धनतेरस या धन त्रयोदशी : सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य के आगमन का दिन, महत्व, विशेष उपाय, जिससे...
...घर-परिवार में सुख-समृद्धि स्वास्थ्य रहे,
- धनतेरस पर क्या और क्यों खरीदें ?(W.app- 8109107075 -न्यूज़, कवरेज, शुभकामना, विज्ञापन व सदस्यता हेतु)
-राजेश पाठक (संपादक)
-राजेश पाठक (संपादक)
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस या धन-त्रयोदशी है। इसी पर्व (धनतेरस) से पांच पर्वों के महापर्व- दीपावली का शुभारंभ होता है। अर्थात धनतेरस दीपावली महापर्व का पहला पर्व होता है। धनतेरस के दिन समुद्र मंथन के दौरान धन्वंतरि देव अमृत का कलश लेकर एवं माँ लक्ष्मी सोने का घढ़ा लेकर प्रकट हुई थी। अत: इस दिन दोनों की पूजा का महत्व है। धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त जहां दीपदान किया जाता है। दीपावली महापर्व का पहला पर्व- धनतेरस सनातन हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन लोग सोना, चांदी, आभूषण, बर्तन आदि की खरीदारी करना शुभ मानते हैं। ऐसा करने से घर में सुख, समृद्धि आती व अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। धनतेरस -पूजा को धन-त्रयोदशी के नाम से भी जानते हैं।
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सर्वोत्तम है धनतेरस को चांदी खरीदना-
सोने के आभूषण धनतेरस के दिन खरीदने की परंपरा भी है। सोना भी लक्ष्मी और वृहस्पति का प्रतीक है, इसलिए सोना खरीदने की परंपरा है। यद्यपि, धनतेरस को चांदी खरीदना सर्वोत्तम है, क्योंकि चांदी धन के देव की धातु है, जबकि सोने में कलयुग का वास (द्वापर से कलयुग लगने के समय श्रीमद भागवत के अनुसार जन्मेजय ने कलयुग की प्रार्थना पर मदिरा, जुवां Gambling सहित सोने Gold में भी रहने की अनुमति दी थी) माना जाता है। इस दिन चांदी (silver) खरीदने से घर में यश-कीर्ति, ऐश्वर्य और संपदा में वृद्धि होती है। चाँदी चंद्र (चन्द्रमा) की धातु है, जो जीवन में शीतलता और शांति लाती है।
आर्थिक समस्या / तंगी दूर करने, समृद्धि प्राप्ति हेतु कुछ सरल व प्रभावी उपाय भी धनतेरस पर किए जाते हैं। इस दिन भगवान धन्वंतरि, कुबेर, यमराज, गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ गाय और गौ-वंश की पूजा करते हैं। गाय को माता लक्ष्मी के अवतार के रूप में मानते हैं इसलिए वहां के लोग गाय का विशेष सम्मान करते हैं। धनतेरस के दिन श्रद्धा-विश्वास के साथ करने योग्य कुछ शुभ, सरल एवं प्रभावी उपाय इस प्रकार हैं- झाड़ू खरीदें, श्वेत वास्तु का दान करें- धनतेरस पर नई झाड़ू खरीदकर उसकी पूजा करते हैं। घर में नई झाड़ू लाने के साथ आप चाहें तो किसी मंदिर में या सफाईकर्मी को अच्छी वाली झाड़ू खरीदकर दान कर सकते हैं। इससे लक्ष्मी माता आप पर प्रसन्न होंगी। मान्यता है, झाड़ू घर से दरिद्रता हटाती है, दरिद्रता का नाश होता है। धनतेरस के दिन घर में नई झाड़ू लाने के बाद इस पर एक सफेद रंग का धागा बांध देना चाहिए। इससे मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है, घर की आर्थिक स्थिति में सुधार आता है। माना जाता है कि, कर्ज से परेशान लोगों को धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदने से कर्ज से राहत मिलती है। झाड़ू को कभी भी खुले में न रखें, इसे सबसे छिपाकर कहीं रखें एवं सूर्यास्त के बाद झाड़ू न लगाएं, क्योंकि सूर्य डूबने के बाद झाड़ू लगाने से लक्ष्मी घर से चली जाती हैं । धनतेरस को झाड़ू के अतिरिक्त यदि आप चीनी, बताशा, खीर, चावल, सफेद कपड़ा आदि अन्य श्वेत वस्तुएं दान करते हैं, तो आपको आर्थिक कष्ट या तंगी दूर होती है। जमा-पूंजी बढ़ने के साथ कार्यों में आ रहीं बाधाएं भी दूर होती है। धनतेरस को यदि आपके घर, द्वार पर कोई भिक्षुक (भिखारी), जमादार या गरीब व्यक्ति आए, तो उसे खाली हाथ न भेजें। कुछ न कुछ उसे अवश्य दें। इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और आपको समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं और आपको आपके कार्यों में सफलता मिलती है।
खड़ी धनिया (खड़ी)- धनतेरस के दिन सोना नहीं खरीद सकते हैं, तो पीतल का बर्तन खरीदें। वैसे चाँदी में लक्ष्मीजी का वास होने से सर्वोत्तम माना जाता है। अब चाँदी, सोना, बर्तन न खरीद सकें, तो धनिया खरीदें। धनिया को खरीदकर माँ लक्ष्मी को अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में धनिए के नए बीज खरीदते हैं, वहीं शहरी क्षेत्र में पूजा के लिए साबुत या खड़ी धनिया खरीदते हैं। धनिया भी वृहस्पति ग्रह का कारक है। इस दिन सूखे धनिया के बीज को पीसकर गुड़ के साथ मिलकर एक मिश्रण बनाकर 'नैवेद्य' तैयार करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से धन की हानि नहीं होती है। धनिया को संपन्नता का प्रतीक माना जाता है। इसलिए धनतेरस को थोड़ी सी धनिया जरूर खरीदें। किवदंति के अनुसार, (ऐसी मान्यता है) धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी को धनिया अर्पित करने और भगवान धनवंतरि के चरणों में धनिया चढ़ाने के बाद उनसे प्रार्थना करने से परिश्रम का फल मिलता है और व्यक्ति प्रगति करता है। पूजा के बाद आप धनिया का प्रसाद बनता है, जिसे सब लोगों के बीच वितरित किया जाता है। ऐसी प्राचीन मान्यता है, ऐसा करने से धन हानि नहीं होती।
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कौड़ियां, हल्दी की गांठ- धन-समृद्धि में वृद्धि हेतु धनतेरस पर कौड़ियां खरीदकर उसकी पूजा करें, फिर उसे तिजोरी में रखते हैं। कौड़ीयां यदि पीली ना हों, तो उन्हें हल्दी के घोल में पीला कर लें। बाद में इनकी पूजा करके अपनी तिजोरी या लॉकर (या जहाँ धन रखते हों) वहाँ रखें।
तीसरी वास्तु है, हल्दी की गांठ। धनतेरस के दिन कुछ खड़ी हल्दी खरीदना भी शुभ होता है। शुभ-मुहूर्त में बाजार से गांठ वाली पीली हल्दी या काली हल्दी घर लाएं। इसे कोरे कपड़े पर रखकर स्थापित कर षोडशोपचार से पूजन करने से भी धन-समृद्धि बढ़ती है।दक्षिणावर्ती शंख एवं
तीसरी वास्तु है, हल्दी की गांठ। धनतेरस के दिन कुछ खड़ी हल्दी खरीदना भी शुभ होता है। शुभ-मुहूर्त में बाजार से गांठ वाली पीली हल्दी या काली हल्दी घर लाएं। इसे कोरे कपड़े पर रखकर स्थापित कर षोडशोपचार से पूजन करने से भी धन-समृद्धि बढ़ती है।दक्षिणावर्ती शंख एवं
चावल के दाने- धनतेरस को साबूत चावल के 21 दाने लें, उनकी पूजा करके उन्हें लाल कपड़े में बांधकर घर की तिजोरी में रखें। इससे आर्थिक समस्या का निदान होता है, कम होती है। धनतेरस-पूजा से पूर्व एवं पश्चात दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर घर में चारों तरफ थोड़ा-थोड़ा छिड़कें। इससे घर में मां लक्ष्मी का आगमन होता है।
दीपदान- धनतेरस को यमराज के निमित्त घर में दीपदान करते हैं। धनतेरस की सायंकाल मुख्य द्वार एवं घर के अंदर 13-13 दीप जलाएं। इसके साथ (यदि चाहें) इस दिन 13 दीपक और दीपक जलाकर घर के सभी कोने में रखें। आधी रात के बाद सभी दीपकों के पास एक एक पीली कौड़ियां रख दें। बाद में इन कौड़ियों को जमीन में गाड़ दें। इससे आपके जीवन में अचानक से धनवृद्धि होगी।
अन्य उपाय- धनतेरस के दिन आप किसी मंदिर या उचित स्थान पर जाकर केले का पौधा या कोई सुगंधित पौधा लगाएं। जैसे-जैसे यह हरा-भरा और बड़ा होता जाएगा, मान्यता है, आपके जीवन में भी समृद्धि और सफलताएं बढ़ेंगी। यदि आपके पास धन नहीं रुकता (बचता), तो इस धनतेरस से दीपावली के दिन तक (तीन दिनों तक) आप मां लक्ष्मी को पूजा के दौरान एक जोड़ा लौंग चढ़ाएं।
धनतेरस की सायंकाल दीपदान के महत्व का उल्लेख स्कंद पुराण और पद्मपुराण में भी है। ये दीपदान यमदेवता के नाम पर किया जाता है, जिससे परिवार के लोगों की रक्षा होती है। इस दीपक को घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता है। सूर्यास्त के पश्चात जब घर पर सभी सदस्य उपस्थित हों, तब इस दीपक को घर के अंदर से जलाकर लाएं और घर से बाहर उसे दक्षिण की ओर मुख करके नाली या कूड़े के ढेर के पास रख दें। इसके बाद
‘मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह,
त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यज: प्रीतयामिति।’ मंत्र बोलें और दीपक पर जल छिड़कें। इसके बाद दीपक को बिना देखे घर में आ जाएं।
दीपदान हेतु शुभ काल (धनतेरस के दिन) सायंकाल 5 बजे से 6:30 बजे तक रहेगा। इसके अतिरिक्त सायंकाल 6:30 बजे से रात्रि 8:11 बजे का समय पूजा एवं दीपदान के लिए शुभ है।
धनतेरस को ये न खरीदें (घर न लाएं इसे)-
लोहा, एल्युमिनियम लोहा शनि का कारक माना जाता है, इसलिए इस दिन इस तरह की चीजें लाने से आप शनि के प्रकोप में आ सकते हैं।प्रायः धनतेरस के दिन लोग स्टील या एल्युमिनियम के बर्तन खरीदते हैं। जबकि यह धातु राहु का कारक होती है। धनतेरस के दिन ऐसी वस्तु घर लाना चाहिए। अत: इसे घर में लाना और सजाकर रखना शुभ नहीं मानते है। इसी तरह लोहे की वस्तुए नहीं खरीदनी चाहिए।
कांच- कांच संबंध राहु से होता है। इसलिए धनतेरस के दिन कांच न खरीदें। घर में कहीं, कोई टूटा-चिटका कांच भी न रखे। यहाँ आपकी गाडी में ऐसे कांच (mirror) हों, तुरंत फेक दें, क्योंकि टूटे चिटके काँच में कभी नहीं देखना चाहिए।
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Significance of Dhantrayodashi and Puja Mahurat
The day is observed as Goddess Lakshmi emerges out of the ocean during the churning of the Milk sea. The Goddess of Wealth along with the God of Wealth Lord Kubera is worshipped on the auspicious day of trayodashi during Dhanteras.
Significance of Dhanteras-
The worship of Goddess Lakshmi on Amavasya after two days of Dhantrayodashi is considered to be auspicious and significant. Dhanteras is also observed as the Dhanwantari Triodasi or Dhanvantri Jayanti, which is the birth anniversary of Ayurveda. While, another significant day that falls on the Trayodashi Tithi is the Yamadeep, which is the day where the lamp of the God of death is lightened outside the house to avoid the untimely death of any family members.
The puja will be performed during "Pradosh Kaal" when Sthir Lagna prevails, which begins after sunset and lasts for 2 hours and 24 minutes. It is believed as the best time for the puja where vrishabha Lagna is considered as Sthir, which literally means fixed or not movable. This timing mostly overlaps the Pradosh Kaal during Diwali. Chonghdiya Muhurat is suggested to those muhurtas that are good for travelling.
धनतेरस की पौराणिक कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु द्वारा श्राप दिए जाने के कारण देवी लक्ष्मी को तेरह वर्षों तक एक किसान के घर पर रहना था। माता लक्ष्मी के उस किसान के रहने से उसका घर धन-समाप्ति से भरपूर हो गया। तेरह वर्षों के बाद जब भगवान विष्णु मां लक्ष्मी को लेने आए तो किसान ने मां लक्ष्मी से वहीं रुकने का आग्रह किया। इस पर देवी लक्ष्मी ने किसान से कहा कि कल त्रयोदशी है और अगर वह साफ-सफाई करके दीप प्रज्वलित करके उनका आह्वान करेगा तो किसान को धन-वैभव की प्राप्ति होगी। इसके बाद मां लक्ष्मी ने जैसा कहा था किसान ने वैसा ही किया। तब मां की कृपा से उसे धन-वैभव की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि तब से ही धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी के पूजन की परंपरा आरंभ हुई।भगवान धनवंतरि को स्वास्थ्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सागर मंथन के समय भगवान धनवंतरि अमृत कलश लेकर अवतरित हुए थे इसीलिए इस दिन बर्तन खरीदने की प्रथा प्रचलित हुई।
एक राजकुमार की कुंडली में लिखा था, कि उसके विवाह के चौथे दिन सांप के डसने से उसकी माैत हो जाएगी। ऐसे में उसके विवाह के बाद उसकी पत्नी ने निर्धारित दिन पर अपने सोने चांदी के बने आभूषण एक ढेर में एकत्र कर शयनकक्ष के दरवाजे पर रख दिए और चारो तरफ दिए जला दिए। वहीं अपने अपने पति को जगाए रखने के लिए वह उन्हें कहानियां व गीत सुनाती रही।
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(Disclaimer : उक्त लेख में दी जानकारियां धार्मिक ग्रंथों, ज्योतिर्विदों के मत, प्राचीन आस्था एवं मान्यताओं पर आधारित हैं, समस्त जानकारी शत प्रतिशत सत्य हों, प्रमाणित हों, इसकी पुष्टि हम नहीं करते।)
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धनतेरस या धन्वंतरि-त्रयोदशी को भगवान धन्वंतरि का प्राकट्य दिवस (जयन्ती) होती है, अर्थात आयुर्वेद के देवता का प्राकट्य-दिवस मनाते हैं। भगवान धन्वंतरि देवताओं के चिकित्सक है एवं भगवान विष्णु के अवतारों में से एक माने जाते हैं।
भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद के प्रामाणिक देवता हैं। इस निमित्त मन्त्र चरक-संहिता में प्राप्त होता है-
ॐ आयुर्दाय नमस्तुभ्यम अमृत पद्माधिपाय च।
भगवन धन्वंतरि प्रसादेन आयु: आरोग्य संपद:।।
दूसरा मन्त्र-
“धन्वंतरि नमस्तुभ्यम आयु:आरोग्य स्थिर:कुरु।
रुपम देहि यशो देहि, भाग्यम आरोग्य ददस्व में।।”
जब गणपति ने तोड़ा कुबेर का अहंकार-
शिव पुराण के अनुसार, कुबेर ने अपने धन और वैभव के घमंड में देवताओं को भोज के लिए आमंत्रित किया, ताकि वह अपनी संपन्नता दिखा सके। उसने शिव पुत्र गणेश जी को भी निमंत्रित किया। कुबेर का घमंड तोड़ने के लिए गणेश जी उसके भोज में पहुंचे और सारा भोजन चट कर गए। उसके बाद उनकी भूख बढ़ती गई और कुबेर के लिए मुश्किल खड़ी हो गई। वह गणेशजी की क्षुधा को शांत नहीं करा पा रहा था। गणेशजी ने उसके अन्न और धन के भंडार, हीरे-जवाहरात और धन अपने उदर में समा लिया और अंत में वे कुबेर को ही निगलने के लिए दौड़ पड़े। इस पर डरकर कुबेर गणेशजी के सामने शरणागत हो गए और इस तरह उनका घमंड टूट गया।
उक्त कथा के क्रम में उनके जन्म की भी कहानी है। एकबार, कुबेर के यहां भोज से लौटने के बाद गणेश जी के उदर में जलन होने लगी। उनको मधुमेह हो गया। दिन प्रति दिन उनका स्वास्थ्य खराब होने लगा। माता पार्वती काफी चिंतित थीं, उन्होंने भगवान शिव को ध्यान मुद्रा से जगाया। उसी समय त्रिकालदर्शी भगवान शिव के तीसरे नेत्र से भगवान धन्वंतरी का जन्म हुआ। उन्होंने गणेश जी को दूर्वा का रस पिलाया, तब जाकर गणेश जी के स्वास्थ्य में सुधार हुआ। इसीलिए गणपति के पूजन में दूर्वा अर्पित किया जाता है। इससे गणेश जी जल्द प्रसन्न होते हैं।
धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है। उनकी चार भुजाएं हैं। एक हाथ में चक्र, दूसरे में शंख, तीसरे में जलूका और औषधि तथा चौथे हाथ में अमृत कलश होता है।
गणेशजी को दूर्वा का रस देने के बाद वे भगवान शिव से आशीर्वाद लेकर संसार के कल्याण के लिए अमृत कलश लेकर कैलास से प्रस्थान कर गए। कहा जाता है, कि धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन करने से परिवार में आरोग्य आता है। सभी सदस्य स्वस्थ रहते हैं। इसलिए धनतेरस को धन्वंतरी जयंती भी कहा जाता है। इस दिन वैद्य, हकीम और ब्राह्मण समाज धन्वंतरी भगवान का पूजन करता है।
भगवान धन्वतरि जब प्रकट हुए, तब उनके हाथों में अमृत से भरा पीतल का घड़ा था। मान्यतानुसार, तभी से इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा प्रारम्भ हुई। पीतल के बर्तन धनतेरस के दिन इसलिए खरीदते हैं, क्योंकि पीतल भगवान धन्वंतरी की धातु है। पीतल खरीदने से घर में आरोग्य, सौभाग्य और स्वास्थ्य की दृष्टि से शुभता आती है। पीतल गुरु या वृहस्पति की धातु होने से बहुत ही शुभ है। वृहस्पति ग्रह की शांति हेतु पीतल का उपयोग किया जाता है।
नरक-चतुर्दशी को योग
दीपावली को माँ लक्ष्मी-गणेश (दोनों की) पूजा होती है और पूजन का मुख्य समय प्रदोष-काल होता है, जिसमे स्थिर लग्न की प्रमुखता होती है। अतः वृष, सिंह, कुम्भ लग्न में दीपावली-पूजन करना चाहिए। रात्रि 12 बजे महानिशा-काल एवं प्रतिष्ठानों, दुकानों, फैक्ट्रियों आदि में दोपहर 12 बजे अभिजीत-काल श्रेष्ठ माना गया है।
दीपावली को माँ लक्ष्मी-गणेश (दोनों की) पूजा होती है और पूजन का मुख्य समय प्रदोष-काल होता है, जिसमे स्थिर लग्न की प्रमुखता होती है। अतः वृष, सिंह, कुम्भ लग्न में दीपावली-पूजन करना चाहिए। रात्रि 12 बजे महानिशा-काल एवं प्रतिष्ठानों, दुकानों, फैक्ट्रियों आदि में दोपहर 12 बजे अभिजीत-काल श्रेष्ठ माना गया है।
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