#पितृ_पक्ष : न भूले अपने पितरों को, परिवार में...


पुत्र प्राप्ति में बाधा, 
निरंतर समस्या, 
व्यापार में लगातार हानि, 
घर में अकाल मृत्यु आदि हो तो, 
पितृदोष निवारण की विधिवत पूजा करवाना चाहिए
धर्म नगरी / DN News 
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-राजेश पाठक (संपादक 9752404020

सनातन हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन (क्वार) मास का कृष्ण पक्ष हमारे पितरों या पुरखों को समर्पित है। पितरों को स्मरण करने का यह पखवारा अर्थात् पितृ-पक्ष, भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से प्रतिवर्ष आरंभ होता है। इस वर्ष पितृ-पक्ष भाद्र शुक्ल पूर्णिमा 29 सितंबर, 2023 को तर्पण के साथ आरंभ होगा। इसके साथ तिथि के अनुसार पुरखों के श्राद्ध का क्रम भी प्रारंभ होगा, जो पितृ-मोक्ष अमावस्या अर्थात् आश्विन कृष्ण अमावस्या (शनिवार, 14 अक्टूबर) तक चलेगा।

पितृ-पक्ष के इन 16 दिनों तक लोग अपने पुरखों का प्रतिदिन स्मरण करते हैं। तर्पण-अर्पण देते हैं। पितृपक्ष के एक दिन पहले पूर्णिमा तिथि (शुक्रवार, 29 सितंबर) को ऐसे लोग, जिन्हें अपने पूर्वजों की तिथि या तिथियाँ स्मरण नहीं है, तर्पण देंगे। नदी, तालाब, जलाशय के घाटों पहुँचकर सूर्योदय के साथ तर्पण-अर्पण करेंगे। घरों में कौवा, कुत्ता, गाय एवं द्वार पर आए एक व्यक्ति ‘अभ्यागत’ के लिए ग्रास निकाला जाएगा। यह क्रम पूरे पितृ-पक्ष तक चलेगा। श्राद्ध, संकल्प के बाद विधि-विधान से श्रद्धा भाव के साथ ही करना चाहिए। इसीलिए श्राद्ध शब्द, श्रद्धा से बना है। 

विधि-विधान से श्राद्ध कर्म करने से घर-परिवार के व्यक्ति की मनोकामना उनके ही पुरखों के आशीर्वाद से पूरी होती है, जिससे भौतिक और आध्यात्मिक सुखों की स्वत: ही प्राप्ति होती है। पौराणिक उल्लेख है, भगवान श्रीराम ने वन में भी अपने पिता दशरथ का श्राद्ध किया था। माता सीता ने श्राद्ध के समय साक्षात दशरथ को भोजन करते भी देखा था।

श्राद्ध कर्म करने वालों को निम्न मंत्र तीन बार अवश्य पढऩा चाहिए। यह मंत्र ब्रह्माजी द्वारा रचित आयु, आरोग्य, धन, लक्ष्मी प्रदान करने वाला मंत्र है, ऐसा वायु पुराण में उल्लिखित है- 
‘देवताभ्य:  पितृ़भ्यश्च  महायोगिश्च एव च।
नम: स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत।।’


कब करें श्राद्ध
श्राद्ध सदैव दोपहर के समय ही करें। प्रात: एवं सायंकाल के समय श्राद्ध निषेध कहा गया है। धर्म-ग्रंथों में पितरों को देवताओं के समान ही संज्ञा दी गई है। ‘सिद्धान्त शिरोमणि’ ग्रंथ के अनुसार, चंद्रमा की उर्ध्व कक्षा में पितर लोक है, जहाँ पितर रहते हैं। पितर लोक को मनुष्य लोक से आँखों द्वारा नहीं देखा जा सकता। जीवात्मा जब इस स्थल देह से पृथक होती है, उस स्थिति को मृत्यु कहते हैं। यह भौतिक शरीर 27 तत्वों के संघात से बना है। स्थूल पंच महाभूतों एवं स्थूल कर्मेन्द्रियों को छोडऩे पर मृत्यु को प्राप्त हो जाने पर भी 17 तत्वों से बना हुआ सूक्ष्म शरीर विद्यमान रहता है।

सनातन हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, एक वर्ष तक प्राय: सूक्ष्म जीव को नया शरीर नहीं मिलता। मोह वश वह सूक्ष्म जीव स्वजनों एवं घर के आसपास घूमता रहता है। श्राद्ध कार्य के अनुष्ठान से सूक्ष्म जीव को तृप्ति मिलती है। इसीलिए श्राद्ध कर्म किया जाता है। ऐसा कुछ भी नहीं है, कि इस अनुष्ठान में ब्राह्मणों को जो भी भोजन खिलाया जाता है, वही पदार्थ ज्यों का त्यों उसी आकार, वजन और परिमाण में मृतक पितरों को मिलता है। वास्तव में श्रद्धापूर्वक श्राद्ध में दिए गए भोजन का सूक्ष्म अंश परिणत होकर उसी अनुपात एवं मात्रा में प्राणी को मिलता है। पितर लोक में गया हुआ प्राणी श्राद्ध में दिए अन्न का स्वधा रूप में परिणत हुए को खाता है।

विश्वास व श्रद्धापूर्वक एवं सच्चे मन से किए गए संकल्प की पूर्ति होने पर पितरों को आत्मिक शान्ति मिलती है। तभी हमारे पितर हम पर आशीर्वाद रूपी अमृत की वर्षा करते हैं। श्रात्र की संपूर्ण प्रक्रिया दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके किया जाए, तो श्रेष्ठ है, क्योंकि पितर-लोक को दक्षिण दिशा में बताया गया है। श्राद्ध के अवसर पर तुलसीदल का प्रयोग अवश्य करें। गया, पुष्कर, प्रयागराज, हरिद्वार आदि तीर्थों में श्राद्ध करने का विशेष महत्व है। जिस दिन श्राद्ध करें, उस दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें। श्राद्ध के दिन क्रोध, चिड़चिड़ापन एवं कलह से दूर रहें। पितरों को भोजन सामग्री देने के लिए मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग करना श्रेष्ठ है। केले के पत्ते या लकड़ी के बर्तन का भी प्रयोग किया जा सकता है।

पितृ पक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है, सनातन हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इसका समापन 25 सितंबर को होगा। पितृ पक्ष भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से आश्विन महीने की अमावस्या तिथि तक रहता है। मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कार्य किए जाते हैं। श्राद्ध, तर्पण व पिंडदान जैसे कार्यों से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है तथा कुंडली में पितृ-दोष से मुक्ति मिलती है। श्राद्ध के दिन दान का विशेष महत्व है।

गुणवान होगी संतान

 ज्योतिर्विदों एवं तंत्र-साधकों के अनुसार, पितृ-पक्ष में हमारे पूर्वज किसी न किसी रूप में आते हैं। अपने परिवार के लोगों (बच्चों आदि) को सुखी देख आनन्दित होते हैं और दु:ख में देखकर उन्हें भी दु:ख होता है। ज्योतिषाचार्य डॉ. भगवत शरण शुक्ल (बीएचयू वाराणसी) पंचांगकर्ता पं. आनंद शंकर व्यास, पं. विनोद गौतम भोपाल, डॉ. विनायक पाण्डेय (उज्जैन) पं. बृजेन्द्र मिश्र प्रयागराज के मतानुसार, जो व्यक्ति अपने पूर्वजों को तिलांजलि या तर्पण करते हैं, पितृ उनके कष्टों का निवारण करते हैं। व्यक्ति पितृ-दोष व पितृ-ऋण के भार से मुक्त होता है। पितरों के निमित्त भोजन का ग्रास निकालकर दान-पुण्य करने वाले व्यक्ति के घर गुणवान संतान होती है।

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जो नहीं करते विधिवत श्राद्ध
पितरों के श्राद्ध की बात होते ही सर्वप्रथम हमें गया का स्मरण होता है। स्वर्गीय मार्कण्डेय ऋषि आचार्य (भोपाल), जिनके सानिध्य में लगभग चार दशक तक भोपाल के तालाब में श्रद्धालुओं ने सामूहिक रूप से अपने-अपने पुरखों का अर्पण-तर्पण किया, उनका स्पष्ट कहना था- गया (बिहार) में श्राद्ध करने में 48 वेदियों की पूजा होती है, जिसमें 7-8 दिन लगते हैं। इससे पहले प्रयाग एवं वाराणसी में श्राद्ध कर्म करने होते हैं, जिसे अब प्राय: नहीं किया जाता। पितरों के अतृप्त या असंतुष्ट होने पर इसका असर घर-परिवार में निश्चित रूप से दिखता है। वैसे तर्पण की विधि 12 महीने है, लेकिन शास्त्रों में पितरों हेतु विशेष रूप से पितृपक्ष का विधान है। वहीं, अधिकांश ज्योतिषाचार्यों कहते हैं, कि मनुष्य को आजीवन पितरों का स्मरण करना चाहिए।

पितृ दोष निवारण 
परिवार में पुत्र प्राप्ति की बाधा, निरंतर परेशानी, व्यापार में लगातार हानि या घर में अकाल मृत्यु आदि हो, तो व्यक्ति को त्रयंबकेश्वर, गया या उज्जैन में कालभैरव के निकट सिद्धवट (भैरवगढ़) में पितृदोष निवारण विधिवत पूजा करवाएं या इस स्थान पर श्रद्धा के साथ दूध चढ़ाकर अभिषेक-पूजन कर सकते हैं। गया में श्राद्ध करने के बाद भी पुरखों का पुरखों का स्मरण व श्राद्ध करना चाहिए। आज कुछ लोग श्राद्ध को औपचारिकता मान करते हैं, जबकि पहले इसे लोग श्रद्धा एवं विश्वास से करते थे। पितृपक्ष में पूर्वज अवश्य ही अपने वंशज की सुध लेते हैं।

पितृपक्ष : श्राद्ध पक्ष की तिथियां
न केवल पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाता है, बल्कि उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए भी किया जाता है। पितृपक्ष में श्रद्धा पूर्वक अपने पूर्वजों को जल देने का विधान है। 
पितृपक्ष इस वर्ष 29 सितंबर 2023 से आरंभ हो रहा है, जिसका इसका समापन 14 अक्टूबर को होगा। पितृपक्ष की तिथियाँ इस प्रकार हैं-

दिनांक  /     दिन - तिथि/श्राद्ध 
29 सितंबर /शुक्रवार- पूर्णिमा श्राद्ध
29 सितंबर /शुक्रवार- प्रतिपदा श्राद्ध जिनकी मृत्यु प्रतिपदा को हुई हो एवं प्रतिपदा को ही नाना-नानी का श्राद्ध करते हैं।
30 सितंबर /शनिवार- द्वितीया श्राद्ध जिनकी मृत्यु द्वितीया को हुई हो, उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है।
01 अक्टूबर / रविवार- तृतीया श्राद्ध जिनकी मृत्यु तृतीया तिथि पर हुई, उनका श्राद्ध किया जाता है।
02 अक्टूबर / सोमवार- चतुर्थी श्राद्ध जिनकी मृत्यु चतुर्थी तिथि पर हुई, उनका इस दिन श्राद्ध किया जाता है।
03 अक्टूबर / मंगलवार- पंचमी श्राद्ध जिनकी मृत्यु पंचमी को हुई या जिनकी अविवाहित मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध पंचमी को करते हैं,
04 अक्टूबर / बुधवार- षष्ठी श्राद्ध जिनकी मृत्यु षष्ठी तिथि पर हुई, उनका श्राद्ध किया जाता है।
05 अक्टूबर / गुरुवार-  सप्तमी श्राद्ध जिनकी मृत्यु सप्तमी तिथि पर हुई, उनका श्राद्ध किया जाता है।
06 अक्टूबर / शुक्रवार- अष्टमी श्राद्ध जिनकी मृत्यु अष्टमी तिथि पर हुई, उनका श्राद्ध किया जाता है।
07 अक्टूबर / शनिवार- नवमी श्राद्ध जिनकी मृत्यु नवमी को हुई हो, सौभाग्यवती स्त्री का श्राद्ध करते हैं, क्योंकि इस तिथि को अविधवा नवमी माना गया है। इसके साथ माता-पिता की मृत्यु हुई हो, जिन महिलाओं की मृत्यु की तिथि अज्ञात हो, उनका भी श्राद्ध नवमी को किया जाता है। इसे मातृ-नवमी श्राद्ध भी कहते हैं।  
08 अक्टूबर / रविवार- दशमी श्राद्ध जिनकी मृत्यु दशमी तिथि पर हुई, उनका श्राद्ध किया जाता है।
09 अक्टूबर / सोमवार- एकादशी श्राद्ध जिनकी मृत्यु एकादशी को हुई, सन्यास लेने वाले की। द्वादशी तिथि भी संन्यासियों के श्राद्ध की तिथि मानी गई है। 
11 अक्टूबर / बुधवार- द्वादशी श्राद्ध जिनकी मृत्यु द्वादशी तिथि को हुई, उनका श्राद्ध किया जाता है।
12 अक्टूबर / गुरुवार- त्रयोदशी श्राद्ध जिनकी मृत्यु त्रयोदशी तिथि को हुई, बच्चों का श्राद्ध किया जाता है।
13 अक्टूबर / शुक्रवार- चतुर्दशी श्राद्ध जिनकी मृत्यु चतुर्दशी को हुई हो, जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो, जल में डूबने, किसी हथियार से, विष से हुई हो, उनका श्राद्ध किया जाता है।
14 अक्टूबर / शनिवार- सर्व पितृ अमावस्या इस तिथि पर सर्वपितृ श्राद्ध किया जाता है। सर्वपितृ अमावस्या को सभी ज्ञान-अज्ञात पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है, इसीलिए इसे पितृ-विसर्जनी अमावस्या, महालय समापन आदि कहते हैं। वहीं, जिनका निधन पूृर्णिमा को हुआ हो, उनका श्राद्ध अष्टमी, द्वादशी या सर्वपितृ अमावस्या को करते हैं। 
पितृपक्ष में तर्पण विधि
पितृपक्ष के दौरान प्रतिदिन पितरों के लिए तर्पण करना चाहिए। तर्पण के लिए आपको कुश, अक्षत्, जौ और काला तिल का उपयोग करना चाहिए। तर्पण करने के बाद पितरों से प्रार्थना करें और गलतियों के लिए क्षमा मांगें।
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बुधवार को अवश्य करें गणपति के "अथर्वशीर्ष स्त्रोत" का पाठ

जीवन के सभी कष्ट होंगे दूर भगवान गणेश के नाम से 
http://www.dharmnagari.com/2020/12/Ganpati-Atharvashirsha-kare-dukho-ka-nash.html
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पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध
हिंदू धर्म में पितृ-ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध मनाया जाता है। सनातन शास्त्रों में पिता के ऋण को सबसे बड़ा और अहम माना गया है। पितृ-ऋण के अतिरिक्त हिन्दू धर्म में देव-ऋण और ऋषि-ऋण भी होते हैं, लेकिन पितृ-ऋण ही सबसे बड़ा ऋण है। इस ऋण को चुकाने में कोई त्रुटि या गलती न, हो इसीलिए इस पक्ष में विशेष नियम-संयम का पालन किया जाता है।

क्या करें, क्या नहीं
सरल रूप में श्राद्ध करने हेतु पितरों की तिथि के दिन पितरों का नाम लेकर जल से तर्पण करें। शास्त्रानुसार पितर की तिथि ज्ञात न होने पर पितृपक्ष के अंतिम दिन- सर्वपितृ अमावस्या (4 अक्टूबर, 13) को श्राद्ध करें। सामथ्र्य के अनुसार पितर को प्रिय वस्तुएं बनवाएं। इसमें से कौवा, गाय, कुत्ते का ग्रास निकालें। श्रद्धापूर्वक ब्राह्मण को भोज कराएं। पितृपक्ष के दौरान नए कपड़े सिलना एवं शुभ कार्य में प्रयोग हेतु वस्तुएं नहीं खरीदते। इस दौरान नया काम शुरू नहीं करते।

दान, तर्पण, चिंतन
पितृपक्ष में पुरखों के निमित्त दान-तर्पण इत्यादि करना, उनका चिंतन करना चाहिए। विवाह इत्यादि शुभ कार्य इसलिए नहीं करते, क्योंकि पितृपक्ष के अवधि ग्रह नक्षत्रों की स्थिति अनुकूल नहीं होती। पितृ पक्ष में उसी प्रकार कर्म करते हैं, जिस तरह ‘सूतक’ आदि की स्थिति में।

जो पितरों को प्रिय हो
श्राद्ध में वही भोजन, वस्तुएं आदि दान करनी चाहिए जो पितरों को प्रिय है। कर्मकांडी विद्वानों के अनुसार श्राद्ध कर्म से जहां सूक्ष्म जीव को तृप्ति मिलती है, वहीं इसको करने से व्यक्ति को भौतिक और आध्यात्मिक सुखों की प्राप्ति होती है।
(डिस्क्लेमर- उक्त जानकारी ज्योतिर्विदों, कर्मकांडियों से वार्ता एवं धार्मिक आस्थाओं व लौकिक मान्यताओं पर आधारित है)

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