#Shravan : क्यों सबसे पवित्र माना जाता है सावन का मास ? "सावन शिवरात्रि" में कुंडली के दोषों को दूर करने के उपाय, मनोकामना पूर्ति हेतु जपें ये 108 नाम
नई आध्यात्मिक चेतना का संचार करता है श्रावण मास
क्यों सबसे पवित्र माना जाता है सावन का मास ?
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देवाधिदेव महादेव का प्रिय माह सावन चल रहा है। चार जुलाई से आरंभ होकर ये महीना इस बार 31 अगस्त को समाप्त होगा। भोले बाबा को प्रसन्न करने के लिए सावन का महीना सबसे उत्तम माना गया है। इस पूरे माह में शिव जी की विधि-विधान से पूजा की जाती है।
श्रावण मास जनमानस में एक नई आध्यात्मिक चेतना का संचार करता है। हरियाली तीज, रक्षाबंधन, नाग पंचमी, श्रावण पूर्णिमा, ये सभी श्रावण मास के पर्व मनुष्य के अंतःकरण में सांस्कृतिक एकता एवं धार्मिकता का संचार करते हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंगों एवं समस्त शिवालयों में शिव जी का अभिषेक प्रत्येक शिव भक्त के हृदय को पावन करता है।
एकाग्रता, पवित्रता एवं संयम के साथ श्रावण मास में शिव की आराधना अकाल मृत्यु एवं मानसिक तथा शारीरिक व्याधियों को नष्ट करने वाली है। महामृत्युंजय मंत्र से शिव की भक्ति विशेष रूप से प्रभावी मानी गई है। मार्कंडेय ऋषि ने श्रावण मास में ही शिव जी की घोर तपस्या की जिससे शिव जी ने प्रसन्न होकर उन पर दीर्घायु होने की कृपा दृष्टि की थी।
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क्यों सबसे पवित्र माना जाता है सावन का मास ?
◆ श्रावण या सावन, हिन्दू पंचांग में सबसे पवित्र मास माना जाता है, और इसे कई त्योहारों और छोटे उत्सवों के साथ मनाया जाता है। इनमें जन्माष्टमी, रक्षा बंधन, नाग पंचमी, ओणम और कजोरी पूर्णिमा शामिल हैं।
◆ उत्तर भारत और दक्षिण भारत में श्रावण मास में 15 दिन का अंतर होता है। इस अंतर की वजह अलग-अलग पंचांग प्रणालियों के अनुसार होती है। उत्तर भारतीयों द्वारा पालन किए जाने वाले पूर्णिमान्त पंचांग में पूर्णिमा (पूर्ण चंद्रमा) के तुरंत बाद श्रावण मास आरंभ होता है और अगले पूर्णिमा तक जारी रहता है। इस पंचांग में, मास का कृष्ण पक्ष (अवनति अवस्था) शुक्ल पक्ष (वृद्धि अवस्था) से पहले आता है। वहीं, दक्षिण भारतीय अमावस्यान्त पंचांग का पालन करते हैं, जहां मास अमावस्या के बाद आरंभ होता है और इस पंचांग मेंशुक्ल पक्ष, कृष्ण पक्ष के पहलेआता है।
◆ वेदों में सावन माह को 'नभस' नाम से वर्णित किया गया है। श्रावण पूर्णिमा (श्रावण मास में पूर्णिमा का दिन) भगवान विष्णु के नक्षत्र (जन्म नक्षत्र), श्रवण नक्षत्र के साथ मेल खाती है, इसलिए पूरे महीने को श्रावण मास कहा जाता है।
◆ श्रावण मास के दौरान दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुई हैं- पहली घटना, यह है कि भगवान शिव ने इस माह में हलाहल नामक विष को सेवन किया था और इसके प्रभाव को कम करने के लिए भगवान इंद्र, जो की वर्षा और गरज के देवता हैं, लगातार बारिश की थी। इसलिए श्रावण में प्रचुर वर्षा होने का कारण माना जाता है। दूसरी घटना, भगवान शिव की पत्नी सती ने श्रावण मास में आग कुंड में अपने आपको दहन कर दिया था। इसके कारण माना जाता है, इस मास में भगवान शिव की पूजा करना सामान्य दिनों की तुलना में 108 गुना अधिक महत्वपूर्ण होता है।
◆ श्रावण मास के श्रावण सोमवार के अलावा, तीन और दिन- श्रावण मंगलवार, शुक्रवार और शनिवार को श्रावण मास में बहुत ही शुभ माना जाता है।
◆ कई लोग श्रावण में किसी भी प्रकार का मुंडन नहीं करते हैं। इसका कारण मॉनसून मौसम होने के कारण सीधे उस्तरे वाली नाईफ पर जंग लगने की समस्या होती थी / है, जिसके कारण बीमारियों के संक्रमण होने कि संभावनाएं बढ़ जाती है।
श्रावण मास में जलधारा के माध्यम से प्रकृति जिस प्रकार धरती का अभिषेक करती है, उसी प्रकार प्रत्येक शिव भक्त आस्था और उपासना में मग्न होकर पावन जल से भगवान शिव का अभिषेक करता है। महाभारत में बताया गया है कि इस पवित्र श्रावण मास में जो व्यक्ति संयम, नियमपूर्वक भक्ति भाव से प्रतिदिन भगवान शंकर का आराधन करता है, वह स्वयं भी पूजनीय हो जाता है तथा कुल की वृद्धि करते हुए यश एवं गौरव प्राप्त करता है।
सावन शिवरात्रि पर करें उपाय
इस साल सावन शिवरात्रि का महापर्व 15 जुलाई को है। इसी के साथ सावन शिवरात्रि पर वृद्धि योग बन रहा है। शुभ योग बनने से सावन शिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा करने पर दोगुने फल की प्राप्ति होती है। ज्योतिष शास्त्र में सावन शिवरात्रि पर कुछ उपाय करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है और कई तरह के ग्रह दोषों से मुक्ति मिल जाती है। आइए जानते हैं सावन शिवरात्रि के दिन कौन-कौन से उपाय कारगर सिद्ध होते हैं।
- सावन शिवरात्रि पर महादेव का दूध और जल से अभिषेक करें।
- इस दिन सिर्फ फलों का सेवन करें और अन्न से दूर रहें।
- अपने अंदर साफ और शुद्ध विचार को उत्पन्न करने की कोशिश करें।
- शिव पुराण का पाठ करें या शिव मंत्रों का जाप कर सकते हैं। महादेव और माँ पार्वती के भजन भी सुनकर मन को शांत करें।
- घर में दिन के समय शिवजी और माँ पार्वती के लिए एक कीर्तन कर या करवा सकते हैं, सभी को प्रसाद वितरित करें।
- यदि घर में कोई कावड़ ला रहा है, तो उसको कावड़-यात्रा से जुड़े नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए।
- विवाहित जोड़े सावन शिवरात्रि का व्रत एकसाथ करें, तो घर और जीवन में आनंद बना रहता है। व्रत रख रहे हैं तो व्रत में अन्न का सेवन करने से बचें। इस व्रत में तुलसी का उपयोग नहीं करना चाहिए। इस दिन खट्टी चीजें भी नहीं खानी चाहिए। घर पर बनी मिठाई और फलाहार का एक समय सेवन किया जाना चाहिए।
- जीवनसाथी की खोज कर रही लड़कियों को सावन का व्रत पूरे नियम के साथ करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान शिव जैसा वर प्राप्त होता है।
- सावन शिवरात्रि के दिन मांस या मदिरा का सेवन कदापि नहीं करना चाहिए। दिन में सोना भी वर्जित है, केवल भजन और मंत्र का जाप करें।
- सावन माह के दौरान दूध पीना शुभ नहीं माना जाता (इसके वैज्ञानिक कारण हैं), परन्तु सावन शिवरात्रि के दिन तो इसका सेवन बिल्कुल न करें। सावन में शिव जी पर ही दूध चढ़ाया जाता है।
कालसर्प दोष, पितृदोष व शनि का प्रकोप हेतु
सावन शिवरात्रि पर शिव-पार्वती के पूजन करने से उनकी सदैव कृपा बनी रहती है और प्रसन्न होकर वे अपने भक्तों की हर मनोकामना को शीघ्र पूर्ण करते हैं। कुँवारी कन्याएं इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करती हैं तो उन्हें मनचाहा वर मिलता है। इसके अलावा सुहागन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। जिन लोगों की कुंडली में कालसर्पदोष, पितृदोष और शनि का प्रकोप है वे सावन शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक,पंचामृत या रुद्राभिषेक करें, शिव-कृपा से लाभ होगा।
सावन शिवरात्रि पर पौधरोपण
नारद पुराण के अनुसार, सावन शिवरात्रि पर शिवपूजा के साथ वृक्षारोपण करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। धर्मग्रंथों के अनुसार, अच्छे स्वास्थ्य के किए नीम का पौधा लगाएं। संतान के लिए केले का पौधा, सुख-शांति-समृद्धि के लिए तुलसी और लक्ष्मी प्राप्ति की इच्छा हो तो आंवले का पौधा लगाना शुभ माना गया है। पीपल लगाने से पितृ दोष दूर होकर लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है इसी प्रकार वटवृक्ष मोक्ष प्रदान करता है।शिवजी और गणेशजी का प्रिय वृक्ष सभी रोगों का नाश करता है।अशोक लगाने से जीवन के समस्त शोक दूर होते हैं।
पितृदोष से मुक्ति
कुंडली में पितृदोष होने से जीवन में बहुत कष्ट आते हैं, मांगलिक कार्यो में बाधाएं आती है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए हवन-पूजा, श्राद्ध, तर्पण आदि करने के लिए सावन शिवरात्रि श्रेष्ठ तिथि होती है।
मनोकामना हेतु दीप दान
अग्नि पुराण के अनुसार जो मनुष्य इस दिन मंदिर अथवा नदियों के किनारे दीपदान करता है उसके घर में सुख समृद्धि आती है। सावन में जब तक दीपक जलता है,तब तक भगवान स्वयं उस स्थान पर उपस्थित रहते है, इसलिए वहां पर मांगी गई मनोकामनाएं शीघ्र पूरी होती हैं।
शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा, चंदन, अक्षत, शमीपत्र आदि अनेक शुभ वस्तुएं चढ़ाने से महादेव शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं। परन्तु कुछ वस्तुओं को शिवजी की पूजा में वर्जित बताया गया है। शास्त्रानुसार जिनका उपयोग शिव आराधना व पूजा में बिल्कुल नहीं करना चाहिए। शिवपुराण के अनुसार, कभी भी शिवलिंग या भगवान शिव को इन वस्तुओं को न चढ़ायें-
तुलसी दल Basil
भगवान विष्णु की उपासना तुलसी दल के बिना पूर्ण नहीं होती,परन्तु भगवान शिव की पूजा में तुलसी दल का प्रयोग वर्जित माना गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने तुलसी के पति असुर जालंधरका वध किया था। इसलिए उन्होंने स्वयं भगवान शिव को अपने अलौकिक और दैवीय गुणों वाले पत्तों से वंचित कर दिया।
केतकी के पुष्प
शिवपुराण की कथा के अनुसार, केतकी फूल ने ब्रह्मा जी के झूठ में साथ दिया था, जिससे रुष्ट होकर भोलनाथ ने केतकी के फूल को श्राप दिया और कहा कि शिवलिंग पर कभी केतकी के फूल को अर्पित नहीं किया जाएगा। इसी श्राप के बाद से शिव को केतकी के फूल अर्पित किया जाना अशुभ माना जाता है।
हल्दी Turmeric
हल्दी को कभी भी भगवन शिव को अर्पित करना चाहिए, क्योंकि हल्दी को स्त्री से संबंधित माना गया है, जबकि शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक है। ऐसे में शिव-पूजा में हल्दी का उपयोग करने से पूजा का फल नहीं मिलता है। इसी कारण से शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है। हल्दी की प्रकृति या तासीर गर्म होने के कारण इसे शिवलिंग पर चढ़ाना वर्जित माना जाता है। इसलिए शिवलिंग पर ठंडी वस्तुएं जैसे बेलपत्र, भांग, गंगाजल, चंदन, कच्चा दूध चढ़ाते हैं।
शंखजल Water of conch
दैत्य शंखचूड़ के अत्याचारों से देवता परेशान थे। भगवान शंकर ने उसका वध किया था, जिसके बाद उसका शरीर भस्म हो गया। उस भस्म से शंख की उत्पत्ति हुई थी। शिवजी ने शंखचूड़ का वध किया इसलिए कभी भी शंख से शिवजी को जल अर्पित नहीं किया जाता है।
कुमकुम या सिंदूर Vermilion
सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबे और स्वस्थ जीवन की कामना हेतु अपने मांग में सिंदूर लगाती हैं और भगवान को भी अर्पित करती हैं। लेकिन शिव तो विनाशक हैं, यही वजह है कि सिंदूर से भगवान शिव की सेवा करना अशुभ माना जाता है।
खंडित चावल broken rice
खंडित चावल broken rice
शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव पर अखंड और धुले हुए स्वच्छ चावल श्रद्धापूर्वक चढ़ाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। खंडित या टूटा हुआ चावल अपूर्ण और अशुद्ध माना गया है। इसलिए यह शिवजी को नही चढ़ाया जाता। शिवजी के ऊपर एक वस्त्र चढ़ाकर उसके ऊपर चावल रखकर समर्पित करना और भी उत्तम माना गया है।
शिव जी के 108 नाम
कहते हैं, जो भक्त सच्चे मन से सावन में भगवान भोलेनाथ की विधिवत पूजा-अर्चना करता है, उसपर शिव शम्भू के साथ मां पार्वती भी प्रसन्न होती हैं। अविवाहित लड़कियां यदि सावन माह में सोमवार का व्रत करती हैं, तो उन्हें योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है। साथ ही सावन में शिव जी के 108 नामों का रोजाना जाप करने से महादेव प्रसन्न होते हैं। शिव जी के 108 नाम इस प्रकार हैं-
ॐ भोलेनाथ नमः
ॐ भोलेनाथ नमः
ॐ कैलाश पति नमः
ॐ भूतनाथ नमः
ॐ नंदराज नमः
ॐ नन्दी की सवारी नमः
ॐ ज्योतिलिंग नमः
ॐ महाकाल नमः
ॐ रुद्रनाथ नमः
ॐ भीमशंकर नमः
ॐ नटराज नमः
ॐ प्रलेयन्कार नमः
ॐ चंद्रमोली नमः
ॐ डमरूधारी नमः
ॐ चंद्रधारी नमः
ॐ मलिकार्जुन नमः
ॐ भीमेश्वर नमः
ॐ विषधारी नमः
ॐ बम भोले नमः
ॐ ओंकार स्वामी नमः
ॐ ओंकारेश्वर नमः
ॐ शंकर त्रिशूलधारी नमः
ॐ विश्वनाथ नमः
ॐ अनादिदेव नमः
ॐ उमापति नमः
ॐ गोरापति नमः
ॐ गणपिता नमः
ॐ भोले बाबा नमः
ॐ शिवजी नमः
ॐ शम्भु नमः
ॐ नीलकंठ नमः
ॐ महाकालेश्वर नमः
ॐ त्रिपुरारी नमः
ॐ त्रिलोकनाथ नमः
ॐ त्रिनेत्रधारी नमः
ॐ बर्फानी बाबा नमः
ॐ जगतपिता नमः
ॐ मृत्युन्जन नमः
ॐ नागधारी नमः
ॐ रामेश्वर नमः
ॐ लंकेश्वर नमः
ॐ अमरनाथ नमः
ॐ केदारनाथ नमः
ॐ मंगलेश्वर नमः
ॐ अर्धनारीश्वर नमः
ॐ नागार्जुन नमः
ॐ जटाधारी नमः
ॐ नीलेश्वर नमः
ॐ गलसर्पमाला नमः
ॐ दीनानाथ नमः
ॐ सोमनाथ नमः
ॐ जोगी नमः
ॐ भंडारी बाबा नमः
ॐ बमलेहरी नमः
ॐ गोरीशंकर नमः
ॐ शिवाकांत नमः
ॐ महेश्वराए नमः
ॐ महेश नमः
ॐ ओलोकानाथ नमः
ॐ आदिनाथ नमः
ॐ देवदेवेश्वर नमः
ॐ प्राणनाथ नमः
ॐ शिवम् नमः
ॐ महादानी नमः
ॐ शिवदानी नमः
ॐ संकटहारी नमः
ॐ महेश्वर नमः
ॐ रुंडमालाधारी नमः
ॐ जगपालनकर्ता नमः
ॐ पशुपति नमः
ॐ संगमेश्वर नमः
ॐ दक्षेश्वर नमः
ॐ घ्रेनश्वर नमः
ॐ मणिमहेश नमः
ॐ अनादी नमः
ॐ अमर नमः
ॐ आशुतोष महाराज नमः
ॐ विलवकेश्वर नमः
ॐ अचलेश्वर नमः
ॐ अभयंकर नमः
ॐ पातालेश्वर नमः
ॐ धूधेश्वर नमः
ॐ सर्पधारी नमः
ॐ त्रिलोकिनरेश नमः
ॐ हठ योगी नमः
ॐ विश्लेश्वर नमः
ॐ नागाधिराज नमः
ॐ सर्वेश्वर नमः
ॐ उमाकांत नमः
ॐ बाबा चंद्रेश्वर नमः
ॐ त्रिकालदर्शी नमः
ॐ त्रिलोकी स्वामी नमः
ॐ महादेव नमः
ॐ गढ़शंकर नमः
ॐ मुक्तेश्वर नमः
ॐ नटेषर नमः
ॐ गिरजापति नमः
ॐ भद्रेश्वर नमः
ॐ त्रिपुनाशक नमः
ॐ निर्जेश्वर नमः
ॐ किरातेश्वर नमः
ॐ जागेश्वर नमः
ॐ अबधूतपति नमः
ॐ भीलपति नमः
ॐ जितनाथ नमः
ॐ वृषेश्वर नमः
ॐ भूतेश्वर नमः
ॐ बैजूनाथ नमः
ॐ नागेश्वर नमः
ॐ नन्दी की सवारी नमः
ॐ ज्योतिलिंग नमः
ॐ महाकाल नमः
ॐ रुद्रनाथ नमः
ॐ भीमशंकर नमः
ॐ नटराज नमः
ॐ प्रलेयन्कार नमः
ॐ चंद्रमोली नमः
ॐ डमरूधारी नमः
ॐ चंद्रधारी नमः
ॐ मलिकार्जुन नमः
ॐ भीमेश्वर नमः
ॐ विषधारी नमः
ॐ बम भोले नमः
ॐ ओंकार स्वामी नमः
ॐ ओंकारेश्वर नमः
ॐ शंकर त्रिशूलधारी नमः
ॐ विश्वनाथ नमः
ॐ अनादिदेव नमः
ॐ उमापति नमः
ॐ गोरापति नमः
ॐ गणपिता नमः
ॐ भोले बाबा नमः
ॐ शिवजी नमः
ॐ शम्भु नमः
ॐ नीलकंठ नमः
ॐ महाकालेश्वर नमः
ॐ त्रिपुरारी नमः
ॐ त्रिलोकनाथ नमः
ॐ त्रिनेत्रधारी नमः
ॐ बर्फानी बाबा नमः
ॐ जगतपिता नमः
ॐ मृत्युन्जन नमः
ॐ नागधारी नमः
ॐ रामेश्वर नमः
ॐ लंकेश्वर नमः
ॐ अमरनाथ नमः
ॐ केदारनाथ नमः
ॐ मंगलेश्वर नमः
ॐ अर्धनारीश्वर नमः
ॐ नागार्जुन नमः
ॐ जटाधारी नमः
ॐ नीलेश्वर नमः
ॐ गलसर्पमाला नमः
ॐ दीनानाथ नमः
ॐ सोमनाथ नमः
ॐ जोगी नमः
ॐ भंडारी बाबा नमः
ॐ बमलेहरी नमः
ॐ गोरीशंकर नमः
ॐ शिवाकांत नमः
ॐ महेश्वराए नमः
ॐ महेश नमः
ॐ ओलोकानाथ नमः
ॐ आदिनाथ नमः
ॐ देवदेवेश्वर नमः
ॐ प्राणनाथ नमः
ॐ शिवम् नमः
ॐ महादानी नमः
ॐ शिवदानी नमः
ॐ संकटहारी नमः
ॐ महेश्वर नमः
ॐ रुंडमालाधारी नमः
ॐ जगपालनकर्ता नमः
ॐ पशुपति नमः
ॐ संगमेश्वर नमः
ॐ दक्षेश्वर नमः
ॐ घ्रेनश्वर नमः
ॐ मणिमहेश नमः
ॐ अनादी नमः
ॐ अमर नमः
ॐ आशुतोष महाराज नमः
ॐ विलवकेश्वर नमः
ॐ अचलेश्वर नमः
ॐ अभयंकर नमः
ॐ पातालेश्वर नमः
ॐ धूधेश्वर नमः
ॐ सर्पधारी नमः
ॐ त्रिलोकिनरेश नमः
ॐ हठ योगी नमः
ॐ विश्लेश्वर नमः
ॐ नागाधिराज नमः
ॐ सर्वेश्वर नमः
ॐ उमाकांत नमः
ॐ बाबा चंद्रेश्वर नमः
ॐ त्रिकालदर्शी नमः
ॐ त्रिलोकी स्वामी नमः
ॐ महादेव नमः
ॐ गढ़शंकर नमः
ॐ मुक्तेश्वर नमः
ॐ नटेषर नमः
ॐ गिरजापति नमः
ॐ भद्रेश्वर नमः
ॐ त्रिपुनाशक नमः
ॐ निर्जेश्वर नमः
ॐ किरातेश्वर नमः
ॐ जागेश्वर नमः
ॐ अबधूतपति नमः
ॐ भीलपति नमः
ॐ जितनाथ नमः
ॐ वृषेश्वर नमः
ॐ भूतेश्वर नमः
ॐ बैजूनाथ नमः
ॐ नागेश्वर नमः
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"हनुमानजी की शपथ, हमारे पास कोई सिद्धि, साधना, मंत्र-विधान नहीं, केवल राम नाम जप है" : पंडित धीरेन्द्र शास्त्री बागेश्वर धाम-
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