नवरात्रि कन्या पूजन : आयु के अनुसार कन्या का स्वरूप, पूजन से कौन सा पुण्य ? नौ औषधियाँ जिन्हें कहा गया नवदुर्गा


आदिशक्ति माँ दुर्गा के सिद्धपीठ

धर्म नगरी / DN News 
(W.app- 8109107075 -न्यूज़, कवरेज, विज्ञापन व सदस्यों हेतु)
-राजेश पाठक अ.संपादक 9752404020  

नौ दुर्गा का आशय नौ वर्ष की कन्या की पूजा करना होता है। कन्या पूजन दो वर्ष की कन्या से शुरू किया जाता है। कितने वर्ष की कन्या को क्या कहते हैं, आप भी जानें-
2 वर्ष की- 'कुमारिका' कहते हैं और इनके पूजन से धन, आयु, बल की वृद्धि होती है,
3 वर्ष की- 'त्रिमूर्ति' कहते हैं और इनके पूजन से घर में सुख समृद्धि आती है,
4 वर्ष की- 'कल्याणी' कहते हैं और इनके पूजन से सुख तथा लाभ मिलते हैं,
5 वर्ष की- 'रोहिणी' कहते हैं इनके पूजन से स्वास्थ्य लाभ मिलता है,
6 वर्ष की- 'कालिका' कहते हैं इनके पूजन से शत्रुओं का नाश होता है,
7 वर्ष की- 'चण्डिका' कहते हैं इनके पूजन से संपन्नता ऐश्वर्य मिलता है,
8 वर्ष की- 'शाम्भवी' कहते हैं इनके पूजन से दुःख-दरिद्रता का नाश होता है,
9 वर्ष की- 'दुर्गा ' कहते हैं इनके पूजन से कठिन कार्यों की सिद्धि होती है,
10 वर्ष की- 'सुभद्रा' कहते हैं इनके पूजन से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

नौ औषधियों के पेड़-पौधे जिन्हें नवदुर्गा कहा गया है-
प्रथम- शैलपुत्री (हरड़) कई प्रकार के रोगों में काम आने वाली औषधि हरड़ हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप है.यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है यह पथया, हरीतिका, अमृता, हेमवती, कायस्थ, चेतकी और श्रेयसी सात प्रकार की होती है।
द्वितीय- ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी)- ब्राह्मी आयु व याददाश्त बढ़ाकर, रक्त विकारों को दूर कर स्वर को मधुर बनाती है, इसलिए इसे सरस्वती भी कहा जाता है,
तृतीय- चंद्रघंटा (चंदुसूर)- यह एक ऐसा पौधा है जो धनिए के समान है। यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है इसलिए इसे चर्महंती भी कहते हैं.
चतुर्थी कूष्मांडा (पेठा)- इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है.इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं. इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो रक्त विकार दूर कर पेट को साफ करने में सहायक है। *मानसिक* रोगों में यह अमृत समान है। आज कल सैक्रीन से बनने वाला पेठा नहीं खाये घर में बनाये,
पंचमी- स्कंदमाता (अलसी)- देवी स्कंदमाता औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं. यह वात, पित्त व कफ रोगों की नाशक औषधि है। इसमें फाइबर की मात्रा ज्यादा होने से इसे सभी को भोजन के पश्चात काले नमक से भूलकर प्रतिदिन सुबह शाम लेना चाहिए यह खून भी साफ करता है,
षष्ठी- कात्यायनी (मोइया)- देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका व अम्बिका.इसके अलावा इन्हें मोइया भी कहते हैं.यह औषधि कफ, पित्त व गले के रोगों का नाश करती है,
सप्तमी- कालरात्रि (नागदौन)- यह देवी नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती हैं। यह सभी प्रकार के रोगों में लाभकारी और मन एवं मस्तिष्क के विकारों को दूर करने वाली औषधि है.यह पाइल्स के लिए भी रामबाण औषधि है इसे स्थानीय भाषा जबलपुर में दूधी कहा जाता है,
अष्टमी- महागौरी (तुलसी)- तुलसी सात प्रकार की होती है सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेकर, अर्जक और षटपत्र. ये रक्त को साफ कर ह्रदय रोगों का नाश करती है. एकादशी को छोड़कर प्रतिदिन सुबह ग्रहण करना चाहिए।
नवमी- सिद्धिदात्री (शतावरी)- दुर्गा का नौवां रूप सिद्धिदात्री है जिसे नारायणी शतावरी कहते हैं. यह बल, बुद्धि एवं विवेक के लिए उपयोगी है.विशेषकर प्रसूताओं (जिन माताओं को ऑपरेशन के पश्चात अथवा कम दूध आता है) उनके लिए यह रामबाण औषधि है को इसका सेवन करना चाहिए।

------------------------------------------------
संबंधित लेख/कॉलम- पढ़ें / देखें-  
नवरात्रि : माता के नौ स्वरूपों से 9 ग्रह होते हैं नियंत्रित, अतः ग्रहों की शांति के लिए नियमित करें आराधना
http://www.dharmnagari.com/2022/09/Shardiya-Navratri-2022.html
चमत्कारी है "सिद्ध कुंजिका स्तोत्र", इसके पाठ से दूर होती हैं समस्याएं... 
http://www.dharmnagari.com/2021/10/Swayam-Siddh-aur-Chamatkari-hai-Siddh-Kunjika-Srotra-Sri-Durga-Saptsati.html  
"धर्म नगरी" के विस्तार, डिजिटल DN News के प्रसार एवं एक तथ्यात्मक सूचनात्मक व रोचक (factual & informative & interesting), राष्ट्रवादी समसामयिक साप्ताहिक मैगजीन हेतु "संरक्षक" या NRI या इंवेस्टर चाहिए। उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों में स्थानीय रिपोर्टर या स्थानीय प्रतिनिधि (जहाँ नहीं हैं) तुरंत चाहिए।  -प्रबंध संपादक  
----------------------------------------------

महानवमी पूजा-विधि
वैदिक पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि की महानवमी तिथि 22 अक्तूबर शाम 7:58 बजे लगेगी और 23 अक्तूबर (रविवार) शाम 5:44 बजे समाप्त होगी। उदय तिथि के आधार पर 23 अक्तूबर को महानवमी मनाई जाएगी।
पूजा का शुभ मुहूर्त
प्रातः - 6:27 बजे से 7:51 बजे तक
दोपहर- 1:30 बजे से 2:55 बजे तक

महानवमी की तिथि नवरात्रि की अंतिम तिथि होती है। इस तिथि पर माँ दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा-अर्चना और पाठ करने का महत्व होता है। प्रातः शीघ्र उठकर स्नान करके व्रत-पूजा का संकल्प लें। फिर पूजा-स्थल पर देवी सिद्धिदात्री की प्रतिमा को स्थापित करें। अगर आपके पास देवी सिद्धिदात्री की प्रतिमा नहीं है, तो देवी दुर्गा की प्रतिमा को स्थापित करके पूजा आरंभ करें। सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें। नवग्रह को फूल अर्पित करें। देवी को धूप, दीप, फल, फूल, भोग और नवैद्य अर्पित करें। इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ और मां दुर्गा और सिद्धिदात्री से जुड़े मंत्रों का पाठ करें। अंत में माँ की आरती करें और कन्याओं का पूजन करते हुए उपहार देकर विदा करें।

आदिशक्ति माँ दुर्गा के सिद्धपीठ

दक्ष प्रजापति ने जब भगवती जगदम्बा की आराधना करके उनको अपनि पुत्री के रूप में पाया, तब उन्होंने देवी के इस अवतार का नाम सती रखा। कालांतर में दक्ष ने अपनी पुत्री सती का विवाह भगवान शिव से कर दिया। परंतु पूर्व समय के पाप कर्म के कारण दक्ष प्रजापति के मन में भगवान शिव और देवी सती के प्रति द्वेष उत्पन्न हो गया। इसी द्वेष के कारण दक्षा प्रजापति ने शिव और सती को अपने यज्ञ में नहीं बुलाया। पिता प्रेम के कारण देवी सती बिन बुलाए उस यज्ञ में चली गई।

देवी सती ने यज्ञ में अपने पति भगवान शिव का अपमान देखकर, सती-धर्म को प्रदर्शित करने के लिए देवी सती ने अपना शरीर त्याग दिया। इसकी सूचना पाकर भगवान शिव का क्रोध जागृत हो गया और उनके ही स्वरूप वीरभद्र ने महाकाली के साथ आकर दक्षके यज्ञ को ध्वंसकर दिया। वीरभद्र ने उसके प्राण भी हर लिया, इसके बाद ब्रह्मा आदि देवता भगवान शिव की शरणमें गए। तब करुणा सागर भगवान शिव ने एक बकरे का सर लाकर प्रजापति दक्ष के सर पर लगा दिया और उसे फिर से जीवित कर दिया।

दक्ष को जीवित करने के बाद भगवान शिव देवी सती के शरीर को लेकर सारे संसार में घूमने लगे । भगवान शिव के इस दुख को देखकर ब्रह्माजी सभी देवता आतंकित हो गए । तब भगवान विष्णुने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सतीके शरीरको काट दिया । भगवती सतीके शरीरके टुकड़े पृथ्वी पर बहुत सारी जगहों पर गिर गए, उन्हीं स्थानों में भगवान शिव के भी रूप प्रकट हो गए । जिस स्थानपर भगवती जगदंबा के शरीर के अंग गिरे थे ,यह सारे स्थान आगे चलकर सिद्ध पीठ कहलाए ।

भगवती जगदंबा के यह देवी पीठ अत्यंत पवित्र और पावन है, जिनके स्मरण मात्र से मनुष्य पापोंसे मुक्त हो सकता है। जिन जिन पीटोमै सिद्धि चाहनेवाले पुरुषोंके द्वारा देवीकी उपासना तथा ऐश्वर्य चाहनेवालों के द्वारा ध्यान होना चाहिये, उन स्थानों के वर्णन इस प्रकार है । वाराणसी में गौरी का मुख गिर था, अतएव उस पीठस्थानमें रूप धारण करनेवाली देवीका नाम विशालाक्षी है। नैमिषारण्य क्षेत्रमें विराजमान देवी लिंगधारिणी’ नामसे प्रसिद्ध हुई । देवीको प्रयाग में ललिता’, गन्धमादन पर्वतपर कामुकी’, मानस में कुमुदा, दक्षिण में विश्वकामा तथा उत्तर में भगवती विश्वकाम प्रपूरणी’ कहते हैं।

----------------------------------------------
"धर्म नगरी" की सदस्यता राशि, शुभकामना संदेश या विज्ञापन प्रकाशित करवाकर अपने ही नाम से अपनों को या जिसे भी कॉपी भिजवाना चाहें, भिजवाएं। प्रतियाँ आपके नाम से FREE भेजी जाएंगी। उसका प्रतियां भेजने की लागत राशि हेतु "धर्म नगरी" के QR कोड को स्कैन कर भेजें या "धर्म नगरी" के चालू बैंक खाते में भेजकर रसीद या स्क्रीन शॉट हमे भेजें।  
यदि आपकी सदस्यता समाप्त हो गई है तो उसके नवीनीकरण (renewal) की राशि भेजें। आपने अब तक सदस्यता नहीं लिया है, तो सदस्यता राशि भेजकर लें आपकी सदस्यता राशि के बराबर आपका फ्री विज्ञापन / शुभकामना आदि प्रकाशित होगा, क्योंकि प्रकाश अव्यावसायिक है, "बिना-लाभ हानि" के आधार पर जनवरी 2012 से प्रकाशित हो रहा हैवाट्सएप-8109107075, मो. 6261 86 8110
----------------------------------------------

गोमन्तपर गोमती’ तथा मन्दराचलपर कामचारिणी नामसे विख्यात है । चैत्ररथमें देवीको मदोत्कटा’, हंस्तिनापुरमें जयन्ती, कान्यकुब्जमे गौरी’ तथा मलयाचलपर रंभा कहा गया है । एकाम्रपीठपर कीर्तिमती कहलाती हैं। विश्वपीठ में वे विश्वेश्वरी’ तथा पुष्कर में पुरहूता’ नामसे विख्यात हुई। केदारपीटमें सन्मार्गदायिनी’ हिमवान्पीटमें ‘मन्दा तथा गोकर्ण पीठ में भद्रकर्णिका- ये नाम देवी के हुए हैं। स्थानेश्वरीपीटमें भवानी’, बिल्वकपीठमें बिल्वपत्रिका, श्रीशैलपर माधवी तथा भद्रेश्वरपर भद्रा’ नामसे देवीकी प्रसिद्धि है ।

वराहपीटमें ‘जया’, कमलालयपीठमें कमला, रुद्रकोटिमें रुद्राणी’ तथा कालेश्वरमे ये ‘काली कहलाती हैं। इन्हें शालग्रामपीटमें ‘महादेवी, शिवलिङ्गमें जलप्रिया’, महालिङ्गमें कपिला’, माकोट में मुकुटेश्वरी, मायापुरीमें ‘कुमारी, संतानपीठ, ललिताम्बिका, गयामें मङ्गला तथा पुरुषोत्तमपीठमें विमला कहा गया है ।

सहस्त्राक्षमें ‘उत्पलाक्षी’, हिरण्याक्षमें महोत्पला, विशाखामें ‘ अमोघक्षि’, पुण्ड्रवर्धनपीटमें पाडला’, सुपार्श्वमें नारायणी, चित्रकूटमें रुद्रासुन्दरी. विपुलक्षेत्रमे विपुला’, मलयाचलपर भगवती ‘कल्याणी’, सह्याद्रि पर्वतपर एकवीरा’, हरीश्चन्द्रपीटपर चन्द्रिका’, रामतीर्थमें ‘रमणा’, यमुना- पीठ में मृगावति । कोटितीर्थ में कोटवी, माधववनमे सुगंधा, गोदावरी में त्रिसंध्या, गङ्गाद्वारमें रतिप्रिया’, शिवकुण्डमें शुभानन्दा’, देविकातरटपीठमें ‘नन्दिनी’, द्वारका में रुक्मिणी, वृन्दावनमें राधा’, मथुरामें ‘देवकी’, पातालमें परमेश्वरी”, चित्रकृटमें सीता’ ।

विन्ध्याचल पर्वत पर ‘विंध्यवासिनी’, कर-वीरक्षेत्र में महालक्ष्मी, वीनायकक्षेत्र में देवी “उमा’, बैद्यनाथ- धाममें आरोग्या’, महाकालपीटमें माहेश्वरी, उष्णतीर्थमें अभया’, वीन्ध्यपर्थतपर नितम्बा, माण्डव्यपीठमें माण्डवी तथा माहेश्वरी पुरी में ये देवी स्वाहा’ नामसे विख्यात हैं । छगलण्डमें पचण्डा’, अमरकण्टकमें ‘चण्डिका’, सोमेश्वर- पीटमें वरारोहा, प्रभासक्षेत्रमे पुष्करावती, सरस्वतीतीर्थमें देवता तथा तट नामक पीठ में पारावारा’, नामसे इनकी प्रसिद्धि हुई ।

महालयमें महाभागा’, पयोष्णीमें पिंगलेश्वरी कृतशौचतीर्थमें सिंहिका’, कार्तिकक्षेत्रमें अतिशाङ्करी’, वर्ककतीर्थ में उत्पला, सुभद्रा एवं शोणाके संगमपर लोला’, सिद्धवनमें माता ‘लक्ष्मी’, भरताश्रमतीर्थमें अनङ्गा, जालंधर पर्वतपर विश्वमुखी’, किष्किन्धा पर्वतपर ‘तारा’ देवदारु वनमें ‘पुष्टि’, कश्मीर प्रदेशमें मेघा’, हिमाद्रिपर्वतपर देवी भीमा’, विश्वेश्वरक्षेत्रमें ‘तुष्टि’, कपालमोचनतीर्थमें ‘शुद्धि’ कायावरोहणतीर्थमें माता, शंकोद्वारतीर्थमें धरा तथा पिण्डारकतीर्थमें धृतिः नामसे ये प्रसिद्ध हुई ।

चन्द्रभागा नदीके तटपर ‘कला, अच्छोद नामक क्षेत्रमें शिव धारिणी, वेणा नदीके किनारे अमृता’, बदरीवनमें ‘उर्वशी, उत्तर कुरुप्रदेश में ओषधि, कुशद्वीपमें ‘कुशोदका, हेमकुट पर्वतपर मन्मथा’, कुमुदवनमें सत्यवादिनी, अश्वस्थती्थमें ‘वन्दनीया’, वैश्रयणालय क्षेत्रमें निधि, वेदवदनतीर्थमें गायत्री, भगवान् शिव के सन्निकट पार्वती’, देवलोक में ‘इंद्राणी, ब्रह्मलोक में सरस्वती, सूर्यके बिम्बमें प्रभा, मातृकाओंमें वैष्णवी सतियोंमें ‘अरुन्धती तथा रंभा प्रभृति अप्सराओं में तिलोत्तमा नामसे देवी विख्यात हुई। सम्पूर्ण प्राणियों के चित्त में सदा विराजनेवाली शक्तिको ब्रह्मकला’ कहते हैं ।
भगवती जगदम्बा के ये 108  शक्तिपीठ और उनके नाम मनुष्यों का पाप हारने वाले है।

------------------------------------------------
कथा हेतु- व्यासपीठ की गरिमा एवं मर्यादा के अनुसार श्रीराम कथा, वाल्मीकि रामायण, श्रीमद भागवत कथा, शिव महापुराण या अन्य पौराणिक कथा करवाने हेतु संपर्क करें। कथा आप अपने बजट या आर्थिक क्षमता के अनुसार शहरी या ग्रामीण क्षेत्र में अथवा विदेश में करवाएं, हमारा कथा के आयोजन की योजना, मीडिया-प्रचार आदि में सहयोग रहेगा। -प्रसार प्रबंधक "धर्म नगरी / DN News" मो.9752404020, 8109107075-वाट्सएप ट्वीटर / Koo / इंस्टाग्राम- @DharmNagari ईमेल- dharm.nagari@gmail.com यूट्यूब- #DharmNagari_News   

"धर्म नगरी" के विस्तार, डिजिटल  DN News के प्रसार एवं तथ्यात्मक सूचनात्मक व रोचक (factual & informative & interesting), राष्ट्रवादी समसामयिक मैगजीन हेतु "संरक्षक" या इंवेस्टर / NRI चाहिए। उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों में स्थानीय रिपोर्टर या स्थानीय प्रतिनिधि नियुक्त करना है -प्रबंध संपादक  
अपनी प्रतिक्रिया या विचार नीचे कमेंट बॉक्स [POST A COMMENT] में अवश्य दें...
------------------------------------------------

No comments