चंद्रयान-3 : 20 अगस्त के बाद लैंडर स्वयं अपने इंटेलीजेंस से तय करेगा, कि उसे कब क्या करना है ? उसके बाद...
23 अगस्त की शाम लगभग 5.30 बजे सूर्योदय होने के साथ-
सूर्यदेव की कृपा, उनका प्रकाश चाहिए, जिससे विक्रम लैंडर अपना मिशन आगे बढ़ाए
- चन्द्रमा की ओर गर्व से बढ़ रहा अपना विक्रम लैंडर,
- लैंड करने के बाद चंद्रमा पर छोड़ेगा भारत की छाप !
लैंडर मॉड्यूल अच्छी तरह काम कर रहा है। दूसरी डि-बूस्टिंग की प्रक्रिया 20 अगस्त को होगी #ISRO |
धर्म नगरी / DN News
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- राजेश पाठक अ.संपादक
लैंडर विक्रम ने चंद्रमा की ताजा चित्र लिए हैं, जिसमें चंद्रमा की सतह स्पष्ट दिखाई दे रही है। इससे पता चलता है, कि चंद्रयान-3 चंद्रमा के अत्यंत निकट चक्कर लगा रहा है। इस बार इसरो ने गलती से भी कोई गलती न हो, इसका पूरा ध्यान रखा है। चंद्रयान-2 ने अपने मिशन चंद्रमा से मात्र 2 किमी. दूर अपना मिशन अधूरा छोड़ दिया था। इस मिशन की क्रैश लैंडिंग हुई थी। इसलिए वैज्ञानिकों ने इस बार चंद्रयान-3 में लैंडर की तकनीकि में बड़ा परिवर्तन किया है। लैंडर के लेग्स को बहुत मजबूत बनाया है। लैंडर के बाहर एक विशेष कैमरा लगाया है, जिसे लेजर डॉप्लर वेलोमीटर कहते हैं। इसके लेजर की रोशनी लगातार चंद्रमा को छूता रहेगा। इसरो के नियंत्रण कक्ष में बैठे वैज्ञानिकों का इस पर पूरा नियंत्रण रहेगा। चंद्रयान-3 के अब तक की यात्रा को देखते हुए, ये माना जा सकता है, कि अब वो दिन दूर नहीं, जब चंद्रमा पर हमारा तिरंगा गर्व से लहराएगा।
चंद्रयान के 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र को छूएगा। यहाँ उल्लेखनीय है, कि अंतरिक्ष यान में छह पहियों वाला लैंडर और रोवर मॉड्यूल है, जिसे चंद्रमा की सतह से संबंधित डाटा प्रदान करने के लिए पेलोड के साथ जोड़ा गया है। हालांकि, रोवर चांद पर जाकर केवल डाटा एकत्र नहीं करेगा, बल्कि वहां पर भारत के निशान भी छोड़ेगा। विशेषज्ञों के अनुसार, रोवर के पिछले पहिये चांद पर इसरो और राष्ट्रीय प्रतीक के निशान छोड़ेंगे। यह निशान सारनाथ में अशोक के लायन कैपिटल के होंगे, जो चांद पर भारत की उपस्थिति का प्रतीक होगा।
यूट्यूब पर इसरो ने एक एनिमेटेड वीडियो (2 मिनट 46 सेकेंड पर) भी शेयर किया है, जिसमें स्पष्ट देखा जा सकता है, कि रोवर जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, वैसे ही उसके पिछले दोनों पहिए इसरो और अशोक स्तंभ के शेरों वाले राष्ट्रीय चिह्न के निशान को सतह पर मार्क करते हुए दिख रहे हैं।
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प्रोपल्शन और लैंडिंग मॉड्यूल के 17 अगस्त को अलग होने के बाद डि-बूस्टिंग ऑपरेशन चलाया गया। दूसरा डि-बूस्टिंग ऑपरेशन 20 अगस्त के लिए शेड्यूल किया है। आपको बता दें कि इस प्रक्रिया के जरिए स्पेसक्राफ्ट की रफ्तार को कम किया जाएगा। मतलब ये कि डि-बूस्टिंग चंद्रयान को एक ऐसी कक्षा में स्थापित करने की प्रक्रिया है, जहां कक्षा का चंद्रमा से निकटतम बिंदु (पेरिल्यून) 30 किमी है और सबसे दूर का बिंदु (अपोल्यून) 100 किमी है। इसका कारण ये है कि चांद की सतह पर उतरने के लिए चंद्रयान की स्पीड कम होनी चाहिए वरना वो सतह से दूर निकल सकता है।
उल्लेखनीय है, चंद्रयान-3 को लैंडिंग की प्रक्रिया पूरी करने में 42 दिनों का समय लगेगा और 23 अगस्त को ये चन्द्रमा पर लैंड करेगा। इस बार चंद्रयान-3 की लैंडिंग साइट को बदला गया है। यह चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास करीब 70 डिग्री साउथ की तरफ है। लैंडिंग साइट को बदलने के पीछे का कारण चंद्रयान-2 से लिए गए चित्रों को बताया जा रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार, चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर ने चन्द्रमा के मैप की स्पष्ट चित्र भेजे थे, जिसके अनुसार चंद्रयान-3 के लिए रणनीति बनाई गई है।
चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से मिलेगा डाटा
मिशन के आरम्भ में ही जानकारी सामने आई थी, कि चंद्रयान-3 अपने साथ ऑर्बिटर लेकर नहीं जा रहा है। यह चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर के डाटा का प्रयोग करेगा। वहीं, इसरो के चेयरपर्सन एस सोमनाथ ने बताया था- यह मिशन चंद्रयान-2 की असफलता को दोहराने से बचने का है। हम यह देखने की कोशिश कर रहे हैं, कि पिछली बार हमसे क्या गलती हुई और उसी गलती को चंद्रयान-3 में सुधारा जाएगा।
चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 में अंतर
चंद्रयान-2
कंपोनेंट्स- ऑर्बिटर, लैंडर, रोवर
ऑर्बिटर का वजन- 2,379 किलो
लैंडर का वजन- 1,471 किलो
रोवर का वजन- 27 किलो
कुल वजन- 3850 किलो
मिशन लाइफ
ऑर्बिटर- 1 साल की प्लानिंग, 7 साल का अनुमान
लैंडर और रोवर- एक चंद्र दिवस
लैंडिंग साइट- 70.9 डिग्री साउथ और 22.7 डिग्री ईस्ट
पृथ्वी के पास- 23 दिन
चांद की ओर- 7 दिन
चांद के पास- 13 दिन
कुल दिन- 43
लैंडर- लैंडर को 500 मीटर x 500 मीटर के स्पेस में लैंड करना था। चंद्रयान-2 लैंडिंग साइट की तत्काल फोटो लेकर लैंडिंग साइट का अवलोकन कर रहा था।
चंद्रयान-3
कंपोनेंट्स- प्रोपल्सन मॉड्यूल, लैंडर, रोवर
ऑर्बिटर का वजन- 2,145 किलो
लैंडर का वजन- 1749.86 किलो (रोवर के साथ)
रोवर- 26 किलो
कुल वजन- 3900 किलो
मिशन लाइफ
प्रोपल्सन मॉड्यूलः 3 से 6 महीने
लैंडर, रोवरः एक चंद्र दिवस
लैंडिंग साइट
69.36 डिग्री साउथ और 32.34 डिग्री ईस्ट (चंद्रयान-2 की साइट से थोड़ी दूर)
चांद पर कुल दि नः 42 दिन (चंद्रयान-2 से पहले)
लैंडर- चंद्रयान-2 के सी-2 ऑर्बिटर के चित्रों का उपयोग करने वाला है। चंद्रयान-3 के लेग्स चंद्रयान-2 से ज्यादा मजबूत हैं।
चन्द्रमा की सतह पर उतरने के लिए चंद्रयान-3 अब पूरी तरह से तैयार है। गुरुवार, 17 अगस्त को डि-बूस्टिंग ऑपरेशन के द्वारा एकबार फिर इसकी कक्षा को घटाया गया है। वहीं, अब दूसरा डि-बूस्टिंग ऑपरेशन 20 अगस्त के लिए शेड्यूल किया गया है। ऐसे में हमारे मन में प्रश्न उठना स्वाभाविक है, अगर चंद्रयान 23 अगस्त को चांद पर नहीं लैंड कर पाया तो क्या होगा ? क्या चंद्रयान दोबारा चन्द्रमा की सतह पर लैंड करने का प्रयास करेगा या चन्द्रमा की कक्षा में घूमता रहेगा ?
अगर 23 अगस्त को लैंडिंग नहीं हुई तो !
वैज्ञानिकों के अनुसार, 23 अगस्त को चंद्रमा पर दिन की शुरुआत होती है। एक चंद्र दिवस पृथ्वी पर लगभग 14 दिनों के बराबर होता है। इस दिन सूर्य का प्रकाश लगातार चन्द्रमा पर उपलब्ध रहता है। वहीं, चंद्रयान-3 के उपकरणों का जीवन केवल एक चंद्र दिवस या 14 पृथ्वी दिवस का है। इसका कारण ये है, वे सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण हैं और उन्हें चालू रहने के लिए सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, रात में ठंड के कारण चांद का तापमान 100 डिग्री से भी नीचे चला जाता है, जिसके कारण इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को ऑपरेट करना मुश्किल हो जाता है।
वैज्ञानिकों को चन्द्रमा पर अपना शोध जारी रखने के लिए अधिक समय की आवश्यकता होगी। इसके लिए चंद्रयान को लूनर-डे के पहले दिन ही लैंड करना होगा। ऐसे में यदि किसी कारण से यह 23 अगस्त को लैंडिंग नहीं कर पाता, तो अगले दिन एक और प्रयास किया जाएगा। यदि वह भी संभव नहीं है, तो चंद्र दिवस और चंद्र रात्रि समाप्त होने के लिए पूरे एक महीने यानी लगभग 29 दिन तक प्रतीक्षा करना होगा। आसान भाषा में कहें, तो चंद्रयान न तो 23 अगस्त के पहले चांद पर लैंड कर सकता है और न ही 24 अगस्त के बाद।
डि-बूस्टिंग की प्रक्रिया क्या है ?
इस प्रक्रिया के माध्यम से स्पेसक्राफ्ट की गति को कम किया जाएगा। अर्थात, डि-बूस्टिंग चंद्रयान को एक ऐसी कक्षा में स्थापित करने की प्रक्रिया है, जहां कक्षा का चंद्रमा से निकटतम बिंदु (पेरिल्यून) 30 किमी है और सबसे दूर का बिंदु (अपोल्यून) 100 किमी है। इसका कारण है, कि चन्द्रमा की सतह पर उतरने के लिए चंद्रयान की स्पीड कम होनी चाहिए, अन्यथा वो सतह से दूर निकल सकता है।
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