कब, कैसे, किस प्रकार लाएं गणपति की मूर्ति, ऐसे करें मूर्ति स्थापना, लगाए प्रिय भोग, करें...
मंगल दोष या मांगलिक दोष हेतु विशेष उपाय
(वा.एप 8109107075 -न्यूज़, कवरेज, विज्ञापन, कॉपी भिजवाने हेतु)राजेश पाठक
विघ्नहर्ता, पार्वतीनन्दन, प्रथम पूज्य, गणों के अध्यक्ष भगवान गणेश की पूजा के विशेष दिन प्रत्येक माह दो बार संकष्टी चतुर्थी व विनायक चतुर्थी के रूप में होते है, परन्तु गणपति का वर्ष में सबसे प्रमुख त्यौहार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। अब इसे दुनियाभर के अनेक देशों में मनाया जाना लगा है, जिसमे अनिवासी भारतीय ही नहीं, विदेशी भी श्रद्धा-उत्साह से मनाते हैं
गणेश चतुर्थी (19 सितंबर 2023) के दिन लोग घरों में, अपने प्रतिष्ठानों में, सार्वजनिक स्थलों पर गणपति की स्थापना करेंगे। यह पर्व 10 दिनों तक चलता है। अनंत चतुर्दशी के दिन विदाई देकर गणपति की मूर्ति को शुद्ध व बहते जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। महाराष्ट्र में यह पर्व विशेषरूप पर मनाया जाता है, परन्तु अब गुजरात, कर्नाटक, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में काफी धूमधाम से गणेश उत्सव मनाया जाता है।
मान्यतानुसार, गणपति का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी को मध्याह्न काल में, स्वाति नक्षत्र एवं सिंह लग्न में हुआ था। अतः यह चतुर्थी सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है।
प्रथम-पूज्य भगवान गणपति उत्साह व उमंग के प्रतीक माने जाते हैं। धर्म शास्त्रीय विधान के अनुसार मिट्टी से बनी मूर्ति घर लाकर स्थापित करना चाहिए। मूर्ति प्राकृतिक रंगों से रंगी हो। गणपति के संग मूषक हो। ललाट पर चंद्रमा हो। हाथ में पाश और अंकुश दोनों हो, ऐसी मूर्ति शुभ होती है। मूर्ति को हाथ में लेने वाला व्यक्ति जो अपने घर लेकर आ रहा है, वह सूती कपड़ा (केसरिया सर्वोत्तम) या सफेद वस्त्र पहनें। मूर्ति पर केसरिया रंग का कपड़ा डालकर लाए। _/\_ श्रीगणेश चतुर्थी की सबको शुभ-मंगल कामना -रा.पाठक -सम्पादक 9752404020
विघ्नहर्ता, पार्वतीनन्दन, प्रथम पूज्य, गणों के अध्यक्ष भगवान गणेश की पूजा के विशेष दिन प्रत्येक माह दो बार संकष्टी चतुर्थी व विनायक चतुर्थी के रूप में होते है, परन्तु गणपति का वर्ष में सबसे प्रमुख त्यौहार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। अब इसे दुनियाभर के अनेक देशों में मनाया जाना लगा है, जिसमे अनिवासी भारतीय ही नहीं, विदेशी भी श्रद्धा-उत्साह से मनाते हैं
गणेश चतुर्थी (19 सितंबर 2023) के दिन लोग घरों में, अपने प्रतिष्ठानों में, सार्वजनिक स्थलों पर गणपति की स्थापना करेंगे। यह पर्व 10 दिनों तक चलता है। अनंत चतुर्दशी के दिन विदाई देकर गणपति की मूर्ति को शुद्ध व बहते जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। महाराष्ट्र में यह पर्व विशेषरूप पर मनाया जाता है, परन्तु अब गुजरात, कर्नाटक, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में काफी धूमधाम से गणेश उत्सव मनाया जाता है।
मान्यतानुसार, गणपति का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी को मध्याह्न काल में, स्वाति नक्षत्र एवं सिंह लग्न में हुआ था। अतः यह चतुर्थी सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है।
----------------------------------------------
धर्म नगरी से जुड़ें- धर्म नगरी / DN News का प्रकाशन का 12वां वर्ष चल रहा है। इसे और मुखर, उपयोगी, धर्म-हिन्दुत्व की जागृति सहित विस्तार देना चाहते हैं। प्रकाशन "बिना लाभ-हानि" के आधार पर हो रहा है। यदि आप राष्ट्रवादी विचारधारा के हैं, तो आप भी धर्म नगरी / DN News से आर्थिक या अन्य किसी प्रकार का स्वेच्छापूर्ण सहयोग कर जुड़ सकते हैं।
----------------------------------------------
मूर्ति लाते समय गणपति का मुंह लाने वाले की ओर हो और घर में प्रवेश करते समय सामने हो। मंगल गीत, भजन बज रहे हों, ऐसे वातावरण में मूर्ति घर के अंदर ले आए। सुहागिन महिलाएं मूर्ति लाने वाले पर दूध का छींटा मारे। घर में स्थापित कर पूजा करें। घर में बैठी मूर्ति हो। केवल सौम्य अवस्था की मूर्ति (खड़ी, नृत्य करते, ढोल बजाते हुए न हो) घर में लाएं।
भगवान गणेश की स्थापना-
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें। गणपति का स्मरण करते हुए पूजा की पूर्ण करें। गणेश चतुर्थी के दिन लाल रंग के वस्त्र धारण करें। एक कलश में जल भरकर उसमें सुपारी डालें। उसे कोरे कपड़े से बांधना चाहिए। इसके बाद सही दिशा में चौकी स्थापित करके उसमें लाल रंग का कपड़ा बिछा दें। स्थापना से पहले गणपति को पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद गंगाजल से स्नान कराकर चौकी में जयकारे लगाते हुए स्थापित करें। उनके साथ रिद्धि-सिद्धि के रूप में प्रतिमा के दोनों ओर एक-एक सुपारी भी रख दें।
भगवान गणेश की पूजा-विधि
स्थापना के बाद गणपति को फूल की मदद से जल अर्पित करे। इसके बाद रोली, अक्षत और चांदी की वर्क लगाए। इसके बाद लाल रंग का पुष्प, जनेऊ, दूब, पान में सुपारी, लौंग, इलायची और कोई मिठाई रखकर अर्पित कर दें। नारियल और भोग में मोदक अर्पित करें। षोडशोपचार के साथ उनका पूजन करें। गणेश जी को दक्षिणा अर्पित कर उन्हें 21 लड्डूओं का भोग लगाएं। सभी सामग्री चढ़ाने के बाद धूप, दीप और अगरबत्ती से भगवान गणेश की आरती करें। इसके बाद इस मंत्र का जाप करें।
वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभ। ... (सूर्यकोटि गलत है)
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
अथवा
ॐ श्री गं गणपतये नम: का जाप करें।
दिन में 3 बार लगाएं भोग
अगर आपने अपने घर पर भगवान गणपति की मूर्ति स्थापित की हैं तो उनका ख्याल बिल्कुल घर के सदस्य की तरह रखना होगा, इसलिए गणपति को दिन में 3 बार भोग लगाना अनिवार्य है। गणपति बप्पा को रोजाना मोदक का भोग जरूर लगाना चाहिए। आप चाहे तो मोतीचूर या बेसन के लड्डू से भी भोग लगा सकते हैं।
सिंह- ॐ श्रीं गं सौभाग्य गणपतेय वरवरदं सर्वजनं में वशमानयं स्वाहा॥
खीर- एक कथा के अनुसार, माता पार्वती, महादेव के लिए जब खीर बनाती हैं तो पुत्र गणेश खीर पी जाते हैं। इसलिए भगवान गणेश को खीर अवश्य चढ़ाना चाहिए।
केला- सनातन धर्म में केले के भोग को उत्तम माना गया है और यह भगवान गणेश को भी पसंद है. इस लिए केले का भोग अवश्य लगाएं।
मखाने की खीर- मखाने की खीर बनाकर भगवान गणेश को भोग लगाएं।
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें। गणपति का स्मरण करते हुए पूजा की पूर्ण करें। गणेश चतुर्थी के दिन लाल रंग के वस्त्र धारण करें। एक कलश में जल भरकर उसमें सुपारी डालें। उसे कोरे कपड़े से बांधना चाहिए। इसके बाद सही दिशा में चौकी स्थापित करके उसमें लाल रंग का कपड़ा बिछा दें। स्थापना से पहले गणपति को पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद गंगाजल से स्नान कराकर चौकी में जयकारे लगाते हुए स्थापित करें। उनके साथ रिद्धि-सिद्धि के रूप में प्रतिमा के दोनों ओर एक-एक सुपारी भी रख दें।
भगवान गणेश की पूजा-विधि
स्थापना के बाद गणपति को फूल की मदद से जल अर्पित करे। इसके बाद रोली, अक्षत और चांदी की वर्क लगाए। इसके बाद लाल रंग का पुष्प, जनेऊ, दूब, पान में सुपारी, लौंग, इलायची और कोई मिठाई रखकर अर्पित कर दें। नारियल और भोग में मोदक अर्पित करें। षोडशोपचार के साथ उनका पूजन करें। गणेश जी को दक्षिणा अर्पित कर उन्हें 21 लड्डूओं का भोग लगाएं। सभी सामग्री चढ़ाने के बाद धूप, दीप और अगरबत्ती से भगवान गणेश की आरती करें। इसके बाद इस मंत्र का जाप करें।
वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभ। ... (सूर्यकोटि गलत है)
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
अथवा
ॐ श्री गं गणपतये नम: का जाप करें।
दिन में 3 बार लगाएं भोग
अगर आपने अपने घर पर भगवान गणपति की मूर्ति स्थापित की हैं तो उनका ख्याल बिल्कुल घर के सदस्य की तरह रखना होगा, इसलिए गणपति को दिन में 3 बार भोग लगाना अनिवार्य है। गणपति बप्पा को रोजाना मोदक का भोग जरूर लगाना चाहिए। आप चाहे तो मोतीचूर या बेसन के लड्डू से भी भोग लगा सकते हैं।
शीघ्र इच्छा पूर्ति के लिए इस दिन भगवान गणेश को अपनी राशि अनुसार प्रसाद चढ़ाने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होने के साथ ही जीवन कई तरह की खुशियों से भर जाता है। मान्यता है, कि राशिनुसार मंत्र जाप के साथ ही गणपति जी को अपनी राशि के अनुसार भोग लगाने से जीवन में संपन्नता आती हैं।राशि अनुसार मंत्र का जाप एवं भोग इस प्रकार है-
मेष- ॐ वक्रतुण्डाय हुं॥
मेष- ॐ वक्रतुण्डाय हुं॥
भोग- छुआरा और गु़ड़ के लड्डू चढ़ाएं।
वृषभ- ॐ ह्रीं ग्रीं ह्रीं ॥
भोग- मिश्री,नारियल से बने लड्डू, शक्कर भोग चढ़ाएं।
मिथुन- ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद् सर्वजनं मे वशमानाय स्वाहा॥
भोग- मूंग के लड्डू, हरे फल भोग में लगाएं।
कर्क- ॐ वक्रतुण्डाय हुं॥
कर्क- ॐ वक्रतुण्डाय हुं॥
भोग- मोदक के लड्डू, मक्खन, खीर भोग में लगाएं।
सिंह- ॐ श्रीं गं सौभाग्य गणपतेय वरवरदं सर्वजनं में वशमानयं स्वाहा॥
भोग- गुड़ से बने मोदक के लड्डू व लाल फल भोग में लगाएं।
कन्या- ॐ गं गणपतयै नमः या ॐ श्रीं श्रियैः नमः॥
भोग- हरे फल, मूंग की दाल के लड्डू व किशमिश भोग में लगाएं।
तुला- ॐ ह्रीं, ग्रीं, ह्रीं गजाननाय नम:॥
तुला- ॐ ह्रीं, ग्रीं, ह्रीं गजाननाय नम:॥
भोग- मिश्री, लड्डू और केला भोग में लगाएं।
वृश्चिक- ॐ वक्रतुण्डाय हुं॥
भोग- छुआरा और गु़ड़ के लड्डू भोग में लगाएं।
धनु- हुं गं ग्लौं हरिद्रागणपतयै वरवरद दुष्ट जनहृदयं स्तम्भय स्तम्भय स्वाहा॥
भोग- मोदक व केला चढ़ाएं।
मकर- ॐ लंबोदराय नमः॥
मकर- ॐ लंबोदराय नमः॥
भोग- मोदक के लड्डू, किशमिश, लड्डू भोग में लगाएं।
कुंभ- ॐ सर्वेश्वराय नमः॥
भोग- गुड़ लड्डू व मौसमी फल चढ़ाएं।
मीन- ॐ सिद्धि विनायकाय नमः॥
भोग- बेसन के लड्डू, केला, बादाम चढ़ाएं।
गणपति को प्रिय भोग या प्रसाद
मोदक- गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित की जाती है। चूँकि यह दिन गणपति के जन्मोत्सव का दिन होता है, इसलिए इस दिन इनकी सबसे प्रिय मोदक का भोग अवश्य लगते हैं।
भगवान गणेश को मोतीचूर व बेसन लड्डू भी बहुत प्रिय हैं। अतः गणेश चतुर्थी के दिनय उनके बाल रुप का भी पूजन करते हुए मोतीचूर के लड्डू का भी भोग लगाएं। गणपति को बेसन का लड्डू भी अति प्रिय है। इसलिए इन 10 दिनों में एक दिन बेसन के लड्डू का प्रसाद चढ़ाएं।
मोदक- गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित की जाती है। चूँकि यह दिन गणपति के जन्मोत्सव का दिन होता है, इसलिए इस दिन इनकी सबसे प्रिय मोदक का भोग अवश्य लगते हैं।
भगवान गणेश को मोतीचूर व बेसन लड्डू भी बहुत प्रिय हैं। अतः गणेश चतुर्थी के दिनय उनके बाल रुप का भी पूजन करते हुए मोतीचूर के लड्डू का भी भोग लगाएं। गणपति को बेसन का लड्डू भी अति प्रिय है। इसलिए इन 10 दिनों में एक दिन बेसन के लड्डू का प्रसाद चढ़ाएं।
खीर- एक कथा के अनुसार, माता पार्वती, महादेव के लिए जब खीर बनाती हैं तो पुत्र गणेश खीर पी जाते हैं। इसलिए भगवान गणेश को खीर अवश्य चढ़ाना चाहिए।
केला- सनातन धर्म में केले के भोग को उत्तम माना गया है और यह भगवान गणेश को भी पसंद है. इस लिए केले का भोग अवश्य लगाएं।
नारियल- धार्मिक कार्यों के लिए नारियल काफी शुभ होता है. इन दस दिनों में कसी दिन भगवान गणेश को नारियल का भोग जरूर लगाएं।
मखाने की खीर- मखाने की खीर बनाकर भगवान गणेश को भोग लगाएं।
पीले रंग की मिठाई- पीला रंग गणेश जी को बहुत प्रिय है। इसलिए पीली मिठाई का भोग अवश्य लगाएं।
मंगल दोष या मांगलिक दोष हेतु विशेष उपाय
गणेश चतुर्थी पर भगवन गणेश की पूजा करना भक्तों के लिए मंगलमय है। इस दिन कुंडली में मंगल दोष से छुटकारा प्राप्त करने विशेष उपाय कर कर सकते हैं। कुंडली में मंगल दोष या मांगलिक दोष होने से जातक के विवाह में अड़चनें आती हैं, ऋण का बोझ और भूमि संबंधित समस्याएं हो सकती है। इसके लिए निम्न उपाय करें (प्रभाव को हमें कालांतर में अवश्य बताएं)-
अगर कुंडली में मंगल दोष है, तो उसे गणेश चतुर्थी पर ॐ भौमाय नम: और ॐ अं अंगारकाय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। इससे मंगल ग्रह शांत होगा और इस दोष से मुक्ति प्राप्त होगी।
हनुमान मंदिर में बाटें बूंदी का प्रसाद
मंगल दोष से मुक्ति प्राप्त करने के लिए जातकों को हनुमान मंदिर में बूंदी का प्रसाद बांटना चाहिए। इसके साथ मंगल दोष से मुक्ति प्राप्त करने के लिए लोग हर एक मंगलवार को व्रत रखते हैं।
गणपति स्तोत्र का करें पाठ
गणेश चतुर्थी पर गणेश स्तोत्र का पाठ करें और विधिवत गणपति की पूजा करें।
गणेश जी के साथ हनुमान जी की करें पूजा-
अगर किसी जातक की कुंडली में मंगल दोष है तो उसे गणेश चतुर्थी पर श्री गणेश और भगवान हनुमान की पूजा और ध्यान करना चाहिए।
हनुमान मंदिर में चढ़ाएं लाल सिंदूर-
गणेश चतुर्थी पर हनुमान मंदिर में लाल सिंदूर चढ़ाएं। इसके साथ अभावग्रस्त लोगों को लाल वस्त्र या लाल मसूर की दाल का दान करें।
अगर कुंडली में मंगल दोष है, तो उसे गणेश चतुर्थी पर ॐ भौमाय नम: और ॐ अं अंगारकाय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। इससे मंगल ग्रह शांत होगा और इस दोष से मुक्ति प्राप्त होगी।
हनुमान मंदिर में बाटें बूंदी का प्रसाद
मंगल दोष से मुक्ति प्राप्त करने के लिए जातकों को हनुमान मंदिर में बूंदी का प्रसाद बांटना चाहिए। इसके साथ मंगल दोष से मुक्ति प्राप्त करने के लिए लोग हर एक मंगलवार को व्रत रखते हैं।
गणपति स्तोत्र का करें पाठ
गणेश चतुर्थी पर गणेश स्तोत्र का पाठ करें और विधिवत गणपति की पूजा करें।
गणेश जी के साथ हनुमान जी की करें पूजा-
अगर किसी जातक की कुंडली में मंगल दोष है तो उसे गणेश चतुर्थी पर श्री गणेश और भगवान हनुमान की पूजा और ध्यान करना चाहिए।
हनुमान मंदिर में चढ़ाएं लाल सिंदूर-
गणेश चतुर्थी पर हनुमान मंदिर में लाल सिंदूर चढ़ाएं। इसके साथ अभावग्रस्त लोगों को लाल वस्त्र या लाल मसूर की दाल का दान करें।
चंद्रमा का दर्शन करने से लगता है कलंक !
भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को चंद्रमा का दर्शन करना वर्जित माना गया है। गणेश चतुर्थी के दिन (सोमवार, 18 सितंबर 2023 को) यदि आप भूलवश भी चंद्रमा का दर्शन कर लेते हैं, तो आप पर झूठे कलंक लग सकते हैं। इस बारे में भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी घटना है, जिसमें वे गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन कर लेते हैं और उन पर स्यामंतक मणि चोरी करने का मिथ्या कलंक लग जाता है।
सनातन हिन्दू पंचांग के अनुसार, इस बार गणेश चतुर्थी का पर्व मंगलवार (19 सितंबर 2023) को है। ऐसे में आपको जानना चाहिए कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को न देखने के पीछे कारण है, जिससे चंद्रमा को गणेश जी के श्राप का भागी बनना पड़ा।
जब गणपति ने दिया श्राप
गणेश जी माता पार्वती के आदेश पर घर के मुख्य पर खड़े होकर पहरा दे रहे थे। तभी भगवान शिव वहां आए और अंदर जाने लगे, तो गणेश जी ने उनको रोक दिया। पौराणिक कथाओं के अनुसार, बार-बार समझाने पर भी वे शिव जी को अंदर जाने से रोक दिए। तब क्रोधित होकर महादेव ने उनका सिर काट दिया। तब तक पार्वती जी वहां आ गईं। उन्होंने शिव जी से कहा कि आपने क्या अनर्थ कर दिया, ये पुत्र गणेश हैं। आप उनको फिर से जीवित करें। माता पार्वती के कहने पर भगवान शिव ने गणेश जी को गजानन मुख प्रदान कर जीवन दिया। गजमुख के साथ दोबारा जीवन पाने पर सभी देवी देवता गणपति को आशीर्वाद दे रहे थे, लेकिन वहाँ उपस्थित चंद्र देव गणपति को देखकर मुस्कुरा रहे थे।
भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को चंद्रमा का दर्शन करना वर्जित माना गया है। गणेश चतुर्थी के दिन (सोमवार, 18 सितंबर 2023 को) यदि आप भूलवश भी चंद्रमा का दर्शन कर लेते हैं, तो आप पर झूठे कलंक लग सकते हैं। इस बारे में भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी घटना है, जिसमें वे गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन कर लेते हैं और उन पर स्यामंतक मणि चोरी करने का मिथ्या कलंक लग जाता है।
सनातन हिन्दू पंचांग के अनुसार, इस बार गणेश चतुर्थी का पर्व मंगलवार (19 सितंबर 2023) को है। ऐसे में आपको जानना चाहिए कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को न देखने के पीछे कारण है, जिससे चंद्रमा को गणेश जी के श्राप का भागी बनना पड़ा।
जब गणपति ने दिया श्राप
गणेश जी माता पार्वती के आदेश पर घर के मुख्य पर खड़े होकर पहरा दे रहे थे। तभी भगवान शिव वहां आए और अंदर जाने लगे, तो गणेश जी ने उनको रोक दिया। पौराणिक कथाओं के अनुसार, बार-बार समझाने पर भी वे शिव जी को अंदर जाने से रोक दिए। तब क्रोधित होकर महादेव ने उनका सिर काट दिया। तब तक पार्वती जी वहां आ गईं। उन्होंने शिव जी से कहा कि आपने क्या अनर्थ कर दिया, ये पुत्र गणेश हैं। आप उनको फिर से जीवित करें। माता पार्वती के कहने पर भगवान शिव ने गणेश जी को गजानन मुख प्रदान कर जीवन दिया। गजमुख के साथ दोबारा जीवन पाने पर सभी देवी देवता गणपति को आशीर्वाद दे रहे थे, लेकिन वहाँ उपस्थित चंद्र देव गणपति को देखकर मुस्कुरा रहे थे।
गणेशजी समझ गए, चंद्र देव उनके स्वरुप को देखकर घमंड से ऐसा कर रहे हैं। चंद्र देव को अपनी सुंदरता पर अभिमान था। वे गणेश जी का उपहास कर रहे थे। तब गणेशजी क्रोधित होकर चंद्र देव को श्राप दिया, तुम हमेशा के लिए काले हो जाओगे। श्राप के प्रभाव से चंद्र देव की सुंदरता खत्म हो गई और वे काले हो गए।
तब चंद्र देव को अपनी गलती का अनुभव हुआ। उन्होंने गणेशजी से क्षमा मांगी। तब गणपति ने कहा, आप पूरे एक मास में केवल एकबार अपनी पूर्ण कलाओं से युक्त हो सकते हैं। इस कारण पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी समस्त कलाओं से युक्त होते हैं।
तब चंद्र देव को अपनी गलती का अनुभव हुआ। उन्होंने गणेशजी से क्षमा मांगी। तब गणपति ने कहा, आप पूरे एक मास में केवल एकबार अपनी पूर्ण कलाओं से युक्त हो सकते हैं। इस कारण पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी समस्त कलाओं से युक्त होते हैं।
चंद्र दर्शन के दोष से मुक्ति हेतु उपाय-
गणेश चतुर्थी के दिन भूलवश चंद्रमा को देखने से व्यक्ति पर गलत आरोप लग सकते हैं। इस दोष से मुक्ति के लिए व्यक्ति को श्रीकृष्ण जी से संबंधित स्यामंतक मणि के चोरी होने वाली कथा पढ़नी या सुननी चाहिए।(disclaimer : उक्त लेख आम धारणाओं एवं ज्योतिषियों के मत पर आधारित है। धर्म नगरी/DN News सभी तथ्यों की पुष्टि नहीं करता। लाल रंग में लिखे मंत्रों का विशेष महत्व है, इसलिए उन्हें लाल लिखते हैं, ताकि श्रद्धालु मंत्रों को देखकर जाप कर सकें। -धर्म नगरी से / DN News ओर से सभी को मंगल कामनाएं -संपादक 9752404020)
----------------------------------------------
अपने जिले के पार्ट-टाइम स्थानीय प्रतिनिधि / रिपोर्टर बनकर आप भी समाजसेवा धर्म-हिन्दुत्व जागृति का कार्य कर सकते है, नियमानुसार आय / वेतन के साथ। यदि आप सक्षम/सम्पन्न हिन्दू हैं और आप भी किसी प्रकार का सहयोग करना चाहते हैं, तो कृपया संपर्क करें। आर्थिक सहयोग आप "धर्म नगरी" के बैंक खाते में सीधे दें और उसके पश्चात अपने सहयोग की जानकारी भी लें। सम्पर्क- वाट्सएप- 8109107075 मो. 9752404020 ईमेल-dharm.nagari@gmail.com
देखें "धर्म नगरी"
Post a Comment