चैत्र नवरात्रि : विवाहित महिलाओं के लिए माँ महागौरी का पूजन विशेष रूप से फलदायी, महाष्टमी पर हवन कैसे करें


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या देवी सर्वभू‍तेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थात, हे मां ! सर्वत्र विराजमान और मां गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे मां, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।

ध्यान मंत्र
श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥
अर्थात, मां दुर्गा का आठवां स्वरूप है महागौरी का। देवी महागौरी का अत्यंत गौर वर्ण हैं। इनके वस्त्र और आभूषण आदि भी सफेद ही हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। महागौरी का वाहन बैल है। देवी के दाहिने ओर के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। बाएं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनका स्वभाव अति शांत है।

सनातन हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि को विशेष स्थान दिया गया है, इसलिए इसके सभी दिनों में माता के स्वरूपों का पूजन किया जाता है। इनमें से चैत्र नवरात्रि के आठवें दिन को महाअष्टमी कहा जाता है। महा अष्टमी को चैत्र नवरात्रि के सबसे शुभ दिनों में से एक माना जाता है। अष्ठमी तिथि 29 मार्च को है और इस दिन मां दुर्गा के आठवें अवतार देवी महागौरी की पूजा की जाएगी। माता गौरी की पूजा का विशेष महत्व है। 

चैत्र नवरात्रि अष्टमी तिथि : शुभ मुहूर्त 
अष्टमी तिथि आरंभ - 28 मार्च, सायं 7.02 बजे से
अष्टमी तिथि समापन -29 मार्च 2023 रात 9.07 बजे  
उदया तिथि की मानें, तो दुर्गा अष्टमी का उपवास 29 मार्च, को रखा जाएगा और इस दिन दो बहुत शुभ संयोग- शोभन-योग और रवि-योग बन रहा है, जो भक्तों के जीवन में सकारात्मक प्रभाव लाएगा।
शोभन योग- 28 मार्च, रात्रि 11:36 से 29 मार्च प्रात: 12:13 तक
रवि योग- 29 मार्च, रात्रि 08:07 से 30 मार्च प्रातः 06:14 तक

महागौरी की पूजा विधि 
नवरात्रि में माता के आठवें स्वरूप- महागौरी  की पूजा की जाती है। यदि आप विधि-विधान से पूजन करती हैं, तो समस्त मनोकामनाओं को पूर्ति होती है। मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं के लिए माता गौरी का पूजन विशेष रूप से फलदायी होता है और जीवन में सौभाग्य के संकेत देता है।
इस दिन पूजन करने के लिए प्रातः जल्दी उठें और साफ़ वस्त्र धारण करें।
माता महागौरी की तस्वीर किसी चौकी पर स्थापित करें और माता को सिंदूर लगाएं।
महागौरी माता को सुहाग की सामग्री अर्पित करें और लाल फूल चढ़ाएं।
माता गौरी का ध्यान करते हुए उनके मंत्र ओम देवी महागौर्यै नम: का जाप करें।

अष्टमी को भी होता है कन्या पूजन 
कई लोग चैत्र अष्टमी के दिन अपनी कुलदेवी की पूजा करते हैं, वहीँ यदि इस दिन माता महागौरी का पूजन पूरे विधि-विधान से किया जाता है और उन्हें श्रृंगार की सामग्री चढ़ाई जाती है तो बहुत ह लाभदायक हो सकता है।
कई जगह इस दिन कन्या पूजन का विधान भी होता है। यदि आपके घर में कन्या पूजन अष्टमी तिथि के दिन ही होता है तो विधि-विधान से इस दिन कन्या पूजन करें और उन्हें भोजन कराएं। साथ ही, कन्याओं को उनकी पसंद के उपहार भी दें।
यदि आप इस दिन कन्या पूजन करती हैं तो इसी दिन व्रत का पारण भी करें। हालांकि यदि आप घरों में कलश की स्थापना करती हैं तो इस दिन इसका विसर्जन न करें बल्कि कलश विसर्जन हमेशा दशमी के दिन ही करें।

अष्टमी का महत्व 
ऐसी मान्यता है कि जो भक्त चैत्र नवरात्रि की अष्टमी तिथि के दिन माता गौरी का पूजन श्रद्धा भाव से करता है और माता की उनकी पसंद अनुसार भोग अर्पित करता है उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यही नहीं इस दिन सुहागिन स्त्रियां अखंड सौभाग्य की कामना में यदि श्रृंगार की सामग्री माता को अर्पित करती हैं तो इससे भी शुभ फल मिलते हैं। माता महागौरी मां के 9 रूपों और 10 महाविद्या सभी आदिशक्ति के अंश और स्वरूप हैं।

चूंकि भगवान शिव की अर्धांगिनी के रूप में महागौरी का पूजन होता है, इसलिए इस दिन श्रद्धा से पूजन करने से महादेव की भी विशेष कृपा दृष्टि प्राप्त होती है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार, शुंभ निशुंभ से पराजित होने के बाद देवताओं ने गंगा नदी के तट पर देवी महागौरी से ही अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की थी। ऐसी मान्यता है कि मां के इस रूप के पूजन से शारीरिक क्षमता का विकास होने के साथ मानसिक शांति भी मिलती है। महागौरी का पूजन उनके भक्तों के लिए विशेष रूप से फलदायी माना जाता है और इनके पूजन से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

आठवीं शक्ति माँ महागौरी  
पौराणिक कथाओं के अनुसार मां महागौरी ने कठिन तप कर गौरवर्ण प्राप्त किया था। मां की उत्पत्ति के समय इनकी आयु आठ वर्ष की थी जिस कारण इनका पूजन अष्टमी को किया जाता है।  मां अपने भक्तों के लिए अन्नपूर्णा स्वरूप है, मां धन वैभव, सुख शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं। मां का स्वरूप ब्राह्मण को उज्जवल करने वाला तथा शंख, चन्द्र व कुंद के फूल के समान उज्जवल है। मां वृषभवाहिनी (बैल) शांति स्वरूपा है।

मां ने शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया जिसके बाद उनका शरीर मिट्टी से ढक गया। आखिरकार भगवान महादेव उन पर प्रसन्न हुए और उन्हें पत्नी होने का आर्शीवाद प्रदान किया। भगवान शंकर ने इनके शरीर को गंगाजल से धोया जिसके बाद मां गौरी का शरीर विद्युत के समान गौर व दैदीप्यमान हो गया। इसी कारण इनका नाम महागौरी पड़ा।

मां संगीत व गायन से प्रसन्न होती है तथा इनके पूजन में संगीत अवश्य होता है। कहा जाता है, आज के दिन मां की आराधना सच्चे मन से होता तथा मां के स्वरूप में ही पृथ्वी पर आयी कन्याओं को भोजन करा उनका आर्शीवाद लेने से मां अपने भक्तों को आर्शीवाद अवश्य देती है। ये अमोघ फलदायिनी हैं और भक्तों के तमाम कल्मष धुल जाते हैं। पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। महागौरी का पूजन-अर्चन, उपासना-आराधना कल्याणकारी है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं। 
अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। 4 भुजाएं हैं और वाहन वृषभ है इसीलिए वृषारूढ़ा भी कहा गया है इनको। 
चैत्र नवरात्र‍ि में अष्टमी और नवमी का दिन महत्वपूर्ण होता है। इस दिन मां दुर्गा की विशेष पूजा, आरती और आराधना की जाती है। इस दिन कई घरों में और मंदिरों में हवन भी किया जाता है। यदि आप घर में हवन कर रहे हैं, तो जानिए कैसे करते हैं हवन...

हवन कुंड 
हवन करने के लिए आपके पास हवन कुंड होना चाहिए। यदि नहीं है, तो 8 ईंट जमाकर भी आप हवन कुंड बना सकते हैं। गाय के गोबर से स्थान को पवित्र करें। कुंड इस प्रकार बनाएं, कि वे बाहर से चौकोर रहें। लंबाई, चौड़ाई व गहराई समान हो। इसके चारों और नाड़ा बांध दें। फिर इस पर स्वास्तिक बनाकर इसकी पूजा करें। 

हाथ में गंगाजल लेकर सभी सामग्रियों पर छींटे मारें। कुंड के चारों तरफ एक-एक कुश रखें। नवरात्र पूजा की पूर्णता के लिए हवन करने जा रहे हैं इस बात का संकल्प लें।

हवन कुंड में आम की लकड़ी से अग्नि प्रज्वलित करते हैं। अग्नि प्रज्वलित करने के पश्चात इस पवित्र अग्नि में फल, शहद, घी, काष्ठ इत्यादि पदार्थों की आहुति दी जाती है।
हवन सामग्री जितनी हो सके अच्‍छा है, अन्यथा काष्ठ, समिधा और घी से ही काम चला सकते हैं। आम या ढाक की सूखी लकड़ी। नवग्रह की नौ समिधा- आक, ढाक, कत्था, चिरचिटा, पीपल, गूलर, जांड, दूब, कुशा।

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हवनकुंड में आम की सूखी लकड़ियां रखें। रूई में घी लगाकर लकड़ी के ऊपर रखें। कपूर जलाकर हवनकुंड की ज्वाला प्रज्जवलित करें। इसके बाद बाद घी से 3 या 5 बार गणेशजी, पंचदेवता, नवग्रह, क्षेत्रपाल, ग्राम देवता एवं नगर देवता को आहुति दें। इसके बाद ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डयै विच्चै नमः’ मंत्र से माता के नाम से आहुति दें।

हवन विधि मंत्र
माता दुर्गा के लिए हवन करते समय ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डयै विच्चै नमः’ इस बीज मंत्र से 108 बार हवन कुंड में हविष्य डालें। तत्पश्चात खीर और शहद मिलाकर इसी मंत्र से हवन कुंड में आहुति दें। अंत में शिवजी और ब्रह्माजी के नाम से आहुति दें। हवन के बाद आरती करें और हवन का भभूत सभी लोग लगाएं। हवन पूर्ण होने पर कन्या भोजन करवाना चाहिए।

हवन सामग्री की सूची (List)- 
कूष्माण्ड (पेठा), 15 पान, 15 सुपारी, लौंग 15 जोड़े, छोटी इलायची 15, कमल गट्ठे 15, जायफल 2, मैनफल 2, पीली सरसों, पंच मेवा, सिन्दूर, उड़द मोटा, शहद 50 ग्राम, ऋतु फल 5, केले, नारियल 1, गोला 2, गूगल 10 ग्राम, लाल कपड़ा, चुन्नी, गिलोय, सराईं 5, आम के पत्ते, सरसों का तेल, कपूर, पंचरंग, केसर, लाल चंदन, सफेद चंदन, सितावर, कत्था, भोजपत्र, काली मिर्च, मिश्री, अनारदाना। चावल 1.5 किलो, घी एक किलो, जौ 1.5 किलो, तिल 2 किलो, बूरा तथा सामग्री श्रद्धा के अनुसार। अगर, तगर, नागर मोथा, बालछड़, छाड़छबीला, कपूर कचरी, भोजपत्र, इन्द जौ, सितावर, सफेद चन्दन बराबर मात्रा में थोड़ ही सामग्री में मिलावें।

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हवन विधि
हवन करने से पूर्व स्वच्छता का ख्याल रखें। सबसे पहले दैनिक पूजा करने के पश्चात अग्नि स्थापना करें। फिर आम की चौकोर लकड़ी लगाकर, कपूर रखकर जला दें। उसके बाद इन मंत्रों से आहुति देते हुए हवन आरंभ करें-

ॐ आग्नेय नम: स्वाहा।
ॐ गणेशाय नम: स्वाहा।
ॐ गौरियाय नम: स्वाहा।
ॐ नवग्रहाय नम: स्वाहा।
ॐ दुर्गाय नम: स्वाहा।
ॐ महाकालिकाय नम: स्वाहा।
ॐ हनुमते नम: स्वाहा।
ॐ भैरवाय नम: स्वाहा।
ॐ कुल देवताय नम: स्वाहा।
ॐ स्थान देवताय नम: स्वाहा
ॐ ब्रह्माय नम: स्वाहा।
ॐ विष्णुवे नम: स्वाहा।
ॐ शिवाय नम: स्वाहा।
ॐ जयंती मंगलाकाली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा। स्वधा नमस्तुति स्वाहा।
ॐ ब्रह्मामुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: क्षादी: भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शक्रे शनि राहु केतो सर्वे ग्रहा शांति कर: स्वाहा।
ॐ गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवा महेश्वर: गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: स्वाहा।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिंम् पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् मृत्युन्जाय नम: स्वाहा।
ॐ शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्थार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते।

अब, नवग्रह के नाम या मंत्र से आहुति दें। गणेशजी की आहुति दें। 
सप्तशती या नर्वाण मंत्र से जप करें। 
सप्तशती में प्रत्येक मंत्र के पश्चात स्वाहा का उच्चारण करके आहुति दें। 
प्रथम से अंत अध्याय के अंत में पुष्प, सुपारी, पान, कमल गट्टा, लौंग 2 नग, छोटी इलायची 2 नग, गूगल व शहद की आहुति दें तथा पांच बार घी की आहुति दें। यह सब अध्याय के अंत की सामान्य विधि है।

तीसरे अध्याय में गर्ज-गर्ज क्षणं में शहद से आहुति दें। आठवें अध्याय में मुखेन काली इस श्लोक पर रक्त चंदन की आहुति दें। पूरे ग्यारहवें अध्याय की आहुति खीर से दें। इस अध्याय से सर्वाबाधा प्रशमनम्‌ में काली मिर्च से आहुति दें। नर्वाण मंत्र से 108 आहुति दें।

हवन के बाद गोला में कलावा बांधकर फिर चाकू से काटकर ऊपर के भाग में सिन्दूर लगाकर घी भरकर चढ़ा दें जिसको वोलि कहते हैं। फिर पूर्ण आहूति नारियल में छेद कर घी भरकर, लाल तूल लपेटकर धागा बांधकर पान, सुपारी, लौंग, जायफल, बताशा, अन्य प्रसाद रखकर पूर्ण आहुति मंत्र बोले- 'ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदम् पुर्णात पूण्य मुदच्यते, पुणस्य पूर्णमादाय पूर्णमेल विसिस्यते स्वाहा।'

पूर्ण आहुति के बाद यथाशक्ति दक्षिणा माता के पास रख दें, फिर परिवार सहित आरती करके हवन संपन्न करें और माता से क्षमा मांगते हुए मंगलकामना करें।

विस्तार से दुर्गा-पूजा हवन विधि
श्री देवीभागवत पुराण में दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र हैं। अगर आप विस्तार से हवन करना चाहते हैं, तो कवच, कीलक, अर्गला का पाठ करते हुए दुर्गा सप्तशती के 13 अध्याय के सभी मंत्रों को बोलकर "स्वाहा" कहते हवन कुंड में आहुति दें।

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