#Durga_Puja2023 : दुर्गा पूजा, महालया, महाष्टमी-महानवमी की सन्धि-काल पर "संधि-पूजा" शस्त्र-पूजा, विजयादशमी

त्रेता में सन्धि पूजा काल में श्रीराम ने किया "शक्ति" की पूजा
- माँ ने इसी काल में दिखाया अपना भयंकर व विशाल "चामुण्डा" स्वरुप
नवरात्रि : 9 दिन, देवी के 9 स्वरूप-
प्रथम  शैलपुत्री  च  द्वितीयं  ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेती कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं  सिद्धिदात्री  च  नवदुर्गाः  प्रकीर्तिताः । 
                        -देवी कवच (मार्कंडेय पुराण)
धर्म नगरी / DN News 
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आश्विन में देश भर में पांच-दिवसीय दुर्गा पूजा की विशेषकर बंगाली बाहुल्य क्षेत्रों में दुर्गा पूजा की दिव्यता देखते ही बनती है। यह पूजा षष्ठी से नवमी तक चलती है। दुर्गा पूजा की भव्यता और दिव्यता पश्चिम बंगाल में देखते बनती है। इस महापर्व का शुभारंभ 20 अक्टूबर (शुक्रवार) से 24 अक्टूबर 2023 (मंगलवार) के दिन दुर्गा विसर्जन के साथ सम्पन्न होगा 

महालया : कैलाश से महाशक्ति का पृथ्वी पर अवतरण
पश्चिम बंगाल के साथ-साथ असम, उड़ीसा, बिहार, त्रिपुरा, और झारखंड जैसे राज्यों में भी दुर्गा पूजा उतनी ही आस्था एवं भव्यता के साथ मनाई जाती है
 दुर्गा पूजा का प्रारंभ एक सप्ताह पहले महालया से ही शुरू हो जाता है, मान्यता अनुसार, "महालया" देवी दुर्गा द्वारा अपनी दिव्य शक्तियों के साथ कैलाश पर्वत से पृथ्वी पर अवतरित होने का प्रतीक है मूर्तिकार इस दिन दुर्गा जी की पूजा-अर्चना कर उनकी प्रतिमा की केवल आंखे बनाते हैं, उसमें रंग भरते हैं इसके साथ ही दुर्गा पूजा की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। 
देखें (श्री दुर्गा पूजा, बीते वर्ष का)-

धुनुची नृत्य का महत्व
सनातन हिंदू धर्म में दुर्गा पूजा एक पारंपरिक पर्व है, जिसमें एक है धुनुची नृत्य, जिसे मां दुर्गा की आरती के साथ करते हैं। धुनुची बंगाल की पारंपरिक भक्ति-नृत्य है, जो आरती के दरम्यान ढाक-बाजा की ताल पर करते हैं. मिट्टी के बर्तन (धुनुची) में नारियल का जाट और धूप को जलाते हैं। धुनुची को अपने हाथों में लेकर माथे और मुंह से होते हुए संतुलन के साथ नृत्य करते हैं। दुर्गा जी की आरती के समय धुनुची नृत्य में पुरुष और महिलाएं संयुक्त रूप से हिस्सा लेते हैं। इस नृत्य के जरिये माँ शक्ति के पृथ्वी आगमन पर आभार व्यक्त करते हैं।  
देखें-


शारदीय नवरात्रि के अंतिम दो दिन- अष्टमी और नवमी तिथि का अत्यंत महत्व होता है।माँ दुर्गा की आठवीं शक्ति माँ  महागौरी को समर्पित हैं, जो ऐश्वर्य, धन और समृद्धि की देवी मानी गई हैं। इस दिन लोग अपने कुल देवी का पूजन भी करते हैं और कन्या भोजन कराते हैं। शास्त्रों के अनुसार, अष्टमी तिथि पर देवी दुर्गा ने चंड-मुंड का संहार किया था और नवमी को माता ने महिषासुर का वध कर भक्तों और समस्त संसार की रक्षा की थी। मान्यता है, नवरात्रि में अगर नौ दिन तक पूजा और व्रत न कर पाएं हो तो अष्टमी और नवमी के दिन व्रत रखकर देवी का उपासना करने से पूरे 9 दिन की पूजा का फल मिलता है। महाष्टमी के दिन मिट्टी के 9 कलश रखकर देवी दुर्गा के 9 रूपों का आह्वान किया जाता है और विशेष पूजा होती है। 
महाअष्टमी तिथि (22 अक्टूबर 2023)-
अष्टमी तिथि आरंभ- 21 अक्टूबर रात 9.53 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त- 22 अक्टूबर रात 7.58 बजे

दुर्गाष्टमी / महाअष्टमी मुहूर्त-
प्रातःकालीन मुहूर्त- प्रातः 7.51 से 10.41 बजे तक 
अभिजीत मुहूर्त- दोपहर 12 से 12.46 बजे तक 
विजय मुहूर्त- दोपहर 2.19 से 3.05 बजे तक 
सायंकाल का मुहूर्त- सायं 05.45 - रात 08.55 बजे तक
संधि-पूजा मुहूर्त- रात्रि 7.34 से 8.22 बजे तक
संधि-पूजन मुहूर्त-

शास्त्रों में शारदीय नवरात्र में संधि-पूजन का महाष्टमी-महानवमी तिथि के मध्य (सन्धि-काल) में संधि-पूजन का विधान दिया गया है। शारदीय नवरात्र-2023 में अष्टमी तिथि 22 अक्टूबर (रविवार) रात्रि 7.34 बजे प्रारंभ होकर 8.22 बजे तक (48 मिनट) रहेगी। अतः अष्टमी की महानिशा पूजा 22 अक्टूबर रविवार सायंकाल में होगी एवं महा-अष्टमी व्रत-पूजा 22 अक्टूबर (सोमवार) को होगा।
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सन्धि पूजा का रहस्य-

नवरात्रि के दौरान संधि पूजा का पौराणिक महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माँ दुर्गा का जब महिषासुर के साथ युद्ध चल रहा था, तब चंड और मुंड नाम के दो राक्षसों ने धोखे से मां दुर्गा की पीठ पर वार कर दिया। इससे माँ आदिशक्ति अत्यंत क्रोधित हो गई। क्रोध से उनका पूरा शरीर नीला पड़ गया। फिर क्रोधित होकर माँ ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया। 

            संधि काल के बारे में धार्मिक मान्‍यता है, यह वह समय होता है जब आदि शक्ति माँ दुर्गा ने देवी चामुंडा का अवतार धारण कर असुर चण्ड और मुण्ड का संहार किया था। जब मां दुर्गा असुर महिषासुर के साथ युद्ध कर रही थी, उस समय महिषासुर के सहयोगी चण्ड और मुण्ड ने मां दुर्गा पर पीछे से वार किया था, पीछे से प्रहार करने के कारण माँ  को बहुत क्रोध आया। क्रोध के कारण उनके चेहरे का रंग नीला हो गया। तब देवी ने क्रोधित होकर अपना तीसरा नेत्र खोला और चामुण्डा अवतार धारण किया, जिससे उनका अत्यंत भयंकर और विशाल स्वरूप प्रकट हुआ। माता का यही स्वरुप माँ चामुंडा के रूप में सब जानते हैं। माँ दुर्गा ने चामुण्डा अवतार लेकर दोनों दुष्ट राक्षसों का संहार किया। तभी से इस दिन मां दुर्गा के प्रचंड अवतार, चामुंडा के सम्मान के रूप में संधि पूजा की जाती है।

            मान्यता है, जिस दिन माता चामुंडा ने चंड-मुंड का वध किया, उस दिन नवरात्र के अष्टमी तिथि के सायंकाल के समय नवमी तिथि आरंभ हो रही थी। इसी कारण माँ के चामुंडा स्वरूप की पूजन का विधान बना। संधि-पूजा में कद्दू व ककड़ी की बलि देने का भी विधान है। बलि देने के बाद माँ के मंत्रों का उच्चारण भी इस दिन किया जाता है।            

            प्राचीन काल से ही संधि पूजा को पूर्ण श्रद्धा-विश्वास एवं भव्य रूप से मनाया जाता है। श्रद्धालु संधि-पूजा के दिन माँ दुर्गा के के सम्मुख 108 दीपक प्रज्वलित करते हैं। इस दिन माँ दुर्गा को 108 कमल के फूल, 108 बिल्वपत्र, आभूषण, पारंपरिक वस्त्र, गुड़हल के फूल, कच्चे चावल अनाज, एक लाल रंग का फल और माला अर्पित किया जाता है। कुछ लोग संधि-पूजा के दिन माँ दुर्गा के सामने कद्दू और ककड़ी की बलि भी चढ़ाते हैं। इसके पश्चात माँ दुर्गा के मंत्रों का जप करके उनकी आरती की जाती है। वैसे सभी जगहों पर अलग अलग तरीके से संधि-पूजा की जाती है।

संधि-पूजा काल व माँ चामुंडा निर्वाण मंत्र
वैदिक विद्वानों एवं कर्मकांडी ब्राह्मणों के अनुसार, संधि-पूजा काल की अवधि में (48 मिनट) अपने घर के पूजा-स्थल पर देशी गाय के शुद्ध घी का दीप जलाकर, उसके साथ कमल का फूल रखते हुए माता के निम्न मंत्रों का पूर्ण श्राद्ध-विश्वास के साथ जप करने से माता की कृपा से अभीष्ट मनोकामना की पूर्ति होती है। माँ चामुंडा निर्वाण मंत्र अति शक्तिशाली मंत्र है, जिसमें तीनों महाशक्ति- महासरस्वती महालक्ष्मी महाकाली समाहित है। इस मंत्र का जाप कोई भी भक्त नहा-धोकर के पूजा के समय कर सकता है। इस मंत्र का जाप करने से भूत प्रेत बाधा दूर होती है, बिगड़े हुए कार्य बनते हैं व तीनों महाशक्ति की कृपा प्राप्त होती है। मंत्र इस प्रकार है-
ॐ ऐं ह्लीं क्लीं चामुंडायै विच्चे

आयुध पूजा का शुभ-मुहूर्त व तिथि  
शस्त्र-पूजन विजयादशमी या दशहरा के दिन (आश्विन मास, शुक्ल पक्ष की दशमी) को मनाते हैं। इसी दिन भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई कर रावण पर विजय प्राप्त की, माता दुर्गा ने असुरों का विनाश कर देवताओं व मनुष्यों की रक्षा किया। इसलिए इस पर्व को विजयादशमी के रूप में भी मनाते हैं।
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Disclaimer- उक्त लेख में जानकारियां एवं सूचना ज्योतिर्विदों एवं पुस्तकों से साभार लिया गया हैइनको करने से पूर्व कर्मकांडी ब्राह्मण या विद्वान से संपर्क करें। 

नवरात्रि पर आग्रह (अपील)- ब्राह्मण या विद्वान से किसी भी पूजा-पाठ के लिए यथासंभव सम्मानपूर्वक दक्षिणा देकर संतुष्ट करें, क्योंकि उसने कर्मकांड की शिक्षा ली है, आपके पूजा-पाठ के लिए समय-ऊर्जा दे रहा है, यह उसकी आजीविका है या परिवार के भरण-पोषण का माध्यम भी है -प्रबंध सम्पादक    
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संबंधित लेख/कॉलम- पढ़ें / देखें-  
नवरात्रि : माता के नौ स्वरूपों से 9 ग्रह होते हैं नियंत्रित, अतः ग्रहों की शांति के लिए नियमित करें आराधना
http://www.dharmnagari.com/2022/09/Shardiya-Navratri-2022.html
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Durga Puja 2023
Day 01: Panchami (19 October)-
A ritual called ‘Bilva Nimantran’ is performed o
n this day, ideally during evening (Sanyakal) on Shashthi. But if Sanyakal prevails on Panchami Tithi, then Panchami Tithi is an auspicious time for doing ‘Bilva Namantran’.

Day 2 : Shashthi (20 October) 
Kalparambha, Akal Bodhan, Amantran and Adhivas
‘Kalparambha’ is an early morning ritual which involves placing ‘ghata’ or Kalash filled with water and mango leaves in front of Goddess Durga. The devotee makes a resolution or sankalp to observe all puja rituals in a sacrosanct way during the next three days namely, Maha Saptami, Maha Ashtami and MahaNavami. 

Another ritual called ‘Bodhon’ is done to symbolically awaken Goddess Durga from her sleep. Since this is an untimely awakening, the ritual is also known as ‘Akal Bodhon’. In this ritual, the Kalash is installed at the base of the sacred Bilva or Bel tree. Prayers and mantras are recited to awaken Mother Durga. 'Adhivas' is a ritual for invoking the name of Goddess Durga and 'Adhivas' means symbolically installing Goddess Durga in the Bilva tree which is also sanctified by offering prayers. After ‘Adhivas’ is over, Goddess Durga is given ‘Amantran’ or an invitation to accept the Navpatrika Puja to be performed on the next day.

Day 3 : Saptami (21 October)- Saturday
Navpatrika Puja, Mahasnan, Prana Pratishthan
Navpatrika Puja is performed on Maha Saptami and it is the first day of Durga Puja. Nine plants including the branch of Bilva tree is made and worshiped as 'Nav patrika'. It is purified by bathing in water and putting a red colored cloth around it. It is placed alongside the image of Durga. 
Mahasnan’ is an important part of Maha Saptami Puja. In this, a mirror is propped to show the reflection of the Goddess Durga and offered a ritualistic bath symbolically. After the bath ceremony, ‘Prana Pratishthan’ of the image or idol of Goddess Durga is done, which means the Goddess is consecrated and established in that place. This is followed by an elaborate Shodashopachara puja. In West Bengal, Navpatrika Puja is very popular as Kolabou Puja.

Day 4 : Ashtami (22 October)  
Durga Ashtami - Kumari Puja, Sandhi Puja
'Mahashtami' which is also observed by the name 'Maha Durga Ashtami' is one of the most revered and sanctimonious days of Durga Puja. On this day, nine small pots are ritualistically placed in front of the idol and Ma Durga's nine aspects are invoked in them to perform the Ashtami puja. 
This day is considered auspicious for doing ‘KumariPuja’ which involves inviting and worshipping nine girls aged between two and ten years. The nine girls are worshipped as nine forms of Maa Durga. In Belur Math, ‘Kumari Puja’ is performed on Ashtami.

Sandhi Puja is performed during the last 24 minutes of Ashtami Tithi and the first 24 minutes of Navami Tithi as it coincides with the moment, when Devi Chamunda killed Chanda and Munda. 108 earthen lamps are lit to commemorate this special time.
It is important to note that if Ashtami and Navami puja merge before Sanyakal on Ashtami day, then Ashtami Puja and Navami Puja including ‘Sandhi Puja’ are done on the same day.

Day 5 : Navami (23 October)  
Bengal MahaNavami, Durga Balidan, Navami Homa
On MahaNavami, Goddess Durga is propitiated as ‘Mahisasuramardini’, a name given to the Goddess as one who annihilated Mahishasura. Navami Homa or Chandi Homa is carried out after the puja during the day time. It is an important rite as devotees seek blessings to remove all obstacles in life. Verses from Durga Saptashati are recited while performing the Homa.

In West Bengal, the day of Mahanavami may not coincide with other states. In that case, it is observed a day after Mahanavami in other states. Also, if on the previous day Navami Tithi prevails for three ‘muhurta’ before sunset then Ashtami and Navami Puja including fasting are done on the same day.
'Durga Balidan' which refers to ‘bali’ or sacrifice is done on Navami Tithi. In most places, a symbolic Bali with vegetables like banana, cucumber or pumpkin is performed.

Dashami (24October)-  
Durga Visarjan, Vijayadashami
Vijayadashami is celebrated countrywide and is marked as the victory of Lord Rama over Demon Ravana and also the triumph of Goddess Durga over the buffalo - headed demon Mahishasura. 'Aparajita Puja', 'Seema Avalanghan' and 'Shami Puja' are ritualistically carried out on Vijayadashmi.

Sindoor Utsav (24 October)
SindoorUtsav is celebrated in Bengal on the day of Vijayadashami which is the culmination of Durga Puja festivities. It is a colourful ritual where in married women applies vermillion to one another. Men also exchange greetings and it is referred to as ‘Kolakuli’.
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