#Uttarakhand : बद्रीनाथ धाम का कपाट खुला, हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा, सेना की मधुर धुन पर थिरके श्रद्धालु...


"अखंड ज्योति" के दर्शन करने उमड़ी भीड़
- 6 माह देवता विष्णुजी की पूजा करते हैं, जिसमें मुख्य पुजारी देवर्षि नारद होते हैं  
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भगवान बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुलने से पूर्व के दृश्य

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-रा.पाठक (अवैतनिक संपादक) 

भारी बर्फबारी और कड़ाके की ठंड के बीच 'देवभूमि' उत्तराखंड में आठवें बैकुंठ- बदरीनाथ धाम के कपाट आज (27 अप्रैल) श्रद्धालुओं के लिए खुल गए। इसके साथ उत्तराखंड में चार-धाम की यात्रा आरंभ हो गई। कपाट खुलने के समय हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा हुई। परिसर में सेना ने मधुर धुन बजाया, जिस पर यात्री भी थिरके। हर साल की तरह इस साल भी पहली पूजा और आरती देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से हुई।   
                                               बदरीनाथ धाम के कपाट खुल रहे हैं 

भगवान बदरीनाथ मंदिर परिसर में सेना मधुर धुन बजाते हुए  
कपाट खुलने के समय धाम में करीब 20 हजार तीर्थयात्री पहुंचे। इससे पहले केदारनाथ धाम को 25 अप्रैल को श्रद्धालुओं के लिए खोला गया था। श्री बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) का गठन श्री बद्रीनाथ और केदारनाथ मंदिर अधिनियम-1939 के अनुसार किया गया था। 

यात्रा को लेकर तीर्थयात्रियों में उत्साह और उल्लास के बीच यात्रा पड़ावों पर जगह-जगह श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगना शुरू हो गया है। बदरीनाथ में तीर्थयात्रियों और स्थानीय श्रद्धालुओं के लगभग 400 वाहन पहुंच गए हैं। बदरीनाथ के साथ ही धाम में स्थित प्राचीन मठ-मंदिरों को भी गेंदे के फूलों से सजाया गया है।
पवन  मंद  सुगंध शीतल, हेम  मन्दिर  शोभितम्।
निकट गंगा बहत निर्मल, श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम्॥
देखें-

वैदिक मंत्रोच्चारण की गूंज के मध्य विधि-विधान से आज गुरुवार सुबह 7:10 मिनट पर बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के पावन अवसर पर "अखंड ज्योति" के दर्शन करने के लिए सैकड़ों श्रद्धालु धाम पहुंचे तो यात्रा पड़ावों पर चहल-पहल भी शुरू हो गई है।  कपाटोद्घाटन के लिए
टिहरी राजा के प्रतिनिधि के रूप में माधव प्रसाद नौटियाल भी धाम में उपस्थित रहे।
देखें-

मंदिर को 25 क्विंटल से अधिक फूलों से सजाया गया है। बदरीनाथ हाईवे पर कंचन गंगा और रड़ांग बैंड में हिमखंड पिघल गए हैं। यहां अलकनंदा के किनारे कुछ जगहों पर ही बर्फ जमी है। बदरीनाथ धाम के आंतरिक मार्गों पर अभी भी बर्फ है, जिसे नगर पंचायत बदरीनाथ के पर्यावरण मित्रों द्वारा साफ किया जा रहा है। वर्ष 2013 की आपदा में बह चुके लामबगड़ बाजार में भी दुकानें खुलने लगी हैं। देश के प्रथम गांव माणा में भी ग्रामीणों की चहल-पहल होने लगी है। बुधवार को बदरीनाथ धाम पहुंंचे अधिकांश श्रद्धालु माणा गांव पहुंचे। बदरीनाथ में आर्मी हेलीपैड से मंदिर परिसर तक साफ-सफाई काम भी पूरा हो गया है।
 
धार्मिक मान्यता है, कि 12 महीने भगवान विष्णु जहां विराजमान होते हैं, उस सृष्टि के आठवें बैकुंठ धाम को बद्रीनाथ के नाम से जाना जाता है। भगवान विष्णु यहां 6 माह विश्राम करते हैं और 6 माह भक्तों को दर्शन देते हैं। दूसरी मान्यता ये भी है, कि साल के 6 माह मनुष्य भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, तो शेष 6 माह यहां देवता भगवान विष्णु की पूजा करते हैं जिसमें मुख्य पुजारी स्वयं देवर्षि नारद होते हैं. 

भगवान शिव को समर्पित श्री केदारनाथ मंदिर, भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से ग्यारहवां है, जबकि श्री बद्रीनाथ मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। दोनों मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में हिमालय की ऊंचाई पर स्थित हैं और माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित किए गए थे। कहते हैं- 
बहूनि सन्ति तीर्थानि, दिवि भूमौ रसातले। 
बदरी  सदृशं  तीर्थ, न भूतो न भविष्यति।।

पवित्र तीर्थस्थलों में से एक
बदरीनाथ भगवान विष्णु के 108 दिव्य देशम अवतारों में वैष्णवों के लिए पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। बद्रीनाथ शहर बद्रीनाथ मंदिर के साथ योग ध्यान बद्री, भविष्य बद्री, आदि बदरी और वृद्ध बदरी सहित पंच बद्री मंदिरों का भी हिस्सा है।बदरीनाथ मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार रंगीन और प्रभावशाली है जिसे सिंहद्वार के नाम से जाना जाता है। मंदिर लगभग 50 फीट लंबा है, जिसके शीर्ष पर एक छोटा कपोला है, जो सोने की गिल्ट की छत से ढका है। बद्रीनाथ मंदिर को तीन भागों में बांटा गया है। गर्भ गृह, दर्शन मंडप जहां अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं और सभा मंडप जहां तीर्थयात्री इकट्ठा होते हैं।

बद्रीनाथ मंदिर गेट पर, सीधे भगवान की मुख्य मूर्ति के सामने, भगवान बद्रीनारायण के वाहन / वाहक पक्षी गरुड़ की मूर्ति विराजमान है। गरुड़ ओस बैठे हुए हैं और हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहे हैं। मंडप की दीवारें और खंभे जटिल नक्काशी से ढके हुए हैं।गर्भगृह भाग में इसकी छतरी सोने की चादर से ढकी होती है और इसमें भगवान बद्री नारायण, कुबेर (धन के देवता), नारद ऋषि, उधव, नर और नारायण रहते हैं। 

महादेव ने अलकनंदा से खोजा बद्रीनारायण छवि 
परिसर में 15 मूर्तियां हैं। विशेष रूप से आकर्षक भगवान बद्रीनाथ की एक मीटर ऊंची प्रतिमा है, जो काले पत्थर में बारीक रूप से उकेरी गई है। किंवदंती के अनुसार, शंकर ने अलकनंदा नदी में सालिग्राम पत्थर से बनी भगवान बद्रीनारायण की एक काले पत्थर की छवि की खोज की। उन्होंने मूल रूप से इसे तप्त कुंड गर्म झरनों के पास एक गुफा में स्थापित किया था। सोलहवीं शताब्दी में, गढ़वाल के राजा ने मूर्ति को मंदिर के वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित कर दिया। यह पद्मासन नामक ध्यान मुद्रा में बैठे भगवान विष्णु का प्रतिनिधित्व करता है।

बद्री वृक्ष के नीचे हैं बद्रीनारायण 
भगवान बद्री नारायण शंख और चक्र से सुसज्जित हैं, दो भुजाओं में एक उठी हुई मुद्रा में हैं और दो भुजाएँ योग मुद्रा में हैं। बद्रीनारायण को कुबेर और गरुड़, नारद, नारायण और नर द्वारा घिरे बद्री वृक्ष के नीचे देखा जाता है। बद्रीनारायण के दाहिनी ओर खड़े उद्धव हैं। सबसे दाईं ओर नर और नारायण हैं। नारद मुनि सामने दाहिनी ओर घुटने टेके हुए हैं और देखना मुश्किल है। बाईं ओर धन के देवता कुबेर और चांदी के गणेश हैं। बद्रीनारायण के बाईं ओर, गरुड़ सामने घुटने टेक रहा है।

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#सोशल_मीडिया में जन-प्रतिक्रिया... 
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खराब मौसम और चल रहे स्थानीय निर्माण के कारण तीर्थयात्रियों के लिए बद्रीनाथ में दर्शन करना बहुत कठिन हो गया है, जो पंजीकृत नहीं हैं, स्थिति और भी खराब हो रही है। स्थानीय प्रशासन रजिस्ट्रेशन की स्थिति भी नहीं देख रहा है। - श्री बद्रीनाथ पहुंच रहे तीर्थयात्री व श्रद्धालु  
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