इंदौर में हुआ "खेला", सूरत कांड की पुनरावृत्ति
क्या नैतिकता से मुक्त राजनीति देश के स्थायी हित में है ?
मध्य प्रदेश में कांग्रेस को गुजरात की तरह एक और झटका लगा, जब इंदौर लोकसभा सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने अपना नामांकन वापस ले लिया। यही नहीं, अक्षय बम ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने जिस तरह से नामांकन वापसी के अंतिम दिन (29 अप्रैल) नाम वापस लिया, वह गुजरात के ‘सूरत कांड की पुनरावृत्ति’ ही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ‘गुजरात प्रवर्तित राजनैतिक मॉडल’ कदाचित यही है जिसका उल्लेख उन कारकों में एक के रूप में अवश्य याद किया जायेगा, जिनके कारण देश का लोकतंत्र वर्तमान हालत में है।
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इस हालत को कुछ लोग और मीडिया का एक धड़ा भी इसे ‘मास्टरस्ट्रोक’ कह सकता है। परन्तु उन्हें भी याद रखना होगा, कि राजनीति को नैतिकता, मूल्यों एवं आदर्शों से मुक्त करने का तात्कालिक लाभ तो मिल सकता है, परन्तु वह देश के स्थायी हित में कतई नहीं हो सकता। इसकी कीमत कभी न कभी ज़िम्मेदार व्यक्ति या संगठन को उठानी ही पड़ेगी, जो किसी भी रूप में इसके लिये जिम्मेदार हैं या जिनकी ऐसे कृत्यों में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष भागीदारी रही हो।
उल्लेखनीय है, अक्षय ने जब कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में नामांकन किया था, तब उनके साथ शक्ति प्रदर्शन के रूप में निकले जुलूस में खुद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी उपस्थित थे। हफ़्ते भर में ही भारतीय जनता पार्टी ने गुपचुप ‘ऑपरेशन लोटस’ चलाकर उन्हें अपने पाले में कर लिया। अब वहां से भाजपा के उम्मीदवार शंकर लालवानी का जीतना तय कहा जा सकता है, क्योंकि इस सीट पर मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस ही थी। सोमवार को अक्षय कांति इंदौर के विधायक रमेश मेंदोला के साथ कलेक्टर यानी निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय पहुंचे और अपना नामांकन वापस ले लिया। मप्र की भाजपा सरकार में मंत्री तथा पार्टी के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय की कार में वे लौटे। गर्वित विजयवर्गीय ने इसकी एक सेल्फ़ी अपने एक्स अकाउंट पर पोस्ट करते हुए अक्षय का अपनी पार्टी में स्वागत किया है।
इंदौर की सीट पर भाजपा का कई वर्षों से कब्जा रहा है। इस बार कांग्रेस ने अपना युवा नेता उतारा था जिसके पक्ष में कांग्रेस के बड़े नेता प्रचार भी कर रहे थे और माना जा रहा था कि इस बार यहां से भाजपा की राह बहुत आसान नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में अक्षय ने इंदौर की चार सीटों पर दावेदारी की थी जिसे स्वीकार नहीं किया गया था। इसके बजाय कांग्रेस ने उन्हें देश की सबसे बड़ी पंचायत का टिकट थमाकर उनमें अपना भरोसा जताया था। बताया यह जाता है कि इनके खिलाफ दायर एक 17 वर्ष पुराने मामले में तीन दिन पहले ही धारा 307 जोड़ी गई थी। क्या ऐसे नाज़ुक मौके पर अपनी पार्टी की पीठ में नहीं, वरन छाती में छुरा भोंकने की वजह यही मामला है? वैसे इस सीट पर तीन अन्य प्रत्याशियों ने भी अपने नामांकन वापस ले लिये हैं।
उल्लेखनीय है, कुछ ही दिन पहले गुजरात की सूरत लोकसभा सीट पर भी लगभग यही घटा है। वहां तो भाजपा प्रत्याशी मुकेश दलाल को बाकायदा विजयी घोषित कर उन्हें निर्वाचन अधिकारी द्वारा प्रमाणपत्र भी पकड़ा दिया गया क्योंकि उनके ख़िलाफ़ कांग्रेस समेत सारे प्रत्याशियों के नामांकन या तो रद्द कर दिये गये या खुद उन्होंने ही वापस ले लिये। यहां 7 मई को तीसरे चरण के अंतर्गत मतदान होना था। उसके पहले मध्यप्रदेश की खजुराहो लोकसभा क्षेत्र में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला।
इंदौर लोकसभा सीट पर चुनाव के लिए 25 अप्रैल तक नामांकन भरे गए थे. नाम वापसी के लिए 29 अप्रैल दिन आखिरी दिन था। इससे पहले कांग्रेस को कुछ खबर लगती, कैलाश विजयवर्गीय ने इस 'ऑपरेशन' को अंजाम दे दिया। इंदौर में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान 13 मई को होगा और मतगणना 4 जून को संपन्न होगी।
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इंदौर की सीट पर भाजपा का कई वर्षों से कब्जा रहा है। इस बार कांग्रेस ने अपना युवा नेता उतारा था जिसके पक्ष में कांग्रेस के बड़े नेता प्रचार भी कर रहे थे और माना जा रहा था कि इस बार यहां से भाजपा की राह बहुत आसान नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में अक्षय ने इंदौर की चार सीटों पर दावेदारी की थी जिसे स्वीकार नहीं किया गया था। इसके बजाय कांग्रेस ने उन्हें देश की सबसे बड़ी पंचायत का टिकट थमाकर उनमें अपना भरोसा जताया था। बताया यह जाता है कि इनके खिलाफ दायर एक 17 वर्ष पुराने मामले में तीन दिन पहले ही धारा 307 जोड़ी गई थी। क्या ऐसे नाज़ुक मौके पर अपनी पार्टी की पीठ में नहीं, वरन छाती में छुरा भोंकने की वजह यही मामला है? वैसे इस सीट पर तीन अन्य प्रत्याशियों ने भी अपने नामांकन वापस ले लिये हैं।
इंदौर लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने अपना नामांकन वापस ले लिया और कांग्रेस छोड़कर अक्षय बम ने भाजपा का दामन थामा, तो मध्य प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने (29 अप्रैल, 2024 को 12:04 PM) इसका दावा करते हुए अक्षय बम के साथ सेल्फी शेयर करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा- "इंदौर से कांग्रेस के लोकसभा प्रत्याशी अक्षय कांति बम का माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के नेतृत्व में भाजपा में स्वागत है।"
कांग्रेस व समाजवादी पार्टी के गठबन्धन के अंतर्गत यह सीट सपा को दी गई थी, लेकिन उसकी प्रत्याशी मीरा यादव का नामांकन रद्द हो गया जिससे प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा को लगभग वाॅकओवर मिल गया है।कहने को तो इंडिया गठबन्धन ने ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक के प्रत्याशी पूर्व आईएएस आरबी प्रजापति को समर्थन दिया है लेकिन इसे महज खानापूरी माना जा रहा है। इस सीट पर 26 अप्रैल को यानी दूसरे चरण के तहत मतदान हो चुका है।
कांग्रेस तथा उसके नेतृत्व में बनी इंडिया गठबन्धन के लगातार मज़बूत होने तथा भाजपा के कमज़ोर होते विमर्श का यह साइड इफ़ेक्ट माना जा रहा है जिसके अंतर्गत भाजपा तीसरी बार केन्द्र की सत्ता में आने के लिये तमाम तरह के हथकण्डे अपना रही है। तिस पर, भाजपा ने अब की बार खुद के बल पर 370 तथा अपने नेशनल डेमोक्रेटिक गठबन्धन (एनडीए) के माध्यम से 400 सीटों का लक्ष्य रखा है। उसके गिरते ग्राफ़ एवं खुद मोदीजी की घटती लोकप्रियता के चलते यह लक्ष्य असम्भव माना जा रहा है लेकिन एक के बाद दूसरे और दूसरे के बाद तीसरे लोकसभा क्षेत्र में जैसा खेला भाजपा ने किया है उससे लगता है, कि वह चुनाव मैदान में उतरे बगैर ही इसी तरह से अधिकतम सीटें अपनी झोली में डाल लेना चाहती है, ताकि मतदान केन्द्रों के जरिये उसकी सम्भावित हार के चलते घटने वाली सीटों की यथासम्भव भरपाई पहले से ही कर ली जाये।
कांग्रेस तथा उसके नेतृत्व में बनी इंडिया गठबन्धन के लगातार मज़बूत होने तथा भाजपा के कमज़ोर होते विमर्श का यह साइड इफ़ेक्ट माना जा रहा है जिसके अंतर्गत भाजपा तीसरी बार केन्द्र की सत्ता में आने के लिये तमाम तरह के हथकण्डे अपना रही है। तिस पर, भाजपा ने अब की बार खुद के बल पर 370 तथा अपने नेशनल डेमोक्रेटिक गठबन्धन (एनडीए) के माध्यम से 400 सीटों का लक्ष्य रखा है। उसके गिरते ग्राफ़ एवं खुद मोदीजी की घटती लोकप्रियता के चलते यह लक्ष्य असम्भव माना जा रहा है लेकिन एक के बाद दूसरे और दूसरे के बाद तीसरे लोकसभा क्षेत्र में जैसा खेला भाजपा ने किया है उससे लगता है, कि वह चुनाव मैदान में उतरे बगैर ही इसी तरह से अधिकतम सीटें अपनी झोली में डाल लेना चाहती है, ताकि मतदान केन्द्रों के जरिये उसकी सम्भावित हार के चलते घटने वाली सीटों की यथासम्भव भरपाई पहले से ही कर ली जाये।
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