुखी) दीपक शनिदेव के समक्ष प्रज्जवलित करें।
- तत्पश्चात दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पूर्ण भक्ति-भाव से पाठ करें।
- पाठ सम्पूर्ण होने के उपरान्त शनि बीज मन्त्र ॐ प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः का यथाशक्ति जप करें।
- अब शुद्ध सरसों के तेल के दीपक से शनिदेव की आरती करें तथा अपने व परिवार की कुशलता हेतु कामना करें।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र के लाभ व महत्व-
(Dashrath Krit Shani Stotra Benefits & Significance)
- दशरथ उवाच शनि देव स्तुति का पाठ करने से शनि देव का क्रोध शान्त होता है।
- शनि की साढ़ेसाती व ढैया के कारण होने वाली समस्याओं के निदान हेतु आपको इस दिव्य स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए।
- यदि कोई पुराना रोग आपको बहुत लम्बे समय से पीड़ित कर रहा है, तो निश्चित ही आपको इस स्तोत्र का पाठ करने से उस रोग से मुक्ति मिलेगी।
- यदि आपके ऊपर शनि देव की कुदृष्टि है तो आप भी प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ सकते हैं।
-किसी आवश्यक यात्रा पर जाने से पहले पूर्ण विधि-विधान से दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से यात्रा सफल व फलदायक सिद्ध होती है।
- दशरथ वास शनिदेव स्तुति के प्रभाव से शत्रुओं का सर्वनाश होता है।
- दशरथ कृत शनि स्तोत्र अत्यधिक प्रभावशाली है तथा इसके नियमित पाठ से व्यक्ति के घर में धन-धान्य की कमी नहीं रहती।
- मकर व कुम्भ राशि के जातकों को इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में समस्त प्रकार के सुखों को प्राप्त कर सकते हैं।
शनि चालीसा- (Shani Chalisa)
॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दु:ख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
जयति जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके।
हिय माल मुक्तन मणि दमके॥1॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्ो, छाया नन्दन।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं।
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥2॥
पर्वतहू तृण होई निहारत।
तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई।
मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा।
मचिगा दल में हाहाकारा॥3॥
रावण की गतिमति बौराई।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका।
बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा।
चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पैर डरवाय तोरी॥4॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी।
आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी।
भूंजीमीन कूद गई पानी॥5॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई।
पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी।
बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो।
युद्ध महाभारत करि डारयो॥6॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला।
लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देवलखि विनती लाई।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सजाना।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥7॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।
हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा।
सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरी आदि होय डर भारी॥8॥
तैसहि चारि चरण यह नामा।
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं।
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी।
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥9॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत।
दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥10॥
॥दोहा॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥
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शनि चालीसा के लाभ-
शनि देव की महिमा जिस पर भी हो जाती है, वो गरीब से अमीर बन जाते हैं, कमजोर से ताकतवर बन जाते हैं। शनि भगवान की चालीसा पढ़ने मात्र से ही लोगों के जीवन में बदलाव आने लगते हैं। लोग अपने जीवन में खुशियाँ बटोरने लगते हैं। उन्हें किसी चीज की कमी का अनुभव नहीं होता।
शनि देव की पूजा अर्चना करने से जातक के जीवन की कठिनाइयां दूर होती है। सूर्य पुत्र शनिदेव के बारे में लोगों के बीच कई मिथ्या हैं, लेकिन मान्यता ये है, कि भगवान शनिदेव जातकों के केवल उसके अच्छे और बुरे कर्मों का ही फल देते हैं। भगवान सूर्य के पुत्र शनिदेव, जिनकी पूजा अर्चना मात्र से ही लोगों के दुःख दूर हो जाते है। शनि चालीसा का पाठ करने से ही लोगों के सारे कष्ट का निवारण हो जाता है। जो भी भक्त शनि देव का व्रत विधि का पालन करते हुए रखते है, उन्हें शनिदेव की कथा सुनकर व्रत को सम्पूर्ण करना चाहिए और शनि देव की आरती भी करनी चाहिए। शनिदेव मंत्रो का उच्चारण करना भी अत्यंत लाभदायक माना गया है।
शनि चालीसा : कैसे करें पाठ
अधिकतर लोगों के मन में आता है कि शनिदेव की असीम कृपा पाने के लिए पाठ कैसे करे या फिर शनि चालीसा का उच्चारण किस तरह किया जाना चाहिए ?
भक्तों चिंता कि कोई आवश्यकता नही है, वैसे तो शनि महाराज अपने नाम के उच्चारण से ही बहुत खुश हो जाते है। यदि आप तब भी शनि महाराज जी कि चालीसा को सही से उच्चारित करना चाहते है तो बेफिक्र रहिये।
सुबह-सुबह जब आप सोकर उठते है, तब सबसे पहले आपको अपनी दिनचर्या में सबसे पहले शौचालय जाना है वहां से आने के बाद आपको ब्रश करना है, नहाना है और फिर सूर्य महाराज को जल चढ़ाना है।
जल चढ़ाने के बाद आपको शनि चालीसा पढ़ने के लिए जमीन पर एक आसन बिछाना है और शनि देव की फोटो रखनी है।
यदि आपके पास शनि देव का चित्र नही है, तो आपको अपने सर पर एक कपड़ा रखना है और शनि चालीसा पाठ शुरू करना है। प्रयास करें, जब भी आप शनि चालीसा पढ़े तो आपके आस पास शनि का माहौल हो और आपका फ़ोन आपसे बहुत दूर हो।
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"धर्म नगरी" व DN News के प्रत्येक जिले- ग्रामीण व शहरी क्षेत्र में विस्तार हेतु एवं कॉपी को नि:शुल्क देशभर में धर्मनिष्ठ संतो आश्रम को भेजने हमें आर्थिक सहयोग (शुभकामना/विज्ञापन के रूप में) दानदाताओं की आवश्यकता है। नीचे QR कोड पर सहयोग भेजें या संपर्क करें- 6261868110 सहयोग देने के बाद अपना पूरा हिसाब (detail) भी लें, क्योंकि "धर्म नगरी" का प्रकाशन अव्यावसायिक हैं। - @DharmNagari
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