#UCCBill में गुलामी-दहेज से लेकर लिव-इन संबंध तक, कानून के विशेषज्ञों की राय, सुप्रीम कोर्ट की UCC के पक्ष में टिप्पणी


राज्यपाल से स्वीकृति के बाद आज सम्भवतः विधेयक बनेगा कानून 

- सऊदी अरब, तुर्की, इंडोनेशिया, नेपाल, फ्रांस, अजरबैजान, जर्मनी, जापान,कनाडा में लागू है UCC

बिना रजिस्ट्रेशन "लिव इन रिलेशन" पर होगी जेल, पंजीकरण की रसीद, सूचना माता-पिता एवं अभिभावक को देनी होगी
 
दिल्ली ब्यूरो (धर्म नगरी / DN News)    
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उत्तराखंड विधानसभा में 'समान नागरिक संहिता उत्तराखंड-2024' (UCC) विधेयक प्रस्तुत किया गया। UCC (Uniform Civil Code) लागू होने से आम लोगों के विवाह, तलाक, संपत्ति, उत्तराधिकार जैसे कानूनों में एकरूपता आ जाएगी। जैसे अभी अपराधिक कानून धर्म, लिंग, क्षेत्र के भेदभाव के बिना सब पर एक समान लागू होते हैं, इसी तरह अब नागरिक कानून में भी यह समानता आ जाएगी। जबकि अभी नागरिक कानूनों में धर्म और लिंग के आधार पर काफी असमानताएं हैं। 
 
उत्तराखंड विधानसभा में आज (7 फरवरी) प्रस्तुत समान नागरिक संहिता विधेयक शीघ्र ही सदन में स्वीकृत हो सकता है। फिर राज्यपाल से स्वीकृति के बाद विधेयक कानून बन जाएगा। इस तरह से गोवा के बाद उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का दूसरा राज्य बन जाएगा।
 
उल्लेखनीय है, कि 4 फरवरी को उत्तराखंड कैबिनेट से समान नागरिक संहिता विधेयक को स्वीकृति मिली थी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधेयक को विधानसभा में प्रस्तुत करते हुए कहा था- राज्य में सबको समान अधिकार प्रदान करने हेतु हम सदैव संकल्पित हैं।

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धर्म नगरी सूचना केंद्र व "हेल्प-लाइन" सेवा शिविर
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माघ मेला-2024 : जाने मेले से जुड़े उपयोगी नंबर, रेलवे जंक्शन 
http://www.dharmnagari.com/2024/01/Magh-Mela-2024-Important-numbers-Special-Trains-Traffice-Parking.html  
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विधि विशेषज्ञ क्या कहते हैं (Legal experts' opinion)- 
कानून के विशेषज्ञ मानते हैं, कि देश में दो तरह की संहिता है( एक अपराधिक संहिता, जिसे सामान्य भाषा में IPC के नाम से जाना जाता है, जबकि दूसरी तरफ निजी कानून हैं, जिन्हें पर्सनल लॉ कहा जाता है। पर्सनल लॉ में हिंदू मैरिज ऐक्ट, आनंद कारज ऐक्ट, मुस्लिम लॉ प्रमुख रूप पर हैं, पर्सनल लॉ शादी, तलाक, उत्तराधिकार, गोद, संरक्षण जैसी गतिविधियों को नियमित करते हैं, यह अपने-अपने धर्म के अनुसार सब पर अलग अलग लागू होते हैं।

अपराधिक कानून के तहत देश के सभी राज्यों में सभी नागरिकों के लिए चोरी की एक बराबर सजा है। जबकि पर्सनल लॉ में धर्म के आधार पर काफी असमानता है। उदाहरण के तौर पर, मुस्लिम व्यक्ति को एक से अधिक विवाह का अधिकार है, जबकि हिंदू मैरिज ऐक्ट एक से अधिक विवाह पर सख्ती से रोक लगाता है। इसी तरह तलाक के अधिकार भी धर्मों के आधार पर अलग-अलग हैं। पर्सनल लॉ आमतौर पर पुरुषों के पक्ष में झुके हुए हैं। इस कारण भी अब समय के साथ इनमें बदलाव की मांग होती रही है। इस तरह अब समान नागरिक संहिता लागू हो जाने से बाद सभी धर्मों के पर्सनल लॉ में भी एक रूपतता आ जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट की UCC के पक्ष में टिप्पणी 
सबसे पहले 1973 में केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार में सुप्रीम कोर्ट ने UCC के पक्ष में टिप्पणी की। इसके बाद मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम, सरला मुदगल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, शबनम हाशमी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, शायरा बानो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया जैसे अनेकों याचिकाओं की सुनवाई के दौरान भी कोर्ट की इस पर सकारात्मक टिप्पणियां आई।

नौ देशों में लागू है UCC  
भारत के पड़ोसी देश नेपाल समेत दुनिया के नौ देशों में UCC लागू है। UCC का ड्राफ्ट तैयार करने वाली पांच सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया है। रिपोर्ट के अनुसार, सऊदी अरब, तुर्की, इंडोनेशिया, नेपाल, फ्रांस, अजरबैजान, जर्मनी, जापान और कनाडा में यूसीसी लागू है। अब जल्द ही भारत में उत्तराखंड ऐसा राज्य होगा जहां यूसीसी लागू होगा। दरअसल, उत्तराखंड में अभी इस कानून को लागू करने में कुछ औपचारिकताएं बाकी हैं। मंगलवार को विधानसभा के पटल पर विधेयक पेश होने के बाद अब इसे पारित होने के पश्चात राजभवन की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा और फिर राष्ट्रपति का अनुमोदन लिया जाएगा।

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उत्तराखंड विधानसभा में प्रस्तुत विधेयक क्या है ?
मंगलवार को राज्य विधानसभा में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने समान नागरिक संहिता विधेयक पेश किया। इसे 'समान नागरिक संहिता उत्तराखंड-2024' नाम दिया गया है। 182 पन्नों के इस कानूनी मसौदे में कई धाराएं और उप-धाराएं हैं। इसमें उत्तराधिकार, विवाह, विवाह-विच्छेदन और लिव इन रिलेशनशिप के बारे में नियम-कानूनों का उल्लेख है।

मुख्यमंत्री ने कहा, कि बुराइयों के खात्मे के लिए उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए देश में सबसे मुफीद राज्य है। इस बिल का मकसद एक ऐसा कानून बनाना है, जो शादी, तलाक, विरासत और गोद लेने से जुड़े मामलों में सभी धर्मों पर लागू हो।

विवाह के बारे में... 
विधेयक के भाग-1 में विवाह और विवाह विच्छेद का जिक्र है। वहीं भाग-2 में विवाह और विवाह विच्छेद पंजीकरण को जगह दी गई है। इसके लिए अहम प्रावधान हैं-
- समान नागरिक संहिता सभी के लिए विवाह की न्यूनतम आयु को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है, जिसमें युवक की आयु 21 और युवती की 18 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।

- इस संहिता में पार्टीज टू मैरेज यानी किन-किन के मध्य विवाह हो सकता है, इसे स्पष्ट रूप से बताया गया है। विवाह एक पुरुष और एक महिला के बीच ही संपन्न हो सकता है।

- इस संहिता में पति अथवा पत्नी के जीवित होने की स्थिति में दूसरे विवाह को पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया गया है।

- अब तलाक के बाद दोबारा उसी पुरुष से या अन्य पुरुष से विवाह करने के लिए महिला को किसी प्रकार की शतों में नहीं बांधा जा सकता। यदि ऐसा कोई विषय संज्ञान में आता है, तो इसके लिए तीन वर्ष की कैद अथवा एक लाख रुपए जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान किया गया है।

- विवाह के उपरांत वैवाहिक दंपतियों में से कोई भी यदि बिना दूसरे की सहमति के धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को तलाक लेने और गुजारा भत्ता क्लेम करने का पूरा अधिकार होगा।

- विवाह का पंजीकरण अब अनिवार्य रूप से कराना होगा। इस प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम तथा जिला और राज्य स्तर पर इनका पंजीकरण कराना अब संभव होगा। प्रक्रिया को और ससत बनाने के लिए एक वेब पोर्टल भी होगा जिस पर जाकर पंजीकरण संबंधी प्रक्रिया पूरी की जा सकती है।

- एक महिला और एक पुरुष के मध्य होने वाले विवाह के धार्मिक/सामाजिक विधि-विधानों को इस संहिता में छेड़ा नहीं गया है। अर्थात वे लोग जिस पद्धति से भी विवाह करते चले आ रहे हैं, जैसे कि सप्तपदी, आशीर्वाद, निकाह, होली यूनियन या आनंद कारुज अथवा इस प्रकार की अन्य परंपराएं, वे लोग उन्हीं प्रचलित परंपराओं के आधार पर विवाह संपन्न कर सकेंगे।

विवाह विच्छेदन को लेकर... 
विधानसभा में सरकार ने कहा कि समान नागरिक संहिता लागू न होने का सबसे ज्यादा नुकसान अभी तक मातृ शक्ति को उठाना पड़ा। पुरुष लचर कानून का लाभ उठाकर बहुविवाह, उत्ताक आदि करते रहे।

- समान नागरिक संहिता लागू होने पर कोर्ट में लंबित पड़े मामलों का भी जल्द निपटारा हो सकेगा। समान नागरिक संहितासे मुस्लिम बहिनो की स्थिति बेहतर होगी। मुस्लिम महिलाओं को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार मिल जाएगा।

- देश में सभी धर्मों के अलग-अलग पर्सनल लॉ है। समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद सभी धर्मों के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा। लेकिन समान नागरिक संहिता में शामिल बिंदुओं से अतिरिक किसी भी धर्म को मान्यताओं से छेड़छाड़ नहीं की गई है।

- कई सामाजिक बुराइयां धार्मिक रीति-रिवाजों की आड़ में पनपती हैं। इसमें गुलामी, देवदासी, दहेज, तीन तलाक, बाल विवाह या अन्य प्रथाएं शामिल हैं। समान नागरिक संहिता इन सभी सामाजिक बुराइयों के खात्मे की गारंटी देता है।  

लिव-इन रिलेशनशिप के बारे में नियम... 
विधानसभा में मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में लिव-इन रिलेशनशिप का मुद्दा सहमति बनाम स्थापित सामाजिक नैतिक मानदंड से जुड़ा है। देश में हर नागरिक के अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक कानून बनाए गए हैं और उसकी सुरक्षा की गई है लेकिन अधिकार बनाम सामाजिक व्यवस्था में संतुलन भी जरूरी है। इसीलिए उत्तराखंड की सरकार ने समान नागरिक संहिता में लिव-इन रिलेशनशिप पर एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की सिफारिश की है।

- इस एक्ट में यह प्रावधान किया है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले युगल के लिए लड़की की उम्र 18 वर्ष या अधिक होनी चाहिए और उसको लिव इन रिलेशनशिप में रहने से पहले पहचान करने के उद्देश्य से एक रजिस्ट्रेशन कराना होगा और 21 वर्ष से कम के लड़का और लड़की दोनों को इस रजिस्ट्रेशन की जानकारी दोनों के माता पिता को देनी अनिवार्य होगी।

- उत्तराखंड सरकार ने लिव इन रिलेशनशिप के मामलों में रजिस्ट्रेशन को जरूरी कर दिया है ताकि ऐसे जोड़ों को कहीं रहने के लिए किराए पर मकान लेने या अन्य पहचान की आवश्यकताओं पर कोई कानूनी अड़चन का सामना न करना पड़े।

उत्तराधिकार के बारे में... 
विधानसभा में विधेयक को पेश करते हुए मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि प्रभावी एवं प्रचलित व्यवस्थाओं में सम्पत्ति में उत्तराधिकार या इच्छापत्र (वसीयत) के अधिकारों में व्यापक विसंगति या भिन्नता रही है। उदाहरण के रूप में देखें तो अधिकांश प्रावधानों में मृतक की सम्पत्ति में माता, पति-पत्नी और बच्चों को तो अधिकार है, परन्तु पित्ता को अधिकार नहीं दिया गया है। इसी प्रकार एक ही व्यक्ति की सन्तानों में लिंग के आधार पर भी असमानता है। विवाहित और अविवाहित पुत्री को भी अलग-अलग अधिकार है।

समान नागरिक संहिता में माता-पिता को मृतक की सम्पत्ति में एक अंश निर्धारित किया गया है। इसकी व्यवस्था धारा 49 के स्पष्टीकरण व अनुसूची-2 के श्रेणी-1 में की गई है। सम्पत्ति के अधिकार में पुत्र-पुत्री में व्यापक असमानता को दूर किया जा रहा है।

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम व शरीयत अधिनियम में उत्तराधिकार की भिन्नता एवं पुत्री के अधिकार की विसंगतियों को समान नागरिक संहिता वो भाग-2 के अध्याय-1 में दूर करते हुए एक व्यक्ति की समस्त सन्तानों को समान अधिकार प्रदान किये जाने की व्यवस्था की गई है। सदियों बाद उत्तराधिकार से सम्पत्ति प्राप्त करने के अधिकार में बेटा-बेटी एक समान का सिद्धान्त को हम मूर्त रूप देने जा रहे हैं।

समान नागरिक संहिता ने बच्चों के सम्मान और सम्पत्ति के अधिकार को सुरक्षित करने का काम किया है।

समान नागरिक संहिता में धारा-3 (1-क) में किसी भी रिश्ते से उत्पन्न होने पाले बच्चे को परिभाषित कर दिया गया है, वहीं दूसरी ओर धारा-49 में किसी भी प्रकार से उत्पन्न बच्चों को सम्पत्ति में समान रूप से अधिकार प्रदान कर दिया गया है।

यह कानून गर्भस्थ शिशु के अधिकारों को भी सुरक्षित करने का काम कर रहा है। इसके लिए इस संहिता के धारा-55 में अन्य सन्तानों की भांति गर्भस्थ शिशु को भी समान अधिकार प्रदान किये जा रहे हैं।

समान नागरिक संहिता हत्यारे पुत्र को सम्पत्ति के अधिकार से वंचित करने जा रही है। संहिता की धारा-58 में यह व्यवस्था की गई है। अब कोई व्यक्ति उत्तराधिकार में सम्पत्ति प्राप्त करने के लिए हत्या करने जैसे जघन्य एवं घिनौने अपराध से दूर रहेगा।

समान नागरिक संहिता की धारा-3 (1-3), 3 (3-अ) और अध्याय-2 यह प्रावधान करता है कि कोई व्यक्ति किसी भी माध्यम से प्राप्त समस्त सम्पदा की वसीयत स्वेच्छा से किसी भी व्यक्ति को कर सकता है, और अपने जीवनकाल में वसीयत को बदल भी सकता है, चाहे तो वापस भी ले सकता है।

बिना रजिस्ट्रेशन "लिव इन रिलेशन" पर होगी जेल
केवल एक वयस्क पुरुष व वयस्क महिला ही "लिव इन रिलेशनशिप" में रह सकेंगे। वे पहले से विवाहित या किसी अन्य के साथ लिव इन रिलेशनशिप या "प्रोहिबिटेड डिग्रीस ऑफ रिलेशनशिप" में नहीं होने चाहिए।
लिव इन रिलेशनशिप को UCC  स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। UCC लागू होने के बाद उत्तराखंड में  लिव-इन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को लिव-इन में रहने के लिए अनिवार्य पंजीकरण एक रजिस्टर्ड वेब पोर्टल पर कराना होगा। रजिस्ट्रेशन न कराने पर युगल को छह महीने का कारावास और 25 हजार का दंड या दोनों हो सकते हैं। रजिस्ट्रेशन के तौर पर जो रसीद युगल को मिलेगी उसी के आधार पर उन्हें किराए पर घर, हॉस्टल या पेइंग गेस्ट (पीजी) मिल सकेगा। जानकारों के अनुसार, धामी सरकार को सौंपे गए UCC ड्राफ्ट में यह प्रावधान किया गया है।
 
सूचना माता-पिता और अभिभावक को देनी होगी
पंजीकरण के उपरांत उन्हें रजिस्ट्रार पंजीकरण की रसीद देगा। उसी रसीद के आधार पर वह युगल किराए पर घर या हॉस्टल या पीजी ले सकेगा। पंजीकरण कराने वाले युगल की सूचना रजिस्ट्रार को उनके माता-पिता या अभिभावक को देनी होगी।

जैविक संतान के सारे अधिकार मिलेंगे  
लिव-इन के दौरान पैदा हुए बच्चों को उस युगल का जायज बच्चा ही माना जाएगा और उस बच्चे को जैविक संतान के समस्त अधिकार प्राप्त होंगे। लिव-इन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को संबंध विच्छेद का पंजीकरण कराना भी अनिवार्य होगा।
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#MadhyaPradesh : विधानसभा का सत्र सात फरवरी से, लोकसभा चुनाव से पहले बजट प्रस्तुत करेगी सरकार 
http://www.dharmnagari.com/2024/02/Madhya-Pradesh-Budget-session-from-February-7-2024.html

#Budget2024 : यूपी के इतिहास का सबसे बड़ा बजट 
http://www.dharmnagari.com/2024/02/UP-ke-Etihas-ka-sabse-bada-Budget-prastut-kar-rahe-FM-Suresh-Khanna.html

कथा हेतु सम्पर्क करें- व्यासपीठ की गरिमा एवं मर्यादा के अनुसार श्रीराम कथा, वाल्मीकि रामायण, श्रीमद भागवत कथा, शिव महापुराण या अन्य पौराणिक कथा करवाने हेतु संपर्क करें। कथा अपने बजट या आर्थिक क्षमता के अनुसार आप शहरी या ग्रामीण क्षेत्र में अथवा विदेश में करवाएं। हमारा कथा के आयोजन की योजना (मीडिया आदि) में पूर्ण सहयोग रहेगा। 
-प्रसार प्रबंधक महेश द्विवेदी"धर्म नगरी / DN News" मो. 9752404020, 8109107075-वाट्सएप ट्वीटर / Koo / इंस्टाग्राम- @DharmNagari ईमेल- dharm.nagari@gmail.com यूट्यूब- #DharmNagari_News  
 
 

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