#नवरात्रि : माँ कूष्मांडा की कृपा से सभी रोग नष्ट व आयु, यश, बल की वृध्दि

#शारदीय नवरात्रि   
माँ कूष्मांडा- रोग, दोष, शोक का नाश करने वाली तथा यश, बल व आयु की वृद्धि करनी वाली देवी हैं. माता का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:

धर्म नगरी / DN News
(W.app- 8109107075 -न्यूज़, कवरेज, शुभकामना व सदस्यता हेतु)

सुरा   सम्पूर्ण   कलशं   रूधिराप्लुत  मेव  च।
दधानाहस्तपद्याभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तु में॥

आदिशक्ति माँ दुर्गा का चतुर्थ रूप कूष्मांडा हैं। अपनी मन्द हंसी से अपने उदर से अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारंण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से जाना जाता है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्ड कूम्हडे को कहा जाता है, कूम्हडे की बलि इन्हें प्रिय है, इस कारण से भी इन्हें कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है।

जब सृष्टि नहीं थीऔर चारों ओर अंधकार ही अंधकार था, तब माँ कुष्मांडा ने ईषत हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। यह सृष्टि की आदिस्वरूपा हैं और आदिशक्ति भी। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। सूर्यलोक में निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। कुष्मांडा देवी के शरीर की चमक भी सूर्य के समान ही है कोई और देवी देवता इनके तेज और प्रभाव की बराबरी नहीं कर सकतें। माता कुष्मांडा तेज की देवी है इन्ही के तेज और प्रभाव से दसों दिशाओं को प्रकाश मिलता है। कहते हैं की सारे ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में जो तेज है वो देवी कुष्मांडा की देन है।

श्री कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। इनकी आराधना से मनुष्य त्रिविध ताप से मुक्त होता है। माँ कुष्माण्डा सदैव अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि रखती है। इनकी पूजा आराधना से हृदय को शांति एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं। इस दिन भक्त का मन ‘अनाहत’ चक्र में स्थित होता है, अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और शांत मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा करनी चाहिए। संस्कृत भाषा में कूष्माण्ड कूम्हडे को कहा जाता है, कूम्हडे की बलि इन्हें प्रिय है, इस कारण भी इन्हें कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है।

हमारे यूट्यूब का लिंक-
https://www.youtube.com/watch?v=AaNTPv2H4AM&feature=youtu.be
(चुनिंदा लेख व राष्ट्रवादी , धर्म-आध्यात्म से जुड़े समाचार उपयोगी लेख हेतु हमारे ट्वीटर को फॉलो  करें- www.twitter.com/DharmNagari )

------------------------------------------------------


माँ कूष्मांडा पूजा विधि-
जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं उन्हें दुर्गा पूजा के चौथे दिन माता कूष्माण्डा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए। फिर मन को ‘अनाहत’ में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं उन्हें भगवती कूष्माण्डा सफलता प्रदान करती हैं जिससे व्यक्ति सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है और मां का अनुग्रह प्राप्त करता है। अतः इस दिन पवित्र मन से माँ के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजन करना चाहिए।

माँ कूष्माण्डा देवी की पूजा से भक्त के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं। माँ की भक्ति से आयु, यश, बल और स्वास्थ्य की वृध्दि होती है। इनकी आठ भुजायें हैं इसीलिए इन्हें अष्टभुजा कहा जाता है। इनके सात हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिध्दियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। कूष्माण्डा देवी अल्पसेवा और अल्पभक्ति से ही प्रसन्न हो जाती हैं। यदि साधक सच्चे मन से इनका शरणागत बन जाये तो उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो जाती है। देवी कुष्मांडा का वाहन सिंह है।

------------------------------------------------
नवरात्रि पर विशेष आग्रह- ब्राह्मण या वैदिक विद्वान से कभी भी, किसी भी पूजा-पाठ के लिए यथासंभव सम्मानपूर्वक दक्षिणा देकर संतुष्ट करें, क्योंकि उसने कर्मकांड की शिक्षा ली है, आपके पूजा-पाठ के लिए समय-ऊर्जा दे रहा है, यह उसकी आजीविका है या परिवार के भरण-पोषण का माध्यम भी है। -अवैतनिक संपादक राजेश पाठक 8109107075 - वाट्सएप        
दान सुपात्र को ही करना चाहिए, जिनके पास पहले से किसी धन आदि चीज की कमी न हो, उनके स्थान पर ऐसे कर्मकांडी, पुजारी-अर्चक, विप्र-पुरोहित को करें, जिनको वस्तु / धन की वास्तव में आवश्यकता हो या उनके पास अभाव हो, क्योंकि इससे वह वास्तव में संतुष्ट एवं तृप्त होता है। जिसका पेट भरा है, उनको भोजन कराने के स्थान पर किसी भूखे को भोजन करना अधिक उत्तम है।
संबंधित लेख पढ़ें / देखें-  
शारदीय नवरात्रि : हाथी पर आएँगी माता, कलश स्थापना विधि, मुहूर्त, आरती...
http://www.dharmnagari.com/2023/10/Shardiy-Navratri-Hathi-par-aayengi-Mata-Kalash-sthapna-vidhi-Muhurt-Aarti.html
------------------------------------------------

दुर्गा पूजा के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा का विधान उसी प्रकार है, जिस प्रकार देवी ब्रह्मचारिणी और चन्द्रघंटा की पूजा की जाती है। इस दिन भी आप सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें, जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विरजामन हैं. इनकी पूजा के पश्चात देवी कूष्माण्डा की पूजा करे: पूजा की विधि शुरू करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र का ध्यान करें

माँ कुष्मांडा सप्तशती मंत्र-
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

माँ कूष्मांडा का उपासना मंत्र-
कुत्सित:  कूष्मा  कूष्मा-त्रिविधतापयुत: संसार:,
स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्या: सा कूष्मांडा

माँ कुष्मांडा ध्यान मन्त्र-
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥ 

भास्वर  भानु  निभां  अनाहत  स्थितां  चतुर्थ  दुर्गा  त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥ 

पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर,  हार,  केयूर,  किंकिणि  रत्नकुण्डल,  मण्डिताम्॥ 

प्रफुल्ल  वदनांचारू  चिबुकां कांत  कपोलां  तुंग कुचाम्।
कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥


माँ कुष्मांडा स्तोत्र पाठ-
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि
दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे
प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री
जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे
प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी
त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी,
कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥


माँ कुष्मांडा कवच-
हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिगिव्दिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजं सर्वदावतु॥

माँ कूष्मांडा-
ब्रह्मांड को उत्पन्न करने की शक्ति प्राप्त करने के बाद उन्हें कूष्मांड कहा जाने लगा। उदर से अंड तक वह अपने भीतर ब्रह्मांड को समेटे हुए है, इसीलिए कूष्मां डा कहलाती है।

माँ कुष्मांडा पौरिणीक कथा-
श्री दुर्गा सप्तशती के कवच में वर्णन है-
कुत्सित:  कूष्मा   कूष्मा-त्रिविध  तापयुत: संसार:,
स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्या: सा कूष्मांडा।

वह देवी, जिनके उदर में त्रिविध तापयुक्त संसार स्थित है वह कूष्माण्डा हैं। देवी कूष्माण्डा इस चराचार जगत की अधिष्ठात्री हैं। जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी उस समय अंधकार का साम्राज्य था। देवी कुष्मांडा जिनका मुखमंड सैकड़ों सूर्य की प्रभा से प्रदिप्त है उस समय प्रकट हुई उनके मुख पर बिखरी मुस्कुराहट से सृष्टि की पलकें झपकनी शुरू हो गयी और जिस प्रकार फूल में अण्ड का जन्म होता है उसी प्रकार कुसुम अर्थात फूल के समान मां की हंसी से सृष्टि में ब्रह्मण्ड का जन्म हुआ। इस देवी का निवास सूर्यमण्डल के मध्य में है और यह सूर्य मंडल को अपने संकेत से नियंत्रित रखती हैं।

देवी कूष्मांडा अष्टभुजा से युक्त हैं अत: इन्हें देवी अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है। देवी अपने इन हाथों में क्रमश: कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत से भरा कलश, चक्र तथा गदा है। देवी के आठवें हाथ में बिजरंके (कमल फूल का बीज) का माला है है, यह माला भक्तों को सभी प्रकार की ऋद्धि सिद्धि देने वाला है। देवी अपने प्रिय वाहन सिंह पर सवार हैं। जो भक्त श्रद्धा पूर्वक इस देवी की उपासना दुर्गा पूजा के चौथे दिन करता है उसके सभी प्रकार के कष्ट रोग, शोक का अंत होता है और आयु एवं यश की प्राप्ति होती है।

माँ कुष्मांडा उपासना के साथ धन अर्जित करने का मंत्र-
मंत्र -1  
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालेय प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम :
मंत्र-2  
दुर्गे स्मृता हरसिभीतिमशेष जन्तो : स्वस्थ्याई :
स्मृता मति मतीव शुभाम ददासि

लक्ष्मी प्राप्ति के सहज उपाय- 

उपाय-1  
पान में गुलाब की सात पंखुड़ियां रखें और पान को देवी जी को चढ़ा दें आप को धन की प्राप्ति होगी।
उपाय-2  
गुलाब की फूल में कपूर का टुकड़ा रखें
। सायंकाल फूल में एक कपूर जला दें और फूल देवी को चढ़ा दें इससे आपको अचानक धन मिल सकता है।

उपाय-3   
चौदह मुखी रुद्राक्ष सोने में जड़वा कर किसी पत्र में लाल फूल बिछाकर उस पर रखें दूध, दही, घी, मधु और गंगाजल से स्नान कराएँ
।  धूप दीप से पूजा करके धारण करें।

उपाय-4  

इमली के पेड़ की डाल काट कर घर में रखें या धन रखने की स्थान पर रखें तो धन की वृद्धि होगी।
उपाय-5
एक नारियल और उसके साथ एक लाल फूल, एक पीला, एक नीला फूल और सफ़ेद फूल माँ को चढ़ाएं
। नवमी के दिन ये फूल नदी में बहा दें और नारियल को लाल कपडे में लपेट कर तिजोरी में रखें माँ प्राराब्ध काटेगी अखण्ड लक्ष्मी की प्राप्ति होगी।

माँ कुष्मांडा जी की आरती-

ॐ जय माँ कुष्मांडा चौथ जब नवरात्र हो,
कुष्मांडा को ध्याते।

जिसने रचा ब्रह्माण्ड यह,
पूजन है करवाते।
ॐ जय माँ कुष्मांडा

आद्यशक्ति कहते जिन्हें,
अष्टभुजी है रूप।
इस शक्ति के तेज से,
कही छाँव कही धुप।
ॐ जय माँ कुष्मांडा

कुम्हड़े की बलि करती है,
तांत्रिक से स्वीकार।
पेठे से भी रजति,
सात्विक करे विचार।
ॐ जय माँ कुष्मांडा

क्रोधित जब हो जाए,
यह उल्टा करे व्यवहार।
उसको रखती दूर माँ,
देती दुःख अपार।।
ॐ जय माँ कुष्मांडा

सूर्य चंद्र की रौशनी,
यह जग में फैलाये।
शरणागत में आया,
माँ तू ही राह दिखाये।
ॐ जय माँ कुष्मांडा...।

माँ दुर्गा की आरती

जय अंबे गौरी, मैया
जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत,
हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ ॐ जय…

मांग सिंदूर विराजत,
टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना,
चंद्रवदन नीको ॥ ॐ जय…

कनक समान कलेवर,
रक्तांबर राजै।
रक्तपुष्प गल माला,
कंठन पर साजै ॥ ॐ जय…

केहरि वाहन राजत,
खड्ग खप्पर धारी।
सुर-नर-मुनिजन सेवत,
तिनके दुखहारी ॥ ॐ जय…

कानन कुण्डल शोभित,
नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर,
राजत सम ज्योती॥ ॐ जय…

शुंभ-निशुंभ बिदारे,
महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना,
निशदिन मदमाती॥ ॐ जय…

चण्ड-मुण्ड संहारे,
शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोउ मारे,
सुर भय दूर करे॥ ॐ जय…

ब्रह्माणी, रूद्राणी,
तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी,
तुम शिव पटरानी॥ ॐ जय…

चौंसठ योगिनी गावत,
नृत्य करत भैंरू।
बाजत ताल मृदंगा,
अरू बाजत डमरू॥ ॐ जय…

तुम ही जग की माता,
तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुख हरता,
सुख संपति करता॥ ॐ जय…

भुजा चार अति शोभित,
वरमुद्रा धारी।
मनवांछित फल पावत,
सेवत नर नारी॥ ॐ जय…

कंचन थाल विराजत,
अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत,
कोटि रतन ज्योती॥ ॐ जय…

श्री अंबेजी की आरति,
जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी,
सुख-संपति पावे॥ ॐ जय…

(विशेष- लाल रंग छपे चालीसा, पाठ, स्रोत्र, आरती आदि का विशेष प्रभाव होता है। विद्वानों एवं कर्मकांडी ब्राह्मणों के अनुसार, इसका तांत्रिक प्रभाव होता है।)

प्राचीन काल से मान्यता है, शारदीय नवरात्र में दुर्गा मां अपने भक्तों का कल्याण करती हैं।नवरात्र में रंगों का विशेष महत्व होता है। जो श्रद्धालु-भक्त इस काल में दिन के अनुसार विशेष रंग के कपड़े पहनते हैं, उन्हें विशेष लाभ मिलता है। नौ दिनों में नौ रंगों के कपड़े पहनने और मां के नौ रूपों की पूजा करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होने की मान्यता है। साथ ही नवरात्र में दुर्गा जी की आरती करने से भी मनोकामनाओं की पूर्ति होने की बात कही गई है।
---------------------------------------------
अब "धर्म नगरी" की सदस्यता राशि, अपना शुभकामना संदेश या विज्ञापन प्रकाशित करवाकर अपने ही नाम से अपनों को या जिसे भी कॉपी भिजवाना चाहें, भिजवाएं। प्रतियाँ आपके नाम से FREE भेजी जाएंगी। उसका प्रतियां भेजने की लागत राशि हेतु "धर्म नगरी" के QR कोड को स्कैन कर भेजें या "धर्म नगरी" के चालू बैंक खाते में भेजकर रसीद या स्क्रीन शॉट हमे भेजें /बताएं  वाट्सएप-8109107075, मो. 6261 86 8110 

आवश्यकता है- "धर्म नगरी" का विस्तार हर जिले में हो रहा है। इसलिए शहरी व ग्रामीण (पंचायत, ब्लॉक स्तर तक) क्षेत्रों में स्थानीय प्रतिनिधि, अंशकालीन रिपोर्टर की आवश्यकता है। प्रमुख जिलों, तीर्थ नगरी एवं राज्य की राजधानी में पार्टनर एवं ब्यूरो चीफ नियुक्त करना है। योग्यता राष्ट्रवादी विचारधारा एवं सक्रियता। वेतन अनुभवानुसार एवं कमीशन योग्यतानुसार होगा। सम्पर्क- वाट्सएप- 6261868110 ईमेल- dharm.nagari@gmail.com ट्वीटर www.twitter.com/DharmNagari

"धर्म नगरी" बैंक खाते की जानकारी-

No comments