#Social_Media : गद्दार बने देशभक्त, - जब 38 हिंदुओं को बस से उतारा और गोलियां बरसा दीं, अमित शाह के दिमाग से...



... हार गया अमृतपाल
- जब 38 हिंदुओं को बस से उतारा और बरसा दीं गोलियां
गद्दार बने देशभक्त
चलो तुमने ब्राह्मण हटाकर ग्रंथी रख लिया, सप्तपदी हटाकर...

आज के कुछ चुनिंदा पोस्ट्स, ट्वीट्स, वीडियो, कमेंट्स, वायरल...20230324    

अमित शाह ने पहले ही इंटरनेट को ब्लॉक कर दिया... 
बेबस अमृतपाल बस भागता ही रहा
-खालिस्तान की मांग मोदी सरकार के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई थी । 26 जनवरी को लाल किले पर खालिस्तानियों का उत्पात और किसान आंदोलन को हथियार बनाने के बाद मोदी द्वारा किसान बिल वापस लेने के निर्णय से ही ये साफ हो गया, कि अब खालिस्तान की मांग देश की एकता के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुकी है । और इस चुनौती को निपटाने का जिम्मा बतौर गृहमंत्री अमित शाह के कंधों पर था ।

-पिछले साल ही अमित शाह ने गृह मंत्रालय की तरफ से भगवंत मान को अमृतपाल को लेकर खुफिया रिपोर्ट साझा कर दी थी, लेकिन केजरी-भगवंत एंड कंपनी ने लगातार इस समस्या को इग्नोर किया और खालिस्तान के मुद्दे पर वोट बटोरने की पॉलिसी को जारी रखा। अमृतपाल को लगा कि अब सरकार उसकी है और वो जो चाहे कर सकता है इसी के बाद 23 फरवरी को अमृतसर के अजनाला थाने पर हजारों की भीड़ के साथ अमृतपाल ने हमला कर दिया और अपने साथी लवप्रीत को छुड़ा लिया था। ये तस्वीरें जब वायरल हुई तो पूरा देश कांप उठा था। भोले-भाले सरदार पुलिसकर्मियों पर अमृतपाल के गुंडों ने जिस तरह हमला किया था, वो दिल को दहला देने वाला मंजर था ।

-और इसके बाद ही ये तय हो गया कि अब अमित शाह अमृतपाल को उसकी असली जगह पहुंचाकर ही मानेंगे । अमित शाह के दिमाग में ना जाने कितनी स्वर्ण भस्म भरी हुई है । इस बड़े रणनीतिकार ने 2 मार्च को भगवंत मान को दिल्ली में अपने हेडक्वार्टर पर बुलाया। अमित शाह ने भगवंत मान को साफ साफ ये कहा कि अभी तक हम आपको सिर्फ इसलिए कुछ नहीं कह रहे थे, क्योंकि आपने ही ये कहा था, कि कानून व्यवस्था राज्य सरकार का मामला है, लेकिन अब अमृतपाल जिस तरह के बयान दे रहा है, ये देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है। बतौर गृहमंत्री इसका जहर निकालना मेरी जिम्मेदारी है। कठोर और सख्त प्रशासक अमित शाह ने जब अपना हंटर चलाया तो भगवंत मान की तुरंत लाइन पर आ गया।

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अमृतपाल  #amritpalsinghwarispunjabde का प्लेटिना में पेट्रोल खत्म हो गया। फिर एक बेचारे प्रवासी ने लिफ्ट दी। फिर जाकर भाग पाया "वारिस पंजाब का" मुखिया। अंत फिर प्रवासी ही काम आया न...

80 हजार पुलिस क्या कर रही ? अमृतपाल केस में फेल हुआ तंत्र
- हाईकोर्ट की तीखी टिप्पणी
सिखों के लिए अलग देश खालिस्तान की मांग करने वाले अलगाववादी अमृतपाल सिंह को अब तक गिरफ्तार न किए जाने पर हाई कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की है। मंगलवार को इस मामले में पंजाब पुलिस पर सवाल उठाते हुए हाई कोर्ट ने अमृतपाल सिंह के हाथ ना आने पर सवाल उठाया। बेंच ने कहा कि आखिर पंजाब की 80,000 की पुलिस क्या कर रही है ? उसका लापता हो जाना खुफिया तंत्र की नाकामी है। 
पुलिस ने जवाब देते हुए कहा- अमृतपाल सिंह की गिरफ्तारी के लिए घेरेबंदी है। सीमाओं पर नाकेबंदी की गई है। अमृतपाल सिंह के कई समर्थकों को अरेस्ट किया गया है। इनमें से 5 लोगों के खिलाफ रासुका के तहत ऐक्शन लिया गया है। इसके अलावा अमृतपाल पर भी एनएसए लगाया गया है।
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- आखिर में ये निर्णय हुआ, कि अमृतपाल को पकड़ने का काम पंजाब की पुलिस करेगी और शांति व्यवस्था काबू में रखने का जिम्मा अर्धसैनिक बलों को सौंपा गया, जिनको अमित शाह ने फौरन दिल्ली से पंजाब के लिए रवाना कर दिया गया। अमृतसर में जी 20 की समिट समाप्त करने के बाद ऑपरेशन चलाने का निर्णय लिया गया, लेकिन 19 मार्च को ही अमृतपाल पंजाब में वहीर निकालने जा रहा था। ये सिख धर्म की एक धार्मिक यात्रा होती है, लेकिन 19 मार्च से पहले ही पंजाब पुलिस अमृतपाल को धरने के लिए जालंधर के नकोदर कस्बे में उसके गांव जल्लूखेड़ा पहुंच गई। डरपोक अमृतपाल सब कुछ छोड़कर भागा और बहुत तेजी से भागा। कई विडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुए

- एक्शन के दौरान सबसे पहले अमृतपाल के 78 साथियों और वारिस पंजाब दे संगठन के अनेक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। उनके हथियार जब्त कर लिए गए। अमृतपाल ने अपने समर्थकों को बुलाने के लिए इंटरनेट का सहारा लेने की कोशिश की, लेकिन शातिर दिमाग अमित शाह ने पहले ही इंटरनेट को ब्लॉक कर दिया और इस तरह बेबस अमृतपाल बस भागता ही रहा।

- सबसे पहले आज तक पर ये खबर आई थी कि अमृतपाल को हिरासत में ले लिया गया है, लेकिन ऐसा लगता है कि पुलिस के साथ मुठभेड़ में अमृतपाल मारा गया। या फिर अमृतपाल पाकिस्तान भाग गया। इस संदर्भ में क्या हुआ ? ये कहना आसान नहीं है, क्योंकि ऐसे संवेदनशील मामलों से पंजाब सुलग सकता है। बहरहाल अभी की स्थिति ये है, कि अमृतपाल भगोड़ा है और उसकी वो सारी वीरतापूर्ण छवि जो उसने बना रखी थी, कि आखिरकार फेल साबित हो गई। अब वो पंजाब की नजरों में भगोड़ा है। असली सरदार कभी जंग का मैदान नहीं छोड़ता, लेकिन अमृतपाल का भाग खड़े होना ही ये साबित करता है कि वो पाकिस्तान का एजेंट था।

अपने क्षेत्र व देश हित में राष्ट्रवादी पथ पर अग्रसर व्यक्तित्व एवं सरकार को ही चुने
 
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Disclaimer : अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत हमारा संविधान हमे अपनी बात या पक्ष कहने की अनुमति देता है. इस कॉलम (आज के चुनिंदा पोस्ट्स, ट्वीट्स, कमेंट्स...) में अधिकांश कमेंट व पोस्ट SOCIAL MEDIA से ली गई है, यह जरूरी नहीं की सभी पोस्ट अक्षरशः सत्य हों, हम यथासम्भव हर पोस्ट की सत्यता परख कर इस कॉलम में लेते हैं, फिर भी हम सभी पोस्ट एवं उनकी सभी तथ्यों से पूर्ण सहमत नहीं हैं -सम्पादक 
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जब 38 हिंदुओं को बस से उतारा और बरसा दीं गोलियांपंजाब में एक बार फिर खालिस्तानी आंदोलन को हवा देने की कोशिश हो रही थी। इस बार यह काम कर रहा था ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन का प्रमुख अमृतपाल सिंह. पंजाब पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने उसके संगठन की कमर तो तोड़ दी, मगर पंजाब के लोगों में फिर वही खौफ तारी हो गया. वह खौफ जो 80-90 के दशक पंजाब के हर शख्स के चेहरे पर नजर आता था. वो खौफ जिसके डर से लोग घर से नहीं निकलते थे. जो निकलता था उसे यह भरोसा नहीं होता कि वाह सही सलामत लौटेगा भी या नहीं। 
उस दौर में पंजाब में आतंक का चेहरा बना था जरनैल सिंह भिंडरावाला, अमृतपाल सिंह खुद को भिंडरावाला का ही सबसे बड़ा समर्थक मानता है. इसी भिंडरावाला की गिरफ्तारी के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की शुरुआत की थी और उसे मार गिराया गया था. हालांकि पंजाब में आतंकवाद जारी रहा और आतंकियों ने कई ऐसे हमलों को अंजाम दिया जिन्हें सुनकर आज भी रूह कांप जाती है। 

1- स्वर्ण मंदिर की सीढ़ियों पर डीआईजी अटवाल की हत्या
1983 में जालंधर के DIG एएस अटवाल की हत्या कर आतंकियों ने सरकार को खुली चुनौती दी. अटवाल की हत्या स्वर्ण मंदिर की सीढ़ियों पर की गई थी जब वह मत्था टेकने के बाद कार में बैठने के लिए जा रहे थे. उस समय तक जरनैल सिंह भिंडरावाला स्वर्ण मंदिर को अपना ठिकाना बना चुका था. जब अज्ञात हमलावर ने डीआईजी अटवाल पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं तब वह अपनी सरकारी कार और बॉडीगार्ड से कुछ ही कदमों की दूरी पर थे. बताया तो ये भी जाता है कि उस समय वहां पुलिसकर्मी भी तैनात थे जो आतंकी को पकड़ने की बजाय वहां से भाग गए थे। 

2- इंदिरा गांधी पर चलाई गईं थीं अंधाधुंध गोलियांप्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही दो सिख सुरक्षाकर्मी सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने कर दी थी. 31 अक्टूबर 1984 को जिस वक्त उनकी हत्या हुई उस वक्त वह सफदरगंज रोड पर अपने आवास पर थीं और साक्षात्कार देने के लिए जा रही थीं. ऐसा बताया जाता है कि उन्होंने हमेशा के लिए बेअंत सिंह का हालचाल पूछा उसी समय बेअंत ने बंदूक तान ली, जब तक कोई कुछ समझ पाता तब तक सतवंत सिंह ने अपनी स्टेन गन से गोलियां चलानी शुरू कर दीं। 

ऐसा कहा जाता है कि सतवंत सिंह ने इंदिरा गांधी पर 25 गोलियां चलाईं थीं वह जमीन पर गिर पड़ीं उसके बाद भी वह गोलियां चलाता रहा था. बेअंत ने रिवाल्वर ने इंदिरा गांधी के पेट पर 3 गोलियां मारी थीं. उस वक्त इंदिरा गांधी को एम्स में उनकी सरकारी गाड़ी से ले जाया गया था. बेअंत सिंह की गोली लगने से मौके पर मौत हो गई थी. सतवंत को गिरफ्तार कर लिया गया था. इसके बाद कई सप्ताह तक देश सिख विरोधी दंगों की आग में जला जिसमें सैंकड़ों निर्दोष बलिवेदी पर चढ़ गए। 

3- 31 हजार फीट की ऊंचाई पर बम से उड़ा दिया विमान1985 में आतंकियों ने एयर इंडिया का कनिष्क विमान उड़ा दिया था, ये घटना हुई थी आयरलैंड के आसमान में, लेकिन इसका संबंध पंजाब और ऑपरेशन ब्लू स्टार से ही था. ऐसा कहा जाता है कि आतंकियों ने ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने के लिए ही प्लेन को बम से उड़ाया था. इस फ्लाइट ने टोरंटों से दिल्ली के लिए उड़ान भरी थी.
यूरोप की सीमा में दाखिल होते ही 31 हजार फीट की ऊंचाई पर फ्लाइट में जोरदार धमाका हुआ. विमान में सवार 22 क्रू मेंबर्स और 307 यात्री मारे गए. इस हमले का दोषी सिख आतंकी संगठन बब्बर खालसा को माना गया. हमले में सबसे ज्यादा 268 यात्री कनाडा के थे, इसके अलावा 10 अमेरिकी, 27 इंग्लैंड के और 2 भारतीय नागरिक भी इस प्लेन में सवार थे। 

4- जब 38 हिंदुओं को बस से उतारकर मारा1987 में आतंकवादियों ने एक बस से उतारकर 38 हिंदुओं की हत्या कर दी थी, मरने वालों में मासूम बच्चे और महिलाएं भी शामिल थीं. यह एक ऐसी आतंकी घटना थी, जिससे पंजाब ही नहीं बल्कि देश भर में खौफ बढ़ गया था. उस वक्त आल इंडियो रेडियो पर प्रसारित रिपोर्ट के अनुसार, इस हमले के समय बस में 79 यात्री सवार थे, इसमें 11 ऐसे थे जिन्हें कुछ नहीं हुआ था, शेष घायल थे। 

पटियाला के तत्कालीन एसएसपी एस बरार ने उस वक्त जो बयान दिया, उस हिसाब से चंडीगढ़ जा रही हरियाणा रोडवेज की बस को चंडीगढ़ से 21 मील दूर जलालपुर गांव के पास रोका गया और पांच आतंकियों ने बस पर हमला बोल दिया था. इसमें 36 की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि 2 ने बाद में दम तोड़ा.

5- बेअंत सिंह के कार में बैठते ही हुआ विस्फोटसाल 1992 में बेअंत सिंह ने सीएम पद संभाला और अलगावादी पर सख्ती से प्रहार शुरू कर दिया. वह काफी हद तक सफल भी हुए, लेकिन ये उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि जिस आतंकवाद के खात्मे के लिए वह जुटे हैं वही एक दिन उनके लिए काल बन जाएगा. साल 1995 में जब बेअंत सिंह सचिवालय के अंदर कार में थे तभी एक बम धमाका हुआ, इस धमाके में बेअंत सिंह समेत 17 लोगों की जान गई थी. जांच में सामने आया था कि पुलिसकर्मी दिलावर सिंह की सुसाइड बॉम्ब बनकर आया था। 
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चलो तुमने ब्राह्मण हटाकर ग्रंथी रख लिया, सप्तपदी हटाकर...चलो तुमने ब्राह्मण हटाकर ग्रंथी रख लिया, सप्तपदी हटाकर आनंद कारज कर दिया, मृत्यु में रामनाम सत्य है हटाकर सतनाम वाहेगुरू कर दिया, ये सब परिवर्तन तो आंखों से होते हुए हमने देखे हैं, लेकिन तुम अपने को अलग बनाते बनाते कहां पहुंच गये। सन 84 के बाद बिंदी, सिंदूर हटा दिया तबलीगी जमातियों जैसे इसे हिंदू निशानी मान कर, आने वाली पीढियां कभी जान न पायें कि तुम अलग नहीं थे, स्टेप बाई स्टेप अलग बने हो। 
आज भारतीय नववर्ष है विक्रम संवत, नानकशाही कैलेंडर चलाने के लिए भी एस जी पी सी ने कमेटी बनाई थी जबकि रणजीत सिंह की एकमात्र खालसा सरकार भी विक्रमी संवत् के हिसाब से चलती थी। होली को होला और पंथ को कौम बना कर अलग उम्माह बनाने के नक्शे कदम पर हो। यहूदियों ने ईसाईयों को एक टाईम बाद यहूदी पंथ कहना बंद कर दिया, ठीक ऐसे ही सिक्खों को हिंदूओं का पंथ कहना बंद कर दिया जाए, यही चाहते हो ना, तो यही सही। अभी तक तुमने वखरा, न्यारा के नाम पर अपने को हमसे अलग किया है, अब हम तुम्हें अपने से अलग करेंगे तब देखेंगे तुम अंत में सिर्फ ईसाई बनोगे वाया सिक्ख रूट।------------------------------------------------

गद्दार बने देशभक्त
भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने वाले दो व्यक्ति कौन थे ? जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में असेंबली में बम फेंकने का मुकद्दमा चला तो भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ शोभा सिंह ने गवाही दी और दूसरा गवाह था शादी लाल !

दोनों को वतन से की गई इस गद्दारी का इनाम भी मिला। दोनों को न सिर्फ सर की उपाधि दी गई बल्कि और भी कई दूसरे फायदे मिले।

शोभा सिंह को दिल्ली में बेशुमार दौलत और करोड़ों के सरकारी निर्माण कार्यों के ठेके मिले | आज कनाॅट प्लेस में सर शोभा सिंह स्कूल में कतार लगती है बच्चों को प्रवेश नहीं मिलता है जबकि शादी लाल को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली। आज भी श्यामली में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब का कारखाना है।

सर शादीलाल और सर शोभा सिंह, भारतीय जनता की नजरों में सदा घृणा के पात्र थे और अब तक हैं। 

शादी लाल को गांव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा, कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा तक नहीं दिया। शादी लाल के लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर लाए। तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था।

शोभा सिंह खुशनसीब रहा। उसे और उसके पिता सुजान सिंह (जिसके नाम पर पंजाब में कोट सुजान सिंह गांव और दिल्ली में सुजान सिंह पार्क है) को राजधानी दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में हजारों एकड़ जमीन मिली और खूब पैसा भी।

शोभा सिंह के बेटे खुशवंत सिंह ने शौकिया तौर पर पत्रकारिता शुरु कर दी और बड़ी-बड़ी हस्तियों से संबंध बनाना शुरु कर दिया।

सर शोभा सिंह के नाम से एक चैरिटबल ट्रस्ट भी बन गया, जो अस्पतालों और दूसरी जगहों पर धर्मशालाएं आदि बनवाता तथा मैनेज करता है। आज दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास बाराखंबा रोड पर जिस स्कूल को मॉडर्न स्कूल कहते हैं वह शोभा सिंह की जमीन पर ही है और उसे सर शोभा सिंह स्कूल के नाम से जाना जाता था। 

खुशवंत सिंह ने अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर अपने पिता को एक देशभक्त, दूरद्रष्टा और निर्माता साबित करने की भरसक कोशिश की। खुशवंत सिंह ने खुद को इतिहासकार साबित करने की भी कोशिश की और कई घटनाओं की अपने ढंग से व्याख्या भी की।

खुशवंत सिंह ने भी माना है, कि उसका पिता शोभा सिंह 8 अप्रैल 1929 को उस वक्त सेंट्रल असेंबली मे मौजूद था, जहां भगत सिंह और उनके साथियों ने धुएं वाला बम फेंका था।

बकौल खुशवंत सिह, बाद में शोभा सिंह ने यह गवाही दी। शोभा सिंह 1978 तक जिंदा रहा और दिल्ली के हर छोटे बड़े आयोजन में वह बाकायदा आमंत्रित अतिथि की हैसियत से जाता था।

हालांकि उसे कई जगह अपमानित भी होना पड़ा, लेकिन उसने या उसके परिवार ने कभी इसकी फिक्र नहीं की।

खुशवंत सिंह का ट्रस्ट हर साल सर शोभा सिंह मेमोरियल लेक्चर भी आयोजित करवाता है जिसमें बड़े-बड़े नेता और लेखक अपने विचार रखने आते हैं, और...

बिना शोभा सिंह की असलियत जाने या फिर जानबूझ कर अनजान बन, उसकी चित्र पर फूल माला चढ़ा आते हैं। 

आज़ादी के दीवानों के विरुद्ध और भी गवाह थे-
1. शोभा सिंह
2. शादी राम
3. दिवान चन्द फ़ोर्गाट
4. जीवन लाल
5. नवीन जिंदल की बहन के पति का दादा
6. भूपेंद्र सिंह हुड्डा का दादा

दीवान चन्द फोर्गाट DLF कम्पनी का Founder था। इसने अपनी पहली कालोनी रोहतक में काटी थी। इसकी इकलौती बेटी थी जो कि K.P. Singh को ब्याही और वो मालिक बन गया DLF का। अब K.P. Singh की भी इकलौती बेटी है, जो कांग्रेस के नेता और गुज्जर से मुस्लिम Converted गुलाम नबी आज़ाद के बेटे सज्जाद नबी आज़ाद के साथ ब्याही गई है। अब वह DLF का मालिक बनेगा।
जीवन लाल मशहूर एटलस साइकिल कम्पनी का मालिक था।
बाकी के तथाकथित मशहूर लोगों को तो आप जानते ही होंगे।

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