#Janmastami : जन्माष्टमी पूजन-विधि, भोग में प्रिय वस्तु, करें विशेष उपाय, संतान प्राप्ति का मंत्र...


वृंदावन में 7 अगस्त को जन्माष्टमी
धर्म नगरी / 
DN News
(W.app- 8109107075 -न्यूज़, कवरेज, विज्ञापन व सदस्यता हेतु)
- राजेश पाठक संपादक

मथुरा-वृंदावन में वर्षों से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के जन्मोत्सव सूर्य उदयकालिक और नवमी तिथि विद्धा जन्माष्टमी मनाने की परंपरा है। इसलिए 7 अगस्त की अर्द्धरात्रि को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाएगा, गृहस्थ संप्रदाय के लोग कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं और वैष्णव संप्रदाय के लोग कृष्ण जन्मोत्सव मनाते हैं। 

जन्माष्टमी को मनाने वाले दो अलग-अलग संप्रदाय के लोग होते हैं, स्मार्त और वैष्णव इनके विभिन्न मतों के कारण दो तिथियां बनती हैं। स्मार्त वह भक्त होते हैं, जो गृहस्थ आश्रम में रहते हैं। यह अन्य देवी-देवताओं की जिस तरह पूजा-अर्चना और व्रत करते हैं, उसी प्रकार कृष्ण जन्माष्टमी का धूमधाम से उत्सव मनाते हैं। वहीं, वैष्णव ऐसे भक्त होते हैं, वे अपना संपूर्ण जीवन भगवान कृष्ण को अर्पित कर देते हैं। उन्होंने गुरु से दीक्षा भी ली होती है और गले में कंठी माला भी धारण करते हैं। जितनी भी साधु-संत और वैरागी होते हैं, वे वैष्णव धर्म में आते हैं।
----------------------------------------------
"धर्म नगरी" व DN News का विस्तार प्रत्येक जिले के ग्रामीण व शहरी क्षेत्र में हो रहा है। प्रतियों को निशुल्क देशभर में धर्मनिष्ठ संतो आश्रम को भेजने हेतु हमें दानदाताओं की आवश्यकता है। "धर्म नगरी" के विस्तार हो रहा है। हमें बिजनेस पार्टनर चाहिए। इच्छुक कृपया संपर्क करें- 06261868110
----------------------------------------------
पूजन में रखें ध्यान-
- श्रीकृष्ण की सर्वाधिक प्रिय वस्तुओं में बांसुरी एक है। इसलिए पूजा में बांसुरी अवश्य रखें। बांसुरी सरलता और मिठास का प्रतीक है,
- इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को पीले और चमकीले वस्त्र पहनाएं। इसके साथ ही उनका ऐसा ही सुंदर सा आसन भी हो। 
- इस दिन घर में राधा-कृष्ण का चित्र अवश्य रखें। ऐसा करने से प्रेम संबंध अच्छे होते हैं, साथ ही पूजा-स्थान पर कौडिय़ाँ रखें। इससे धन की प्राप्ति होगी।
- पूजा के समय श्रीकृष्ण की मूर्ति के साथ गाय की मूर्ति अवश्य रखें। हिंदू धर्म में गाय को बहुत ही पूजनीय माना है। गाय में 33 कोटि (प्रकार) के देवी-देवता वास करते हैं,
- भगवान श्रीकृष्ण को तुलसी के बिना भोग नहीं लगाते। इसलिए भोग में तुलसी अवश्य डालें,
- मोर पंख के बिना श्रीकृष्ण का श्रृंगार अधूरा रहता है। इसलिए श्रीकृष्ण के साथ मोर पंख अवश्य रखें। सम्मोहन व भव्यता का प्रतीक मोर पंख दु:खों को दूर कर जीवन में आनंद का सूचक है,
- कृष्ण को माखन मिश्री अत्यंत प्रिय है। जन्माष्टमी पर लड्डू गोपाल को माखन मिश्री का भोग लगाने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है,
- जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण बाल स्वरूप में प्रकट होते हैं। उन्हें पालने या झूले में झुलाया जाता है। अत: पूजा में झूला अवश्य रखें, इससे परिवार में हर्षोल्लास रहेगा,  
- श्रीकृष्ण विशेष रूप से वैजयंती की माला धारण किए रहते हैं। इसलिए पूजा के समय श्रीकृष्ण को वैजयंती की माला पहनाना न भूलें। वैसे घर में वैयजंती माला रखना बहुत शुभ माना जाता है,
- श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए घंटी भी रखें, इसकी ध्वनि से नकारात्मकता दूर होती है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन कान्हा की पूजा करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। कृष्ण की कृपा से सिद्धि-बुद्धि, धन-बल और ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होती है। कृष्ण के प्रभाव से व्यक्ति धनी बनता है, प्रगति करता है। हर प्रकार के सुख का भागीदार बनता है, उसे कष्ट नहीं होता। कृष्ण शक्ति-ज्ञान के स्वामी है, उनकी कृपा मात्र से ही मनुष्य की नाना प्रकार की समस्या दूर हो जाती है और वो तेजस्वी बनता है।

अष्टमी के प्रकार-
जन्माष्टमी के काल निर्णय के विषय में मतभेद है। इसलिए उपासक अपने मनोनुकूल अभीष्ट योग चुनते हैं। शुद्धा और बिद्धा, इसके दो भेद धर्मशास्त्र में बतलाए गए हैं। 
शुद्धा- सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन सूर्योदय पर्यंत यदि अष्टमी तिथि रहती है, तो वह ‘शुद्धा’ मानी जाती है। 
बिद्धा- सप्तमी या नवमी से संयुक्त होने पर वह अष्टमी ‘बिद्धा’ कही जाती है। 
शुद्धा या बिद्धा भी समा, न्यूना या अधिका (के भेद से) तीन प्रकार की है। इन भेदों में तत्काल व्यापिनी (अर्धरात्रि में रहने वाली) तिथि अधिक मान्य होती है। कृष्ण का जन्म अष्टमी की अर्धरात्रि में हुआ था; इसीलिये लोग उस काल के ऊपर अधिक आग्रह रखते हैं। यदि वह दो दिन हो या दोनों ही दिन न हो, तो सप्तमी बिद्धा को सर्वथा छोडक़र नवमी बिद्धा का ही ग्रहण मान्य होता है। कतिपय वैष्णव रोहिणी नक्षत्र होने पर ही जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं। 

पूजन विधि-
अष्टमी को उपवास रखकर पूजन करने का विधान है तथा नवमी को पारण से व्रत की समाप्ति होती है। उपासक मध्याह्न में काले तिल मिले जल से स्नान कर देवकी जी के लिये सूतिकागृह नियत कर उसे प्रसूति की उपयोगी सामग्री से सुसज्जित करते हैं। इस गृह के शोभन भाग में मंच के ऊपर कलश स्थापित कर सोने, चाँदी आदि धातु अथवा मिट्टी के बने श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती देवकी की मूर्ति स्थापित की जाती है। मूर्ति में लक्ष्मी देवकी का चरण स्पर्श करती होती हैं। अनंतर षोडश उपचारों से देवकी, वसुदेव, बलदेव, श्रीकृष्ण, नंद, यशोदा और लक्ष्मी का विधिवत पूजन होता है। पूजन के अंत में देवकी को निम्न मंत्र से अर्ध्य प्रदान किया जाता है-
प्रणामे  देवजननीं  त्वया  जातस्तु वामन:।
वसुदेवात् तथा कृष्णो  नमस्तुभ्यं नमोनम:
सपुत्रार्घ्य  प्रदत्तं मे  गृहाणेयं नमोऽस्तुते।।

भक्त श्रीकृष्ण के नाल-छेदन आदि आवश्यक कृत्यों का संपादन कर चंद्रमा को अध्र्य देते हैं एवं शेष रात्रि को भगवत का पाठ करते हैं। दूसरे दिन पूर्वाह्न में स्नान कर, अभीष्ट तिथि या नक्षत्र के योग समाप्त होने पर पारण होता है। जन्माष्टमी ‘मोहरात्रि’ के नाम से भी प्रख्यात है और उस रात को जागरण करने का विधान है।

मंत्र से करें श्रीकृष्ण को प्रसन्न-
हे कृष्ण द्वारकावासिन् क्वासि यादवनन्दन। आपद्भि: परिभूतां मां त्रायस्वाशु जनार्दन।।
ॐ नमो भगवते तस्मै कृष्णाया कुण्ठमेधसे। सर्वव्याधि विनाशाय प्रभो माममृतं कृधि।।
ॐनमो भगवते श्री गोविन्दाय 
कृं कृष्णाय नम:
ॐ श्रीं नम: श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा
गोवल्लभाय स्वाहा

खीरे का प्रयोग पूजा में क्यों ? 
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को खीरे का प्रयोग गर्भनाल के रूप में किया जाता है। जिस प्रकार बच्चा जब जन्म लेता है, तब उसे मां से अलग करने के लिए गर्भनाल को काटा जाता है, उसी प्रकार जन्माष्टमी के दिन खीरे को डंठल से काटकर अलग किया जाता है। यह एक प्रकार से श्रीकृष्ण को माता देवकी से अलग करने का प्रतीक है। ऐसा करने के बाद पूरे विधि-विधान से पूजा आरंभ की जाती है।

भोग में ये है कान्हा को प्रिय-
मक्खन और मिश्री- भगवान श्रीकृष्ण बचपन में माखन बहुत खाते थे, क्योंकि ये उनको अत्यंत प्रिय है। यही कारण है, जन्माष्टमी के दिन पूजा में माखन और मिश्री का भोग अवश्य लगाना चाहिए।
मोर पंख- भगवान श्रीकृष्ण को मोर का पंख अति प्रिय है, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण के मुकुट में मोर पंख अनिवार्य होता है। जन्माष्टमी के दिन भगवान की पूजा में मोर पंख को भी रखना चाहिए। धार्मिक मान्यता है, जहां मोर पंख होता है वहां से नकारात्मकता खत्म हो जाती है।
धनिया पंजीरी- ज्योतिष शास्त्र में धनिया का संबंध धन से बताया जाता है। धार्मिक मान्यता है, श्रीकृष्ण को धनिया की पंजीरी बहुत प्रिय है। जन्माष्टमी की पूजा में धनिया की पंजीरी का उपयोग अवश्य चाहिए। इस दिन लड्डू गोपाल को पंजीरी का भोग लगा सकते हैं।
गाय का घी- श्रीकृष्ण बाल्यावस्था में गाय की बहुत सेवा करते थे, क्योंकि उनको गाय से बहुत लगाव था। इसी कारण कान्हा को भोग लगाने वाले पंजीरी में गाय का घी अवश्य मिलाना चाहिए।
बांसुरी- बांसुरी भगवान कृष्ण के प्रिय वस्तुओं में से एक माना जाता है। जन्माष्टमी के दिन बांसुरी रखने से विशेष कृपा प्राप्त होती है।

लड्डू गोपाल की सेवा
जन्माष्टमी के दिन संतान प्राप्ति की कामना रखने वाले दंपतियों को विधि-विधान से लड्डू गोपाल का पूजन करना चाहिए. साथ ही उनकी सेवा करनी चाहिए और लड्डू गोपाल की सेवा के कुछ नियम होते हैं. जैसे कि सुबह उठकर उन्हें स्नान कराना और फिर श्रृंगार करना. इसके बाद दिन में चार पर उन्हें भोग लगाया जाता है. लड्डू गोपाल यानि बाल गोपाल को कभी भी घर में अकेला नहीं छोड़ा जाता. रात में सोते वक्त उनके कपाट बंद किए जाते हैं 

नि:संतान दंपत्ति रखते हैं व्रत-
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत सनातन हिन्दू धर्म में पवित्रतम व्रत में एक है। इस व्रत को विशेषकर वे महिलाएं रखती हैं, जो नि:संतान हैं। जन्माष्टमी का व्रत रखने से नि:संतान महिला को संतान की प्राप्ति होती है। 

इस व्रत को रखने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहन कर मंदिर में दीप जलाएं। इसके बाद सभी देवी-देवताओं का जलाभिषेक करें। इस दिन लड्डू गोपाल को झूले में बैठाकर दूध से इनका जलाभिषेक करें। फिर लड्डू गोपाल को भोग लगाएं। इस दिन यह सारी पूजा विधि-विधान से रात्रि के समय करें, क्योंकि इस दिन रात्रि पूजा का महत्व होता है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रात में हुआ था। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को खीर का भोग जरूर लगाएं।

जिनकी की कुंडली में चंद्रमा कमजोर होता है, उनके लिए यह व्रत करना बहुत ही लाभप्रद होता है। साथ ही संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत करना बहुत अच्छाा होता है। इस दिन लोग उपवास भी रखते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी में पूजा के समय कुछ वस्तुएँ कृष्णजी के साथ अवश्य रखना चाहिए, क्योंकि इनके बिना कान्हा का स्वरूप अपूर्ण रहता है।

संतान प्राप्ति मंत्र
देवकीसुतं गोविन्दम् वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।
इसे गोपाल मंत्र कहा जाता है। जिन परिवारों में संतान सुख न हो और कुंडली में बुध व गुरु संतान प्राप्ति में बाधक हों। उस दंपति को जन्माष्टमी के दिन इस मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए. संतान प्राप्ति के लिए बेहद ही फलदायी मंत्र माना गया है. मंत्र का जाप करने के लिए तुलसी की शुद्ध माला का उपयोग करना चाहिए।

सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। 
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच।।
हिंदू धर्म शास्त्रों व पुराणों के अनुसार संतान प्राप्ति के लिए यह मंत्र एक सरल उपाय है. इसका जाप करने से घर में कान्हा जैसी सुंदर संतान का जन्म होता है. शीघ्र संतान प्राप्ति के लिए घर में भगवान कृष्ण के बालस्वरुप लड्डू गोपाल जी की प्रतिमा भी स्थापित करनी चाहिए.

 



No comments