#AyodhyaRamMandir : आज से प्राण-प्रतिष्ठा अनुष्ठान, इस क्रम में बढ़ेगा अनुष्ठान, कल नगर भ्रमण


"प्रायश्चित, विष्णु पूजन व गोदान" के साथ अनुष्ठान का आरम्भ 
अयोध्या ब्यूरो 
(धर्म नगरी / DN News)  
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अयोध्या में निर्माणाधीन भव्य-दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का अनुष्ठान 16 जनवरी से मूर्ति निर्माण स्थल "कर्मकुटी" से  हुई, जो 22 जनवरी को रामलला के विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा तक चलेगा। प्रतिदिन अलग-अलग पूजन होगा। प्राण-प्रतिष्ठा पूजन के बाद 48 दिन की मंडल पूजा विश्वप्रसन्न तीर्थ के नेतृत्व में होगी। 22 जनवरी को 84 सेकेंड के अभिजीत मुहूर्त में शास्त्रीय विधि से निर्मित 9 हवन कुंडों में हवन कराया जाएगा। 

रामलला की विधिवत प्राण-प्रतिष्ठा, पूजा-अनुष्ठान में मंगलवार (16 जनवरी) प्रातः 9:30 बजे सर्वप्रथम शिल्पी के के "प्रायश्चित पूजा" होगी, जो लगभग 5 घंटे तक चलेगी। 121 ब्राह्मण इस प्रायश्चित पूजन को संपन्न कराएंगे। भगवान राम सूर्यवंशी हैं और आदित्य भी द्वादश हैं, इसलिए सात-दिवसीय अनुष्ठान में भगवान के विग्रह के द्वादश अधिवास कराए जाएंगे। समारोह में 11 यजमान होंगे। उनके यम, नियम व संयम 15 जनवरी से आरंभ होंगे। 17 जनवरी को श्री विग्रह का परिसर भ्रमण होगा। उसके पश्चात तीर्थों के जल से गर्भगृह की शुद्धि होगी। 

प्राण-प्रतिष्ठा का अनुष्ठान इस क्रम में बढ़ेगा-
16 जनवरी- मंदिर ट्रस्ट के यजमान के प्रायश्चित, विष्णु पूजन और गोदान
17 जनवरी- नगर भ्रमण
18 जनवरी- गणेश-अंबिका पूजन, वरुण व मातृका पूजन, ब्राह्मण वरण, वास्तु पूजन
19 जनवरी- अग्नि स्थापना, नवग्रह स्थापना और हवन
20 जनवरी- गर्भगृह को सस्यू जल से धोकर वास्तु शांति अनुष्ठान और अन्नाधिवास
21 जनवरी- 125 कलश से प्रतिमा का दिव्य स्नान
22 जनवरी- मृगशिरा नक्षत्र में विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा

प्रायश्चित पूजा : अर्थ एवं रहस्य 
प्रायश्चित पूजा, पूजन की वह विधि होती है, जिसमें शारीरिक, आंतरिक, मानसिक और बाह्य इन तीनों तरीके का प्रायश्चित किया जाता है। कर्मकांडी विशेषज्ञों के अनुसार, वाह्य प्रायश्चित के लिए 10 विधि स्नान किया जाता है, जिसमें पंच द्रव्य के अलावा कई औषधीय व भस्म समेत कई सामग्री से स्नान किया जाता है। एक और प्रायश्चित "गोदान" तथा संकल्प भी होता है। इसमें यजमान गोदान के माध्यम से प्रायश्चित करता है। कुछ द्रव्य दान से भी प्रायश्चित होता है, जिसमें स्वर्ण दान भी सम्मिलित है। 

प्रायश्चित पूजा का आशय इससे भी है, कि मूर्ति और मंदिर बनाने हेतु जो छेनी, हथौड़ी चली, इस पूजा में उसका प्रायश्चित किया जाता है और इसके साथ ही प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा कराई जाती है। प्रायश्चित पूजाा के पीछे मूल भावना यह है, कि यजमान से जितने भी प्रकार का पाप जाने-अनजाने में हुआ हो, उसका प्रायश्चित किया जाए। वास्तव में, हम लोग अनेक प्रकार की ऐसी गलतियां कर लेते हैं, जिसका हमें अनुमान तक नहीं होता। इसलिए शुद्धिकरण बहुत आवश्यक होता है और प्राण-प्रतिष्ठा से पूर्व प्रायश्चित-पूजा का महत्व बढ़ जाता है। 

सनातन हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ अथवा मांगलिक कार्य को करने के लिए अनुष्‍ठान या यज्ञ की परंपरा रही है। अनुष्ठान या यज्ञ अथवा पूजा पर यजमान ही बैठता है। इसललिए प्रायश्चित पूजा भी यजमान को ही करना होता है। आचार्य / कर्मकांडी ब्राह्मण इसमें केवल एक माध्यम होते हैं, जो मंत्रों का जाप करते हैं एवं विधि-विधानपूर्वक अनुष्ठान सम्पन्न करवाते हैं। 

अनुष्ठान के लिए हवन कुंडों का निर्माण
रामजन्मभूमि पर दिव्य-भव्य भवन में भगवान की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा के अनुष्ठान के लिए (3 जनवरी से) कुंडों का निर्माण पंडित दत्तात्रेय नारायण रटाटे (कुंड-निर्माण के विशेषज्ञ) के निर्देशन में हुआ। पंडित रटाटे सांगवेद महाविद्यालय वाराणसी के आचार्य हैं। इसी महाविद्यालय के आचार्य गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा का मुहूर्त निकाला है। अनुष्ठान के लिए कुल नौ कुंड बनाए जाएंगे। दो गुणे दो के आकार में इन कुंडों का निर्माण पांच दिन में हुआ। सभी कुंड अलग-अलग प्रकार के हैं। 
2 मंडप और 9 हवन कुंड
प्राण-प्रतिष्ठा अनुष्ठान के लिए 2 मंडप और 9 हवन कुंडों का निर्माण किया गया है। इसमें 8 कुंड 8 दिशाओं में हैं, जबकि एक कुंड आचार्य के लिए बनाया गया है। राममंदिर के सामने की भूमि पर इन मंडपों का निर्माण हुआ है। कुंड अलग-अलग आकार के है। कर्मकांडी पं. लक्ष्मीकांत दीक्षित के आचार्यत्व में लगभग 121 वैदिक ब्राह्मण प्राण-प्रतिष्ठा मुहूर्त को संपन्न कराएंगे। प्रत्येक कुंड, उसका आकार और हवन का उद्देश्य भी अलग है।  

कुंड का आकार और उसका उद्देश्य- 
पूर्व में सर्व-सिद्धिदायक चौकोर कुंड
आग्नेय में पुत्र प्राप्ति या संतति योनि कुंड
दक्षिण में कल्याणकारी अर्धचंद्राकार
नैऋत्य में शत्रु पर विजय या शत्रु-नाश के लिए त्रिकोण
पश्चिम में शांति-सुख के लिए वृत्ताकार
वायव्य में मारण और उच्छेद के लिए षडस्त्र कुंड /षटकोण , 
उत्तर में वर्षा के लिए पद्म कुंड
ईशान में आरोग्य या उत्तम स्वास्थ्य के लिए अष्टासत्र कुंड /अष्टकोण और 
ईशान और पूर्व के बीच सभी सुखों की प्राप्ति के लिए आचार्य कुंड का निर्माण 

इनसे बनें हैं कुंड
कुंड की ज्यामिति एक विज्ञान है, जिससे शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसके निर्माण में लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई और गहराई का विशेष ध्यान रखा जाता है। शास्त्रीय पद्धति में आठों दिशाओं में आठ कुंड बनाए गए हैं। कुंड के निर्माण में ईंट, बालू, मिट्टी, गोबर, पंचगव्य और सीमेंट आदि सामग्री  का उपयोग किया गया है।   

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धार्मिक अनुष्ठान में नियम 
किसी भी शुभ अथवा पुनीत कार्य के हेतु जब धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है, तब उसका पालन करने वालों को कुल 12 नियमों का पालन करना होता है-
1. भूमि शयन करना
2. ब्रह्मचर्य का पालन करना
3. मौनव्रत धारण करना या बहुत कम बोलना
4. गुरु की सेवा करना
5. त्रिकाल स्नान करना
6. पाप (दंभ) करने से बचना 
7. आहार शुद्धि
8. अनुष्ठान के समय में नित्य दान करना
9. स्वाध्याय
10. नैमित्तिक पूजा करना
11. इष्ट गुरु में विश्वास करना
12. ईश्वर का नाम जपना। 

क्यूआर कोड युक्त भेजे जा रहे निमंत्रण पत्र 
प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में आने वाले अतिथियों की सुरक्षा के लिए भी पुख्ता प्रबंध किए गए हैं। प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव को लेकर भेजे जा रहे निमंत्रण पत्र पर क्यूआर कोड भी अंकित है, ताकि आमंत्रित विशिष्टजन के वेश में कोई आवांछनीय तत्व कार्यक्रम स्थल एवं रामनगरी में प्रवेश न कर सके। सुरक्षाकर्मी इसे स्कैन कर अतिथि का सत्यापन करेंगे। यह जानकारी (4 जनवरी को) देते हुए एडीजी- जोन पीयूष मोर्डिया ने बताया था, सुरक्षा के साथ-साथ यह सुनिश्चित किया जा रहा है, कि महोत्सव में आने वाला प्रत्येक आमंत्रित अतिथि बिना किसी परेशानी के मंदिर पहुंचे। साथ ही बैठक कर यातायात, पार्किंग, अतिथियों का आगमन व प्रस्थान, पास विषयों पर चर्चा की गई है।

भक्तों के लिए टिन का नगर तीर्थक्षेत्रपुरम
रामलला के भक्तों के लिए विशेषरूप से टिन का नया नगर "तीर्थक्षेत्रपुरम" (बाग बिजैसी) बसाया गया है। इसमें पानी के लिए छह नलकूप, खाने के लिए छह रसोई घर के साथ स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं के लिए 10 बिस्तरों वाला एक अस्पताल भी है, जहाँ देशभर के लगभग 150 डॉक्टर बारी-बारी से अपनी सेवाएँ देंगे। इसके साथ ही नगर के कोने -कोने में लंगर, भोजनालय, भण्डारा, अन्नक्षेत्र चलाए जाएँगे, ताकि राम की नगरी आने वाले श्रद्धालुओं को खाने-पीने की समस्या न हो। उन्हें लगे राम राज्य में होने का वास्तविक आभास हो सकें।

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"श्रीराम मंदिर निर्माण विशेषांक"  
अयोध्या में 493 वर्षों तक संघर्षों एवं युद्धों के पश्चात नवनिर्मित भव्य मंदिर में "रामलला" की प्राण-प्रतिष्ठा के शुभ अवसर पर "धर्म नगरी" का विशेषांक प्रकाशित हो रहा है। इसमें आप भी अपनी फोटो सहित शुभकामना या प्रतिक्रिया देते हुए अपने नाम/ संस्था/ आश्रम / पार्टी आदि के नाम से देशभर में जहाँ चाहें,  प्रतियाँ भिजवा सकते हैं।

प्रतियाँ अयोध्या, प्रयागराज माघ मेला-2024 तथा वृन्दावन व हरिद्वार में भेजा या सौजन्य प्रति के रूप में बाटा जाएगा। आप भी "सौजन्य प्रति" के स्थान पर अपने नाम, फोटो, शुभकामना या गतिविधि / उपलब्धि आदि  प्रतियाँ भिजवा या बटवा सकते हैं। कृपया संपर्क करें- मो. / वाट्सएप- 6261868110, मो. 9752404020 ईमेल- dharm.nagari@gmail.com माघ हेल्प-लाइन नंबर- 8109107075 पूर्ववत ही है।

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देश हो या विदेश... हिन्दू मारे, लूटे जा रहे... कब दुनियाभर के हिन्दू देंगे जवाब ?
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