#AdityaL1 : अभिजीत मुहूर्त में इसरो चला सूर्य की ओर...
पाँचवी शताब्दी में वराहमिहिर द्वारा लिखे ‘मेदिनी ज्योतिष के वृहत संहिता’ के तीसरे अध्याय- आदित्य, चौथा अध्याय- सूर्य पर पडऩे वाले धब्बों को तामस कीलक कहा गया है। ‘आदित्य एल-1’ मिशन इन्हीं काले धब्बों का राज खोलेगा...
ISRO के वैज्ञानिकों की अथक परिश्रम और समर्पण
- अनुराधा त्रिवेदी*
धर्म नगरी / DN News
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भारतीय आध्यात्मिकता सूर्य को तेजस्व प्रदान करने वाले देव के रूप में देखती है। ज्योतिष शास्त्र कुंडली के स्थान के आधार पर व्यक्ति के जीवन का अध्ययन करती है। ‘आदित्य एल-1’ अभियान की शुरुआत अभिजीत मुहूर्त में होगा। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखें तो पाँचवी सदी में लिखे वराहमिहिर के ‘मेदिनी ज्योतिष के वृहत संहिता’ के तीसरे अध्याय- आदित्य, चौथा अध्याय- सूर्य पर पडऩे वाले धब्बों को तामस कीलक कहा गया है। ‘आदित्य एल-1’ मिशन इन्हीं काले धब्बों का राज खोलेगा। ‘आदित्य एल-1’ सौर मिशन का प्रक्षेपण दो सितंबर को सुबह 11 बजार 50 मिनट किया जाएगा। संयोग से यह समय अभिजीत मुहूर्त का होगा, जिसे ज्योतिष शास्त्र में शुभ माना जाता है। वर्तमान में सूर्य अपनी स्वयं की राशि सिंह में गोचर कर रहे हैं और उन पर मेष राशि से उनके मित्र गुरु की पाँचवी दृष्टि पड़ रही है। साथ ही प्रक्षेपण के दिन कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि तथा उत्तर भाद्रपद नक्षत्र रहेगा, जो कि मुहूर्त में शुभ माना जाता है।
भारतीय आध्यात्मिकता में शनि ग्रह के पिता के रूप में सूर्य माने जाते हैं। इसके लिए मंत्र पढ़ा जाता है- नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजं, छाया मार्तण्डसंभूतं तं नमामि शनिश्चरम्। वहीं सूर्य की स्तुति करते हुए मंत्र पढ़ा जाता है- ॐ घृणि: सूर्य आदित्याय नम:। सनातन परंपरा में सूर्य को नमन करना, जल चढ़ाते हुए अर्घ्य देते हुए सूर्य की ओर आँखें खोलकर देखते रहना है। सूर्य की गर्मी, सूर्य का तापमान धरती, प्रकृति और मानव जीवन के लिए अति आवश्यक माना जाता है। जिस प्रकार चंद्रमा सदियों से मानव के लिए मामा बने रहे, वैसे ही सूर्य मानवीय जीवन के लिए तेज प्रदान करने के लिए माने जाते हैं।
चंद्रयान-3 के जरिये चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अपना परचम फहराने के बाद भारत की स्पेस एजेंसी- इसरो ‘आदित्य एल-1’ मिशन को दो सितंबर को साकार रूप देने जा रही है। ‘आदित्य एल-1’ सूर्य के अध्ययन के लिए भारत का पहला समर्पित यान होगा। यह वेधशाला सूर्य पर लगातार नजर रख सकेगी। सूर्य-ग्रहण का भी इस पर असर नहीं होगा। इस वेधशाला को सूर्य और पृथ्वी के बीच एक खास जगह पर स्थापित किया जाएगा, जिसे लैंगवेज-वन या एल-वन पर स्थापित किया जाएगा। ये सूर्य का ऐसा अध्ययन करेगा, जो पृथ्वी पर रहकर संभव नहीं है। इसके माध्यम से सूर्य के वायुमंडल और सतह के कई प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाएगा।
इसके बाद इसरो उन स्पेस एजेंसियों के समूह में शामिल हो जाएगा, जिन्होंने सूर्य के लिए एक खास यान प्रक्षेपित किया। इसरो के इस मिशन को पीएसएलवी-एक्स एल रॉकेट की मदद से हरिकोटा स्पेस स्टेशन से लांच करेगा। यह यान पृथ्वी और सूर्य के बीच की एक फीसदी दूरी तय करके एल-1 टाइम पर पहुंचा देगा। इसरो का ‘आदित्य एल-1’ सूर्य के रहस्यों की खोज करेगा। भारत के चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद इसरो का ये महत्वकांक्षी मिशन है। अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैंगरेज बिन्दु एल-1 के चारों ओर एक प्रभात मंडल कक्षा में स्थापित करने की योजना है, जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किमी. दूर है। लैंगरेज बिंदु अंतरिक्ष में वो स्थान है, जहाँ सूर्य और पृथ्वी जैसे दो पिंडों के गुरुवाकर्षण बल के आकर्षण और प्रतिकर्षण के उन्नत क्षेत्र उत्पन्न होते हैं। इसका उपयोग अंतरिक्ष यान द्वारा एक ही स्थिति में रहने में किया जा सकता है। यानी, दोनों पिंडों का गुरुत्वाकर्षण यहाँ संतुलन में होता है।
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पृथ्वी के तारामंडल या दिन-रात के चक्र से प्रभावित सूर्य या ब्रह्मांड को निरंतर दृश्य के लिए सौर और हेलियोस्फेरिक वेदशाला को एल-1 के पास स्थापित किया गया है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा अगस्त 2018 में पार्कर अपोलो पोल लांच किया था। दिसंबर 2021 में पार्कर ने सूर्य के ऊपर क्षेत्र यानी कोरोना से उड़ान और भारी और चुंबकीय क्षेत्र का नमूना लिया। नासा की वेबसाइट के अनुसार, यह पहली बार था कि किसी अंतरिक्ष यान ने सूर्य को स्थिर किया।
‘आदित्य एल-1’ भारत की मेधावी शक्ति का चित्रण भी है। यह इसरो के दिग्गज और वैश्विक प्रगतिशील वैज्ञानिक योगदान के प्रमाण हैं। भारत कोरोना महामारी के समय इसे लांच करने वाला था, लेकिन देश कोरोना महामारी से जूझ रहा था। इसलिए इसे स्थगित करना पड़ा था।
भारत चांद के बाद सूरज की तरफ देख रहा है। मंगल और चंद्रमा पर सफल विजनों के मद्देनजर इसरो सूर्य मिशन को बहुत महत्वपूर्ण मानते हुए, सूर्य की जटिल कार्यप्रणाली को उजागर करने के लिए तैयार है, जो हमारे ग्रह पर जीवन बनाये रखने का स्त्रोत है।
‘आदित्य एल-1’ भारत की मेधावी शक्ति का चित्रण भी है। यह इसरो के दिग्गज और वैश्विक प्रगतिशील वैज्ञानिक योगदान के प्रमाण हैं। भारत कोरोना महामारी के समय इसे लांच करने वाला था, लेकिन देश कोरोना महामारी से जूझ रहा था। इसलिए इसे स्थगित करना पड़ा था।
भारत चांद के बाद सूरज की तरफ देख रहा है। मंगल और चंद्रमा पर सफल विजनों के मद्देनजर इसरो सूर्य मिशन को बहुत महत्वपूर्ण मानते हुए, सूर्य की जटिल कार्यप्रणाली को उजागर करने के लिए तैयार है, जो हमारे ग्रह पर जीवन बनाये रखने का स्त्रोत है।
सूर्य हमारा निकटतम तारा है। यह खगोलीय पिंड गतिशील पिंडों से भरा है, जो इसकी दृश्य सतह से कहीं आगे तक फैला हुआ है। यह समय-समय पर ऊर्जा के विशाल विस्फोट को उजागर करता है और विस्फोटक घटनाओं को प्रदर्शित करता है। हालांकि,ये सौर विस्फोट संभावित रूप से हमारी तकनीकी रूप से निर्भर दुनिया को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे हमारी पृथ्वी के निकट अंतरिक्ष पर्यावरण में व्यवधान पैदा हो सकता है। ऐसी किसी गड़बड़ी को रोकने, शीघ्र पता लगाने और उसने हस्तक्षेप करने के लिए इसरो द्वारा प्रक्षेपित यह यान एक प्राकृतिक प्रयोगशाला के रूप में काम करते हुए घटनाओं का अध्ययन करते हुए एक अमूल्य क्षेत्र प्रदान करता है।
‘आदित्य एल-1’ की यात्रा पीएसएलवी-सी 57 रॉकेट द्वारा पृथ्वी की निचली कक्षा में प्रक्षेपण के साथ शुरू होगी। इसके बाद अंतरिक्ष यान की कक्षा अधिक अंडाकार प्रक्षेप वक्र में बदल जाती है, जो इसे एल-1 बिन्दु की ओर निर्देशित करती है। जैसे ही अंतरिक्ष यान इस पथ को पार करता है, वह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के प्रभाव से बच जाता है। एक बार जब ये सीमा पार हो जाती है तो यान एक क्रूज चरण में प्रवेश करता है। अंतत: एल-1 को घेरने वाली एक विशाल प्रभामंडल कक्षा में प्रवेश करता है। यह जटिल यात्रा में चार माह का समय लगता है।
‘आदित्य एल-1’ के मिशन से आकांक्षा कई गुना है, जिसमें सौर गतिशीलता के विभिन्न पहलुओं की खोज शामिल है। इनमें कोरोनल हीटिंग में गहराई से जाना शामिल है। इसरो के ‘आदित्य एल-1’ मिशन में नासा ई.एस.ए. (यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी) द्वारा लांच किये गए सोलर आर्बिटर जैसी हालिया उपलब्धियों तक ये सामूहिक प्रयास हमें जीवन देने वाले सूर्य के रहस्यों को जानने के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हैं।
भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो ने मंगल और चंद्रमा पर सफल लैंडिंग के बाद सूर्य के अध्ययन के लिए जिस यान का प्रक्षेपण करने वाला है, उसकी सफलता से ये देश न केवल आर्थिक रूप से बहुत उन्नति करेगा, साथ ही भारत की अंतरिक्ष शक्ति का विश्व लोहा मानेगा। विकासशील देश के रूप में भारत की ये उड़ानें ये बताती हैं, कि सबसे आगे हम हैं हिन्दुस्तानी...।
*वरिष्ठ पत्रकार, भोपाल।
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ISRO के वैज्ञानिकों की अथक परिश्रम और समर्पण
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अब 'आदित्य-एल1' नाम से अपना पहला सौर मिशन लॉन्च करने के लिए तैयार है। यह मिशन सूर्य के अध्ययन पर केंद्रित है। चंद्रयान-3 के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सफलतापूर्वक उतरने के बाद अब आदित्य L-1 का फाइनल काउंटडाउन शनिवार दो सितंबर दिन में 11:50 मिशन लांच करेगा। श्रीहरिकोटा से अंतरिक्ष यान को ISRO के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) रॉकेट अंतरिक्ष यान का उपयोग करके लांच किया जाएगा।
ये भारत के वैज्ञानिकों की अथक परिश्रम और समर्पण का परिणाम है, कि लगभग 3 माह के अंदर देश दूसरे मिशन को लांच होते देखने वाला है। आदित्य L-1 मिशन की बात करें, तो इसे इसरो के वैज्ञानिक शंकरसुब्रमण्यम के लीड कर रहे हैं। डॉ. शंकरसुब्रमण्यम को इसरो के आदित्य-एल1 मिशन का प्रिंसिपल साइंटिस्ट बनाया गया है। डॉ. शंकरसुब्रमण्यम के. यूआर राव सैटेलाइट सेंटर (यूआरएससी), बेंगलुरु में एक वरिष्ठ सौर वैज्ञानिक हैं। उन्होंने भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान, बेंगलुरु के माध्यम से बैंगलोर विश्वविद्यालय से भौतिकी में पीएचडी की। उनकी रुचि के अनुसंधान क्षेत्र सौर चुंबकीय क्षेत्र, प्रकाशिकी और इंस्ट्रुमेंटेशन हैं।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अब 'आदित्य-एल1' नाम से अपना पहला सौर मिशन लॉन्च करने के लिए तैयार है। यह मिशन सूर्य के अध्ययन पर केंद्रित है। चंद्रयान-3 के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सफलतापूर्वक उतरने के बाद अब आदित्य L-1 का फाइनल काउंटडाउन शनिवार दो सितंबर दिन में 11:50 मिशन लांच करेगा। श्रीहरिकोटा से अंतरिक्ष यान को ISRO के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) रॉकेट अंतरिक्ष यान का उपयोग करके लांच किया जाएगा।
ये भारत के वैज्ञानिकों की अथक परिश्रम और समर्पण का परिणाम है, कि लगभग 3 माह के अंदर देश दूसरे मिशन को लांच होते देखने वाला है। आदित्य L-1 मिशन की बात करें, तो इसे इसरो के वैज्ञानिक शंकरसुब्रमण्यम के लीड कर रहे हैं। डॉ. शंकरसुब्रमण्यम को इसरो के आदित्य-एल1 मिशन का प्रिंसिपल साइंटिस्ट बनाया गया है। डॉ. शंकरसुब्रमण्यम के. यूआर राव सैटेलाइट सेंटर (यूआरएससी), बेंगलुरु में एक वरिष्ठ सौर वैज्ञानिक हैं। उन्होंने भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान, बेंगलुरु के माध्यम से बैंगलोर विश्वविद्यालय से भौतिकी में पीएचडी की। उनकी रुचि के अनुसंधान क्षेत्र सौर चुंबकीय क्षेत्र, प्रकाशिकी और इंस्ट्रुमेंटेशन हैं।
वैसे उन्होंने कई पदों पर इसरो के एस्ट्रोसैट, चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 मिशन में भी योगदान दिया है। वर्तमान में वह यूआरएससी के स्पेस एस्ट्रोनॉमी ग्रुप (एसएजी) का नेतृत्व कर रहे हैं। एसएजी आदित्य-एल1, एक्सपीओसैट के आगामी मिशनों के लिए वैज्ञानिक पेलोड और चंद्रयान-3 प्रणोदन मॉड्यूल पर विज्ञान पेलोड विकसित करने में शामिल है। वह आदित्य-एल1 जहाज पर एक्स-रे पेलोड में से एक के प्रिंसिपल इंवेस्टीगेटर भी हैं। डॉ. शंकरसुब्रमण्यम के. आदित्य-एल1 साइंस वर्किंग ग्रुप के भी प्रमुख हैं, जिसमें सौर विज्ञान अनुसंधान में लगे भारत के कई संस्थानों के सदस्य हैं।
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