चैत्र नवरात्रि "नल" विक्रम संवत-2080 : माता नाव पर सवार होकर आएगी, होगी पर्याप्त वर्षा, नवरात्रि पर...
...संयोग व मुहूर्त, माँ के स्वरुप के अनुरूप पूजा-विधि व सामग्री
- देवी के स्वरूपों के मंत्र, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से का महत्व
- संवत्सर-2080 के अधिपति बुध ग्रह और मंत्री शुक्र ग्रह होंगे
- नव संवत्सर 2080 में होंगे 13 माह
- संवत्सर के प्रथम दिन की जाने वाले धार्मिक क्रियाकलाप, उनका आध्यात्मिक महत्व
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-राजेशपाठक (अवैतनिक संपादक)
चैत्र नवरात्रि संवत-2080 पूरे नौ दिन का होगा, जो 22 मार्च से आरंभ होगा और 31 मार्च को समाप्त होगा। इस चैत्र नवरात्रि पर माता "नाव" में सवार होकर आएंगी, जो इस बात का संकेत है इस साल पर्याप्त वर्षा होगी। 22 मार्च से ही नव संवत्सर-2080 भी आरम्भ होगा। सनातन हिन्दू धर्म में नवरात्रि का बहुत महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार चैत्र नवरात्रि 22 मार्च से शुरू होकर 30 मार्च तक रहेगी। इस बार पूरे नौ दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना होगी। हिन्दू नव वर्ष का आरंभ होता है तब बसंत ऋतु का भी आगमन होता है।
हिन्दू नव वर्ष के अन्य नाम-
हिन्दू नव वर्ष के दिन विभिन्न राज्य में भी नव वर्ष मनाया जाता है, वो भी अलग-अलग नामों से। नव वर्ष के प्रथम दिन (प्रतिपदा) को कहाँ और किस नाम से पुकारते हैं, इस प्रकार है-
महाराष्ट्र में - गुड़ी पड़वा (मराठी नववर्ष)
सिंधी समाज में - चेटीचंड
कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में - उगादी
गोवा और केरल में - संवत्सर पड़वो (कोंकणी समुदाय के लोग)
कश्मीर में - नवरेह (कश्मीरी नववर्ष)
मणिपुर में - सजिबु नोंगमा पानबा पर्व के रूप में मनाते हैं।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार वैसे तो हर साल 12 महीने का होता है, लेकिन इस बार अधिक मास होने से इस विक्रम संवत-2080 में 13 महीने होंगे। महीनों के नाम और तिथि-
चैत्र - 22 मार्च 2023 से 6 अप्रैल 2023
वैशाख - 7 अप्रैल 2023 से 5 मई 2023
ज्येष्ठ माह - 6 मई 2023 से 4 जून 2023
आषाढ़ - 5 जून 2023 से 3 जुलाई 2023
श्रावण - 4 जुलाई 2023 से 31 अगस्त 2023
(अधिक मास होने से यह महीना इस बार 60 दिन का होगा)
भाद्रपद - 1 सितंबर 2023 से 29 सितंबर 2023
आश्विन - 30 सितंबर 2023 से 28 अक्टूबर 2023
कार्तिक - 29 अक्टूबर 2023 से 27 नवंबर 2023
मार्गशीर्ष - 28 नवंबर 2023 से 26 दिसंबर 2023
पौष - 27 दिसंबर 2023 से 25 जनवरी 2024
माघ - 26 जनवरी 2024 से 24 फरवरी 2024
फाल्गुन - 25 फरवरी 2024 से 25 मार्च 2024
चैत्र नवरात्रि संवत-2028 पर संयोग-
नौ-दिवसीय चैत्र नवरात्रि संवत-2080 के मध्य तीन सर्वार्थ-सिद्धि योग 23 मार्च, 27 मार्च, 30 मार्च को लगेगा। जबकि अमृत-सिद्धि योग 27 और 30 मार्च को लगेगा। रवि-योग 24 मार्च, 26 मार्च और 29 मार्च को लगेगा और नवरात्रि के अंतिम दिन रामनवमी को गुरु-पुष्य योग भी रहेगा।
नौ-दिवसीय चैत्र नवरात्रि संवत-2080 के मध्य तीन सर्वार्थ-सिद्धि योग 23 मार्च, 27 मार्च, 30 मार्च को लगेगा। जबकि अमृत-सिद्धि योग 27 और 30 मार्च को लगेगा। रवि-योग 24 मार्च, 26 मार्च और 29 मार्च को लगेगा और नवरात्रि के अंतिम दिन रामनवमी को गुरु-पुष्य योग भी रहेगा।
यह चैत्र नवरात्रि पर्व तीन शुभ योग में मनाया जाएगा। नवरात्रि का आरंभ शुक्ल-योग में हो रहा है। इसके बाद ब्रह्म-योग आरंभ होगा। ब्रह्म-योग के बाद इंद्र-योग भी लगेगा। इन योगों में देवी की पूजा-अर्चना अत्यंत शुभ-फलदायी मानी जाती है।
शुक्ल योग- प्रात: 9:18 बजे तक।
ब्रह्म योग- प्रातः 9:19 बजे से अगले दिन प्रातः 6 बजे तक रहेगा।
इंद्र योग- ब्रह्म-योग के बाद इंद्र योग प्रारंभ होगा।
चैत्र नवरात्रि कलश / घट स्थापना शुभ मुहूर्त
चैत्र नवरात्रि घटस्थापना के मुहूर्त का शुभारंभ 22 मार्च प्रातः 6:23 बजे से 7:32 बजे तक (1 घंटा 9 मिनट) रहेगी। यद्यपि चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि 21 मार्च को रात 10:52 बजे से आरंभ हो रही है और प्रतिपदा तिथि का समापन 22 मार्च को रात 8:20 बजे पर होगा।
शुक्ल योग- प्रात: 9:18 बजे तक।
ब्रह्म योग- प्रातः 9:19 बजे से अगले दिन प्रातः 6 बजे तक रहेगा।
इंद्र योग- ब्रह्म-योग के बाद इंद्र योग प्रारंभ होगा।
चैत्र नवरात्रि कलश / घट स्थापना शुभ मुहूर्त
चैत्र नवरात्रि घटस्थापना के मुहूर्त का शुभारंभ 22 मार्च प्रातः 6:23 बजे से 7:32 बजे तक (1 घंटा 9 मिनट) रहेगी। यद्यपि चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि 21 मार्च को रात 10:52 बजे से आरंभ हो रही है और प्रतिपदा तिथि का समापन 22 मार्च को रात 8:20 बजे पर होगा।
ब्रह्म मुहूर्त- प्रात: 5:06 से 05:54 तक।
अमृत काल- सुबह 11:07 से 12:35 तक।
विजय मुहूर्त- दोपहर 2:47 से 3:35 बजे तक।
सन्ध्या मुहूर्त- सायं 6:50 से 8:01 बजे तक।
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विजय मुहूर्त- दोपहर 2:47 से 3:35 बजे तक।
सन्ध्या मुहूर्त- सायं 6:50 से 8:01 बजे तक।
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नवरात्रि से पूर्व विशेष आग्रह अपील- ब्राह्मण या वैदिक विद्वान से किसी भी पूजा-पाठ के लिए यथासंभव सम्मानपूर्वक दक्षिणा देकर संतुष्ट करें, क्योंकि उसने कर्मकांड की शिक्षा ली है, आपके पूजा-पाठ के लिए समय-ऊर्जा दे रहा है, यह उसकी आजीविका है या परिवार के भरण-पोषण का माध्यम भी है - अवैतनिक संपादक रा.पाठक 8109107075 - वाट्सएप
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नव संवत्सर-2080 की विशेषता-
-.पौराणिक मान्यतानुसार, विक्रम संवत के प्रथम दिन ब्रह्माजी ने इस सृष्टि की रचना की थी। श्रीराम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी विक्रम संवत के प्रथम दिन हुआ। हिंदू नववर्ष के प्रथम दिन से ही नया पंचांग आरंभ होता है।
- विक्रम संवत कैलेंडर का पहला माह चैत्र और 12वां या अंतिम माह फाल्गुन होता है। इस कैलेंडर के तिथियों की गणनाएं पंचांग के आधार पर होती हैं। विक्रम संवत से 57 वर्ष पीछे है अंग्रेजी कैलेंडर।
- विक्रम संवत में प्रत्येक माह 30 दिन का होता है और सात दिनों का एक सप्ताह होता है। इस कैलेंडर में तिथि की गणना होती है। इसी विक्रम संवत कैलेंडर को आधार मानकर अन्य धर्म के लोगों ने अपने कैलेंडर बनाए।
- विक्रम संवत की प्रत्येक तिथि यानी दिन की गणना सूर्योदय को आधार मानकर किया जाता है. हिंदू कैलेंडर का हर दिन सूर्योदय से आरंभ होता है एवं अगले सूर्योदय तक मान्य होता है। इसलिए तिथि (प्रतिपदा, द्वितीया... एकादशी... अमावस्या या पूर्णिमा) जिस दिन सूर्योदय होता है (उदया तिथि) उसी दिन से तिथि आरंभ होना मानते है। जैसे- चैत्र नवरात्रि प्रतिपदा एक अप्रैल दिन में लगेगी, परन्तु उदय तिथि के कारण दो अप्रैल को मानी जाएगी)।
- विक्रम संवत के एक माह के दो पक्ष होते हैं. पहला कृष्ण पक्ष जिसका अंतिम दिन (15वां दिन) अवश्य होता है. दूसरा पखवाड़ा या पक्ष- शुक्ल पक्ष होता है, जिसका अंतिम 15वां दिन पूर्णिमा होता है।
वर्षों पूर्व दुर्गाजी की यह आरती अब सुनाई नहीं देती ! कितनी मधुर और आनंदित कर देने वाली स्वर-लहरियाँ, जो अब डी.जे. आदि के कर्कश स्वर में ओझल हो गई।
-.पौराणिक मान्यतानुसार, विक्रम संवत के प्रथम दिन ब्रह्माजी ने इस सृष्टि की रचना की थी। श्रीराम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी विक्रम संवत के प्रथम दिन हुआ। हिंदू नववर्ष के प्रथम दिन से ही नया पंचांग आरंभ होता है।
- विक्रम संवत कैलेंडर का पहला माह चैत्र और 12वां या अंतिम माह फाल्गुन होता है। इस कैलेंडर के तिथियों की गणनाएं पंचांग के आधार पर होती हैं। विक्रम संवत से 57 वर्ष पीछे है अंग्रेजी कैलेंडर।
- विक्रम संवत में प्रत्येक माह 30 दिन का होता है और सात दिनों का एक सप्ताह होता है। इस कैलेंडर में तिथि की गणना होती है। इसी विक्रम संवत कैलेंडर को आधार मानकर अन्य धर्म के लोगों ने अपने कैलेंडर बनाए।
- विक्रम संवत की प्रत्येक तिथि यानी दिन की गणना सूर्योदय को आधार मानकर किया जाता है. हिंदू कैलेंडर का हर दिन सूर्योदय से आरंभ होता है एवं अगले सूर्योदय तक मान्य होता है। इसलिए तिथि (प्रतिपदा, द्वितीया... एकादशी... अमावस्या या पूर्णिमा) जिस दिन सूर्योदय होता है (उदया तिथि) उसी दिन से तिथि आरंभ होना मानते है। जैसे- चैत्र नवरात्रि प्रतिपदा एक अप्रैल दिन में लगेगी, परन्तु उदय तिथि के कारण दो अप्रैल को मानी जाएगी)।
- विक्रम संवत के एक माह के दो पक्ष होते हैं. पहला कृष्ण पक्ष जिसका अंतिम दिन (15वां दिन) अवश्य होता है. दूसरा पखवाड़ा या पक्ष- शुक्ल पक्ष होता है, जिसका अंतिम 15वां दिन पूर्णिमा होता है।
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नवरात्रि प्रतिपदा या गुड़ी पड़वा को करें उपाय-
गंगाजल छिड़कें- हिंदू नववर्ष के पहले दिन चैत्र-प्रतिपदा या गुड़ी पड़वा के दिन प्रातःकाल पूजन के बाद पूरे घर में गंगाजल छिड़कें। फिर मां दुर्गा का ध्यान करें। ऐसा करने से घर-परिवार में प्रसन्नता एवं माता की कृपा बनी रहेगी।
हनुमानजी को भोग लगाएं- शनिवार (25 मार्च) के दिन बजरंगबली को प्रसन्न करने गुड़ में चमेली का तेल मिलाकर भोग लगाएं। फिर हनुमान चालीसा पढ़ते हुए बजरंगबली की सात परिक्रमा करें। इससे आपको दु:खों से कमी / मुक्ति मिलेगी।
हरिद्रा के दाने डालें- प्रतिपदा या गुड़ी पड़वा वाले दिन आपकी दुकान या जिस जगह पर आप व्यापार करते हैं उसके मुख्य द्वार के दोनों तरफ हरिद्रा के कुछ दाने डाल दें. ये उपाय करने से आपके घर में अचानक ही धन आगमन शुरू हो जाएगा।
गणपति मंदिर- गुड़ी पड़वा के दिन गणेश मंदिर जाकर भगवान गणेश को पांच सुपारी और 21 दुर्वा अर्पित करें। ये उपाय करने से पूरे वर्ष आपको धन की कमी नहीं होगी।
चावल का दान- यदि व्यापार में अनावश्यक रूप से बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं, तो गुड़ी पड़वा के दिन घर की किसी छोटी कन्या से एक कटोरी साबुत चावल किसी निर्धन व्यक्ति को दान करें।
नवरात्रि प्रतिपदा या गुड़ी पड़वा को करें उपाय-
गंगाजल छिड़कें- हिंदू नववर्ष के पहले दिन चैत्र-प्रतिपदा या गुड़ी पड़वा के दिन प्रातःकाल पूजन के बाद पूरे घर में गंगाजल छिड़कें। फिर मां दुर्गा का ध्यान करें। ऐसा करने से घर-परिवार में प्रसन्नता एवं माता की कृपा बनी रहेगी।
हनुमानजी को भोग लगाएं- शनिवार (25 मार्च) के दिन बजरंगबली को प्रसन्न करने गुड़ में चमेली का तेल मिलाकर भोग लगाएं। फिर हनुमान चालीसा पढ़ते हुए बजरंगबली की सात परिक्रमा करें। इससे आपको दु:खों से कमी / मुक्ति मिलेगी।
हरिद्रा के दाने डालें- प्रतिपदा या गुड़ी पड़वा वाले दिन आपकी दुकान या जिस जगह पर आप व्यापार करते हैं उसके मुख्य द्वार के दोनों तरफ हरिद्रा के कुछ दाने डाल दें. ये उपाय करने से आपके घर में अचानक ही धन आगमन शुरू हो जाएगा।
गणपति मंदिर- गुड़ी पड़वा के दिन गणेश मंदिर जाकर भगवान गणेश को पांच सुपारी और 21 दुर्वा अर्पित करें। ये उपाय करने से पूरे वर्ष आपको धन की कमी नहीं होगी।
चावल का दान- यदि व्यापार में अनावश्यक रूप से बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं, तो गुड़ी पड़वा के दिन घर की किसी छोटी कन्या से एक कटोरी साबुत चावल किसी निर्धन व्यक्ति को दान करें।
माँ का स्वरुप के अनुरूप पूजा की वस्तु-
नवरात्रि में देवी दुर्गा को प्रतिदिन किस चीज का भोग लगाएं, जिससे उनकी कृपा मिले, कष्ट व समस्याओं से मुक्ति मिले, सुख-शांति, धन-वैभव की प्राप्ति हो, इस प्रकार है-
प्रतिपदा की पूजा- देवी की साधना सदैव गौ-घृत से षोडशोपचार पूजा करें। गाय का घी अर्पण करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं, विशेषरूप से आरोग्य लाभ होता है।
द्वितीया की पूजा- माता को शक्कर का भोग लगाकर उसका विशेष रूप से दान करना चाहिए. मान्याता है कि इस दिन शक्कर का दान करने से आयु बढ़ती है।
तृतीया की पूजा- दूध का महत्व होता है। माता की पूजा में विशेषरूप से दूध का उपयोग करें। फिर उस दूध को किसी ब्राह्मण को दान कर दें। दूध का दान दुःखों से मुक्ति का परम साधन है।
चतुर्थी की पूजा- देवी-पूजा में विशेष रूप से मालपुआ का नैवेद्य अर्पण करें। फिर इसे किसी सुयोग्य बाह्मण को दान कर दें। चतुर्थी को मालपुआ का दान करने से बुद्धि बल बढ़ता है।
पंचमी की पूजा का- देवी भगवती को केले का नैवेद्य चढ़ावें और यह प्रसाद किसी ब्राह्मण को दान करें। इससे विवेक बढ़ता है, निर्णय-शक्ति में असाधारण विकास होता है।
षष्ठी की पूजा- माता को शहद चढ़ाने का विशेष महत्व है। उस शहद को किसी ब्राह्मण को दान करने से व्यक्ति का सौंदर्य व आकर्षण बढ़ता है, समाज में उसको यश मिलता है।
सप्तमी की पूजा- विशेषरूप से गुड़ का नैवेद्य माँ को अर्पण करें। फिर गुड़ चढ़कार किसी ब्राह्मण को दान करने से जीवन के शोक, रोग दूर होते हैं, आकस्मिक विपत्ति से रक्षा होती है।
अष्टमी की पूजा- भगवती को नारियल का भोग अवश्य लगाये। इससे नाना प्रकार के पाप और पीड़ा का शमन होता है।
नवमी की पूजा- माता की पूजा धान के लावा से कर इसे किसी ब्राह्मण को दान करने से साधक को लोक–परलोक का सुख प्राप्त होता है।
द्वितीया की पूजा- माता को शक्कर का भोग लगाकर उसका विशेष रूप से दान करना चाहिए. मान्याता है कि इस दिन शक्कर का दान करने से आयु बढ़ती है।
तृतीया की पूजा- दूध का महत्व होता है। माता की पूजा में विशेषरूप से दूध का उपयोग करें। फिर उस दूध को किसी ब्राह्मण को दान कर दें। दूध का दान दुःखों से मुक्ति का परम साधन है।
चतुर्थी की पूजा- देवी-पूजा में विशेष रूप से मालपुआ का नैवेद्य अर्पण करें। फिर इसे किसी सुयोग्य बाह्मण को दान कर दें। चतुर्थी को मालपुआ का दान करने से बुद्धि बल बढ़ता है।
पंचमी की पूजा का- देवी भगवती को केले का नैवेद्य चढ़ावें और यह प्रसाद किसी ब्राह्मण को दान करें। इससे विवेक बढ़ता है, निर्णय-शक्ति में असाधारण विकास होता है।
षष्ठी की पूजा- माता को शहद चढ़ाने का विशेष महत्व है। उस शहद को किसी ब्राह्मण को दान करने से व्यक्ति का सौंदर्य व आकर्षण बढ़ता है, समाज में उसको यश मिलता है।
सप्तमी की पूजा- विशेषरूप से गुड़ का नैवेद्य माँ को अर्पण करें। फिर गुड़ चढ़कार किसी ब्राह्मण को दान करने से जीवन के शोक, रोग दूर होते हैं, आकस्मिक विपत्ति से रक्षा होती है।
अष्टमी की पूजा- भगवती को नारियल का भोग अवश्य लगाये। इससे नाना प्रकार के पाप और पीड़ा का शमन होता है।
नवमी की पूजा- माता की पूजा धान के लावा से कर इसे किसी ब्राह्मण को दान करने से साधक को लोक–परलोक का सुख प्राप्त होता है।
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तिथि / दिन के अनुसार देवी के मंत्र-
माँ भगवती के मंत्र (लाल रंग में छपे मंत्रों का विशेष महत्व होता है, अतः आप मंत्र को यहाँ अपने मोबाइल या कंप्यूटर को देखकर जप कर सकते हैं)
माँ शैलपुत्री- प्रतिपदा अर्थात प्रथम दिन माँ शैलपुत्री धन-धान्य, ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य तथा मोक्ष की देवी मानी जाती हैं। माँ शैलपुत्री का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:
माँ ब्रह्मचारिणी- संयम, तप, वैराग्य तथा विजय की देवी मानी जाती हैं. माता का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:
नवरात्रि की पूजा में इनका करें पालन-
- चैत्र नवरात्रि पर्यन्त 9 दिन घर में साफ-सफाई रखें। जिससे मां दुर्गा की कृपा से घर में सुख-समृद्धि और सकारात्मकता बनी रहेगी।
- यदि आप नवरात्रि में व्रत रख रहे हैं और घटस्थापना कर रहे हैं, तो घर में तामसिक भोजन कदापि न पकाएं और न ही बाहर से लाएं। घर में शुद्धता और पवित्रता का पूरा ध्यान रखें।
- चैत्र नवरात्रि में कपड़ों का भी विशेष ध्यान रखें। मां दुर्गा की पूजा करते समय लाल, पीले, नारंगी, गुलाबी जैसे शुभ रंग ही पहनें। काले या नीले रंग के कपड़े भूलकर भी न पहनें।
- यदि नवरात्रि के 9 दिन अखंड ज्योति जला रहे हैं, तो घर को सूना न छोड़ें। रात के समय घर में किसी न किसी का रहना आवश्यक है, ताकि ज्योति की उचित देख-रेख हो सके।
- नवरात्रि की अष्टमी या नवमी के दिन हवन और कन्या पूजन जरूर करें। 2 से 9 वर्ष तक की कन्याओं को सम्मान पूर्वक भोजन करवाकर उनका आशीर्वाद लें। साथ ही सामर्थ्य अनुसार भेंट दें।
- नवरात्रि के 9 दिन तक रोजाना दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। दुर्गा कवच का पाठ जरूर करें। ऐसा करने से माता की कृपा आपको सुख-समृद्धि प्राप्त होगी।
माँ चन्द्रघंटा- माता चन्द्रघंटा की पूजा से दुखों, कष्टों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्ति होती है।माता का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:
माँ कूष्मांडा- रोग, दोष, शोक का नाश करने वाली तथा यश, बल व आयु की वृद्धि करनी वाली देवी हैं। माता का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:
माँ स्कंदमाता- सुख-शांति व मोक्ष प्रदान करने वाली हैं। माता का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:
माँ कात्यायनी- भय, रोग, शोक-संतापों से मुक्ति तथा मोक्ष दिलाने वाली हैं। माता का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम:
माँ कालरात्रि- माता कालरात्रि शत्रुओं का नाश, बाधा दूर कर सुख-शांति प्रदान कर मोक्ष देने वाली मानी जाती हैं। इनका मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:
माँ महागौरी- माता महागौरी की पूजा साधक अलौकिक सिद्धियां प्राप्त करने के लिए करते हैं। इनका मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:
माँ सिद्धिदात्री- नवरात्रि के अंतिम दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती हैं। माँ सिद्धिदात्री सभी सिद्धियां प्रदान करने वाली हैं। माता का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्यै नम:
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संरक्षक / Patron चाहिए- राष्ट्रहित एवं सनातन हित में हम "धर्म नगरी" / DN News के प्रसार, डिजिटल चैनल के प्रसार कर रहे हैं। इसके साथ एक तथ्यात्मक सूचनात्मक व रोचक (factual & informative & interesting), राष्ट्रवादी समसामयिक मैगजीन भी निकालने जा रहे हैं। इसके लिए हमें पूंजी या निवेश की आवश्यकता है। इस हेतु सहयोग "संरक्षक" या इंवेस्टर या धर्मनिष्ठ उदार संत-धर्माचार्य चाहिए, क्योंकि हमारा प्रकाशन एवं सभी गतिविधियाँ अव्यावसायिक (non-commercial) हैं। -प्रबंध संपादक 9752404020, 6261868110
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- चैत्र नवरात्रि पर्यन्त 9 दिन घर में साफ-सफाई रखें। जिससे मां दुर्गा की कृपा से घर में सुख-समृद्धि और सकारात्मकता बनी रहेगी।
- यदि आप नवरात्रि में व्रत रख रहे हैं और घटस्थापना कर रहे हैं, तो घर में तामसिक भोजन कदापि न पकाएं और न ही बाहर से लाएं। घर में शुद्धता और पवित्रता का पूरा ध्यान रखें।
- चैत्र नवरात्रि में कपड़ों का भी विशेष ध्यान रखें। मां दुर्गा की पूजा करते समय लाल, पीले, नारंगी, गुलाबी जैसे शुभ रंग ही पहनें। काले या नीले रंग के कपड़े भूलकर भी न पहनें।
- यदि नवरात्रि के 9 दिन अखंड ज्योति जला रहे हैं, तो घर को सूना न छोड़ें। रात के समय घर में किसी न किसी का रहना आवश्यक है, ताकि ज्योति की उचित देख-रेख हो सके।
- नवरात्रि की अष्टमी या नवमी के दिन हवन और कन्या पूजन जरूर करें। 2 से 9 वर्ष तक की कन्याओं को सम्मान पूर्वक भोजन करवाकर उनका आशीर्वाद लें। साथ ही सामर्थ्य अनुसार भेंट दें।
- नवरात्रि के 9 दिन तक रोजाना दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। दुर्गा कवच का पाठ जरूर करें। ऐसा करने से माता की कृपा आपको सुख-समृद्धि प्राप्त होगी।
देवी के स्वरूपों का महत्व (वैज्ञानिक दृष्टिकोण से)-
शैलपुत्री
शैल यानी पहाड़। पहाड़ घनता का प्रतीक है। शैलपुत्री का विकार घनता का ही होगा और वह जब काल और समय में प्रवेश करेगी तो जो ऊर्जा बनती है, वह ऊर्जा होती है स्थिज ऊर्जा।
ब्रह्मचारिणी
ब्रह्मचारिणी यानी ब्रह्मांड में विचरण करने वाली। विचरण से विकास होता है। उसका जो विकार निकलेगा, वह विकासन का विकार होगा और वह सृष्टि में प्रविष्ट होने पर वह गतिज ऊर्जा में परिवर्तित होती है।
चंद्रघंटा
घंटा यानी ध्वनि और ध्वनि यानी प्रसारण। उसका विकार प्रसारण का विकार होगा और वह काल और समय में प्रविष्ट होने पर ध्वनि ऊर्जा बनती है।
कुष्मांडा
कुष्मांडा यानी सीताफल। उसका स्वरूप गर्भ जैसा है और उसका विकार गर्भ का विकार होगा। उससे गर्भ का ही निर्माण होगा। वह जब काल और समय में प्रवेश करेगा, उसे हम नाभीकीय ऊर्जा के नाम से जानते हैं।
स्कंदमाता
स्कंदमाता माँ है और कार्तिकेय रूपी संतान को गोद लिए है। वह वात्सल्य का प्रतीक है। उसका विकार वात्सल्य रूपी आकर्षण का विकार होगा। वह आकर्षण का विकार काल और समय में प्रवेश करने पर चुंबकीय ऊर्जा बनती है।
कात्यायिनी
कणों के निर्माण के बाद उनके आकर्षण से संकोचन प्रारंभ होता है। इसलिए कात्यायिनी का विकार संकोचन का विकार होता है। वह जब काल और समय में प्रवेश करेगी तो आण्विक ऊर्जा बनती है।
कालरात्रि
अणुओं से कणों का निर्माण होता है। बहुत सारे कण एकत्र हों तो धूल यानी रज का निर्माण होता है। धूल से अंधेरा हो जाता है। इसलिए वह कालरात्रि है। इसका विकार है विकल्पन का वह जब समय और काल के आयाम में प्रवेश करता है तो उससे ताप ऊर्जा कहते हैं।
महागौरी
कणों के जो बादल बनते हैं, उनका एकीकरण होता है। उस एकीकरण से आकाशगंगा का निर्माण होता है। आकाशगंगाओं के निर्माण होने पर नाना प्रकार के तारे, नाना प्रकार के सूर्य प्रकट हो जाते हैं। इससे ब्रह्मांड में एक प्रकाश फैल जाता है। इसलिए उसे महागौरी कहते हैं। महागौरी का विकार ज्योति है और वह जब काल और समय में प्रवेश करेगी तो उससे विद्युतीय ऊर्जा का निर्माण होगा।
सिद्धिदात्री
आकाशगंगा के निर्माण के बाद जब यह पृथिवी आदि सभी पिंड बन जाएंगे तो इसमें रासायनिक प्रक्रिया होने लगती है जिससे जीव की उत्पत्ति होने लगती है। साथ ही रासायनिक प्रक्रियाओं के कारण हाइड्रोजन, आक्सीजन आदि बनते हैं और अंतरिक्ष में फार्मल्डीहाइड के बादल बनने लगते हैं जिनसे जीवन की उत्पत्ति होती है। चूंकि ये रासायनिक प्रक्रियाएं होती हैं और उनसे जीवन बनता है, इसलिए नौवीं दुर्गा को सिद्धिदात्री कहा जाता है। यानी सृष्टि निर्माण की सारी प्रक्रियाओं की सिद्धि के रूप में प्रकट होने वाली। उसका विकार पुष्टि और पूर्णता का होगा और उससे रासायनिक ऊर्जा का निर्माण होगा।
शैल यानी पहाड़। पहाड़ घनता का प्रतीक है। शैलपुत्री का विकार घनता का ही होगा और वह जब काल और समय में प्रवेश करेगी तो जो ऊर्जा बनती है, वह ऊर्जा होती है स्थिज ऊर्जा।
ब्रह्मचारिणी
ब्रह्मचारिणी यानी ब्रह्मांड में विचरण करने वाली। विचरण से विकास होता है। उसका जो विकार निकलेगा, वह विकासन का विकार होगा और वह सृष्टि में प्रविष्ट होने पर वह गतिज ऊर्जा में परिवर्तित होती है।
चंद्रघंटा
घंटा यानी ध्वनि और ध्वनि यानी प्रसारण। उसका विकार प्रसारण का विकार होगा और वह काल और समय में प्रविष्ट होने पर ध्वनि ऊर्जा बनती है।
कुष्मांडा
कुष्मांडा यानी सीताफल। उसका स्वरूप गर्भ जैसा है और उसका विकार गर्भ का विकार होगा। उससे गर्भ का ही निर्माण होगा। वह जब काल और समय में प्रवेश करेगा, उसे हम नाभीकीय ऊर्जा के नाम से जानते हैं।
स्कंदमाता
स्कंदमाता माँ है और कार्तिकेय रूपी संतान को गोद लिए है। वह वात्सल्य का प्रतीक है। उसका विकार वात्सल्य रूपी आकर्षण का विकार होगा। वह आकर्षण का विकार काल और समय में प्रवेश करने पर चुंबकीय ऊर्जा बनती है।
कात्यायिनी
कणों के निर्माण के बाद उनके आकर्षण से संकोचन प्रारंभ होता है। इसलिए कात्यायिनी का विकार संकोचन का विकार होता है। वह जब काल और समय में प्रवेश करेगी तो आण्विक ऊर्जा बनती है।
कालरात्रि
अणुओं से कणों का निर्माण होता है। बहुत सारे कण एकत्र हों तो धूल यानी रज का निर्माण होता है। धूल से अंधेरा हो जाता है। इसलिए वह कालरात्रि है। इसका विकार है विकल्पन का वह जब समय और काल के आयाम में प्रवेश करता है तो उससे ताप ऊर्जा कहते हैं।
महागौरी
कणों के जो बादल बनते हैं, उनका एकीकरण होता है। उस एकीकरण से आकाशगंगा का निर्माण होता है। आकाशगंगाओं के निर्माण होने पर नाना प्रकार के तारे, नाना प्रकार के सूर्य प्रकट हो जाते हैं। इससे ब्रह्मांड में एक प्रकाश फैल जाता है। इसलिए उसे महागौरी कहते हैं। महागौरी का विकार ज्योति है और वह जब काल और समय में प्रवेश करेगी तो उससे विद्युतीय ऊर्जा का निर्माण होगा।
सिद्धिदात्री
आकाशगंगा के निर्माण के बाद जब यह पृथिवी आदि सभी पिंड बन जाएंगे तो इसमें रासायनिक प्रक्रिया होने लगती है जिससे जीव की उत्पत्ति होने लगती है। साथ ही रासायनिक प्रक्रियाओं के कारण हाइड्रोजन, आक्सीजन आदि बनते हैं और अंतरिक्ष में फार्मल्डीहाइड के बादल बनने लगते हैं जिनसे जीवन की उत्पत्ति होती है। चूंकि ये रासायनिक प्रक्रियाएं होती हैं और उनसे जीवन बनता है, इसलिए नौवीं दुर्गा को सिद्धिदात्री कहा जाता है। यानी सृष्टि निर्माण की सारी प्रक्रियाओं की सिद्धि के रूप में प्रकट होने वाली। उसका विकार पुष्टि और पूर्णता का होगा और उससे रासायनिक ऊर्जा का निर्माण होगा।
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Disclaimer- इस लेख में समस्त जानकारियां और तथ्य ज्योतिर्विदों एवं धर्मग्रंथों पुस्तकों से साभार लिया गया है। मंत्रों का जप या अनुष्ठान से पूर्व कर्मकांडी ब्राह्मण या विद्वान से संपर्क करें, उनका मत अवश्य लें।
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तिथि के अनुरूप पूजा सामग्री-
नवरात्रि में देवी दुर्गा को प्रतिदिन किस चीज का भोग लगाएं, जिससे उनकी कृपा मिले, कष्ट व समस्याओं से मुक्ति मिले, सुख-शांति, धन-वैभव की प्राप्ति हो, इस प्रकार है-
प्रतिपदा की पूजा- देवी की साधना सदैव गौ-घृत से षोडशोपचार पूजा करें। गाय का घी अर्पण करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं, विशेषरूप से आरोग्य लाभ होता है।
द्वितीया की पूजा- माता को शक्कर का भोग लगाकर उसका विशेष रूप से दान करना चाहिए। मान्याता है कि इस दिन शक्कर का दान करने से आयु बढ़ती है।
तृतीया की पूजा- दूध का महत्व होता है। माता की पूजा में विशेषरूप से दूध का उपयोग करें। फिर उस दूध को किसी ब्राह्मण को दान कर दें। दूध का दान दुःखों से मुक्ति का परम साधन है।
चतुर्थी की पूजा- देवी-पूजा में विशेष रूप से मालपुआ का नैवेद्य अर्पण करें। फिर इसे किसी सुयोग्य बाह्मण को दान कर दें। चतुर्थी को मालपुआ का दान करने से बुद्धि बल बढ़ता है।
पंचमी की पूजा का- देवी भगवती को केले का नैवेद्य चढ़ावें और यह प्रसाद किसी ब्राह्मण को दान करें। इससे विवेक बढ़ता है, निर्णय-शक्ति में असाधारण विकास होता है।
षष्ठी की पूजा- माता को शहद चढ़ाने का विशेष महत्व है। उस शहद को किसी ब्राह्मण को दान करने से व्यक्ति का सौंदर्य व आकर्षण बढ़ता है, समाज में उसको यश मिलता है।
सप्तमी की पूजा- विशेषरूप से गुड़ का नैवेद्य माँ को अर्पण करें। फिर गुड़ चढ़कार किसी ब्राह्मण को दान करने से जीवन के शोक, रोग दूर होते हैं, आकस्मिक विपत्ति से रक्षा होती है।
अष्टमी की पूजा- भगवती को नारियल का भोग अवश्य लगाये। इससे नाना प्रकार के पाप और पीड़ा का शमन होता है।
नवमी की पूजा- माता की पूजा धान के लावा से कर इसे किसी ब्राह्मण को दान करने से साधक को लोक–परलोक का सुख प्राप्त होता है।
द्वितीया की पूजा- माता को शक्कर का भोग लगाकर उसका विशेष रूप से दान करना चाहिए। मान्याता है कि इस दिन शक्कर का दान करने से आयु बढ़ती है।
तृतीया की पूजा- दूध का महत्व होता है। माता की पूजा में विशेषरूप से दूध का उपयोग करें। फिर उस दूध को किसी ब्राह्मण को दान कर दें। दूध का दान दुःखों से मुक्ति का परम साधन है।
चतुर्थी की पूजा- देवी-पूजा में विशेष रूप से मालपुआ का नैवेद्य अर्पण करें। फिर इसे किसी सुयोग्य बाह्मण को दान कर दें। चतुर्थी को मालपुआ का दान करने से बुद्धि बल बढ़ता है।
पंचमी की पूजा का- देवी भगवती को केले का नैवेद्य चढ़ावें और यह प्रसाद किसी ब्राह्मण को दान करें। इससे विवेक बढ़ता है, निर्णय-शक्ति में असाधारण विकास होता है।
षष्ठी की पूजा- माता को शहद चढ़ाने का विशेष महत्व है। उस शहद को किसी ब्राह्मण को दान करने से व्यक्ति का सौंदर्य व आकर्षण बढ़ता है, समाज में उसको यश मिलता है।
सप्तमी की पूजा- विशेषरूप से गुड़ का नैवेद्य माँ को अर्पण करें। फिर गुड़ चढ़कार किसी ब्राह्मण को दान करने से जीवन के शोक, रोग दूर होते हैं, आकस्मिक विपत्ति से रक्षा होती है।
अष्टमी की पूजा- भगवती को नारियल का भोग अवश्य लगाये। इससे नाना प्रकार के पाप और पीड़ा का शमन होता है।
नवमी की पूजा- माता की पूजा धान के लावा से कर इसे किसी ब्राह्मण को दान करने से साधक को लोक–परलोक का सुख प्राप्त होता है।
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संवत्सर के प्रथम दिन धार्मिक क्रियाकलाप, उनका आध्यात्मिक महत्व
सनातन हिन्दू धर्म का कोई भी त्यौहार आए, उसकी विशेषतानुसार एवं अपनी रीति-रिवाजों के अनुसार हम कुछ न कुछ करते ही रहते हैं। परंतु धर्म में बताई हुई ऐसी पारंपरिक कृतियों के पीछे का अध्यात्म शास्त्र समझने पर उसका महत्व हम समझ सकते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नव संवत्सरारम्भ अर्थात हिंदू नव वर्ष है।
अभ्यंग स्नान- संवत्सरारम्भ के दिन सुबह जल्दी उठकर प्रथम अभ्यंग स्नान या मांगलिक स्नान करना चाहिए । अभ्यंग स्नान करते समय देशकाल कथन किया जाता है।
बंदनवार लगाना- स्नान के बाद आम्रपत्तों का बंदनवार बनाकर, प्रत्येक दरवाजे के पास लाल फूलों के साथ बांधना चाहिए क्योंकि लाल रंग शुभ दर्शक है।
पूजा- पहले नित्य कर्म, देव पूजन किया जाता है। वर्ष प्रतिपदा को महाशांति की जाती है। शांति के प्रारंभ में ब्रह्मदेव की पूजा की जाती है, क्योंकि इस दिन ब्रह्मदेव ने विश्व की रचना की। इस दिन होम हवन, एवं ब्राह्मण संतर्पण किया जाता है। फिर अनंत रूपों में होनेवाले भगवान विष्णु की पूजा की जाती है "नमस्ते बहुरूपाय विष्णवे नमः" यह मंत्र बोलकर उन्हें नमस्कार किया जाता है। तत्पश्चात ब्राह्मण को दक्षिणा दी जाती है। संभव हो तो इतिहास, पुराण आदि ग्रंथ ब्राह्मण को दान दिये जाते हैं । यह शांति करने से समस्त पापों का नाश होता है, आयुष्य बढता है एवं धनधान्य की समृद्धि होती है।
ऐसा कहा जाता है संवत्सर पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है। आयु में वृद्धि होती है, सौभाग्य बढ़ता है एवं शांति प्राप्त होती है । इस दिन जो वार (अर्थात दिन) होता है उस दिन के देवता की भी पूजा की जाती है।
धर्मध्वज लगाना- इस दिन विजय के प्रतीक स्वरूप सूर्योदय के समय शास्त्र शुद्ध विधि से ध्वज लगाया जाता है। धर्मध्वज सूर्योदय के तुरंत बाद मुख्य दरवाजे के बाहर, परंतु बांस (घर के अंदर से देखने पर दाहिने हाथ की ओर) भूमि पर पाट रखकर उस पर खड़ी करनी चाहिए। ध्वज लगाते समय उसकी स्वस्तिक चिन्हों पर सामने थोड़ी सी झुकी हुई स्थिति में, ऊंचाई पर स्थापना करनी चाहिए। सूर्यास्त के समय गुड़ का भोग लगाकर धर्मध्वज नीचे उतारना चाहिए।
दान- याचकों को अनेक प्रकार का दान देना चाहिए। जैसे प्याऊ द्वारा जल दान, इससे पितर संतुष्ट होते हैं।
धर्म दान- धर्मदान सर्वश्रेष्ठ दान है, ऐसा शास्त्र बताता है। धर्मप्रसार करनेवाली संस्थाओं को दान देना उपयुक्त है l वर्तमान काल में धर्म शिक्षा देना यह समय की आवश्यकता है।
पंचांग श्रवण- ज्योतिषी की पूजा करके उनके द्वारा, अथवा किसी पंडित द्वारा नए वर्ष का पंचांग अर्थात वर्षफल का श्रवण किया जाता है। इस पंचांग श्रवण के फल का वर्णन इस प्रकार है-
तिथेश्च श्रीकरं प्रोक्तं वारादायुष्य वर्धनम।
नक्षत्राद्धरते पापं योगाद्रोग निवारणम्।।
करणाच्चिन्तितं कार्यं पंचांग फलमुत्तमम्।
एतेषां श्रवणान्नित्यं गंङ्गास्नानफलं लभेत।।
अर्थात, तिथि के श्रवण से लक्ष्मी प्राप्त होती है, वार (दिन) के श्रवण से आयुष्य बढ़ता है, नक्षत्र श्रवण से पाप नष्ट होते हैं, योग श्रवण से रोग नष्ट होते हैं, करण श्रवण से सोचे हुए कार्य पूर्ण होते हैं, ऐसा यह पंचांग श्रवण का उत्तम फल है। उसके नित्य श्रवण से गंगा स्नान का लाभ मिलता है।
नीम का प्रसाद- पंचांग श्रवण के बाद नीम का प्रसाद बांटा जाता है। यह प्रसाद नीम की पत्तियां, जीरा, हींग, भीगे हुए चने की दाल, एवं शहद इनको मिलाकर बनाया जाता है।
भूमि जोतना- इस दिन जमीन में हल चलाना चाहिए। हल चलाकर (जोतने की क्रिया से) नीचे की मिट्टी ऊपर आती है। मिट्टी के सूक्ष्म कणों पर प्रजापति लहरों का संस्कार होकर भूमि की उपजाऊ क्षमता अनेक गुना बढ़ जाती है। खेती के औजार एवं बैलों पर प्रजापति लहरें उत्पन्न करने वाले मंत्रों के साथ अक्षत डालनी चाहिए। खेतों में काम करने वाले लोगों को नए वस्त्र देने चाहिए, उस दिन खेतों में काम करने वाले लोगों एवं बैलों के भोजन में, पका हुआ कुम्हडा, मूंग की दाल, चावल, पूरण आदि पदार्थ होने चाहिए।
सुखदायक कार्य- अनेक प्रकार के मंगल गीत, वाद्य एवं महान व्यक्तियों की कथाएं सुनते हुए यह दिन आनंद पूर्वक व्यतीत करना चाहिए। वर्तमान समय में त्यौहार का अर्थ मौज-मस्ती करने का दिन इस तरह की कुछ संकल्पना हो गई है, परंतु हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार त्योहार का अर्थ है- "अधिक से अधिक चैतन्य सकारात्मकता प्राप्त करने का दिन" होता है । इसलिए त्यौहार के दिन सात्विक भोजन, सात्विक वस्त्र, आभूषण धारण तथा अन्य धार्मिक कृत्य करने के साथ ही सात्विक सुखदायक कार्य करना चाहिए ऐसा शास्त्र बतलाते हैं।
त्यौहार धार्मिक विधियों के दिन एवं संवत्सराम्भ जैसे शुभ दिन नया अथवा रेशमी वस्त्र, एवं गहने धारण करने से देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। वस्त्रों में आकर्षित देवताओं की तरंगे वस्त्र में दीर्घकाल तक रहते हैं और इन वस्तुओं को पहनने से देवताओं के तत्व का लाभ वर्ष भर प्राप्त होता है।
संवत्सरारम्भ के दिन की जाने वाली प्रार्थना- "हे ईश्वर आज आप की ओर से आने वाले शुभ आशीर्वाद एवं ब्रह्मांड से आने वाली सात्विक तरंगें मुझे अधिक से अधिक ग्रहण होने दीजिए, इन तरंगों को ग्रहण करने की मेरी क्षमता नहीं है, मैं संपूर्ण रुप से आपके शरण आया हूं, आप ही मुझे इन सात्विक तरंगों को ग्रहण करना सिखाइए, यही आपके चरणों में प्रार्थना है।"
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