मलमास या अधिक मास में पड़ने वाली पद्मिनी या कमला या पुरुषोत्तमी एकादशी का फल क्यों होता है दोगुना ?
जानें महत्व, कथा व राशिफल
धर्म नगरी / DN News
श्रीकृष्ण बोले- हे पार्थ ! अधिक मास की एकादशी अनेक पुण्यों को देनेवाली है, उसका नाम ‘पद्मिनी’ है । इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को जाता है । यह अनेक पापों को नष्ट करनेवाली तथा मुक्ति और भक्ति प्रदान करनेवाली है । इसके फल व गुणों को ध्यानपूर्वक सुनो: दशमी के दिन व्रत शुरु करना चाहिए । एकादशी के दिन प्रात: नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पुण्य क्षेत्र में स्नान करने चले जाना चाहिए । उस समय गोबर, मृत्तिका, तिल, कुश तथा आमलकी चूर्ण से विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए।
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पद्मिनी एकादशी मलमास या अधिक मास में आती है। इसे कमला एकादशी या पुरुषोत्तमी एकादशी भी कहा जाता है। यह एकादशी मलमास या अधिक मास में आती है। पद्मिनी एकादशी 29 जुलाई 2023, दिन शनिवार को है।
अधिक मास में होने के कारण इस एकादशी का महत्व और अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि इस माह के स्वामी श्रीहरि विष्णु हैं और एकादशी तिथि भगवान को ही समर्पित है। ऐसे में पद्मिनी एकादशी का व्रत रखकर पूजा करने से दोगुना फल की प्राप्ति होती है। इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा के साथ ही पद्मिनी एकादशी व्रत की कथा भी पढ़नी चाहिए।
अधिक मास 18 जुलाई से प्रारंभ हो चुकी है, जिसका समापन 16 अगस्त (बुधवार) 2023 को होगा। इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। अधिक मास में आने वाली एकादशी का महत्व बहुत ज्यादा होता है, क्योंकि इस माह के स्वामी श्रीहरि विष्णु हैं और एकादशी तिथि भी इन्हें ही समर्पित है। ऐसे में पद्मिनी एकादशी का व्रत रखकर पूजा करने से दोगुना फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत से सालभर की एकादशियों का पुण्य मिल जाता है।
पंचांग के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि (28 जुलाई 2023, शुक्रवार) दोपहर 2:51 बजे आरंभ होगी। इसका समापन 29 जुलाई शनिवार को दोपहर 1:05 बजे होगा। उदया तिथि के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत 29 जुलाई, दिन शनिवार को रखा जाएगा।
पूजा मुहूर्त
29 जुलाई को पद्मिनी एकादशी का पूजा का मुहूर्त प्रातः 7:22 बजे से 9:04 बजे तक है। इसके बाद दोपहर में शुभ समय 12:27 बजे से सायं 5:33 बजे तक है।
व्रत विधि
पद्मिनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
फिर भगवान विष्णु की पूजा-आराधना करें।
ब्राह्मण को फलाहार का भोजन करवायें और उन्हें दक्षिणा दें।
इस दिन एकादशी व्रत कथा सुनें।
भगवान के भजन या मंत्रों का पाठ करें।
एकादशी व्रत द्वादशी के दिन पारण मुहूर्त में खोलें।
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व्रत का महत्व
पद्मिनी एकादशी जगत के पालनहार भगवान विष्णु को बेहद प्रिय है। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति पद्मिनी एकादशी व्रत का पालन सच्चे मन से करता है उसे विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति हर प्रकार की तप-तपस्या, यज्ञ और व्रत आदि से मिलने वाले फल के समान फल प्राप्त करता है।
पद्मिनी एकादशी व्रत कथा : अर्जुन-श्रीकृष्ण प्रसंग
अर्जुन ने कहा- हे भगवन् ! अब आप अधिक (लौंद/ मल/ पुरुषोत्तम) मास की शुक्लपक्ष की एकादशी के विषय में बतायें, उसका नाम क्या है तथा व्रत की विधि क्या है ? इसमें किस देवता की पूजा की जाती है और इसके व्रत से क्या फल मिलता है ?
श्रीकृष्ण बोले- हे पार्थ ! अधिक मास की एकादशी अनेक पुण्यों को देनेवाली है, उसका नाम ‘पद्मिनी’ है । इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को जाता है । यह अनेक पापों को नष्ट करनेवाली तथा मुक्ति और भक्ति प्रदान करनेवाली है । इसके फल व गुणों को ध्यानपूर्वक सुनो: दशमी के दिन व्रत शुरु करना चाहिए । एकादशी के दिन प्रात: नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पुण्य क्षेत्र में स्नान करने चले जाना चाहिए । उस समय गोबर, मृत्तिका, तिल, कुश तथा आमलकी चूर्ण से विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए।
स्नान करने से पहले शरीर में मिट्टी लगाते हुए उसीसे प्रार्थना करनी चाहिए- ‘हे मृत्तिके ! मैं तुमको नमस्कार करता हूँ । तुम्हारे स्पर्श से मेरा शरीर पवित्र हो । समस्त औषधियों से पैदा हुई और पृथ्वी को पवित्र करनेवाली, तुम मुझे शुद्ध करो । ब्रह्मा के थूक से पैदा होनेवाली ! तुम मेरे शरीर को छूकर मुझे पवित्र करो । हे शंख चक्र गदाधारी देवों के देव ! जगन्नाथ ! आप मुझे स्नान के लिए आज्ञा दीजिये ।’
इसके उपरान्त वरुण मंत्र को जपकर पवित्र तीर्थों के अभाव में उनका स्मरण करते हुए किसी तालाब में स्नान करना चाहिए । स्नान करने के पश्चात् स्वच्छ और सुन्दर वस्त्र धारण करके संध्या, तर्पण करके मंदिर में जाकर भगवान की धूप, दीप, नैवेघ, पुष्प, केसर आदि से पूजा करनी चाहिए । उसके उपरान्त भगवान के सम्मुख नृत्य गान आदि करें ।
भक्तजनों के साथ भगवान के सामने पुराण की कथा सुननी चाहिए । अधिक मास की शुक्लपक्ष की ‘पद्मिनी एकादशी’ का व्रत निर्जल करना चाहिए । यदि मनुष्य में निर्जल रहने की शक्ति न हो तो उसे जल पान या अल्पाहार से व्रत करना चाहिए । रात्रि में जागरण करके नाच और गान करके भगवान का स्मरण करते रहना चाहिए । प्रति पहर मनुष्य को भगवान या महादेवजी की पूजा करनी चाहिए ।
पहले पहर में भगवान को नारियल, दूसरे में बिल्वफल, तीसरे में सीताफल और चौथे में सुपारी, नारंगी अर्पण करना चाहिए। इससे पहले पहर में अग्नि होम का, दूसरे में वाजपेय यज्ञ का, तीसरे में अश्वमेघ यज्ञ का और चौथे में राजसूय यज्ञ का फल मिलता है। इस व्रत से बढ़कर संसार में कोई यज्ञ, तप, दान या पुण्य नहीं है। एकादशी का व्रत करनेवाले मनुष्य को समस्त तीर्थों और यज्ञों का फल मिल जाता है।
इस तरह से सूर्योदय तक जागरण करना चाहिए और स्नान करके ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए। इस प्रकार जो मनुष्य विधिपूर्वक भगवान की पूजा तथा व्रत करते हैं, उनका जन्म सफल होता है और वे इस लोक में अनेक सुखों को भोगकर अन्त में भगवान विष्णु के परम धाम को जाते हैं। हे पार्थ ! मैंने तुम्हें एकादशी के व्रत का पूरा विधान बता दिया।
अब जो ‘पद्मिनी एकादशी’ का भक्तिपूर्वक व्रत कर चुके हैं, उनकी कथा कहता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो। यह सुन्दर कथा पुलस्त्यजी ने नारदजी से कही थी। एक समय कार्तवीर्य ने रावण को अपने बंदीगृह में बंद कर लिया। उसे मुनि पुलस्त्यजी ने कार्तवीर्य से विनय करके छुड़ाया। इस घटना को सुनकर नारदजी ने पुलस्त्यजी से पूछा- ‘हे महाराज ! उस मायावी रावण को, जिसने समस्त देवताओं सहित इन्द्र को जीत लिया, कार्तवीर्य ने किस प्रकार जीता, सो आप मुझे समझाइये।’
इस पर पुलस्त्यजी बोले- ‘हे नारदजी ! पहले कृतवीर्य नामक एक राजा राज्य करता था । उस राजा को सौ स्त्रियाँ थीं, उसमें से किसीको भी राज्यभार सँभालनेवाला योग्य पुत्र नहीं था । तब राजा ने आदरपूर्वक पण्डितों को बुलवाया और पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ किये, परन्तु सब असफल रहे । जिस प्रकार दु:खी मनुष्य को भोग नीरस मालूम पड़ते हैं, उसी प्रकार उसको भी अपना राज्य पुत्र बिना दुःखमय प्रतीत होता था।
इसके उपरान्त वरुण मंत्र को जपकर पवित्र तीर्थों के अभाव में उनका स्मरण करते हुए किसी तालाब में स्नान करना चाहिए । स्नान करने के पश्चात् स्वच्छ और सुन्दर वस्त्र धारण करके संध्या, तर्पण करके मंदिर में जाकर भगवान की धूप, दीप, नैवेघ, पुष्प, केसर आदि से पूजा करनी चाहिए । उसके उपरान्त भगवान के सम्मुख नृत्य गान आदि करें ।
भक्तजनों के साथ भगवान के सामने पुराण की कथा सुननी चाहिए । अधिक मास की शुक्लपक्ष की ‘पद्मिनी एकादशी’ का व्रत निर्जल करना चाहिए । यदि मनुष्य में निर्जल रहने की शक्ति न हो तो उसे जल पान या अल्पाहार से व्रत करना चाहिए । रात्रि में जागरण करके नाच और गान करके भगवान का स्मरण करते रहना चाहिए । प्रति पहर मनुष्य को भगवान या महादेवजी की पूजा करनी चाहिए ।
पहले पहर में भगवान को नारियल, दूसरे में बिल्वफल, तीसरे में सीताफल और चौथे में सुपारी, नारंगी अर्पण करना चाहिए। इससे पहले पहर में अग्नि होम का, दूसरे में वाजपेय यज्ञ का, तीसरे में अश्वमेघ यज्ञ का और चौथे में राजसूय यज्ञ का फल मिलता है। इस व्रत से बढ़कर संसार में कोई यज्ञ, तप, दान या पुण्य नहीं है। एकादशी का व्रत करनेवाले मनुष्य को समस्त तीर्थों और यज्ञों का फल मिल जाता है।
इस तरह से सूर्योदय तक जागरण करना चाहिए और स्नान करके ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए। इस प्रकार जो मनुष्य विधिपूर्वक भगवान की पूजा तथा व्रत करते हैं, उनका जन्म सफल होता है और वे इस लोक में अनेक सुखों को भोगकर अन्त में भगवान विष्णु के परम धाम को जाते हैं। हे पार्थ ! मैंने तुम्हें एकादशी के व्रत का पूरा विधान बता दिया।
अब जो ‘पद्मिनी एकादशी’ का भक्तिपूर्वक व्रत कर चुके हैं, उनकी कथा कहता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो। यह सुन्दर कथा पुलस्त्यजी ने नारदजी से कही थी। एक समय कार्तवीर्य ने रावण को अपने बंदीगृह में बंद कर लिया। उसे मुनि पुलस्त्यजी ने कार्तवीर्य से विनय करके छुड़ाया। इस घटना को सुनकर नारदजी ने पुलस्त्यजी से पूछा- ‘हे महाराज ! उस मायावी रावण को, जिसने समस्त देवताओं सहित इन्द्र को जीत लिया, कार्तवीर्य ने किस प्रकार जीता, सो आप मुझे समझाइये।’
इस पर पुलस्त्यजी बोले- ‘हे नारदजी ! पहले कृतवीर्य नामक एक राजा राज्य करता था । उस राजा को सौ स्त्रियाँ थीं, उसमें से किसीको भी राज्यभार सँभालनेवाला योग्य पुत्र नहीं था । तब राजा ने आदरपूर्वक पण्डितों को बुलवाया और पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ किये, परन्तु सब असफल रहे । जिस प्रकार दु:खी मनुष्य को भोग नीरस मालूम पड़ते हैं, उसी प्रकार उसको भी अपना राज्य पुत्र बिना दुःखमय प्रतीत होता था।
अन्त में वह तप के द्वारा ही सिद्धियों को प्राप्त जानकर तपस्या करने के लिए वन को चला गया। उसकी स्त्री भी (हरिश्चन्द्र की पुत्री प्रमदा) वस्त्रालंकारों को त्यागकर अपने पति के साथ गन्धमादन पर्वत पर चली गयी। उस स्थान पर इन लोगों ने दस हजार वर्ष तक तपस्या की परन्तु सिद्धि प्राप्त न हो सकी । राजा के शरीर में केवल हड्डियाँ रह गयीं। यह देखकर प्रमदा ने विनयसहित महासती अनसूया से पूछा: मेरे पतिदेव को तपस्या करते हुए दस हजार वर्ष बीत गये, परन्तु अभी तक भगवान प्रसन्न नहीं हुए हैं, जिससे मुझे पुत्र प्राप्त हो। इसका क्या कारण है ?
इस पर अनसूया बोली कि अधिक (लौंद/मल ) मास में जो कि छत्तीस महीने बाद आता है, उसमें दो एकादशी होती है। इसमें शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम ‘पद्मिनी’ और कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम ‘परमा’ है। उसके व्रत और जागरण करने से भगवान तुम्हें अवश्य ही पुत्र देंगे।
इसके पश्चात् अनसूयाजी ने व्रत की विधि बतलायी। रानी ने अनसूया की बताई विधि के अनुसार एकादशी का व्रत और रात्रि में जागरण किया। इससे भगवान विष्णु उस पर बहुत प्रसन्न हुए और वरदान माँगने के लिए कहा।
इस पर अनसूया बोली कि अधिक (लौंद/मल ) मास में जो कि छत्तीस महीने बाद आता है, उसमें दो एकादशी होती है। इसमें शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम ‘पद्मिनी’ और कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम ‘परमा’ है। उसके व्रत और जागरण करने से भगवान तुम्हें अवश्य ही पुत्र देंगे।
इसके पश्चात् अनसूयाजी ने व्रत की विधि बतलायी। रानी ने अनसूया की बताई विधि के अनुसार एकादशी का व्रत और रात्रि में जागरण किया। इससे भगवान विष्णु उस पर बहुत प्रसन्न हुए और वरदान माँगने के लिए कहा।
रानी ने कहा- आप यह वरदान मेरे पति को दीजिये।
प्रमदा का वचन सुनकर भगवान विष्णु बोले- ‘हे प्रमदे ! मल मास (लौंद) मुझे बहुत प्रिय है। उसमें भी एकादशी तिथि मुझे सबसे अधिक प्रिय है। इस एकादशी का व्रत तथा रात्रि जागरण तुमने विधिपूर्वक किया, इसलिए मैं तुम पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ।’
प्रमदा का वचन सुनकर भगवान विष्णु बोले- ‘हे प्रमदे ! मल मास (लौंद) मुझे बहुत प्रिय है। उसमें भी एकादशी तिथि मुझे सबसे अधिक प्रिय है। इस एकादशी का व्रत तथा रात्रि जागरण तुमने विधिपूर्वक किया, इसलिए मैं तुम पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ।’
इतना कहकर भगवान विष्णु राजा से बोले- ‘हे राजेन्द्र ! तुम अपनी इच्छा के अनुसार वर माँगो । क्योंकि तुम्हारी स्त्री ने मुझको प्रसन्न किया है।’
भगवान की मधुर वाणी सुनकर राजा बोला- ‘हे भगवन् ! आप मुझे सबसे श्रेष्ठ, सबके द्वारा पूजित तथा आपके अतिरिक्त देव दानव, मनुष्य आदि से अजेय उत्तम पुत्र दीजिये।’ भगवान तथास्तु कहकर अन्तर्धान हो गये । उसके बाद वे दोनों अपने राज्य को वापस आ गये। उन्हीं के यहाँ कार्तवीर्य उत्पन्न हुए थे। वे भगवान के अतिरिक्त सबसे अजेय थे। इन्होंने रावण को जीत लिया था। यह सब ‘पद्मिनी’ के व्रत का प्रभाव था। इतना कहकर पुलस्त्यजी वहाँ से चले गये।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- हे पाण्डुनन्दन अर्जुन ! यह मैंने अधिक (लौंद / मल / पुरुषोत्तम) मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत कहा है। जो मनुष्य इस व्रत को करता है, वह विष्णुलोक को जाता है।
भगवान की मधुर वाणी सुनकर राजा बोला- ‘हे भगवन् ! आप मुझे सबसे श्रेष्ठ, सबके द्वारा पूजित तथा आपके अतिरिक्त देव दानव, मनुष्य आदि से अजेय उत्तम पुत्र दीजिये।’ भगवान तथास्तु कहकर अन्तर्धान हो गये । उसके बाद वे दोनों अपने राज्य को वापस आ गये। उन्हीं के यहाँ कार्तवीर्य उत्पन्न हुए थे। वे भगवान के अतिरिक्त सबसे अजेय थे। इन्होंने रावण को जीत लिया था। यह सब ‘पद्मिनी’ के व्रत का प्रभाव था। इतना कहकर पुलस्त्यजी वहाँ से चले गये।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- हे पाण्डुनन्दन अर्जुन ! यह मैंने अधिक (लौंद / मल / पुरुषोत्तम) मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत कहा है। जो मनुष्य इस व्रत को करता है, वह विष्णुलोक को जाता है।
पद्मिनी एकादशी व्रत कथा
पद्मिनी एकादशी का व्रत रखकर पूजा करने से दोगुना फल की प्राप्ति होती है। इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा के साथ ही पद्मिनी एकादशी व्रत की कथा भी पढ़नी चाहिए। कथा इस प्रकार है-
माता अनुसूया ने रानी पद्मिनी से कहा कि मलमास हर 3 साल में एक बार आता है। मलमास के शुक्ल पक्ष की पद्मिनी एकादशी को जागरण करके व्रत रखने से मनोकामना जल्द ही पूर्ण होती है और भगवान विष्णु प्रसन्न होकर पुत्र प्राप्ति का वरदान देते हैं। पुनः जब मलमास आया तो रानी ने पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा। दिन में कुछ भी नहीं खाया और रात्रि में जागरण किया। रानी पद्मिनी के इस व्रत से प्रसन्न होकर श्रीहरि विष्णु ने रानी को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया।
भगवान विष्णु के आशीर्वाद से रानी गर्भवती हुई और 9 माह बाद एक पुत्र को जन्म दिया। वह पुत्र काफी बलवान और पराक्रमी था। तीनों लोकों में उसके पराक्रम का परचम लहरा रहा था। ऐसे में पद्मिनी एकादशी का व्रत करने से संतान की प्राप्ति होती है और व्यक्ति को बैकुंठ प्राप्त होता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, त्रेता युग में एक पराक्रमी राजा कृतवीर्य था। राजा की कई रानियां थीं लेकिन फिर भी उसकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति की कामना से राजा ने अपनी रानियों सहित कठोर तपस्या की, लेकिन उन्हें उनकी तपस्या का फल प्राप्त नहीं हुआ। ऐसे में राजा की एक रानी, जिनका नाम पद्मिनी था उन्होंने माता अनुसूया से इसका उपाय पूछा। तब माता ने उन्हें राजा सहित मलमास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा।
माता अनुसूया ने रानी पद्मिनी से कहा कि मलमास हर 3 साल में एक बार आता है। मलमास के शुक्ल पक्ष की पद्मिनी एकादशी को जागरण करके व्रत रखने से मनोकामना जल्द ही पूर्ण होती है और भगवान विष्णु प्रसन्न होकर पुत्र प्राप्ति का वरदान देते हैं। पुनः जब मलमास आया तो रानी ने पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा। दिन में कुछ भी नहीं खाया और रात्रि में जागरण किया। रानी पद्मिनी के इस व्रत से प्रसन्न होकर श्रीहरि विष्णु ने रानी को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया।
भगवान विष्णु के आशीर्वाद से रानी गर्भवती हुई और 9 माह बाद एक पुत्र को जन्म दिया। वह पुत्र काफी बलवान और पराक्रमी था। तीनों लोकों में उसके पराक्रम का परचम लहरा रहा था। ऐसे में पद्मिनी एकादशी का व्रत करने से संतान की प्राप्ति होती है और व्यक्ति को बैकुंठ प्राप्त होता है।
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पद्मिनी एकादशी का राशिफल
मेष- खान-पान संभल-संभाल कर करना चाहिए, मौसम के परिवर्तन को लेकर सावधान रहें, बचाव रखना ठीक रहेगा, उधारी के चक्कर में भी न फंंसें।
वृष- अर्थ तथा कारोबारी दशा अच्छी, अनमने मन से कोई यत्न न करें, दोनों पति-पत्नी किसी न किसी बात पर एक-दूसरे से रुष्ट रह सकते हैं।
मिथुन- मन डरा-डरा सा रहेगा, जिस कारण आप किसी भी काम को हाथ में लेने के लिए तैयार न होंगे, यात्रा भी अपसैट रख सकता है।
कर्क- मन पर गलत सोच तथा नैगेटिविटी अपना असर रख सकती है, संतान के साथ भी तालमेल में अभाव नजर आएगा।
सिंह- कोई भी प्रॉपर्टी या न्यायालय तथा सरकारी काम हाथ में न लेने से बचें, क्योंकि उसके सिरे चढ़ने की कोई आशा न के बराबर है।
कन्या- कामकाजी साथी, कामकाजी पार्टनर आपकी किसी भी बात को न ध्यान से सुनेंगे, न ही उसे महत्व देंगे।
तुला- कामकाजी भागदौड़ की मुनासिब रिटर्न न मिलेगी, किसी के नीचे काम धंधा में या उधारी में अपनी कोई पेमैंट भी सोच समझकर फंसाएं।
वृश्चिक- गलत कामों की ओर जाने से मन को रोकें, उस पर नियंत्रण रखें। मन अशांत या डिस्टर्ब सा रहेगा, परन्तु कामकाजी दशा सही रहेगी।
धनु- खर्चों की अधिकता अर्थदशा तंग रखेगी, लेन-देन तथा लिखत-पढ़त के काम भी सावधान रह कर करें, नुक्सान का भी डर।
मकर- सितारा धन लाभ वाला, कामकाजी योजना अच्छा परिणाम देगी। संक्षिप्त कारोबारी टूरिंग भी अनुकूल रहेगी, मान-सम्मान की प्राप्ति।
कुम्भ- किसी अफसर के सख्त तथा नाराजगी वाले रुख के कारण आपका कोई बना-बनाया काम उलझ या बिगड़ सकता है, सावधान रहें।
मीन- समय बाधाओं, रुकावटों वाला, धार्मिक कामों में जी न लगेगा, अपने मन तथा बुद्धि पर जब्त रखें ताकि आप से कोई गलत काम न हो जाए।
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