महाशिवरात्रि : शनि प्रदोष और शिवरात्रि का संयोग, पूजा-विधि, क्या और क्यों चढ़ाएं, क्या करें क्या नहीं, करें विशेष उपाय


सभी प्रकार के यज्ञ, तप, दान, तीर्थों एवं वेदों का जो पहल होता है, वही पहल करोड़ों गुना होकर शिवलिंग की स्थापना करने वाले मनुष्य को प्राप्त होता है -अग्नि पुराण 


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-राजेश पाठक 

महाशिवरात्रि फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी 18 फरवरी (शनिवार) को होगी। चूँकि, शनिवार को कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी और चतुर्दशी दोनों तिथि होगी, अर्थात शनि प्रदोष और शिवरात्रि का संयोग बन रह है, जिससे इस दिन श्रद्धा-भक्ति से व्रत और शिव-पूजा करने से शनि के अशुभ प्रभाव में कमी या मुक्ति मिलेगी। प्रदोष और शिवरात्रि का संयोग होने से पूरे दिन शिव-पूजा की जा सकेगी। वैसे, महाशिवरात्रि के दिन चाहे कोई भी समय हो, भगवान शिव की आराधना करना चाहिए।

महाशिवरात्रि पर हर हर महादेव, जय शिव शंभू, बम भोले के जयघोष के बीच हजारों भक्तों की भीड़ सभी द्वादश ज्योतिर्लिंगों सहित देश-दुनियाभर के शिवालयों पूजा-अर्चना, जलाभिषेक आदि अनुष्ठान होंगे। रुद्राभिषेक, रुद्री-पाठ से वातावरण शिव-मय होगा। अत्यंत पवित्र त्यौहार महाशिवरात्रि पूरे देश में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। प्रमुख शहरों एवं मंदिरों से शिव-बारात भी निकाली जाएगी।
उज्जैन में दक्षिणमुखी महाकालेश्वर एवं काशी विश्वनाथ मंदिर में मध्यरात्रि के बाद से ही भक्तों की लंबी कतारें दिखी। प्रयागराज एवं हरिद्वार में सुबह से ही लोग पवित्र डुबकी लगा रहे हैं। छोटे बड़े प्रसिद्ध शिव मंदिरों में विभिन्न जिलों में आज शिव बारात निकाली जाएगी। गंगा, नर्मदा, कावेरी आदि पवित्र नदियों में स्नान करके भोले के भक्त- कांवर में जल लेकर शिवालय पहुंच रहे हैं, देवाधिदेव का जलाभिषेक करने।

शिवरात्रि के दिन देवी पार्वती और भगवान शंकर का विवाह हुआ था। आठ पर शिव भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है। शिवरात्रि पर रुद्राभिषेक का विशेष महत्व है इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। अगर सच्चे मन से शिवलिंग का रुद्राभिषेक किया जाए तो भगवान शिव की कृपा से हर मनोकामना पूर्ण होती है। शिवरात्रि पर रुद्राभिषेक विशेष रूप से किया जाता है मंत्रोच्चारण के साथ रुद्राभिषेक करने से व्यक्ति हर संकट से पार उतर जाता है। शिवरात्रि पर चारों प्रहरों में पूजा होती है और रात्रि जागरण किया जाता है। आइए जानते हैं शिवरात्रि पर रुद्राभिषेक कैसे करना चाहिए।
महाशिवरात्रि की पूजा के शुभ मुहूर्त एवं अन्य योग व संयोग इस प्रकार हैं-

शिवलिंग की चार प्रहर में पूजा 
शिवरात्रि पर शिवलिंग की चार प्रहर में पूजा की जाती है, जो इस काल में होगी- 
रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय- 18 फरवरी को 06:18 PM से 09:31 PM तक
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय- 18 फरवरी को 09:31 PM से 19 फरवरी को 12:44 PM तक
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय- 19 फरवरी को 12:44 AM से 03:57 AM तक
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय- 19 फरवरी को 03:57 AM से 07:10 AM तक

महाशिवरात्रि पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त (निशित काल)- 19 फरवरी 2023, 12:18 AM से 01:10 AM तक।

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रुद्राभिषेक करने की विधि (How to perform Rudrabhishek on Maha Shivratri)
- प्रातः काल उठकर स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें।
- भगवान शिव का ध्यान लगाकर व्रत संकल्प लें।
- पूजा सामग्री के लिए: जल,दूध,दही, शहद,बेलपत्र, भांग, धतूरा,धूप, दीप,फल,मिष्ठान, नैवेद्य लें।
- मन्दिर या घर पर विराजमान शिवलिंग को दूध ,दही ,घी , शहद,गंगाजल से तैयार पंचामृत से स्नान करवाएं।
- अब दूध और गंगाजल से शिवलिंग का रुद्राभिषेक करते हुए ॐ नमः शिवाय का उच्चारण करें।
- रुद्राभिषेक करतें हुए महामृत्युंज मंत्र , शिव तांडव का उच्चारण करें।
- अब शिवलिंग को भस्म या चंदन का त्रिपुंड तिलक करें।
- शिवलिंग पर भांग, धतूरा , बेलपत्र ,सफेद फूल अर्पित करें।
- घी का दीपक लगाकर शिवजी की आरती करें और शिव चालीसा का पाठ करें।
- भगवान शंकर को खीर ,हलवा या मालपुआ का भोग लगाएं।

इन मंत्रो से करें शिवलिंग का रुद्राभिषेक
ॐ नम: शम्भवाय च मयोभवाय च 
नम: शंकराय च मयस्कराय च 
नम: शिवाय च शिवतराय च॥

ईशानः सर्वविद्यानामीश्वरः सर्वभूतानां 
ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोऽधिपति
ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोय्‌॥

तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः 
सर्वेभ्यः सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्ररुपेभ्यः॥
वामदेवाय नमो ज्येष्ठारय नमः श्रेष्ठारय नमो
रुद्राय नमः कालाय नम: कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमः
बलाय नमो बलप्रमथनाथाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः॥
सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः।
भवे भवे नाति भवे भवस्व मां भवोद्‌भवाय नमः॥
नम: सायं नम: प्रातर्नमो रात्र्या नमो दिवा ।
भवाय च शर्वाय चाभाभ्यामकरं नम: 
यस्य नि:श्र्वसितं वेदा यो वेदेभ्योsखिलं जगत्।
निर्ममे तमहं वन्दे विद्यातीर्थ महेश्वरम्॥
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिबर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात्॥
सर्वो वै रुद्रास्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु । पुरुषो वै रुद्र: सन्महो नमो नम:॥
विश्वा भूतं भुवनं चित्रं बहुधा जातं जायामानं च यत् । सर्वो ह्येष रुद्रस्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु ॥

ॐ नमः शिवाय मंत्र
का 108 बार जाप करें
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिबर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात्  का 108 बार जाप करें।
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भगवान शिव के रहस्य, शिव के अस्त्र-शस्त्र, गण, शिष्य, द्वारपाल, पार्षद, पुत्र, शिष्य, चिन्ह, श्रीपद, अवतार... 
https://www.blogger.com/blog/post/edit/3401395333000211356/1602767094998728843

देवाधिदेव महादेव को प्रसन्न करने भगवान श्रीराम द्वारा स्तुति की गई "शम्भु स्तुतिः"...सुने व पढ़ें 
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महाशिवरात्रि : पूजा-विधि, क्या और क्यों चढ़ाएं, क्या करें क्या नहीं, करें विशेष उपाय...2022 
http://www.dharmnagari.com/2022/02/Maha-Shivratri-2022-Muhurat-Puja-vidhi-Kya-kare-aur-Kya-nahi.html
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काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग कथा – शिव पुराण
सूतजी कहने लगे, हे ऋषियों, जब भगवान ने दो में से एक होने की इच्छा जगाई, तो वे स्वयं शिव नामक सुगुण रूप बन गए, और दूसरे रूप में शक्ति बन गए। इस प्रकार उन दोनों ने आकाशवाणी को सुना कि तुम दोनों को ऐसी तपस्या करनी चाहिए जिससे एक उत्तम सृष्टि की रचना हो। तब उस पुरुष ने भगवान से पूछा कि किस स्थान पर तपस्या करनी है, इसलिए शिवजी ने आकाश में एक उत्कृष्ट नगर बनाया जो सभी आवश्यक उपकरणों से सुसज्जित था।

वहा विष्णु जी ने सृष्टि की रचना की और श्रद्धाभाव से शिव जी का तप किया। तब अति परिश्रम के कारण बहोत सारी जलधारा बहने लगी और पूरा आकाश व्याप्त हो गया। वह कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। इससे प्रभावित होकर, विष्णु जी अद्भुत लगा! और जब उन्होंने आश्चर्य से सिर हिलाया, तो उनके कान से एक मनका गिर गया। वह स्थान जहाँ यह मनका गिरा, वह मणिकर्णिका नामक एक प्रसिद्ध तीर्थ बन गया।

जब पूर्वोक्त जलराशि में पूरी नगरी डूबने लगी तब शिवजी ने अपने त्रिशूल पर पृथ्वी को धारण कर लिया। उस समय विष्णु अपनी पत्नी के साथ उसी स्थान पर सोए थे। तब विष्णु की नाभि से एक कमल उत्पन्न हुआ और इस कमल से ब्रह्माजी उत्पन्न हुए ब्रह्माजी की उत्पत्ति में भी भगवान शिवाजी की ही इच्छा थी। फिर उन्होंने शिव की आज्ञा से ब्रह्मांड की रचना शुरू की। उन्होंने ब्रह्मांड में चौदह भुवनों की रचना की। इस ब्रह्मांड के क्षेत्रफल को ऋषि-मुनियों ने पचास करोड़ योजन के रूप में दिखाया है।

फिर शिवजी ने सोचा की इस ब्रह्माण्ड मे कर्मो के बंधन से वह जीव मुझे कैसे प्राप्त करेंगे। इसलिए शिवजी ने मुक्तिदाईनी पंचक्रोशी को इस जगत में छोड़ दिया। वहां शिव ने मुक्त नाम से एक ज्योतिर्लिंग की स्थापना की। हे मुनिओ ! ब्रह्माजी के एक दिन के अंत होने पर प्रलय होता है।

उस समय पूरी जगत के नष्ट होने पर काशी क्षेत्र नष्ट नहीं होता है। प्रलय के समय नष्ट नहीं होगा काशी क्षेत्र क्योंकि शिवजी काशी विश्वनाथ क्षेत्र को उस समय अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं, और जब ब्रह्माजी द्वारा पुन: निर्माण किया जाता है, तब शिवजी उसके स्थान पर काशिक्षेत्र को फिर से स्थापित कर देते है।

काशी विश्वनाथ नगरी मनुष्य के पाप कर्मो का नाश करने वाली पवित्र नगरी है। काशी मुक्तेश्वर लिंग हमेशा इस काशी क्षेत्र में मौजूद है। यह मुक्तेश्वर लिंग मुक्ति का दाता है। जिनकी सदगति नही होती उनकी सदगति इस काशी विश्वनाथ क्षेत्र में होती है, क्यूँकि यह सदाशिव को अति प्रिय है।

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