पहली बार चारधाम यात्रा के लिए चार्टर्ड सेवा की सुविधा, यात्रा के लिए इस बार पंजीकरण अनिवार्य

10 मई से चारधाम यात्रा
- तीन दिन में 7 लाख 71 हजार श्रद्धालुओं ने कराया पंजीकरण 
- वेबसाइट, व्हाट्सऐप, ऐप, टोल फ्री नंबर पर ऑनलाइन पंजीकरण की सुविधा 
- चार धाम के कपाट खुलने की तिथि : केदारनाथ, यमुनोत्री व गंगोत्री- 10 मई बदरीनाथ- 12 मई 
हेली सेवाओं की बुकिंग 20 अप्रैल से
यमुनोत्री से आरम्भ होकर बद्रीनाथ पर पूरी होती है उत्तराखंड की चारधाम यात्रा

(धर्म नगरी / 
DN News)  
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उत्तराखंड राज्य की मनोरम प्रकृति, हिमालय, झील-झरने, और तालों को देखने के लिए दुनियाभर से श्रद्धालु व पर्यटक आते हैं। उत्तराखंड की नैसर्गिक सुंदरता के बारे में कहा जाता है, कि इसके आगे यूरोप की सुंदरता भी फेल है। उत्तराखंड में चारधाम, पंच प्रयाग, पंच केदार और विभिन्न मंदिर होने के साथ ही इसे देव भूमि भी कहा जाता हैै। उत्तराखंड में हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु तीर्थयात्रा के लिए पहुंचते हैं। उत्तराखंड स्थित केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और हेमकुंड साहिब यात्रा से जुड़ी जानकारी आप भी जाने।   

चारधाम यात्रा 
"उत्तराखंड में आगामी 10 मई से चारधाम यात्रा शुरू होने जा रही है। केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट 10 मई और बदरीनाथ के कपाट 12 मई को खुलेंगे, जबकि 25 मई को हेमकुंड साहिब के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोले जाएंगे। चारों धामों और हेमकुंड साहिब के कपाट खुलने की तिथि घोषित होने के बाद से जिला प्रशासन और मंदिर प्रशासन तैयारियों में जुट गया है। 

पंजीकरण अनिवार्य
चारधाम यात्रा के लिए श्रद्धालु टूरिज्म डिपार्टमेंट की वेबसाइट, मोबाइल एप व्हाट्सएप नंबर और टोल फ्री नंबर के जरिए रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। पिछले साल से पंजीकरण अनिवार्य होने के पश्चात अब बिना पंजीकरण कोई भी श्रद्धालु चारधाम यात्रा नहीं कर पाएगा। चार धाम यात्रा में श्रद्धालु केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री धाम की यात्रा और यहां दर्शन करते हैं। 
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ऑनलाइन पंजीकरण 
चार धाम यात्रा के लिए इस बार से पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। इसके लिए 15 अप्रैल से ऑनलाइन पंजीकरण आरंभ कर दिए गये हैं। पंजीकरण शुरू होने के तीन दिनों के भीतर ही 7 लाख 71 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं ने यात्रा के लिए पंजीकरण कराया। सर्वाधिक 2 लाख 54 हजार से अधिक पंजीकरण केदारनाथ यात्रा के लिए हुए हैं। 

ऑनलाइन पंजीकरण के लिए श्रद्धालु वेबसाइट- registrationandtouristcare.uk.gov.in के अलावा व्हाट्सऐप नंबर- 83 94 83 38 33 पर यात्रा लिख कर मैसेज करके भी पंजीकरण करा सकते हैं। पर्यटन विभाग ने टोल फ्री नंबर- 0135-1364 के जरिए भी पंजीकरण की सुविधा दी है। साथ ही स्मार्ट फोन पर touristcareuttarakhand ऐप से भी पंजीकरण किया जा सकता है। 

पंजीकरण के लिए नाम, मोबाइल नंबर के साथ यात्रा करने वाले सदस्यों का ब्यौरा, निवास स्थान के पते के लिए आईडी देनी होगी। साथ ही यात्रा के लिए हेली सेवाओं की बुकिंग 20 अप्रैल से शुरू होने जा रही है। पहली बार चारधाम यात्रा के लिए चार्टर्ड सेवा की सुविधा दी जा रही है।

उल्लेखनीय है, पिछले साल 74 लाख तीर्थयात्रियों ने चारधाम यात्रा के लिए पंजीकरण कराया था।  चारधाम यात्रा के यात्रा काल में इनमें से 56 लाख श्रद्धालुओं ने चारधाम के दर्शन किए। पर्यटन विभाग का मानना है, कि इस बार चारधाम यात्रा में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में बढ़ोत्तरी हो सकती है। 

यमुनोत्री से प्रारंभ, बद्रीनाथ पर समाप्त  
अक्षय तृतीया के पश्चात प्रतिवर्ष उत्तराखंड के चार धामों की यात्रा आरंभ हो जाती है। यह यात्रा यमुनोत्री से शुरू होकर गंगोत्री फिर केदारनाथ और आखिरी में बद्रीनाथ धाम पर पूरी होती है। इन चारों स्थानों को पवित्र धाम माना जाता है। इका पौराणिक एवं धार्मिक महत्व भी है। जीवनदायिनी गंगा नदी का उद्गम स्थल गंगोत्री और यमुना नदी का उद्गम स्थल यमुनोत्री दोनों उत्तरकाशी जिले में हैं। वहीं भगवान शिव का 11 वां ज्योतिर्लिंग केदारनाथ और भगवान विष्णु को समर्पित बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। माना जाता है कि इस पवित्र  चारधाम यात्रा में गंगा, यमुना के बाद भगवान शिव और विष्णु के दर्शन से पाप खत्म हो जाते हैं।

उत्तराखंड के चार धाम  
गंगोत्री- पुराणों के अनुसार राजा भगीरथ गंगा को धरती पर लाए थे, लेकिन गंगोत्री को ही माँ गंगा का उद्गम स्थान माना जाता है। 
माँ 
गंगा के मंदिर के बारे में बताया जाता है कि गोरखा (नेपाली) ने 1790 से 1815 तक कुमाऊं-गढ़वाल पर राज किया था, इसी अवधि में गंगोत्री मंदिर गोरखा जनरल अमर सिंह थापा ने बनाया था।

गंगोत्री धाम की यात्रा के लिए प्रचलित मार्ग प्रायः वर्षा के समय अवरूद्ध हो जाते हैं। भूस्खलन, चट्टानें टूटने जैसी घटनाएं बरसात में आम बात होती हैं। ऐसे में पुलिस प्रशासन यात्रियों को दर्शन किए बिना वापस लौटाने, वैकल्पिक मार्गों से तीर्थयात्रा कराने के लिए पूरा प्रयास करता है। गंगोत्री राजमार्ग पर धरासू से उत्तरकाशी-गंगोरी से भटवाड़ी के बीच कई बार रास्ते बंद हो जाते हैं।

गंगोत्री जाने के वैकल्पिक रास्‍ते भी हैं। ऋषिकेश से गंगोत्री जाने अलग-अलग वैकल्पिक मार्ग तय किये गये हैं। ऋषिकेश से खाड़ी मार्ग अवरुद्ध होने पर ऋषिकेश-देवप्रयाग-गजा-खाड़ी वैकल्पिक मार्ग है। खाड़ी-चंबा मार्ग बाधित होने पर चंबा-गजा-खाड़ी विकल्प है। चंबा से नगुण मार्ग बंद होने पर नगुण-भवान-मसूरी-देहरादून का वैकल्पिक मार्ग है। नगुण-धरासू मार्ग बाधित होने पर धरासू बैंड-बड़कोट-देहरादून विकल्प है।

यमुनोत्री- यमुनोत्री मंदिर निर्माण के बारे में बताया जाता है, कि टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रतापशाह ने सन 1919 में देवी यमुना को समर्पित करते हुए यह मंदिर बनवाया, परन्तु भूकम्प से मंदिर विध्वंस हो गया। इसके बाद मंदिर का पुनः निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में करवाया। यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत जमी हुई बर्फ की एक झील और हिमनंद (चंपासर ग्लेशियर) है। 

ऋषिकेश से यमुनोत्री जाने के लिए ऋषिकेश-देहरादून-मसूरी-बड़कोट-यमुनोत्री मार्ग बाधित होने पर चार वैकल्पिक मार्गों के माध्यम माँ यमुना के दर्शन करने के लिए पहुंचा जा सकता है। यहां यमुना ब्रिज से नैनबाग के बीच मार्ग बाधित होने पर यमुना ब्रिज-लखवाड़ बैंड-लक्स्यारैंड-लक्स्यार-नैनबाग का वैकल्पिक मार्ग है। नैनबाग-नौगांव मार्ग बाधित होने पर नौगांव-पुरोला-त्यूनी-चकराता-देहरादून का वैकल्पिक मार्ग है।

बर्नीगाड़-लाखामंडल-चकराता-देहरादून को भी वैकल्पिक मार्ग के रूप में किया गया है। इसी तरह से नौगांव से बड़कोट का विकल्प नौगांव घाटी से राजगढ़ी तक वैकल्पिक मार्ग है, जबकि बड़कोट-यमुनोत्री मार्ग बाधित होने पर यात्रियों को मार्ग खुलने का प्रतीक्षा करना होगा।

केदारनाथ धाम- स्कंद पुराण के अनुसार गढ़वाल को केदारखंड कहा गया है। केदारनाथ का वर्णन महाभारत में भी है। महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के यहां पूजा करने की बातें सामने आती हैं। माना जाता है कि 8वीं-9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा मौजूदा मंदिर बनवाया गया था।

ऋषिकेश से केदारनाथ की यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं के लिए रुद्रप्रयाग से गौरीकुंड के बीच मार्ग बाधित होने पर रुद्रप्रयाग-तिलवाड़ा-घनसाली-टिहरी-ऋषिकेश वैकल्पिक मार्ग के तौर पर रहेगा। तिलवाड़ा-कुंड मार्ग बंद होने पर कुंड-चोपता-गोपेश्वर-चमोली वैकल्पिक मार्ग होगा। कुंड से गुप्तकाशी बंद होने पर गुप्तकाशी-मयाली-घनसाली-टिहरी-ऋषिकेश का मार्ग वैकल्पिक रूप से किया जाएगा। पीपलडाली रजाखेत मार्ग को वैकल्पिक मार्ग के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है।

बद्रीनाथ धाम- बद्रीनाथ मंदिर के बारे में स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में वर्णन है। बद्रीनाथ मंदिर के वैदिक काल में (1750-500 ईसा पूर्व) भी उपस्थित होने के बारे में पुराणों में वर्णन है। कुछ मान्यताओं के अनुसार यहां भी लगभग 8वीं सदी के बाद आदिगुरु शंकराचार्य ने मंदिर बनवा दिया।

बद्रीनाथ धाम जाने के लिए ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग-58, यदि ऋषिकेश-ब्रहमपुरी के मध्य बाधित हो, तो गरूड़चट्टी से लक्ष्मण झूला और बैराज मार्ग विकल्प होता है। ऋषिकेश से देवप्रयाग मार्ग अवरूद्ध होने पर देवप्रयाग-गजा, खाड़ी, नरेंद्रनगर-ऋषिकेश से, देवप्रयाग-पौड़ी-कोटद्वार से और देवप्रयाग-बागवान-मलेथा-गडोलिया-नई टिहरी-चंबा से ऋषिकेश निकला जा सकता है। बागबान से श्रीनगर के बीच बाधा आने पर खांकरा-खेड़ाखाल-छातीखाल-डुंगरीपंत का वैकल्पिक मार्ग है। जबकि रुद्रप्रयाग से कर्णप्रयाग मार्ग बाधित होने पर कर्णप्रयाग-गैरसैंण, रानीखेत-हल्द्वानी व पैठाणी-बुआखाल-कोटद्वार और कर्णप्रयाग से चमोली के बीच रास्त बाधित होने पर चमोली-गोपेश्वर-चोपता-कुंड-रुद्रप्रयाग के रास्ते से निकला जा सकता है।

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