संतान बाधा के कारण व करें उपाय…


Reasons & remedies for Child obstruction

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-राजेश पाठक 

सनातन हिन्दू धर्म में वैवाहिक जीवन को पूर्ण सफल तभी माना जाता है, जब संतान प्राप्ति हो। जब तक कोई स्त्री मां नहीं बनती है तब तक उसका जीवन संपूर्ण नहीं होता है. कई बार लाख चाहने के बाद भी कुंडली में संतान योग नहीं बनता है। 

भारतीय धर्म में गृहस्थ आश्रम को चारों आश्रमों में सर्वश्रेष्ठ आश्रम कहा गया हैं। उसका सबसे बड़ा कारण कुल व वंश को चलाने वाले संतान की प्राप्ति इसी आश्रम में होती हैं, परन्तु कुछ ग्रहों के बुरे योग संतान होने में अनेक प्रकार की बाधाएं उत्पन्न करते हैं।

ज्योतिष शास्त्र को वेदों का नेत्र कहा गया हैं, इस शास्त्र के द्वारा जीवन के विभिन्न पहलुओं को देखा व समझा जा सकता हैं। 
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जातक की जन्म कुंडली के द्वारा ग्रहों की दशा का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। कुंडली के द्वारा यह पता किया जा सकता है, कि जातक की कुंडली में संतान योग है या नहीं। 

ज्योतिष के प्राचीन फलित ग्रंथों में संतान सुख के विषय पर बड़ी गहनता से विचार किया गया  है।  भाग्य में संतान सुख है या नहीं, पुत्र होगा या पुत्री, संतान कैसी निकलेगी, संतान सुख कब मिलेगा और संतान सुख प्राप्ति में क्या बाधाएं हैं और उनका क्या उपचार है, इन सभी प्रश्नों का उत्तर पति और पत्नी की जन्म कुंडली के विस्तृत गहन अध्ययन व विश्लेषण से प्राप्त हो सकता है|

ज्योतिष शास्त्र में पंचम् भाव संतान सुख का प्रतिनिधित्व करता है। संतान या संतति सुख के लिए कुंडली के पंचम स्थान, पंचमेश, पंचम स्थान पर शुभाशुभ प्रभाव व वृहस्पति का विचार मुख्‍यत: किया जाता है। संतान कारक ग्रहों में वृहस्पति को "संतान का कारक ग्रह" माना जाता है। संतान सुख हेतु पंचमेश एवं वृहस्पति का बलवान होना, पंचम् भाव पर और कारक पर शुभ ग्रहों का प्रभाव संतान सुख देता है। परन्तु इन कारकों पर पाप ग्रहों का प्रभाव, कारकों का नीच नवांश में होना, भाव का बलहीन होना, शत्रु राशि एवं अस्तगत स्थितियां संतान सुख में बाधा उत्पन्न करती हैं।

विलंब से संतान योग-
सशुभा अंकाकन सुते शास्त्रिकस्था विलाम्ब्त: प्रजा: 
अर्थात् यदि लग्न नवम एवं पंचम भाव के स्वामी शुभ ग्रह से युक्त हों, 6, 8 या 12वें भाव में चले गये, तो ऐसा योग बंटा है. यदि शनि लग्न में हो, गुरु आठवें एवं मंगल बारहवें हों, तो भी यह योग बंटा है. यदि पंचम भाव में पाप ग्रह हो, विशेषकर शनि, तो भी संतान विलंब से होती है. जैसा कि जातक तत्व में वर्णन है- खभे सौम्या: सुते पापा: सुतसुख विलम्बात. उसी प्रकार राहु, सूर्य या मंगल पंचम में हो, तो शल्य क्रिया से संतान की प्राप्ति होती है। 

ज्योतिष के अनुसार मेष, मिथुन, सिंह, कन्या ये राशियाँ अल्प-प्रसव राशियाँ हैं। वृषभ, कर्क, वृश्चिक, धनु, मीन ये बहु-प्रसव राशियाँ हैं।
जन्म कुंडली में जिन योगों के कारण संतान होने में बाधाएं आती हैं, उनमें से प्रमुख योग हैं-

--> पंचम स्थान व षष्ट स्थान के मालिक यदि एकदूसरे की राशि में स्थित हो तो ऐसे जातक की सन्तान बार बार गर्भपात के कारण नष्ट हो जाती हैं।
--> पंचमेश अष्टम स्थान में हो तथा पंचम स्थान पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक को सन्तान सुख प्राप्त नहीं हो पाता।
--> पंचम स्थान पर शनि व राहु का प्रभाव मृत संतान देता हैं या संतान सुख से हीन करता हैं।
--> मंगल का पंचम प्रभाव अत्यधिक कष्ट पूर्वक संतान देता हैं, ऐसे जातकों कि संतान ऑपरेशन के द्वारा होती हैं।यदि शुभ प्रभाव हो तो अन्यथा अशुभ प्रभाव में संतान नहीं होती। मंगल व राहु का संयुक्त प्रभाव सर्प श्राप के कारण संतान होने में दिक्क्त देता हैं।
--> सूर्य का पंचम प्रभाव संतान से वंचित करता हैं, अथवा अत्यधिक प्रयत्न करने से एक संतान की प्राप्ति करवाता हैं।
--> लग्न, पंचम व सप्तम स्थान पर सूर्य, बुध और शनि का प्रभाव संतान प्राप्ति नहीं होने देता।
--> शुक्र यदि पुरुष जातक की जन्म कुंडली में शनि, बुध व राहु के साथ स्थित हो तथा पंचम व सप्तम स्थान पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तो शुक्र (वीर्य) दोष होता हैं ।
--> पंचम स्थान पर शनि सूर्य का प्रभाव हो तथा राहु या केतु से दृष्टि संबंध बनाए तो पितृदोष के कारण संतान प्राप्ति में बाधा आती हैं।
--> पंचम स्थान पर देवगुरु वृहस्पति स्थित हो तथा पापी ग्रहों का प्रभाव हो तो संतान होने में अनेक बाधाएं आती हैं।
--> पंचमेश व गुरु दोनों एक साथ द्वादश स्थान में स्थित हो तथा मंगल व अष्टमेश पंचम भाव में हो तो जातक को सन्तान सुख से वंचित होना पड़ता हैं।

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पूर्व जन्म के श्राप व उसके उपाय- 
पूर्व जन्म में हुए सर्प श्राप, पितृ श्राप, माता श्राप, भ्राता श्राप, प्रेत श्राप या कुलदेवता श्राप आदि के चलते संतान विलंब से होती है या नहीं भी होती है। पिछले जन्म में अगर आपने पेड़-पौधे भी कटवाये हैं, तो यह स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसलिए कुंडली की विधिवत विवेचना कर इसका उपाय अपेक्षित है।
विभिन्न श्राप दोषों से मुक्ति के लिए- 
अथर्ववेद में वर्णित संतान प्रकरण को पढ़ें, 
श्री दुर्गासप्तशती के संतान मंत्रों के सम्पुट से सतचंडी अनुष्ठान कराएं, 
नागपाश यंत्र एवं मंगलयंत्र पूजा कक्ष में रखें, 
यदि कुंडली में कालसर्प दोष हो, तो इसकी शांति कराएं। यदि पितृदोष हो, तो इसकी भी शांति कराएं,
घर के वृद्ध पुरुषों की सेवा करें, विशेष कर वृद्ध स्त्रियों का आशीर्वाद लें,
प्रेत श्राप के लिए मुक्ति का उपाय करें, विशेषरूप से चंडी पाठ के साथ ग्रह शांति के निमित यज्ञ करें, शाकाहार रह घर में अखंड दीप जलाएं। कुल-देवता का विधि-विधान से पूजन करें एवं उन पर नारियल, पीले फूल के साथ कुछ रुपये रख मनौती मानें। फिर सन्तान होने पर विधिवत उस मनौती की शीघ्र एवं अवश्य पूर्ण करें।  

संतान हेतु करें उपाय-
- वृहस्पति देव संतान कारक होते हैं। गुरु का पूजन करने से विभिन्न प्रकार के दोष स्वत: नष्ट हो जाते हैं।

- संतान प्राप्ति के हेतु संतान बाल गोपाल पूजन किया जाता हैं, इस पूजन में कृष्ण भगवान का बाल रूप मे पूजन होता हैं। संतान बाल गोपाल का मंत्र है- "ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।"

संतान प्राप्ति की कामना रखने वाले कोई दंपत्ति को बुधवार के दिन गणेश जी की पूजा करने के बाद नीचे दिए गए मंत्र का विधिवत जाप करना चाहिए. इस मंत्र का जाप करने से संतान प्राप्ति की कामना पूरी होती है- संतान गणपतये नमः गर्भदोषहो नमः पुत्र पुत्राय नमः


- सोमवार के दिन अपने घर में भगवान शिव और पार्वती का ऐसा चित्र लाएं, जिनकी गोद में बाल गणपति विराजमान हो। इस चित्र को अपने घर की उत्तरी दिशा में लगाकर नियमित रूप से धूप, दीप, नैवेद्य से पूजा करें। पूजा करने के बाद शिव पंचाक्षर स्त्रोत और गणेश द्वादश नाम स्रोत का जाप करें. ऐसा करने से आपकी मनोकामना बहुत जल्दी पूर्ण हो जाएगी। 

- बुधवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर पति-पत्नी को स्नान करने के बाद बाल गणेश की पूजा करनी चाहिए। फिर नियमित रूप से बाल गणेश की पूजा करने से संतान प्राप्ति की कामना पूरी होती है। घर के मुख्य द्वार पर बाल गणपति की प्रतिमा लगाने से भी संतान प्राप्ति के योग बनते हैं। 

- प्रत्येक रविवार के दिन बालकृष्ण को दही और मक्खन का भोग लगाएं। फिर धूप-दीप आदि से पूजन करें। ऐसा करने से संतान बाधा दूर हो जाती है। इसके साथ जब कोई विवाहित और संतान युक्त स्त्री अपने घर में रखी लड्डू गोपाल भगवान की मूर्ति निसंतान दंपत्ति को देती है, तो ऐसा करने से संतान प्राप्ति के योग प्रबल हो जाते हैं ।

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- संतान बाधा कारक ग्रहों के विधिवत उपाय करने एवं बुध, शुक्र एवं चन्द्र दोष कारक हो तो रूद्राभिषेक कराने से, वृहस्पति दोष कारक हो तो मंत्र, यंत्र, औषधि से, सूर्य मंगल, राहु, केतु एवं शनि के लिए कुल देवता की उपासना से बाधा दूर हो जाती है, ऐसा ‘जातकांलकार’ का मत है। मंत्र हेतु वृहस्पति मंत्र- ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं नम: गायत्री मंत्र का जाप एवं वृहस्पति रत्न पुखराज धारण सर्वोत्तम उपाय है।

-यदि लग्न कुंडली में पंचमेश पीड़ित हैं, तो उनकी आराधना करें। संतान सुख की प्राप्ति के लिए गुरु ग्रह की पूजा करें। गुरुवार के दिन गुड़ दान करें। गुरु ग्रह को मजबूत बनाने के लिए इन मंत्रों का जाप करें-
देवानां च ऋषिणां च गुरुं काञ्चनसन्निभम्। बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।।
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः। ह्रीं गुरवे नमः। बृं बृहस्पतये नमः।

-कुंडली में राहु व केतु की अशुभ स्थिति के कारण भी संतान प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती है। राहु को शांत करने के लिए इन मंत्रों का जाप कर सकते हैं-
ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः
अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम्। 
सिंहिकागर्भसम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्।।

केतु को शांत करने के लिए इन मंत्रों का जाप करें-
ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम्।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्।।

- यदि पितृ-कारक सूर्य, सिंह राशि, दशमेश एवं दशम् भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो या निर्बल हो, त्रिक भावों में स्थित हो तो पितृशाप के कारण संतान बाधा होती है। बाधा निवारण हेतु पितृदोष शांति करवाएं। गया में श्राद्ध कर कन्यादान, गौदान करने से संतान बाधा दूर हो जाती है। सूर्य की पूजा करने से और सूर्य को अर्घ्य देने से भी राहत मिलती है।
 
- यदि मातृ-कारक चन्द्रमा, कर्क राशि, चतुर्थ भावों पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो, कर्क राशि में मंगल एवं राहु स्थित हो, चंद्रमा अपनी नीच राशि या त्रिक भावों में स्थित हो, तो मातृदोष के कारण संतान बाधा आती है। बाधा निवारण हेतु समुद्र तट पर स्नान करने के पश्चात् गायत्री मंत्र का एक लाख जाप कराएं। चांदी के पात्र में दूध का सेवन करने और एक वर्ष तक पीपल की पूजा करने से दोष दूर होकर संतान सुख में वृद्धि होती है।

ये भी हैं उपाय-
किसी मन्दिर या स्कूल में केले का पेड़ लगायें व इसका नित्य पूजन करें।
हरिवंश महापुराण का पाठ करायें तथा श्रवण करें। 
पितरों के लिये दान करें। पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलायें, चीटियों व कौओं को दाना आदि दें।
11 प्रदोष व्रत करें। भगवान शिव का अभिषेक संतान प्राप्ती की लिये लाभदायक उपाय हैं।

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