भगवान जगन्नाथ ने दिया तीनों स्वरूपों के "नवजौबन दर्शन", आज निकलेगी जगन्नाथ रथ यात्रा...


क्यों अधूरी है भगवान की प्रतिमा  
- श्री जगन्नाथ अष्टकम Shri Jagannath Ashtakam
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एक पक्ष / पखवाड़े तक अदृश्य रहने के बाद भगवान जगन्नाथ के तीन स्वरूपों के "नवजौबन दर्शन" आज (19 जून 2023) को पुरी (ओडिसा) स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर में श्रद्धालुओं को दर्शन दिया। श्रद्धालुओं ने भगवान जगन्नाथ मंदिर में तीन स्वरूपों के नवजौबन दर्शन प्रातः 8 बजे से लेकर 11 बजे तक किया। भगवान के तीन स्वरूपों को के दर्शन करने मंदिर में लाखों श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगी है।  
पुरी में रथयात्रा के पावन अवसर पर भक्ति की ऊर्जा... Devotional energy in the air of Puri... (चित्र साभार- पुरी जिला प्रशासन)
देखें- एक दृश्य 

सार्वजनिक दर्शन के लिए सुबह उपस्थित होने से पहले सेवादारों के एक विशेष समूह द्वारा भगवान विग्रह स्वरूप का साज-श्रृंगार किया गया, जिसे "बनक लागी" कहा जाता है। लाखों भक्तों ने भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा, भगवान जगन्नाथ और सुदर्शन के प्रथम दर्शन के लिए लंबी कतारें लगाईं। इस बीच, कटक नौ-दिन की रथ यात्रा के लिए पूरी तरह तैयार है, जो कल 
आषाढ़ शुक्ल द्वितीया (20 जून 2023) से आरंभ होगी। कारीगर रथों के निर्माण कार्य को अंतिम रूप दे रहे हैं। रथ-यात्रा की अवधि में रथ के ऊपर भक्तों का चढ़ना दंडनीय अपराध माना जाएगा।

भगवान विष्णु का जगन्नाथ रूप में अवतार उनका सबसे दयालु स्वरूप माना जाता है, जिसे उन्होंने जीवों पर कृपा करने के लिए लिया। जब भगवान जगन्नाथ आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को मंदिर से बाहर निकलते हैं, तो विशाल रथ पर अपने भाई बलदेव एवं बहन सुभद्रा के संग विराजमान होते हैं। तब जो भी श्रद्धालु उस रथयात्रा के दर्शन करता है, भगवान के स्वागातार्थ उठ खड़ा होता है, भगवान के लिए फल-फूल अर्पित करता है, भगवान उसे तीनों लोकों की सम्पदा एवं आनंद प्रदान करते हैं, ऐसा हमारे ग्रंथों में वर्णित है।

अर्द्ध निर्मित प्रतिमा का रहस्य 
कहते हैं कि राजा इन्द्रद्युम्न, जो सपरिवार नीलांचल सागर (उड़ीसा) के पास रहते थे, को समुद्र में एक विशालकाय काष्ठ दिखा। राजा के उससे विष्णु मूर्ति का निर्माण कराने का निश्चय करते ही वृद्ध बढ़ई के रूप में विश्वकर्मा जी स्वयं प्रस्तुत हो गए। उन्होंने मूर्ति बनाने के लिए एक शर्त रखी कि मैं जिस घर में मूर्ति बनाऊंगा, उसमें मूर्ति के पूर्णरूपेण बन जाने तक कोई न आए। राजा ने इसे मान लिया।

आज जिस स्थान पर श्रीजगन्नाथ जी का मन्दिर है, उस\के निकट एक घर के अंदर वह मूर्ति निर्माण में जुट गए। राजा के परिवारजनों को यह ज्ञात न था, कि वह वृद्ध बढ़ई कौन है। कई दिन तक घर का द्वार बंद रहने पर महारानी ने सोचा कि बिना खाए-पिए वह बढ़ई कैसे काम कर सकेगा। अब तक वह जीवित भी होगा या मर गया होगा। महारानी ने महाराजा को अपनी सहज शंका से अवगत करवाया। महाराजा के द्वार खुलवाने पर वह वृद्ध बढ़ई कहीं नहीं मिला, लेकिन उसके द्वारा अर्द्धनिर्मित श्रीजगन्नाथ, सुभद्रा तथा बलराम की काष्ठ मूर्तियां वहां मिलीं। महाराजा और महारानी दु:खी हो उठे लेकिन उसी क्षण दोनों ने आकाशवाणी सुनी- ‘व्यर्थ दुखी मत हो, हम इसी रूप में रहना चाहते हैं, मूर्तियों को द्रव्य आदि से पवित्र कर स्थापित करवा दो।’
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वे अपूर्ण और अस्पष्ट मूर्तियां आज भी मन्दिर में सुशोभित व प्रतिष्ठित हैं। रथयात्रा माता सुभद्रा के द्वारिका भ्रमण की इच्छा पूर्ण करने के उद्देश्य से श्री कृष्ण व बलराम ने अलग रथों में बैठकर करवाई थी। माता सुभद्रा के नगर भ्रमण की स्मृति में यह रथयात्रा पुरी में हर वर्ष होती है। जगन्नाथ रथयात्रा ओडिशा में एक प्रमुख धार्मिक आयोजन है और भगवान श्री कृष्ण के भक्तों के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है।
 
इस त्यौहार के समय लोग हर साल मूर्तियों को स्नान कराने और उनकी पूजा करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण और उनके दो भाई-बहनों की मूर्तियों को जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर ले जाते हैं। जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत 12वीं सदी से हुई, जिसका विस्तृत विवरण पवित्र ग्रंथों, जैसे- पद्मपुराण, ब्रह्म पुराण और स्कंद पुराण में पाया जा सकता है।

पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन, भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी (अब मौसी मां मंदिर) के घर से होते हुए गुंडिचा मंदिर गए थे। हालांकि, भगवान जगन्नाथ वहां अकेले नहीं, बल्कि अपनी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलदेव के साथ गए थे। यह दिन अब हर साल जगन्नाथ रथयात्रा के साथ मनाया जाता है, जहां भगवान की मूर्ति अपने दो भाई-बहनों के साथ रथ पर विराजमान होती है। भक्तों द्वारा भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए उनके पास जाने के बजाय, भगवान स्वयं श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देने के लिए अपने गर्भगृह से बाहर आते हैं

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जगन्नाथ पुरी के दर्शन के पश्चात बिना साक्षी गोपाल मंदिर के दर्शन  किए 
अधूरी रहती है आपकी यात्रा

जगन्नाथ पुरी में भगवान श्रीकृष्ण का एक मंदिर है, जिसे साक्षी गोपाल (साखी गोपाल) के नाम से जाना जाता है। कहते हैं, कि एक बार भक्त की गवाही देने भगवान गोपाल जी वृंदावन से उड़ीसा के फुलअलसा आए थे। 
जगन्नाथजी पुरी से 16 किलोमीटर की दूर यह मंदिर साक्षी गोपाल मंदिर के नाम से विख्यात है। पुरी-भुवनेश्वर हाईवे पर स्थित मंदिर में खड़े मुद्रा में श्याम सुंदर भगवान श्रीकृष्ण और देवी राधा के दर्शन बहुत ही मनमोहक लगते हैं। भगवान कृष्ण की मूर्ति एक दुर्लभ प्रकार के अविनाशी पत्थर से बनी है जिसे "ब्रज" कहा जाता है। मंदिर जगन्नाथ मंदिर की शैली में ही बनाया गया है। इस मंदिर को लेकर धारणा है, कि जो श्रद्धालु पुरी में जगन्नाथ स्वामी के दर्शन करने आएगा उसकी यह यात्रा तब पूरी होगी, जब वह साक्षी गोपाल मंदिर के भी दर्शन करेगा। इसलिए पुरी पहुंचकर जगन्नाथ स्वामी के दर्शन करने के पश्चात श्रद्धालु इस मंदिर के दर्शन करने अवश्य आते हैं। 

मान्यता है, फुलअलसा में स्थित हुए गोपालजी के विग्रह को कटक के राजा पुरी ले आए और यही पर साक्षी गोपाल जी को स्थापित कर दिया। परन्तु इसके पश्चात ऐसा होने लगा, जगन्नाथ जी को जाने वाला भोग गोपाल जी पहले ही भोग लगा लेते थे। फिर, जगन्नाथजी ने एक रात राजा को सपने में यह बात बताई, तो राजा ने साक्षी गोपाल जी को पुरी से 16 किमी. दूर ले जाकर एक मंदिर में स्थापित कर दिया। इसके बाद हुई अजब घटना हुई।

पुरी से दूर जाने पर गोपालजी राधा से भी दूर हो गए। राधाजी का मन भी गोपाल जी के बिना नहीं लग रहा था। इसलिए साक्षी गोपाल मंदिर के पुजारी की कन्या के रुप में राधा जी ने जन्म लिया। इस कन्या का नाम पुजारी जी ने लक्ष्मी रखा। जब यह कन्या कुछ बड़ी हुई, तो अजब सी लीलाएं होने लगी।

साक्षी गोपाल मंदिर में मूर्ति 
कभी गोपालजी के मंदिर को सुबह खोलने पर लक्ष्मी के वस्त्र-आभूषण मिलते, तो कभी लक्ष्मी के कमरे से गोपाल जी की मालाएं मिलती। यह बात जब कटक के राजा के पास पहुंची, तो पंडितों सुझाव पर गोपाल जी के पास राधा की मूर्ति स्थापित करने का विचार किया गया। 
मूर्ति के स्थापित होते ही लक्ष्मी ने प्राण त्याग दिए और राधा की मूर्ति में लक्ष्मी की आत्मा समा गई। लोगों ने देखा, राधा जी की मूर्ति का स्वरुप / चेहरा  ही बदल गया और वह बिल्कुल पुजारी जी की कन्या लक्ष्मी जैसी दिख रही है।

साक्षी गोपाल मंदिर की सुंदरता अलौकिक है। मंदिर जितना बहुत सुंदर और मनभावन है, उसी तरह उसकी कथा भी बहुत रोचक है। मंदिर से जुडी एक और कथा के अनुसार, एक धनवान ब्राह्मण अपनी आयु के अंतम पड़ाव पर था, उसने तीर्थ यात्रा करने का विचार किया। वह वृंदावन जाने के लिए चल पड़ा। तभी उस के साथ एक गरीब ब्राह्मण लड़का भी चलने लगा। यह कथा उस समय की है, जब तीर्थ-यात्राएं पैदल करनी पड़ती थी और अपने खाने-पीने की व्यवस्था भी स्वयं को करनी पड़ती थी। 

जब दोनों यात्रा के लिए निकले, तब उस गरीब लड़के ने उस वृद्ध ब्राह्मण की बहुत अच्छी देखभाल की। उस लड़के की सेवा से प्रसन्न होकर वृंदावन के गोपाल मंदिर में उस ब्राह्मण ने अपनी कन्या का संबंध उस निर्धन लड़के से पक्का कर दिया एवं वापस जाकर इस कार्य को पूरा करने का वचन भी दे दिया।

जब वे दोनों पुरी से यात्रा कर लौट रहे थे, तब उस ब्राह्मण लड़के ने उस वृद्ध ब्राह्मण लड़के को भगवान गोपालजी के सामने किया वचन स्मरण करवाया। ब्राह्मण द्वारा अपने घर पर यह बात बताने पर परिवार वाले इस संबंध से सहमत नहीं हुए और उस लड़के की इस बात को लेकर बहुत अपमान  किया। इस अपमान एवं वचन पूरा न होने से दु:खी हो कर वह लड़का पचांयत के पास गया, तो पंचों की ओर से इस बात का साक्ष्य मांगा। लड़के ने कहा- विवाह के वादे के समय गोपाल भगवान वहां उपस्थित थे। लड़के की इस बात से पंचों ने भी हंसी उड़ाई। अपने सच को प्रमाणित करने के लिए वह लड़का फिर वृदावन पहुंच गया। यहां पहुंचकर उसने भगवान गोपालजी से अपनी पूरी पीड़ा सुनाई तथा हाथ जोड़कर विनती की कि अब आप ही मेरे साथ जाकर पंचायत को सारी बात समझा सकते हैं।

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उस निर्धन लड़के के इस विश्वास को देखकर गोपालजी अत्यधिक प्रसन्न हुए और उसके साक्षी (गवाह) बनने को तैयार हो गए। गोपालजी ने लड़के से कहा- तुम आगे-आगे चलना मैं तुम्हारे पीछे चलुंगा और मेरे धुंधरुओं की आवाज़ तुम्हारे कानों तक आती रहेगी। तुम इस अवधि (दौरान) में पीछे मुड़कर मत देखना, अन्यथा मैं वहीं स्थिर हो जाउंगा। लड़का मान गया। दोनों पुरी की ओर चल पड़े।

चलते-चलते जब वह अट्टक के निकट गांव पुलअलसा के पास पहुंचे, तो रेतीला रास्ता शुरु हो गया, लेकिन रेतीले रास्ते के कारण घुंगरूओं की आवाज आना बंद हो गई। तभी लड़के ने पीछे पलटकर देखा और गोपालजी वहीं स्थिर हो गए। अपने भगवान की स्थिरता को देखकर वह लड़का व्यथित हो गया, पर भगवान ने उस लड़के को कहा- तुम चिंतित न हो और जाकर पंचायत को यहां ले आओ। वह लड़का गया और पंचायत को वहां ले आया, जहां गोपालजी खड़े थे। पंचायत के आने पर गोपाल जी ने वह सारी बात बताई, जो कि उस धनवान ब्राह्मण ने उस निर्धन लड़के से बोली थीं। भगवान गोपालजी के गवाह बनने से उस गरीब लड़के का विवाह धनवान ब्राह्मण की लड़की से संपन्न हुआ और भगवान गोपाल वहीं समा गए।

तब से लेकर आज तक उनकी स्मृति में यहां साक्षी गोपाल मंदिर बना है। यह इस बात का प्रमाण है, कि जो भक्त अपने भगवान पर अटूट विश्वास रखते हैं, भगवान भी संकट के समय उनका साथ अवश्य देते हैं और संकट से उन्हें उभार लेते हैं। इस घटना के बाद से जगन्नाथ पुरी के दर्शन के बाद यहां दर्शन करना आवश्यक माना जाता है।
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आदि शंकराचार्य जी द्वारा लगभग ईसा पूर्व रचित-
श्री जगन्नाथ अष्टकम (Shri Jagannath Ashtakam)
कदाचित् कालिन्दी तट विपिन सङ्गीत तरलो
मुदाभीरी नारी वदन कमला स्वाद मधुपः
रमा शम्भु ब्रह्मामरपति गणेशार्चित पदो
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥१॥

भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिच्छं कटितटे
दुकूलं नेत्रान्ते सहचर-कटाक्षं विदधते ।
सदा श्रीमद्‍-वृन्दावन-वसति-लीला-परिचयो
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ॥२॥

महाम्भोधेस्तीरे कनक रुचिरे नील शिखरे
वसन् प्रासादान्तः सहज बलभद्रेण बलिना ।
सुभद्रा मध्यस्थः सकलसुर सेवावसरदो
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ॥३॥

कृपा पारावारः सजल जलद श्रेणिरुचिरो
रमा वाणी रामः स्फुरद् अमल पङ्केरुहमुखः ।
सुरेन्द्रैर् आराध्यः श्रुतिगण शिखा गीत चरितो
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥४॥

रथारूढो गच्छन् पथि मिलित भूदेव पटलैः
स्तुति प्रादुर्भावम् प्रतिपदमुपाकर्ण्य सदयः ।
दया सिन्धुर्बन्धुः सकल जगतां सिन्धु सुतया
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥५॥

परंब्रह्मापीड़ः कुवलय-दलोत्‍फुल्ल-नयनो
निवासी नीलाद्रौ निहित-चरणोऽनन्त-शिरसि ।
रसानन्दी राधा-सरस-वपुरालिङ्गन-सुखो
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथगामी भवतु मे ॥६॥

न वै याचे राज्यं न च कनक माणिक्य विभवं
न याचेऽहं रम्यां सकल जन काम्यां वरवधूम् ।
सदा काले काले प्रमथ पतिना गीतचरितो
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥७॥

हर त्वं संसारं द्रुततरम् असारं सुरपते
हर त्वं पापानां विततिम् अपरां यादवपते ।
अहो दीनेऽनाथे निहित चरणो निश्चितमिदं
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥८॥

जगन्नाथाष्टकं पुन्यं यः पठेत् प्रयतः शुचिः ।
सर्वपाप विशुद्धात्मा विष्णुलोकं स गच्छति ॥९॥
॥ इति श्रीमत् शंकराचार्यविरचितं जगन्नाथाष्टकं संपूर्णम् ॥
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--- To be updated 

 

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