उत्पन्ना एकादशी : मुहूर्त और पूजा-विधि, इस दिन अवश्य करें ये काम

मलयालम कैलेंडर में वृषचिकम महीने, तमिल कैलेंडर में कार्थिगई मासम में मनाते हैं उत्पन्ना एकादशी 

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राजेश पाठक 

सनातन धर्म में एकादशी का व्रत बड़ा महत्व है। साल में 24 एकादशी आती हैं और हर महीने में 2 एकादशी पड़ती हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। माना जाता है कि जो साधक इस दिन श्री हरि विष्णु के लिए उपवास रखते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, एक शुक्ल पक्ष और दूसरी कृष्ण पक्ष। साल में कुल 24 एकादशियां पड़ती हैं। मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। 

श्रीकृष्ण के प्रिय माह-  मार्गशीर्ष (28 नवंबर को) आरम्भ हो चुका है, जो 26 दिसंबर 2023 तक रहेगा। इस माह पर्यन्त भगवान कृष्ण की पूजा का विधान है। ऐसे में एकादशी व्रत का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। इस शुभ दिन पर लोग व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु और कृष्ण की पूजा करते हैं। इस बार उत्पन्ना एकादशी का व्रत 8 दिसंबर 2023 (शुक्रवार) को है। 
 
उत्पन्ना एकादशी महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक है, क्योंकि उत्पन्ना एकादशी के दिन ही एकादशी प्रकट हुई या यह एकादशी व्रत की उत्पत्ति का प्रतीक है। इस दिन एकादशी माता का जन्म हुआ था। इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। इस काल में लोग भगवान विष्णु के आशीर्वाद के लिए उनकी पूजा करते हैं, मृत्यु के पश्चात मोक्ष मिलने की कामना करते हैं। इसलिए, इस दिन व्रत का पालन करने का एक मुख्य कारण मोक्ष की प्राप्ति है। 

मार्गशीर्ष माह (पूर्णिमांत कैलेंडर के अनुसार) या कार्तिक माह (अमावस्यांत कैलेंडर के अनुसार), एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी या गौना एकादशी कहा जाता है। इस दिन केरल और तमिलनाडु में भी श्रद्धालुओं द्वारा एक व्रतम मनाया जाता है। मलयालम कैलेंडर के अनुसार, उत्पन्ना एकादशी वृषचिकम महीने में आती है, जबकि तमिल कैलेंडर के अनुसार, यह कार्थिगई मासम में मनाया जाता है। 

सनातन हिंदू मान्यतानुसार, देवी एकादशी का जन्म भगवान विष्णु से उत्पन्ना एकादशी का जन्म दानव मुर को मारने के लिए हुआ, जो सोते हुए भगवान विष्णु को मारना चाहता था। एकादशी को भगवान विष्णु के शक्तिपीठों में एक माना जाता है। इसलिए इसमें भगवान विष्णु की सुरक्षात्मक शक्तियां हैं। जो भक्त एकादशी के उपवास का पालन करना चाहते हैं वे उत्पन्ना एकादशी से एकादशी व्रत शुरू कर सकते हैं। 

उत्पन्ना एकादशी : तिथि व शुभ मुहूर्त
एकादशी आरंभ- 8 दिसंबर 2023 (शुक्रवार) - प्रातः 5:06 बजे 
एकादशी तिथि समापन- 9 दिसंबर (शनिवार) प्रातः 6:31 बजे  
पारण का शुभ समय- दोपहर 1:16 बजे से 3:20 बजे तक

पूजा विधि
एकादशी तिथि को प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें। इसके बाद घर के मंदिर की सफाई कर दीप जलाएं। भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें और फिर उन्हें नारियल, सुपारी, फल, लौंग, धूप, पंचामृत, अक्षत, चंदन और मिष्ठान अर्पित करें। उसके बाद भगवान की आरती करें और भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें, कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। श्री हरि के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है, बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।

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उत्पन्ना एकादशी का महत्व

सनातन धर्म में उत्पन्ना एकादशी का विशेष महत्व है। इस दिन पर साधक भक्ति और समर्पण के साथ भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है, जो लोग इस दिन पूरे मन से व्रत करते हैं, उनके सभी कष्टों और समस्याओं का अंत हो जाता है और भगवान विष्णु उन्हें वैकुंठ धाम में स्थान देते हैं। श्रीहरि विष्णु इस ब्रह्मांड के पालनहार हैं और वो अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं। फिर शाम को फल या दूध से बना प्रसाद ग्रहण करते हैं। साथ ही व्रत का पारण भगवान विष्णु के भोग से करते हैं।

एकादशी के दिन अवश्य करें ये काम

➤ उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा करें,
➤ इस दिन भगवान विष्णु को गेंदे की माला या फूल अर्पित करें और साथ में बेसन के हलवे या किसी पीली मिठाई का भोग लगाएं,
➤ एकादशी पर पीले फलों, अन्न और वस्त्र का दान करें,
➤ दक्षिणावर्ती शंख की पूजा अवश्य करें और शंख में जल भर कर घर में छिड़काव करें,
➤ एकादशी को प्रातःकाल भगवान की पूजा के बाद पीपल के पेड़ की पूजा कर उस पर कच्चा दूध चढ़ाएं,
➤ एकादशी पर शाम को घी का दीपक जलाएं। ऐसा करने से आपके घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है,  
➤ इस दिन भगवान विष्णु को केसर वाली खीर चढ़ाएं और उसमें तुलसी दल जरूर डालें। भोग लगी खीर का प्रसाद गरीब बच्चों को खिलाएं।

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तुलसी का पौधा न केवल पूजनीय है, धार्मिक दृष्टिकोण से महत्व है, बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से, औषधीय गुण होने से विशेष महत्व है। तुलसीदल (तुलसी की पत्तियां) भी बहुत गुणकारी है। प्रत्येक हिंदू परिवार के घर पर तुलसी का पौधा अवश्य ही लगा होता है। हर एक पूजा या अनुष्ठान में तुलसी पत्र (तुसलीदल) को अवश्य सम्मिलित करते है। सृष्टि के संचालक भगवान विष्णु को तुलसीजी बहुत प्रिय है। तुलसी के बिना कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूरा नहीं माना जाता है।

तुलसी का पौधा हर एक घर में लगा होता है और प्रतिदिन तुलसी के पौधे की पूजा करते हैं, जल भी चढ़ाते हैं। तुलसीदल 
का उपयोग अनेक आयुर्वेदिक दवाइयों को बनाने,सर्दी-जुकाम आदि में किया जाता है। पुरुषों की शारीरिक कमजोरी सहित कुछ अन्य उपयोग में तुलसीदल तुलसी की पत्तियां रामबाण सिद्ध हुई हैं। कोरोना वायरस से संक्रमण के समय भी लोगों ने जो काढ़ा कई बार उबाल-उबाल कर पिया, उसने लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में बहुत सहायक सिद्ध हुआ। 
 तुलसी की पत्तियों का सेवन सर्दी-जुकाम में काढ़ा बनाने में किया जाता है, जिससे बहुत लाभ मिलता है।
     कहीं पर भी चोट लगी हो, तो तुलसी के पत्तों को पीसकर फिटकरी मिलाकर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है। तुलसीदल में एंटी-बैक्टीरियल तत्व होते हैं, जो घाव को पकने नहीं देता और शीघ्र ठीक कर देता है। 
    ✔ पुरुषों की शारीरिक कमजोरी में तुलसी का बीज लाभकारी होता है।
     महिलाओं में अनियमित पीरियड की समस्या को भी तुलसी का दूर करता है। 
    ✔ तुलसी का काढ़ा या फिर प्रातः उठकर सबसे पहले (निहारे मुंह) तुलसी खाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती (इम्यूनिटी बूस्ट) होती है। 
✔ अगर दांत में पीड़ा हो रहा है, तो तुलसीदल पीसकर उसका रस उस पर लगाने से आराम मिलेगा।
  •  इसके अतिरिक्त तुलसीदल पथरी की समस्या के अलावा टाइफाइड और मलेरिया में भी प्रभावी है। 
  • ✔ तुलसी की पत्तियों में पोटैशियम की मात्रा अधिक होती है। यदि आप बीपी की पहले से ही कोई दवा खा रहे हैं, तो उसके साथ इसे खाने से बीपी बहुत अधिक कम (लो) हो सकता है। 
  • ध्यान रखें- यदि आप प्रतिदिन तुलसी की पत्तियों का सेवन करते हैं और आपकी कोई सर्जरी होने वाली है या हुई है, तो इसे खाना छोड़ दें। तुलसी की पत्तियां खून को पतला करती है, जिसके कारण सर्जरी के समय या बाद में ब्लीडिंग का खतरा बढ़ जाता है। 
  • ✔ तुलसी की पत्तियों स्वभाव (तासीर) गर्म होती है, इसलिए इसके अधिक सेवन से पेट में जलन हो सकती है। अतः तुलसदल अधिक खाने से  बचना चाहिए। गर्भावस्था में या फिर स्तनपान कराने वाली महिलाओं को भी तुलसी का सेवन कम करना चाहिए, क्योंकि उस काल में महिलाओं के शरीर पर नकारात्‍मक प्रभाव पड़ता है।
  • मान्यतानुसार, जिन घरों में तुलसीजी  की पूजा प्रतिदिन होती है,
    वहां यमदूत प्रवेश नहीं करते, घर की सुख-समृद्धि बनी रहती है -@DharmNagari  
    तुलसीदल तोड़ने के नियम
    तुलसीजी का उपयोग भगवान विष्णु की पूजा में विशेषरूप पर किया जाता है। शास्त्रानुसार, भगवान विष्णु को किसी भी वस्तु का भोग अर्पण करते समय उसमें तुलसीजी के पत्तों का उपयोग करने से भगवान भोग स्वीकार करते हैं। शास्त्रानुसार, तुलसी के पत्तों को तोड़ने को लेकर इन विशेष नियमों का पालन करना चाहिए-
    तुलसी के पौधे में देवी लक्ष्मी का रूप माना जाता है, इसलिए वास्तु के अनुसार इसे घर की उत्तर-पूर्व दिशा में रखना / लगाना चाहिए। दक्षिण दिशा और रसोईघर के पास कभी भी तुलसी का पौधा नहीं लगाना चाहिए।
    ⇒ तुलसी के पौधे और उसकी पत्तियों को कभी भी बिना स्नान के न ही छूना चाहिए और न ही तोड़ना चाहिए।
    ⇒ तुलसीदल को कभी भी नाखूनों से नहीं तोड़ना चाहिए। इससे आपको दोष लगता है, घर पर अशुभ प्रभाव पड़ता है।
    ⇒ सूर्यास्त होने के बाद कभी भी तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए, न ही तुलसीजी को स्पर्श करना चाहिए।

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    ⇒ रविवार को तुलसी के पत्ते तोड़ने पर प्रतिबंध होता है, क्योंकि कहा जाता है, इस दिन तुलसी के पत्ते तोड़ने से समस्याएं बढ़ने लगती हैं। इसके साथ एकादशी, चंद्र-ग्रहण और द्वादशी के दिन भी तुलसीजी के पत्ते नहीं तोडना चाहिए। इन तीन तिथियों को तुसलीजी तोड़ने से पाप लगता हैं।
    ⇒ तुलसी के पत्तों को कभी चबाना नहीं चाहिए, बल्कि इन्हें निगलना चाहिए, क्योंकि तुलसी में पारा धातु होता है जो दाँतों को हानि पहुंचा सकता है।
    ⇒ भगवान शिव की पूजा में तुलसी के पत्तों का प्रयोग वर्जित है। शिवजी एवं उनके पुत्र भगवान गणेशजी को कभी भी तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए।
    ⇒ मुरझाया या सूखा हुआ तुलसी का पत्ते 
    कभी भी पूजा या धार्मिक कार्यों में उपयोग नहीं करना चाहिए।
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कैसे करती हैं तुलसीजी वातावरण की शुद्धि 
तुलसीजी एक प्राकृतिक रूप से वायु शुद्ध (natural air purifier) है। तुलसीजी का पौधा 24 में से लगभग 12 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है। कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड व सल्फर डाईऑक्साइड जैसी जहरीली गैस भी सोखता है। तुलसी का पौधा वायु प्रदूषण को कम करता है। वनस्पति वैज्ञानिकों के अनुसार, तुलसी का पौधा उच्छवास में ओजोन वायु छोड़ता है, जिससे सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा (बचाव) होता है। तुलसी में यूजेनॉल नाम का कार्बनिक योगिक होता है जो मच्छर, मक्खी एवं कीड़े भगाने का काम भी करता है।

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