सावन : सावन में झूले का लें आनंद, तनाव से मिलेगा छुटकारा


परंपरागत झूले से नहीं होता था शरीर के जोड़ों व कमर में पीड़ा  
धर्म नगरी / DN News  
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-राजेश पाठक अवै.संपादक  

सावन का महीना आरंभ होते ही झूले का विचार मन में आने लगता हैं। सावन में झूला झूलने का सबसे अधिक आनंद बच्चे और महिलाएं उठाती हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं झूला झूलना स्वास्थ्य के लिए भी लाभप्रद होता है। झूला झूलने से मानसिक तनाव जैसी कई समस्याएं दूर हो सकती हैं। 

हमारे देश में सावन में झूले की परंपरा और महत्व दोनों है। सदियों से सावन में झूला झूलने की परंपरा चलती आ रही है। सावन महीने में चहुंओर हरियाली छाई रहती है। झूले झूले जाते हैं, पारंपरिक गीत गाए जाते हैं। सावन में झूला झूलने का विशेष महत्व है। झूला झूलने से उमंग और उत्साह भर जाता है।
अत्यंत शुभ और पवित्र माह सावन में भगवान शिव-पार्वती की पूजा के लिए व्रत रखा जाता है। कुंवारी से विवाहित महिलाएं सावन सोमवार का व्रत रखती हैं। विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं, वहीं अविवाहित लड़कियां इच्छित वर मांगती हैं। 

सावन के महीने में श्रृंगार का भी बहुत महत्व है। श्रृंगार विवाहित महिलाओं के सौभाग्य का प्रतीक है। इसी तरह सावन महीने में झूलों का भी विशेष महत्व होता है। पहले के लोग घर में झूला डालते और सावन के गीत गाते थे, लेकिन अब ये कम हो गया है। गाँव में आज भी इसकी मान्यता है, जिसके चलते हर घर में रस्सी के झूले डलते हैं और उन पर झूला जाता है। फिर भी ये परंपरा समाप्त होती जा रही है, कहीं-कहीं शेष बची है। 40-50 वर्ष या अधिक उम्र की महिलाएं मानती हैं, कि सावन में झूले और बेटियों का काफी महत्व होता है। जब बेटियां अपने ससुराल से घर आती हैं, तो इन्हें खूब प्यार मिलता है। 

तथाकथित आधुनिकता में सावन के झूले शहरी संस्कृति की भेंट चढ़ रहे हैं। कजरी और मल्हार गाती महिलाएं अब नहीं दिखती। झूला झूलने का मन करता है, लेकिन संग देने के लिए कोई नहीं। मॉल संस्कृति के सहारे इन झूले के पर्व को थोड़ा-बहुत निभाया जा रहा है। अधेड़ आयु के पुरुष व महिलाएं आज भी याद करते हैं अपने बचपन, सावन मास की बारिश में कागज की नाव बना कर खेलना, आम के पेड़ों पर झूले झूलना और घर में बने पकवान। अब ये सब पुरानी बातें हो गई हैं। शहरी संस्कृति में बसे लोगों की आधुनिक अवैज्ञानिक दिनचर्या से संस्कृति-परंपरा खो गए, तो अनेक समस्याएं, रोग आदि होने लगे। जीवन का आनंद पता नहीं कहाँ खो गया ! 

कहते हैं, भगवान श्रीकृष्ण ने राधा जी को भी झूला झुलाया था। इसके पश्चात से झूला झूलने की परंपरा आरंभ हुई। ऐसे में सावन महीने में झूला झूलना शुभ मानते हैं। झूला झूलने के अनेक लाभ भी हैं-

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मानसिक तनाव होगा दूर
सावन में तमाम तरह के मानसिक तनाव दूर करने के लिए झूला एक बढ़िया विकल्प (ऑप्शन) है। जब आप सावन में झूला झूलते हैं, तो स्वयं में आननद की अनुभूति होती है, जिससे मूड फ्रेश होता है। यदि आप भी चिंता या उदासी का शिकार हैं, तो कुछ पल झूला झूल सकते हैं।

मांसपेशियां होंगी मजबूत
झूला झूलते से आपको अपने पैरों के साथ ही पूरे शरीर की शक्ति लगानी होती है। इस तरह की नियमित एक्सरसाइज करने से आपकी मांसपेशियां मजबूत होती हैं। इसके अलावा शरीर के अन्य अंगों को भी लाभ मिलता है। परंपरागत झूला झूलने से कसरत हो जाती थी। फिजियोथेरेपिस्ट मानते हैं, कि झूला झूलते समय पेंग मारने से कसरत हो जाती थी, लेकिन अब नहीं हो पाता। शारीरिक जोड़ों और कमर दर्द का यह भी एक कारण है

ध्यान होता है केंद्रित- 
झूला झूलने से एकाग्रता (कंसंट्रेशन) बढ़ती है, कंसंट्रेशन पॉवर बढ़ता मिलता है। इसके अलावा यह आपके मन को शांत कर देता है। झूला झूलने से बच्चों में फोकस करने की क्षमता बढ़ती है। इससे बच्चों की गर्दन में भी मजबूती भी आती है।

सजगता को बढ़ावा
झूला झूलने से सजगता या अवेयरनेस को बढ़ावा मिलता है। बॉडी जॉइंट्स में रिसेप्टर्स होते हैं, और जब वह एक्टिव हो जाते हैं, तो शरीर को संकेत (बॉडी को इंडिकेशन) देना शुरू करते हैं। इसलिए जब आप पैरों से झूले को धकेलते हैं, तो आपकी बॉडी जॉइंट्स की एक्टिविटी पर ध्यान देने लगती है। यही एक्टिविटी कॉन्फिडेंस लेवल को बढ़ाने में प्रभावी रूप बढ़ाती है।

मनोबल बढ़ाने में सहायक
झूला झूलने से आपका मनोबल बढ़ता है। आप प्रसन्नता एवं स्वस्थ होने का अनुभव करते हैं। झूले पर झूलने से ह्रदय की कार्यक्षमता भी बढ़ती है और मस्तिष्क की क्रिया तेज हो जाती है।

झूला झूलने के पीछे के रहस्य (चिकित्सक व मनोवैज्ञानिकों के अनुसार)
भाग-दौड़ के इस आधुनिक समय में तनावमुक्त रहना बहुत कठिन हो गया है। जबकि, सावन के  हरे-भरे माह में प्रकृति हमें हमारे मन-मस्तिष्क को स्फूर्ति या तरोताजा रखने का बिना कोई खर्च अवसर देती है। इस हरे-भरे और लुभावने वातावरण में तनावमुक्त रहने एवं स्वयं को आनंद देने का सहज और सस्ता विकल्प झूला होता है। इसलिए सावन के महीने में झूले का प्रचलन है।

हमारे शरीर के हर अंग की लगभग 25 प्रतिशत कोशिकाएं सुस्त रहती हैं। इन निष्क्रिय कोशिकाओं को सक्रिय रखने के लिए झूला झूलने का व्यायाम बहुत की सरल होता है। झूला झूलने से हमारे शरीर की ऑक्सीजन निष्क्रिय कोशिकाओं को नया आयाम देती है और ये कोशिकाएं सक्रिय हो उठती हैं।
झूले प्रायः नीम, आम, बरगद के पेड़ों पर डाले जाते हैं। बरसात में इन पेड़ों से ऑक्सीजन की अच्छी खासी मात्रा शरीर को मिलती है। इससे शरीर में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ता है। बड़े-बुजुर्ग को भी इस मौमस में, अगर पेड़ों के नीचे झूला झूलते हैं, तो मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है।

मनोवैज्ञानिक सावन के हरे-भरे माह में पेड़ के नीचे झूला डालने को केवल एक परंपरा नहीं मानते। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, ये झूले मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बहुत लाभकारी है। झूला झूलने से शरीर का व्यायाम तो होता ही है, साथ ही फेफड़े, हृदय और अन्य अंगों को लाभ मिलता है। अस्थि रोग विशेषज्ञ के अनुसार, पैरों से दबाव डालकर झोटे (पेंग मारने) लेने पर मांसपेशियों का व्यायाम होता है, जिससे मांसपेशियों को मजबूती मिलती है।

झूलन लीला का प्रसंग : बृज के रसभरे संवाद में-
सावन मास का महीना था। प्रिया प्रीतम के मन में झूलन की उमंग जागी। बस सखियों ने सोचा, प्रिया प्रीतम के साथ आज झूलन लीला की जाय। 
ललिता जी ने पूछा- प्रिया प्रीतम से जैसा आपका मन हो वैसी ही व्यवस्था की जाएगी।
श्याम सुंदर ने कहा- एक साथ दो झूले होंगे। एक कदम्ब की डाल पर और दूसरा उसके पास तमाल वृक्ष पर। यह दोनों झूले आस-पास होंगे। एक पर प्रिया जी झूलेंगी और एक पर मैं झुलूंगा। दोनों में आज प्रतियोगिता होगी देखें कौन जीतता है।

ललिता बोली- जीत तो हमारी स्वामिनी की ही होगी। प्रियतम बोले थे। तुम अभी से कैसे भविष्यवाणी कर सकती हो ? ललिताजी बोली, हमारी प्रिया जी दुबली-पतली हैं। उनकी कमर की लचक बहुत गहरी है, तो प्रिया जी ही जीतेगी।

अब लीला के अनुसार दो वृक्षों पर अलग-अलग झूले डाल दिए गए। कदम्ब वृक्ष पर प्रियाजी झूल रही हैं और तमाल वृक्ष पर प्रियतम झूल रहे हैं। प्रिया जी को ललिता, विशाखा, चित्रा, इंदु लेखा झुला रही हैं। चंपकलता, रंगदेवी, तुंग विद्या और सुदेवी प्रियतम को झुला रही हैं।

अब प्रिया जी ने झूला झूलना आरंभ कर दिया। झूला हवा से बातें करने लगा। ललिता जी आज बहुत जोर से झूला रही है। प्रिया जी की कमर बहुत सुंदर लचक ले रही थी। प्रिया जी कभी सामने वृक्ष की ऊंची डाल को छू आती और जब पीछे जाती, तो उनकी बेणी ऊंची डाल को छू लेती। उनका नीलांबर उन्मुक्त रूप से लहरा रहा है। प्रिया जी के कंठ में सुमन-हार, स्वर्ण-हार हीरों का हार, मुक्ता-हार आदि प्रिया जी के साथ लहरा रहे हैं।

जब प्रिया जी सामने की ओर जाती, तो यह हार प्रिया जी के लिए हृदय से लग जाते और जब पीछे आती यह हार कंठ से झूले लगते। हारों के चिपकने और झूले की शोभा अनुभव सुंदर है। प्रिया जी के कुंडल भी लहरा रहे थे, जिनकी शोभा अद्भुत सुंदर सी है। प्रिया जी के नूपुर झूले के साथ मधुर नृत्य कर रहे हैं। मानों सरगम बज रही हो... अनुपम शोभा प्रिया जी के झूलने की।

तभी तुंग विद्या ने कहा- प्रियतम तुम क्यों नहीं झूलते हम तुम्हें झुला देंगी, विश्वास करो तुम्हारी झूलन में विजय होगी। 
प्रियतम बोले- मैं अभी थोड़ी देर से झुलुंगा, प्रियतम धीमे धीमे झूल रहे हैं। चार पग आगे आते, चार पग पीछे जाते-आते बस इतना ही झूल रहे थे। 
तुंग विद्या ने कहा- ऐसे तो आप हार जाओगे। 
प्रियतम ने कहा- यह मेरे झूलन का आनंद आज महान है। 
प्रियतम ने कहा- झूलन का आनंद आज अत्यधिक है..., मेरे मन के भीतर देखो-
आज मेरा मन प्रिया जू के नीलाम्बर के साथ झूल रहा है,
मैं प्रिया जू के बेणी के साथ झूल रहा हूँ,
मैं प्रिया जू के हार के साथ झूल रहा हूँ और हृदय से लग जाता हूँ झूलते-झूलते,
मैं प्रिया जी कमर की साथ झूल रहा हूँ,
प्रिया जू करधनी को पकड़ कर जब एक डाल को छु कर मुस्कुराती हैं, तो उनकी मुस्कान के साथ झूलता हूँ,
मैं प्रिया जी के कुंडल के साथ झूल रहा हूँ,
मैं प्रिया जू के नुपुर की मधुर ध्वनि के साथ झूल रहा हूँ,

ललिता जी पूछो- जीत किसकी हुई मेरी या प्रिया जी की ? भले जीत प्रिया जी गई, पर महा आनंद तो मुझे ही मिला। ललिता जी निर्णय करे किसका झूलन श्रेष्ठ है।
चम्पकलता बोली- आपका प्रिया जी में प्रेम अतुलनीय है। आपको प्रिया जी के प्रति प्रेम पर बलिहार।

प्रियतम बोले- मै सदैव प्रिया जू से हारता हूँ। प्रिया जू की जीत में मेरी ही जीत है। जब जीतकर प्रिया जी आनंद पाती है, तब मैं महाआनंद पाता हूँ, उनके आनंद पर बलिहार जाता हूँ।
🌹प्रिया प्रियतम के मनोहर झूलन लीला की जय हो।🌹
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पेड़ कटते / घटते गए, झूले भी बदल गए    
नब्बे के दशक तक, जब शहर के साथ गांव-मुहल्लों से कजरी के गीत कानों में गूंजने लगते, तो सावन मास के आने का अनुभव हो जाता था। युवतियां और महिलाएं मेहंदी रचाकर कजरी गीत गाते हुए झूला झूलती। विवाहित महिलाएं सावन लगते ही पीहर / मायके आ जाती। लगभग हर मोहल्ले में एक न एक पेड़ तो ऐसा होता ही था, जिसपर झूला पड़ जाता था या प्रायः मोटी रस्सियों से झूला डाला जाता। प्रायः झूला नीम या आम के पेड़ पर डाला जाता था। धीरे-धीरे पेड़ कटते और घटते गए। लोगों के मन का रोमांच भी खत्म हो गया। शहरों के अधिकांश मुहल्लों में जो पेड़ बचे हैं, उन पर झूले नहीं पड़ सकते।

अब सब कुछ आधुनिक हो गया है। शहर हो, महानगर हो या ग्रामीण क्षेत्र, न तो पहले की तरह बाग रहे, न झूलों को पसंद करने वालीं युवतियां और महिलाएं। अब तो नव विवाहित महिलाएं भी सावन में अपने पीहर नहीं आतीं। इसलिए न तो विरह के गीत सुनाई पड़ते हैं, न ही झूलों को सावन के आने की प्रतीक्षा रहती है। साधन संपन्न लोग अपने बगीचों, बरामदों आदि में लकड़ी, बांस और लोहे आदि से बने झूले रखते हैं। इन झूलों को न सावन की प्रतीक्षा होती है, केवल सावन में ही नहीं जब मन हो तब बैठ जाते हैं। 

बाजार में तरह-तरह के झूले बिकने लगे हैं। कुछ लोग सावन में अपने बच्चों के लिए दरवाजे की चौखट आदि पर झूला डालकर परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। कुछ संस्थाएं सावन में एक-दो दिन आयोजन करके झूला-उत्सव करके "सावन के झूले की स्मृति" को ताजा रखती हैं, कि सावन में झूला भी झूला जाता है। यदा-कदा कुछ पुरानी बस्तियों और ग्रामीण इलाकों में बच्चे आज भी सावन में झूला झूलते हैं।

200 से हजारों रु वाले झूले
सावन मास के आने से बाजार में बिकने को झूले सजने लगते हैं। शोरूम में कीमत अधिक, तो सड़क किनारे बिकने वाले झूलों की कीमत कम होती है। कीमत के अनुसार झूलों की विशेषता होती है। शोरूम में बारह महीने तक के शिशुओं के लिए पालना, एक से लेकर 5 साल तक की आयु के शिशुओं के लिए स्टील पाइप के झूले उपलब्ध हैं। शिशुओं के लिए अनेक वैरायटी के पालना और झूले बाजार में हैं। फैंसी झूलों में गुड्डे-गुड़िया भी लगी होती है, जिसके नीचे शिशुओं से जुड़ा सामान रख सकते हैं। 

प्लास्टिक का सामान्य झूला दो सौ रुपये में बिक रहा है। पालना और झूलों की कीमत 4-5 सौ से 10-12 हजार रुपये तक है। अधिक आयु के लोगों के लिए लोहे के पाइप से बने सादे या बियरिंग लगे झूला उपलब्ध है, जो एक से तीन स्टेप में है। एक स्टेप के झूले में एक और तीन स्टेप वाले लोहे के झूले में तीन लोग एक संग झूला झूल सकते हैं। इसकी कीमत 10 से 20 हजार तक है।  

डेकोरेशन के लिए झूले
घरों के डेकोरेशन के लिए भी झूलों का प्रयोग होने लगा है। बाग से होता हुआ झूला अब घर का एक हिस्सा बन गया है। बालकनी से लेकर लिविंग रूम या हॉल तक में झूले ने जगह बना रखी है। घरों के डेकोरेशन के लिए वुडन झूले, रॉयल टच सोफा झूला और लोहे के झूले प्रयोग किए जा रहे हैं।
  
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