ओलम्पिक में भारत को लगातार तीन स्वर्ण पदक दिलाने में मेजर ध्यानचन्द ने जब हिटलर के सामने...


...जर्मनी को 8-1 से ओलिम्पिक फाईनल में पराजित किया
- पहले भारतीय खिलाडी व नागरिक जिन्होंने विदेश में सार्वजनिक तौर पर तिरंगा फहराया 
सोशल मीडिया में चुनिंदा प्रतिक्रिया... 
देश के गौरव और भारतीय खेल जगत के पितामह ''मेजर ध्यानचंद सिंह'' के जन्म दिवस पर सभी देशवासियों और खेलप्रेमियों को हार्दिक शुभकामनाएं...

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हॉकी के जादूगर के नाम से दुनिया में प्रसिद्ध मेजर ध्यानचंद की ये देन है, कि हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है और उनका जन्मदिन (29 अगस्त) राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। अपने खेल जीवन में उन्होंने 1000 से अधिक गोल दागे। कहते हैं, जब वो मैदान में खेलने को उतरते थे, तो गेंद मानों उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी। हॉकी के खेल में ध्यानचंद ने लोकप्रियता का जो कीर्त्तिमान स्थापित किया, उसके आसपास भी आज तक दुनिया का कोई खिलाड़ी नहीं पहुँच सका। ध्यानचंद को फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन के समतुल्य माना जाता है।

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का आज 118वां जन्मदिन है। आज ही के दिन सन 1905 में प्रयागराज (इलाहाबाद) के एक साधारण राजपूत परिवार में उनका जन्म 29 अगस्त, 1905 को हुआ। कालांतर में उनका परिवार प्रयागराज से झांसी आ गया। उनके बाल्य-जीवन में खिलाड़ीपन के कोई विशेष लक्षण दिखाई नहीं देते थे। इसलिए कहा जा सकता है, हॉकी के खेल की प्रतिभा जन्मजात नहीं थी, बल्कि उन्होंने सतत साधना, अभ्यास, लगन, संघर्ष और संकल्प के सहारे यह प्रतिष्ठा अर्जित की थी। ध्यानचंद को खेल जगत की दुनिया में 'दद्दा' कहकर पुकारते हैं। 
 
'लेफ्टिनेंट' नियुक्त हुए, 'पद्मभूषण' मिला 
मेजर ध्यानचंद सिंह ने इंडिया को ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल दिलाया,  इसलिए उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उनके जन्मदिन 29 अगस्त को भारत 'नेशनल स्पोर्टस डे' के रूप में मनाते हैं।  
सन्‌ 1927 ई. में लांस नायक बना दिए गए। 1932 ई. में लॉस ऐंजल्स जाने पर नायक नियुक्त हुए। 1937 ई. में जब भारतीय हॉकी दल के कप्तान थे, तो उन्हें सूबेदार बना दिया गया। सन्‌ 1943 ई. में 'लेफ्टिनेंट' नियुक्त हुए और भारत के स्वतंत्र होने पर सन्‌ 1948 ई. में कप्तान बना दिए गए। केवल हॉकी के खेल के कारण ही सेना में उनकी पदोन्नति होती गई। 1938 में उन्हें 'वायसराय का कमीशन' मिला और वे सूबेदार बन गए।

'पद्मभूषण' 1956 में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया गया। उनके जन्मदिन को भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया है। इसी दिन खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। भारतीय ओलंपिक संघ ने ध्यानचंद को शताब्दी का खिलाड़ी घोषित किया था।

बर्लिन ओलंपिक और हिटलर 
बात 1936 की है, मेजर ध्यानंचद की कप्तानी में भारतीय टीम बर्लिन ओलंपिक में भाग लेने पहुंची। भारतीय टीम की भिड़ंत मेजबान जर्मनी से होनी थी। ऐसे में तानाशाह कहे जाने वाले, तत्कालीन जर्मन चांसलर एडोल्फ हिटलर भी फाइनल देखने पहुंचे। ध्यानचंद ने हिटलर के सामने जर्मनी के गोलपोस्ट पर गोल दागने शुरू किए। ऐसे में हिटलर ने ध्यानचंद की स्टिक बदलवा दिया। इसके बाद भी भारत ने जर्मनी को 8-1 के अंतर से मात दी।

  
15 अगस्त 1936 को बर्लिन में जब ध्यानचंद ने हिटलर के सामने जर्मनी को 8-1 से ओलिम्पिक फाईनल में पराजित किया, तो वो पहले भारतीय खिलाडी ही नही, पहले भारतीय नागरिक भी बने जिन्होंने विदेश में सार्वजनिक तौर पर तिरंगा फहराया। उस समय तिरंगा अपने मूल रूप में भी नही था, उस तिरंगे में चक्र की जगह चरखा बना रहता था। ध्यानचंद इस तिरंगे को देश में ब्रिटिश शासन के बावजूद बर्लिन जाते समय अपने बिस्तरबंद में छुपा कर ले गए थे।

हिटलर ने इस ऐतिहासिक फ़तेह के बाद ध्यानचंद जी को बुलाया और कहा, कि भारत छोड़कर वो जर्मनी आ जाएँ उन्हें मुह मांगी कीमत दी जाएगी. इस पर ध्यानचंद जी ने कहा कि वो देश के लिए खेलते हैं पैसों के लिए नही. ध्यानचंद जी ने लगातार तीन बार ओलिम्पिक में स्वर्ण पदक जीता और वो दुनिया के किसी भी खेल में पहले खिलाडी बने और अबतक है जिन्होंने अपने दो दशक के कैरियर में एक भी अंतर्राष्ट्रीय मुकाबला नही हारा।

हिटलर व ब्रैडमैन- 
ध्यानचंद ने अपनी करिश्माई हॉकी से जर्मन तानाशाह हिटलर ही नहीं बल्कि महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन को भी अपना क़ायल बना दिया। यह भी संयोग है, खेल जगत की इन दोनों महान हस्तियों का जन्म दो दिन के अंदर पर पड़ता है। दुनिया ने 27 अगस्त को ब्रैडमैन की जन्मशती मनाई तो 29 अगस्त को वह ध्यानचंद को नमन करने के लिए तैयार है, जिसे भारत में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। ब्रैडमैन हाकी के जादूगर से उम्र में तीन साल छोटे थे। अपने-अपने फन में माहिर ये दोनों खेल हस्तियाँ केवल एक बार एक-दूसरे से मिले थे। वह 1935 की बात है जब भारतीय टीम आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के दौरे पर गई थी। तब भारतीय टीम एक मैच के लिए एडिलेड में था और ब्रैडमैन भी वहाँ मैच खेलने के लिए आए थे।

ब्रैडमैन और ध्यानचंद दोनों तब एक-दूसरे से मिले थे। ब्रैडमैन ने तब हॉकी के जादूगर का खेल देखने के बाद कहा था कि वे इस तरह से गोल करते हैं, जैसे क्रिकेट में रन बनते हैं। यही नहीं ब्रैडमैन को बाद में जब पता चला कि ध्यानचंद ने इस दौरे में 48 मैच में कुल 201 गोल दागे तो उनकी टिप्पणी थी, यह किसी हॉकी खिलाड़ी ने बनाए या बल्लेबाज ने। ध्यानचंद ने इसके एक साल बाद बर्लिन ओलिम्पिक में हिटलर को भी अपनी हॉकी का क़ायल बना दिया था। उस समय सिर्फ हिटलर ही नहीं, जर्मनी के हॉकी प्रेमियों के दिलोदिमाग पर भी एक ही नाम छाया था और वह था ध्यानचंद।

उन्हें १९५६ में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। ध्यान चंद को खेल के क्षेत्र में १९५६ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उनका जन्म 29 अगस्त, 1905 इलाहाबाद, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत में हुआ था। उनके जन्मदिन को भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया है।

इसी दिन खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। भारतीय ओलम्पिक संघ ने ध्यानचंद को शताब्दी का खिलाड़ी घोषित किया था।
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पूरा नाम : मेजर ध्यानचंद सिंह
अन्य नाम : हॉकी का जादूगर
जन्म : 29 अगस्त, 1905
जन्म भूमि : इलाहाबाद
मृत्यु : 3 दिसंबर, 1979
मृत्यु स्थान : नई दिल्ली
पिता: समेश्वर दत्त सिंह
खेल-क्षेत्र : हॉकी
पुरस्कार-उपाधि : 1956 में पद्म भूषण
विशेष योगदान- ओलम्पिक खेलों में भारत को लगातार तीन स्वर्ण पदक (1928, 1932 और 1936) दिलाने में मेजर ध्यानचन्द का अहम योगदान है।
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