नवरात्र की पंचमी (पांचवें दिन) करें चमत्कारी स्तोत्र का पाठ, दूर होंगे दुख और संताप
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
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माता का मंत्र है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:
सनातन शास्त्रों में ममतामयी मां दुर्गा की महिमा का बखान है। मां ममता की सागर होती हैं। अपने भक्तों के सभी दुख हर लेती हैं। उनकी कृपा से साधक के जीवन में सुख समृद्धि और शांति का आगमन होता है। अगर आप भी अपने जीवन में सुख शांति और समृद्धि पाना चाहते हैं तो पूजा के समय इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।
सनातन शास्त्रों में ममतामयी मां दुर्गा की महिमा का बखान है। मां ममता की सागर होती हैं। अपने भक्तों के सभी दुख हर लेती हैं। उनकी कृपा से साधक के जीवन में सुख समृद्धि और शांति का आगमन होता है। अगर आप भी अपने जीवन में सुख शांति और समृद्धि पाना चाहते हैं तो पूजा के समय इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।
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माँ स्कंदमाता का स्तोत्र
वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढाचतुर्भुजास्कन्धमातायशस्वनीम्॥
धवलवर्णाविशुद्ध चक्रस्थितांपंचम दुर्गा त्रिनेत्राम।
अभय पदमयुग्म करांदक्षिण उरूपुत्रधरामभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानाकृदुहज्ञसयानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिणिरत्नकुण्डलधारिणीम।।
वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढाचतुर्भुजास्कन्धमातायशस्वनीम्॥
धवलवर्णाविशुद्ध चक्रस्थितांपंचम दुर्गा त्रिनेत्राम।
अभय पदमयुग्म करांदक्षिण उरूपुत्रधरामभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानाकृदुहज्ञसयानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिणिरत्नकुण्डलधारिणीम।।
प्रभुल्लवंदनापल्लवाधरांकांत कपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांजारूत्रिवलींनितम्बनीम्॥
स्तोत्र
नमामि स्कन्धमातास्कन्धधारिणीम्।
समग्रतत्वसागरमपारपारगहराम्॥
शिप्रभांसमुल्वलांस्फुरच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्कराजगतप्रदीप्तभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपाचतांसनत्कुमारसंस्तुताम्।
सुरासेरेन्द्रवन्दितांयथार्थनिर्मलादभुताम्॥
मुमुक्षुभिवचिन्तितांविशेषतत्वमूचिताम्।
नानालंकारभूषितांकृगेन्द्रवाहनाग्रताम्।।
सुशुद्धतत्वातोषणांत्रिवेदमारभषणाम्।
सुधामककौपकारिणीसुरेन्द्रवैरिघातिनीम्॥
शुभांपुष्पमालिनीसुवर्णकल्पशाखिनीम्।
तमोअन्कारयामिनीशिवस्वभावकामिनीम्॥
सहस्त्रसूर्यराजिकांधनज्जयोग्रकारिकाम्।
सुशुद्धकाल कन्दलांसुभृडकृन्दमज्जुलाम्॥
प्रजायिनीप्रजावती नमामिमातरंसतीम्।
स्वकर्मधारणेगतिंहरिप्रयच्छपार्वतीम्॥
इनन्तशक्तिकान्तिदांयशोथमुक्तिदाम्।
पुन:पुनर्जगद्धितांनमाम्यहंसुराíचताम॥
जयेश्वरित्रिलाचनेप्रसीददेवि पाहिमाम्॥
स्कंदमाता देवी कवच
ऐं बीजालिंकादेवी पदयुग्मधरापरा।
हृदयंपातुसा देवी कातिकययुता॥
श्रींहीं हुं ऐं देवी पूर्वस्यांपातुसर्वदा।
सर्वाग में सदा पातुस्कन्धमातापुत्रप्रदा॥
वाणवाणामृतेहुं फट् बीज समन्विता।
उत्तरस्यातथाग्नेचवारूणेनेत्रतेअवतु॥
कमनीयांलावण्यांजारूत्रिवलींनितम्बनीम्॥
स्तोत्र
नमामि स्कन्धमातास्कन्धधारिणीम्।
समग्रतत्वसागरमपारपारगहराम्॥
शिप्रभांसमुल्वलांस्फुरच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्कराजगतप्रदीप्तभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपाचतांसनत्कुमारसंस्तुताम्।
सुरासेरेन्द्रवन्दितांयथार्थनिर्मलादभुताम्॥
मुमुक्षुभिवचिन्तितांविशेषतत्वमूचिताम्।
नानालंकारभूषितांकृगेन्द्रवाहनाग्रताम्।।
सुशुद्धतत्वातोषणांत्रिवेदमारभषणाम्।
सुधामककौपकारिणीसुरेन्द्रवैरिघातिनीम्॥
शुभांपुष्पमालिनीसुवर्णकल्पशाखिनीम्।
तमोअन्कारयामिनीशिवस्वभावकामिनीम्॥
सहस्त्रसूर्यराजिकांधनज्जयोग्रकारिकाम्।
सुशुद्धकाल कन्दलांसुभृडकृन्दमज्जुलाम्॥
प्रजायिनीप्रजावती नमामिमातरंसतीम्।
स्वकर्मधारणेगतिंहरिप्रयच्छपार्वतीम्॥
इनन्तशक्तिकान्तिदांयशोथमुक्तिदाम्।
पुन:पुनर्जगद्धितांनमाम्यहंसुराíचताम॥
जयेश्वरित्रिलाचनेप्रसीददेवि पाहिमाम्॥
स्कंदमाता देवी कवच
ऐं बीजालिंकादेवी पदयुग्मधरापरा।
हृदयंपातुसा देवी कातिकययुता॥
श्रींहीं हुं ऐं देवी पूर्वस्यांपातुसर्वदा।
सर्वाग में सदा पातुस्कन्धमातापुत्रप्रदा॥
वाणवाणामृतेहुं फट् बीज समन्विता।
उत्तरस्यातथाग्नेचवारूणेनेत्रतेअवतु॥
इन्द्राणी भैरवी चैवासितांगीचसंहारिणी।
सर्वदापातुमां देवी चान्यान्यासुहि दिक्षवै॥
मंगल चंडिका स्तोत्र
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवी मङ्गलचण्डिके।
ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं चाप्येकविन्शाक्षरो मनुः।।
सर्वदापातुमां देवी चान्यान्यासुहि दिक्षवै॥
मंगल चंडिका स्तोत्र
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवी मङ्गलचण्डिके।
ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं चाप्येकविन्शाक्षरो मनुः।।
पूज्यः कल्पतरुश्चैव भक्तानां सर्वकामदः ।
दशलक्ष जपेनैव मन्त्र सिद्धिर्भवेन्नृणाम् ।।
मन्त्रसिद्धिर्भवेद् यस्य स विष्णुः सर्वकामदः।
ध्यानं च श्रूयतां ब्रह्मन् वेदोक्तं सर्व सम्मतम् ।।
देवीं षोडशवर्षीयां शश्वत्सुस्थिर यौवनाम्।
सर्वरूपगुणाढ्यां च कोमलाङ्गीं मनोहराम्।।
श्वेतचम्पकवर्णाभां चन्द्रकोटिसमप्रभाम् ।
वन्हिशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम् ।।
बिभ्रतीं कबरीभारं मल्लिकामाल्यभूषितम्।
बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम्।।
ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां सुनीलोल्पललोचनाम् ।
जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसंपदाम् ।।
संसारसागरे घोरे पोतरुपां वरां भजे ।।
देव्याश्च ध्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने।
प्रयतः संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः ।।
शंकर उवाच
रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मङ्गलचण्डिके ।
हारिके विपदां राशेर्हर्षमङ्गलकारिके ।।
हर्षमङ्गल दक्षे च हर्षमङ्गल चण्डिके।
शुभे मङ्गलदक्षे च शुभमङ्गलचण्डिके।।
मङ्गले मङ्गलार्हे च सर्व मङ्गलमङ्गले।
सतां मन्गलदे देवि सर्वेषां मन्गलालये।।
दशलक्ष जपेनैव मन्त्र सिद्धिर्भवेन्नृणाम् ।।
मन्त्रसिद्धिर्भवेद् यस्य स विष्णुः सर्वकामदः।
ध्यानं च श्रूयतां ब्रह्मन् वेदोक्तं सर्व सम्मतम् ।।
देवीं षोडशवर्षीयां शश्वत्सुस्थिर यौवनाम्।
सर्वरूपगुणाढ्यां च कोमलाङ्गीं मनोहराम्।।
श्वेतचम्पकवर्णाभां चन्द्रकोटिसमप्रभाम् ।
वन्हिशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम् ।।
बिभ्रतीं कबरीभारं मल्लिकामाल्यभूषितम्।
बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम्।।
ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां सुनीलोल्पललोचनाम् ।
जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसंपदाम् ।।
संसारसागरे घोरे पोतरुपां वरां भजे ।।
देव्याश्च ध्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने।
प्रयतः संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः ।।
शंकर उवाच
रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मङ्गलचण्डिके ।
हारिके विपदां राशेर्हर्षमङ्गलकारिके ।।
हर्षमङ्गल दक्षे च हर्षमङ्गल चण्डिके।
शुभे मङ्गलदक्षे च शुभमङ्गलचण्डिके।।
मङ्गले मङ्गलार्हे च सर्व मङ्गलमङ्गले।
सतां मन्गलदे देवि सर्वेषां मन्गलालये।।
पूज्या मङ्गलवारे च मङ्गलाभीष्टदैवते।
पूज्ये मङ्गलभूपस्य मनुवंशस्य संततम्।।
मङ्गलाधिष्टातृदेवि मङ्गलानां च मङ्गले।
संसार मङ्गलाधारे मोक्ष मङ्गलदायिनि ।।
सारे च मङ्गलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम् ।
प्रतिमङ्गलवारे च पूज्ये च मङ्गलप्रदे ।।
स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मङ्गलचण्डिकाम्।
प्रतिमङ्गलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः ।।
देव्याश्च मङ्गलस्तोत्रं यः श्रुणोति समाहितः।
तन्मङ्गलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमङ्गलम्।।
पूज्ये मङ्गलभूपस्य मनुवंशस्य संततम्।।
मङ्गलाधिष्टातृदेवि मङ्गलानां च मङ्गले।
संसार मङ्गलाधारे मोक्ष मङ्गलदायिनि ।।
सारे च मङ्गलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम् ।
प्रतिमङ्गलवारे च पूज्ये च मङ्गलप्रदे ।।
स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मङ्गलचण्डिकाम्।
प्रतिमङ्गलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः ।।
देव्याश्च मङ्गलस्तोत्रं यः श्रुणोति समाहितः।
तन्मङ्गलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमङ्गलम्।।
(विशेष- लाल रंग छपे चालीसा, पाठ, स्रोत्र, आरती आदि का विशेष प्रभाव होता है। विद्वानों एवं कर्मकांडी ब्राह्मणों के अनुसार, इसका तांत्रिक प्रभाव होता है।)
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प्राचीन काल से मान्यता है, शारदीय नवरात्र में दुर्गा मां अपने भक्तों का कल्याण करती हैं।नवरात्र में रंगों का विशेष महत्व होता है। जो श्रद्धालु-भक्त इस काल में दिन के अनुसार विशेष रंग के कपड़े पहनते हैं, उन्हें विशेष लाभ मिलता है। नौ दिनों में नौ रंगों के कपड़े पहनने और मां के नौ रूपों की पूजा करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होने की मान्यता है। साथ ही नवरात्र में दुर्गा जी की आरती करने से भी मनोकामनाओं की पूर्ति होने की बात कही गई है।
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