#दीपावली : वैष्णव व दानवों की है "पैतृक तिथि", स्थिर-लग्न में करें माँ लक्ष्मी-पूजा...


इन मंत्र का करें जप...
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धर्म नगरी /
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- राजेश पाठक संपादक 

कार्तिक मास की अमावस्या को माता लक्ष्मी एवं भगवान गणेश की पूजन का विधान है। मान्यता है, इसी दिन माँ लक्ष्मी का पूजन स्थिर-लग्न में करना चाहिए। ध्यान रखें, गणेश जी के दाहिने भाग में माता महालक्ष्मी को स्थापित करना (रखना) चाहिए। मोक्ष की प्राप्ति के लिए वामावर्त सूंड़ वाली, लौकिक भौतिक सुख की कामना के लिए दक्षिणावर्त सूंड़ वाली भगवान गणेश की प्रतिमा घर में स्थापित करना चाहिए। दीपावली गुरुवार (4 नवंबर) को पड़ रही है।

वैष्णवों एवं दानवों की पैतृक तिथि
कार्तिक अमावस्या वैष्णवों एवं दानवों की पैतृक तिथि है। भविष्य पुराण के अनुसार, वामन रूप धर कर जब भाववान विष्णु ने बलि से तीन पग द्वारा समस्त धरामंडल को अपने अधीन कर लिया, इंद्रा को स्वर्ग का राज्य सौंप दिया, बलि को सदैव के लिए पातालवासी बनाया। फिर, विष्णुजी ने नरोत्तम बलि राज्य का चिन्ह स्वरुप एक ही वस्तु दैत्यों के उपभोगार्थ बलि को प्रदान किया। यह रहस्य है- कार्तिक कृष्ण अमावस्या की रात्रि इस भूतल में दैत्यों का यथेच्छ राज्य होता है, उसमें अपनी इच्छाओं को भली भाँति पूर्ण करते हैं।

"धर्म नगरी" के सलाहकार डॉ. अल्प नारायण त्रिपाठी के अनुसार, इस दिन "कौमुदी महोत्सव" होता है। भविष्य पुराण के अनुसार, असुरों को यह महोत्सव प्रदान किया गया है। कौमुदी- कु का अर्थ पृथ्वी, मुद का अर्थ हर्ष है। पृथ्वी मंडल में जिस तिथि में जन वृन्द परस्पर अनेक भावों द्वारा अत्यंत हर्षित, हृष्ट-तुष्ट होते हैं, वह महोत्सव है।

दीपावाली पूजा : शुभ मुहूर्त (Auspicious time)
अमावस्या व्यापिनी महानिशीथ काल 12 नवंबर को मिलेगा। धर्मशास्त्रोक्त नियमानुसार दीपावली प्रदोष काल और महानिशीथ काल व्यापिनी अमावस्या में होती है। सुख, सौभाग्य और समृद्धि का महापर्व दीपावली आज धूमधाम से मनाई जाएगी। घरों से लेकर मंदिर और दुकानों में मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा होगी। मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए श्रद्धालुओं को अमावस्या व्यापिनी महानिशीथ काल में 2.36 घंटे का स्थिर लग्न में शुभ मुहूर्त मिलेगा। इसके अलावा लक्ष्मी पूजन के लिए तीन और स्थिर लग्न प्राप्त हो रहे हैं।

अमावस्या व्यापिनी महानिशीथ काल 12 नवंबर को मिलेगा। धर्मशास्त्रोक्त नियमानुसार दीपावली प्रदोष काल और महानिशीथ काल व्यापिनी अमावस्या में होती है। स्थिर लग्न में पूजा करना लाभप्रद होता है। पूजा व खाता पूजन स्थिर लग्न में सुबह 6:41 बजे से लेकर 8:58 बजे तक वृश्चिक लग्न में होगा।

दीपावली के दिन मुहूर्त
कार्तिक अमावस्या 12 नवंबर (रविवार) को है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, दीपावाली को धन की देवी लक्ष्मी जी की श्रद्धा-विश्वासपूर्वक पूजा-अर्चना निम्न मुहूर्त में की जानी चाहिए-
प्रदोष काल शाम 05:11 से 06:23 बजे तक रहेगा।
पूजन व खाता पूजन (स्थिर लग्न) सुबह 6:41 बजे से 8:58 तक वृश्चिक लग्न
कुंभ लग्न- दिन में 12:51 से 2:22 तक,
वृष लग्न- शाम 5:27 से 7:23 तक
सिंह लग्न- रात्रि 11:55 से 2:09 तक

कैसे करें पूजा-
सर्वप्रथम पूजा का संकल्प लें,
श्रीगणेश, माँ लक्ष्मी, माता सरस्वती जी के साथ कुबेर का पूजन करें,
ॐ श्रीं श्रीं हूं नम: का 11 बार या एक माला का जाप करें,
एकाक्षी नारियल या 11 कमलगट्टे पूजा स्थल पर रखें,
श्रीयंत्र की पूजा करें और उत्तर दिशा में प्रतिष्ठापित करें, श्री देवी सूक्तम का पाठ करें

दीपावली पूजा-विधि
दीपावली पर पूजा के लिए सबसे सर्वप्रथम स्वच्छ किए पूजा स्थान पर एक चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाएं। फिर इस चौकी पर बीच में मुट्ठी भर अनाज रखें,
- कलश को अनाज के बीच में रखें। अब कलश में पानी भरकर एक सुपारी, गेंदे का फूल, एक सिक्का और कुछ चावल के दाने डालें,
- कलश पर 5 आम के पत्ते गोलाकार आकार में रखें। बीच में देवी लक्ष्मी की मूर्ति और कलश के दाहिनी ओर भगवान गणेश की मूर्ति रखें, 
- अब एक छोटी-सी थाली में चावल के दानों का एक छोटा सा पहाड़ बनाएं, हल्दी से कमल का फूल बनाएं, कुछ सिक्के डालें और मूर्ति के सामने रखें दें। इसके बाद अपने व्यापार/लेखा पुस्तक और अन्य धन/व्यवसाय से संबंधित वस्तुओं को मूर्ति के सामने रखें,
- अब देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश को तिलक करें और दीपक जलाएं। साथ ही कलश पर भी तिलक लगाएं,
- भगवान गणेश और लक्ष्मी को फूल चढ़ाएं और पूजा के लिए अपनी हथेली में कुछ फूल रखें। अपनी आंखें बंद करें और दिवाली पूजा मंत्र का पाठ करें,
- हथेली में रखे फूल को भगवान गणेश और लक्ष्मी जी को चढ़ाएं,
- माता लक्ष्मी जी की मूर्ति लें और उसे पानी से स्नान कराएं और उसके बाद पंचामृत से स्नान कराएं। मूर्ति को फिर से पानी से स्नान कराकर, एक साफ कपड़े से पोछें और वापस रख दें,
- मूर्ति पर हल्दी, कुमकुम और चावल डालें,
- माला को देवी के गले में डालकर अगरबत्ती जलाएं। फिर नारियल, सुपारी, पान का पत्ता माता को अर्पित करें। देवी की मूर्ति के सामने कुछ फूल और सिक्के रखें। थाली में दीया लें, पूजा की घंटी बजाएं और लक्ष्मी जी की आरती करें। 
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माँ लक्ष्मी का भोग
धन-वैभव, समृद्धि की देवी माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने फलों में आप लक्ष्मी जी की पूजा में सिंघाड़ा, अनार, श्रीफल आदि अर्पित कर सकते हैं। दीपावाली की पूजा में सीताफल को भी रखा जाता है. इसके अलावा दीपावाली की पूजा में कुछ लोग ईख भी रखते हैं। सिंघाड़ा भी नदी के किनारे पाया जाता है, इसलिए मां लक्ष्मी को सिंघाड़ा भी बहुत प्रिय है। मिष्ठान में माँ लक्ष्मी को केसर भात, चावल की खीर जिसमें केसर पड़ा हो, हलवा आदि भी बहुत प्रिय है।
(विशेष- आरती कभी भी भूलकर तीन आरती नहीं करनी चाहिए। दो आरती करें या फिर पांच।)

माँ लक्ष्मी की आरती-
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
तुमको निशदिन सेवत, मैया जी को निशदिन सेवत हरि विष्णु विधाता
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता

दुर्गा रूप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता

तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता

जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता

शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता

श्री लक्ष्मी-पति भगवान विष्णु की आरती- 
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥

तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥

तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥

तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥

जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥

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श्रीराम से श्रीकृष्ण तक जुड़ी दीपावली
दीपावली मनाने के पीछे अलग-अलग मान्यताएं व परंपराएं हैं। सर्वप्रमुख भगवान श्रीराम के 14 वर्ष के वनवास के पश्चात अयोध्या नगरी लौटने से है, जब अयोध्या की प्रजा ने घर-मकानों की सफाई कर प्रभु श्रीराम का दीप जलाकर उनका स्वागत किया। दूसरी कथा, जब श्रीकृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध करके प्रजा को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। इससे आनंदित होकर द्वरिका की प्रजा ने दीपक जलाकर श्रीकृष्ण की जय-जयकार किया।  

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प्रकाश का महापर्व
दीपावली भारत के सबसे बड़े त्यौहारों में से एक है, जो अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है। इसलिए इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। पांच-दिवसीय पर्व के तीसरे दिन अमावस्या को दीपावली देश में ही नहीं, दुनियाभर में हर्षोल्लास के साथ सनातनधर्मी हिन्दुओं के साथ सनातन धर्म के प्रति आस्था व सम्मान रखने वाले अन्य सभी धर्मावलम्बी मनाते हैं।

समुद्र मंथन से जुड़ी कथा 
सनातन धर्म-ग्रंथों के अनुसार, सतयुग में जब समुद्र मंथन हुआ, तो धन्वंतरि और देवी लक्ष्मी के प्रकट होने पर दीपक जलाकर आनंद व्यक्त किया। इस प्रकार यह स्पष्ट है, कि सतयुग, त्रेता और द्वापर, तीनों युगों में जब दुनिया में कहीं कोई धर्म या सभ्यता नहीं थी, तब हम हिन्दुओं के पूर्वज, ऋषि-मुनि तपस्वियों के मार्गदर्शन में सुव्यवस्थित जीवन जीते थे, पर्व-त्यौहार मनाते थे, परस्पर सुख-दुःख में साथ रहते थे। उसी प्राचीन भावना, परम्परा के अनुसार दीपावली सदियों से प्रतिवर्ष कार्तिक अमावस्या को मनाई जाती है। 

दीपदान और "ब्रह्म स्वरूप" दीप- 
भारतीय संस्कृति में दीपक को सत्य और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि वो स्वयं जलता है, पर दूसरों को प्रकाश देता है। दीपक की इसी विशेषता के कारण धार्मिक पुस्तकों में उसे ब्रह्मा स्वरूप माना जाता है। मान्यता है, कि 'दीपदान' से शारीरिक एवं आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है। जहां सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच सकता है, वहां दीपक का प्रकाश पहुंच जाता है। दीपक को सूर्य का भाग 'सूर्यांश संभवो दीप:' कहा जाता है।

दीपावली की रात्रि साधना-
दीपावली के दिन श्री महागणपति, महालक्ष्मी एवं महाकाली की पौराणिक और तांत्रिक विधि से साधना-उपासना का विधान है। ब्रह्मपुराण के अनुसार, कार्तिक की अमावस्या को अर्द्धरात्रि के समय लक्ष्मी महारानी गृहस्थों के मकानों में जहां-तहां विचरण करती हैं। इसलिए मकानों को सब प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुशोभित करके दीपावली अथवा दीपमालिका बनाने से लक्ष्मी प्रसन्न होती है।

सायंकाल दीप-मालिका और दीपवृक्ष आदि बनाकर तिजोरी / लॉकर या घर में अन्य जगहों पर वेदी बनाकर चौकी-पाटे आदि पर अक्षतादि से अष्टदल लिखें। उस पर लक्ष्मी का स्थापना करके लक्ष्म्यै नम:, इन्द्राय नम: और कुबेराय नम: का मंत्र जपें।

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लेख / समाचार (पढ़ें, देखें, सुने)-

नरक चतुर्दशी / छोटी दीपावली : अकाल मृत्यु से मुक्ति व पितरों का आशीर्वाद पाने का दिन, रात के प्रहर में माँ काली व...
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#Ayodhya #दीपोत्सव-2021 : पिछले वर्ष का रिकॉर्ड टूटा, 12 लाख दीयों से जगमग हुई 'रामनगरी'


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श्रीराम की नगरी में दीपोत्सव पर सरयू के 32 घाटों पर जलेंगे 7.51 लाख दीये...
Deepotsav : 12 lakh earthen diyas to illuminate 'Dharm Nagari' Ayodhya
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मोदी का वो प्रण, पढ़िए संबोधन संपूर्ण... बोलिए... सियावररामचन्द्र की...  

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अयोध्या के 63वें शासक राजा दशरथ के पुत्र एवं... 

http://www.dharmnagari.com/2020/07/RamMandirDharmNagari_29.html  

रामलला के दर्शन करने वाले और हनुमान गढ़ी जाने वाले पहले प्रधानमंत्री

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