गुरु पूर्णिमा : गुरु की विशेषता, गुरु पूर्णिमा व्रत, गुरु-कृपा के प्रकार, कुंडली में गुरु दोष हेतु गुरु पूर्णिमा को करें उपाय
गुरु के बारे में, नारद पुराण व महर्षि भृगु ने बताया है
गुरु पूर्णिमा पर ज्ञान और जीवन की सही दिशा बताने वाले गुरु के प्रति अपनी आस्था प्रगट की जाती है। गुरु पूर्णिमा के पर्व को व्यास-पूर्णिमा भी कहते हैं। यह पर्व अपने आराध्य गुरु को श्रद्धा अर्पित करने का महापर्व है। -नारद पुराण
गुण मिले तो गुरु बनाओ, चित्त मिले तो चेला।
मन मिले तो मित्र बनाओ, वरना रहो अकेला।
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-रा.पाठक अवैतनिक संपादक
गुरु पूर्णिमा भारत ही नहीं, अब विदेशों में ही श्रद्धा-भाव से मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा का शुभारंभ कैसे हुआ, इसे लेकर कहते हैं, विश्व का प्रथम ग्रंथ "ब्रह्मसूत्र" जब संपन्न हुआ, तो वह दिन था आषाढ़ी पूनम। तब देवताओं ने वरदान दिया, कि इस पूर्णिमा या पूनम को व्यासजी के नाम से जो मनाएगा। इस व्रत, नियम, जप करने वाले को अनंत लाभ होगा। तब से व्यास पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है।
वैसे तो प्रत्येक पूर्णिमा पुण्य फलदायी होती है, परंतु हिन्दू पंचांग का चौथा माह- आषाढ़, जिसकी पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा होती है। इसी दिन कृष्ण द्वैपायन (महर्षि वेद व्यास) का जन्म हुआ था। व्यासजी को प्रथम गुरु की भी उपाधि दी जाती है, क्योंकि गुरु व्यास ने ही पहली बार मानव जाति को चारों वेदों का ज्ञान दिया था। गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व इस वजह से मनाया जाता है। इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को ही गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा का यह पावन त्यौहार इस वर्ष 3 जुलाई 2023 (सोमवार) मनाया जायेगा। पूर्णिमा तिथि 2 जुलाई रात्रि 8:22 बजे लगेगी और 3 जुलाई सायंकाल 5:09 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार, गुरु पूर्णिमा 3 जुलाई 2023 को ही मनायी जायेगी। इस दिन गुरु शिष्य को तिलक करने की परम्परा होती है। कोई भी शिष्य पूरे साल अपने गुरु के पास जाएं या न जाये, परन्तु गुरु पूर्णिमा के दिन जाकर नतमस्तक होता है, तो गुरु वर्षभर का आशीर्वाद इस दिन एकसाथ प्रदान कर देता है, जिसका प्रभाव वर्षभर रहता है।
गुरु पूर्णिमा के दिन महर्षि वेद व्यास की पूजा-अर्चना करने से भी विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस दिन अपने-अपने गुरुओं का ध्यान करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गुरु कृपा से व्यक्ति का जीवन आनंद से भर जाता है। पूर्णिमा पर चंद्रमा की पूजा का भी विशेष महत्व होता है। चंद्रोदय होने के पश्चात चंद्रमा की पूजा अवश्य करें। चंद्रमा को अर्घ्य देने से दोषों से मुक्ति मिलती है। इस दिन निर्धन या अभावग्रस्त लोगों की सहायता करें। अगर आपके घर के आसपास गाय है, तो गाय को भोजन जरूर कराएं। मान्यता है, गाय को भोजन कराने से अनेक प्रकार के दोषों से मुक्ति मिलती है।
गुरु क्या है, महर्षि भृगु ने बताया है
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी के पांचवें मानस पुत्र महर्षि भृगु जी महाराज के द्वारा रचित भृगु संहिता में गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए लिखा है- गुरु शब्द का पर्यायवाची नहीं है। गु का अर्थ बताया गया है अंधकार और रु का अर्थ बताया गा है रोशनी, जिसका अर्थ हुआ एक ऐसा व्यक्तित्व जो अंधकार से रोशनी की और ले जा सके। महर्षि ने मनुष्य जीवन में तीन प्रकार के गुरु का वर्णन किया है- पहला गुरु माता को कहा गया है जो कि हमें बोलना, चलना, खाना-पीना इत्यादि प्रारम्भ में सब कुछ सिखाती है। दूसरा गुरु होता है, शिक्षा गुरु, जो हमें अक्षर ज्ञान की शिक्षा देता है, क्योंकि शिक्षा के बिना मनुष्य और पशु एक समान ही होते हैं। तीसरा सबसे महत्वपूर्ण होता है दीक्षा गुरु जो कि हमारे मानव जीवन को के सार तत्व ज्ञान के रूप में देकर दीक्षित करते हुए संसार रूपी भवसागर से पार होने का मार्गदर्शन करता है।
महर्षि भृगु जीवित गुरु को मानव जीवन के लिये अति महत्वपूर्ण बताते हैं। महर्षि समझाते हैं, गुरू किसी व्यक्ति का नाम नहीं है, बल्कि यह एक पद होता है और मनुष्य जीवन के लिये इस पद की क्यों आवश्यकता होती है। सच्चे गुरु का पद भगवान स्वरूप होता है। जिस प्रकार हम सूर्य को नगन आंखों से नहीं देख सकते, अगर देख लें तो अंधे हो सकते हैं। परन्तु हम चंद्रमा को देख सकते हैं ओर ऐसा करने से हमारी नेत्र ज्योति में भी बढ़ोत्तरी हो सकती है।
चंद्रमा का स्वयं का कोई प्रकाश नहीं होता, वह प्रकाश तो सूर्य का ही होता है। जिसे चंद्रमा द्वारा अवशोषित करके ठंडक में परिवर्तित करके फैलाया जाता है। ठीक उसी प्रकार हम देव आत्माओं के तप तेज के कारण उनके प्रत्यक्ष दर्शन नहीं कर सकते, क्योंकि हमारी शारीरिक एवं बौद्धिक क्षमता ही नहीं है। हमें अपने इष्टदेव के दर्शन अपने गुरु के रूप में ही करने चाहिए, जो कि चंद्रमा की भांति शीतल, शांत एवं शीतलता प्रदान करने वाला होता है। शक्ति तो देव आत्माओं की ही होती है परन्तु वह शक्ति जीवित गुरु के द्वारा प्रदान की जाती है।
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पूजा विधि, व्रत-
गुरु पूर्णिमा को "व्यास पूर्णिमा" भी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखकर श्रीहरि विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन अन्न दान, भंडारा इत्यादि किया व करवाया जाता है। इस दिन शिष्य को विधि-विधान से व्रत रखकर गुरु की पूजा अर्चना करनी चाहिए। ऐसा करने से उसे पूर्ण वर्ष गुरु कृपा का आशीर्वाद प्राप्त होता है और गुरु कवच बनकर सदा अपने शिष्य की रक्षा करता रहता है।
प्रातःकाल घर की सफाई करके स्नानादि से निपटकर पूजा का संकल्प लें। स्वस्थ किसी साफ सुथरे जगह पर सफेद वस्त्र बिछाकर उसपर व्यास-पीठ का निर्माण करें। गुरु की प्रतिमा स्थापित करने के बाद उन्हें चंदन, रोली, पुष्प, फल और प्रसाद आदि अर्पित करें। इसके बाद व्यासजी, शुक्रदेवजी, शंकराचार्यजी आदि गुरुओं को याद करके उनका आवाहन करना चाहिए। इसके बाद 'गुरु परंपरा सिद्धयर्थं व्यास पूजां करिष्ये' मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
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गुरु पूर्णिमा को "व्यास पूर्णिमा" भी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखकर श्रीहरि विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन अन्न दान, भंडारा इत्यादि किया व करवाया जाता है। इस दिन शिष्य को विधि-विधान से व्रत रखकर गुरु की पूजा अर्चना करनी चाहिए। ऐसा करने से उसे पूर्ण वर्ष गुरु कृपा का आशीर्वाद प्राप्त होता है और गुरु कवच बनकर सदा अपने शिष्य की रक्षा करता रहता है।
प्रातःकाल घर की सफाई करके स्नानादि से निपटकर पूजा का संकल्प लें। स्वस्थ किसी साफ सुथरे जगह पर सफेद वस्त्र बिछाकर उसपर व्यास-पीठ का निर्माण करें। गुरु की प्रतिमा स्थापित करने के बाद उन्हें चंदन, रोली, पुष्प, फल और प्रसाद आदि अर्पित करें। इसके बाद व्यासजी, शुक्रदेवजी, शंकराचार्यजी आदि गुरुओं को याद करके उनका आवाहन करना चाहिए। इसके बाद 'गुरु परंपरा सिद्धयर्थं व्यास पूजां करिष्ये' मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
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...प्रकाश की ओर ले जाए, वही है गुरु
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http://www.dharmnagari.com/2020/07/GuruPurnima2020.html
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http://www.dharmnagari.com/2022/07/Guru-Purnima-2022-Muhurt-vishesh-yog-Puja-vidhi-Kya-kare-Kya-nahi.html
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1- स्मरण से
2- दृष्टि से
3- शब्द से
4- स्पर्श से
1- पहला जैसे कछुवी रेत के भीतर अंडा देती है, पर स्वयं पानी के भीतर रहती हुई उस अंडे को याद करती रहती है, तो उसके स्मरण से अंडा पक जाता है। ऐसे ही गुरु का स्मरण करने मात्र से शिष्य को ज्ञान हो जाता है। यह है स्मरण दीक्षा।
2- दूसरा जैसे मछली जल में अपने अंडे को थोड़ी-थोड़ी देर में देखती रहती है, तो देखने मात्र से अंडा पक जाता है। ऐसे ही गुरु की कृपा-दृष्टि से शिष्य को ज्ञान हो जाता है। यह दृष्टि दीक्षा है।
3- तीसरा जैसे कुररी ( टिटिहरी) पृथ्वी पर अंडा देती है और आकाश में शब्द करती हुई घूमती है, तो उसके शब्द से अंडा पक जाता है। ऐसे ही गुरु अपने शब्दों से शिष्य को ज्ञान करा देता है। यह शब्द दीक्षा है।
4- चौथा जैसे मयूरी अपने अंडे पर बैठी रहती है, तो उसके स्पर्श से अंडा पक जाता है। ऐसे ही गुरु के हाथ के स्पर्श से शिष्य को ज्ञान हो जाता है, यह स्पर्श दीक्षा है।
देव और गुरु में पहले गुरु की पूजा करनी चाहिए। इसके पीछे एक एक आस्था से जुड़ी कहानी है, कि माँ पार्वती के साक्षात गुरु देवर्षि नारद थे। जब भगवान विष्णु ने नारदजी की परीक्षा ली, तो परिणामवश विष्णुजी को नारद जी ने शाप दिया, कि आपको भी मेरे भाँति स्त्री से वियोग होगा।
भगवान विष्णु ने उस श्राप का सम्मान श्रीराम रूप में रखा। तब भगवान शिव ने कहा- नारदजी ने ये क्या किया ? तब माँ पार्वती बोल उठी, गुरु कभी ग़लत नही हो सकते। जब ईश्वर गुरु से बड़ा स्वयं को नही मानते, तो हम तो तुच्छ मनुष्य हैं।
गुरु दोष है, करें गुरु पूर्णिमा को उपाय
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। सनातन हिंदू धर्म में प्राचीन काल से ही गुरु को विशेष महत्व दिया जाता है। गुरु ही जीवन में सही राह पर चलना सिखाते हैं, इसलिए गुरु पूर्णिमा का अत्यधिक महत्व है। ज्योतिष शास्त्र में भी गुरु को भगवान विष्णु और देव बृहस्पति के रूप में माना जाता है। कहते हैं, यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में गुरु कमजोर हो, तो उसे अनेक प्रकार की समस्या होती है। व्यक्ति किसी भी कार्य में सफल नहीं हो पाता है। जबकि, व्यक्ति की कुंडली में गुरु ग्रह प्रबल हो, तो उसे जीवन में अत्यधिक सफलता मिलती है। कुंडली में गुरु की स्थिति प्रबल या मजबूत करने कुछ उपाय बताए गए हैं, जिसे गुरु पूर्णिमा के दिन कर सकते हैं।
- यदि आपका कोई गुरु नहीं है, तो आप भगवान शिव या विष्णुजी को अपना गुरु मानकर गुरु पूर्णिमा के दिन उनकी पूजा-आराधना कर सकते हैं। मान्यता है, इससे कुंडली में गुरु दोष दूर होता है।
- कुंडली में गुरु ग्रह को मजबूत करने प्रत्येक गुरुवार को ‘ॐ बृ बृहस्पतये नमः’ मंत्र का जाप करें। इसका शुभारंभ आप गुरु पूर्णिमा से कर सकते हैं।
- व्यापार एवं कारोबार में लगातार हानि हो रही हो, तो आषाढ़ गुरु पूर्णिमा को किसी अभावग्रस्त या निर्धन व्यक्ति को पीले रंग का अनाज, पीला वस्त्र या पीली रंग की मिठाई दान करें।
- यदि आपका कोई गुरु नहीं है, तो आप भगवान शिव या विष्णुजी को अपना गुरु मानकर गुरु पूर्णिमा के दिन उनकी पूजा-आराधना कर सकते हैं। मान्यता है, इससे कुंडली में गुरु दोष दूर होता है।
- घर में सुख-शांति के लिए ईशान (पूर्व-उत्तर) दिशा या कोण का संबंध देव गुरु बृहस्पति से है। गुरु पूर्णिमा के दिन घर की पूर्वोत्तर कोण को हल्दी मिले जल से स्वच्छ करके यहाँ घी का दीपक अवश्य जलाएं। ऐसा करने से आपके पर ईश्वर का आशीर्वाद बना रहता है।
- पूर्णिमा तिथि में लक्ष्मी-नारायण की पूजा करना एवं कथा करवाना बहुत ही लाभप्रद माना गया है। इस पूर्णिमा को सत्यनारायण भगवान की पूजा करवाने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद और देवी लक्ष्मी की कृपा भी मिलती है। गुरु पूर्णिमा के दिन पुराण अथवा गीता पढ़ने से अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक लाभ मिलता है। इसी प्रकार इस दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से धन लक्ष्मी और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
- व्यापार एवं कारोबार में लगातार हानि हो रही हो, तो आषाढ़ गुरु पूर्णिमा को किसी अभावग्रस्त या निर्धन व्यक्ति को पीले रंग का अनाज, पीला वस्त्र या पीली रंग की मिठाई दान करें।
- किसी विद्यार्थी का मन में पढ़ाई में न लगे, किसी तरह का तनाव हो या असफल होने का भय हो, तो उन्हें गुरु पूर्णिमा के दिन गाय की सेवा करनी चाहिए। साथ ही गीता का इस तिथि को पाठ करना भी श्रेष्ठ माना गया है।
- कुंडली में गुरु दोष को कम करने एवं भाग्योदय के लिए गुरु पूर्णिमा के दिन शुभ मुहूर्त पर किसी पुरोहित द्वारा घर पर गुरु यंत्र की स्थापना कराएं और प्रतिदिन इसकी पूजा करें।
गुरु पूर्णिमा को क्या करें, क्या नहीं
- किसी को भी बिना अच्छी तरह से जानें अपना गुरु न बनाएं,
- बुद्धिमान, विवेकवान और शास्त्रज्ञ को ही अपना गुरु बनायें ना कि किसी चमत्कारिक व्यक्ति को,
- इन गुरु मंत्रों का करें जाप (Guru Purnima Mantra)-
ॐ गुं गुरवे नम:
ॐ ऐं श्रीं बृहस्पतये नम:
ॐ बृं बृहस्पतये नम:
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:
ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:
- किसी को भी बिना अच्छी तरह से जानें अपना गुरु न बनाएं,
- बुद्धिमान, विवेकवान और शास्त्रज्ञ को ही अपना गुरु बनायें ना कि किसी चमत्कारिक व्यक्ति को,
- इन गुरु मंत्रों का करें जाप (Guru Purnima Mantra)-
ॐ गुं गुरवे नम:
ॐ ऐं श्रीं बृहस्पतये नम:
ॐ बृं बृहस्पतये नम:
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:
ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:
गुरु ग्रह प्रबल करने के लिए-
गुरु-पूर्णिमा के दिन कुंडली में गुरु ग्रह को प्रबल (मजबूत) करने गुरु पूजन करना चाहिए। इससे हर तरह के दोषों में कमी या मुक्ति मिल जाएगी। इसके लिए बृहस्पति मंत्र 'ॐ बृं बृहस्पतये नमः' का जाप 11, 21 या अपनी योग्यता के अनुसार कर लें।
अपने गुरु का ध्यान करें और गुरु मंत्र का जाप करें। जिन्होंने अभी तक अपना गुरु नहीं बनाया है, वे भगवन शिव या श्रीहरि विष्णु को गुरु मानते हुए उनका ध्यान कर पंचाक्षर मंत्र का जप करें। जिन साधनों से ज्ञान मिलता है, उनकी पूजा करनी चाहिए। गुरु के उपदेश का पालन करना चाहिए। गुरुब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:,
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:।
अर्थात, गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।
अर्थात, गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।
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अमरनाथ यात्रा-2023 : हेलमेट पहनकर करेंगे श्रद्धालु यात्रा !
- 62-दिवसीय तीर्थयात्रा 31 अगस्त तक चलेगी, जो अब तक की सबसे लंबी यात्रा होगी
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http://www.dharmnagari.com/2023/06/Amarnath-Yatra-2023-wearing-Helmate-become-compulsory-61-days-Yatra-began.html
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