हनुमान प्रकटोत्सव [जयंती] : ज्योतिषीय व शास्त्रीय उपाय एवं उनके लाभ, पंचमुखी हनुमान जी के पांच मुख का रहस्य

पंचमुखी हनुमानजी का प्रसंग, जिसमें (त्रेता युग में) चित्रसेना से श्रीराम ने कहा- 
"मैं जब द्वापर में श्रीकृष्ण अवतार लूंगा, तब तुम्हें सत्यभामा के रूप में अपनी पटरानी बनाऊँगा"  
(धर्म नगरी / 
DN News)  
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-राजेशपाठक 

हनुमान प्रकटोत्सव 23 अप्रैल को उनके प्रिय दिन मंगलवार को है। ऐसे में शुभ मुहूर्त में बजरंगबली की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। पवनपुत्र हनुमानजी के लिए समर्पित यह तिथि (चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा) होता है। इस दिन इनकी पूजा करने से भक्तों के सभी संकट दूर होते हैं एवं भक्तों पर आने वाले किसी भी प्रकार के कष्ट का निवारण कर देते हैं। इसी कारण हनुमान जी को संकटमोचन कहा जाता है। 

हनुमान जी की उपासना से सुख, शांति, आरोग्य एवं लाभ की प्राप्ति होती है एवं नकारात्मक शक्तियां भी हनुमानजी के भक्तों को परेशान नहीं करती। वैसे तो बजरंगबली स्वयं भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त हैं, सदैव उनके नाम का स्मरण करते रहते हैं, परन्तु एक बार रावण से युद्ध के समय भगवान श्रीराम के भी संकट में पड़ गए। तब हनुमान जी ने पंचमुखी अवतार लेकर उन्हे भी संकट से उबारा था।

पवनपुत्र हनुमानजी का 
प्रकटोत्सव, कलयुग के जागृत देव बजरंग बलि के जन्म का उत्सव है। इस दिन, भक्त भगवान हनुमान की पूजा करते हैं, उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, हनुमान प्रकटोत्सव के दिन कुछ ज्योतिषीय उपाय करने से भक्तों को विशेष लाभ प्राप्त हो सकते हैं। हनुमान जी सनातन हिन्दू धर्म के एक प्रमुख देव हैं, जिन्हें महाकाव्य रामायण में भगवान राम के निष्कर्षण के भक्त के रूप में प्रस्तुत किया गया है। हनुमान जी को मारुति, अंजनी पुत्र, बजरंगबली, पवनपुत्र, आदि नामों से भी जाना जाता है। उनके पराक्रम, धैर्य, निष्ठा, वीरता, और भक्ति की कथाएं धार्मिक शास्त्रों में उपलब्ध हैं। ये गुण हनुमानजी को भक्तों का प्रिय और आदर्श बनाते हैं।

जन्मोत्सव तिथि, 
पूजा महत्व

वैदिक पंचांग के अनुसार, चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 23 अप्रैल प्रातः 3:25 पर आरंभ होगी और तिथि का समापन 24 अप्रैल प्रातः 5:18 पर होगा। 
सनातन धर्म में उदया तिथि को विशेष महत्व दिया गया है, ऐसे में हनुमान जन्मोत्सव पर्व 23 अप्रैल 2024, मंगलवार के दिन हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा. इस दिन चैत्र पूर्णिमा व्रत भी रखा जाएगा।

सनातन हिंदू धर्म शास्त्रों में उल्लेख है, कि हनुमानजी की उपासना करने से रोग-दोष, कलह और सभी प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं. शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि हनुमान जी अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं और आज भी धरती पर वास करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा भाव से हनुमान जी की उपासना करता है और उन्हें स्मरण करता है उनके जीवन में सभी प्रकार की सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। हनुमान जन्मोत्सव के दिन उपवास रखने से भी विशेष लाभ मिलता है। 

करियर में सफलता प्राप्ति के लिए हनुमान जन्मोत्सव के दिन मारुति नंदन को सिंदूरी रंग का लंगोट चढ़ाएं। इस उपाय को करने से कार्यों में आपको सफलता अवश्य मिलेगी, 

किसी समस्या से घिरे हैं या बहुत समय से आपको कोई डर सता रहा है तो हनुमान जयंती के दिन 21 बार हनुमान जी के बजरंग बाण का पाठ करें,

आप कोई कार्य कर रहे हैं, उसमें लम्बे समय से केवल सफलता हाथ लग रही है, तो हनुमान जन्मोत्सव के दिन विधिपूर्वक बजरंगबली की पूजा करके उन्हें केसरिया लड्डू का भोग लगाएं। इस उपाय से आपको कार्यों में सफलता के मार्ग प्रशस्त होने लगेंगे,
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✔ किसी भी तरह के दु:ख से परेशान होने पर 11 पीपल के पत्ते लें. उन्हें साफ पानी से धोकर उनके ऊपर चंदन या कुमकुम से श्री राम का नाम लिखें. इसकी माला बनाकर बजरंगबली को पहना दें. ऐसा करने से हर तरह के संकट मिट जाएंगे साथ ही धन से संबंधित समस्या भी दूर होगी. 

✔ हनुमान जयंती के दिन विशेष पान का बीड़ा बनवा कर बजरंगबली को अर्पित करें. इसके अलावा उनके समक्ष एक सरसों और एक घी का दीपक जलाएं और वहीं बैठकर हनुमान जी का ध्यान करते हुए पूर्ण श्रद्धा से बजरंग बाण का पाठ करें। इससे हनुमान जी की कृपा आपके ऊपर बनी रहेगी,

✔ सभी कष्टों से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जन्मोत्सव पर पारे से निर्मित हनुमानजी की पूजा करें और ॐ रामदूताय नमः मंत्र का 108 बार रुद्राक्ष की माला से ही जाप करें,

✔ हनुमानजी की कृपा पाने के लिए सभी उपाय में सबसे सहज उपाय हनुमान जन्मोत्सव (जयंती) के दिन बजरंगबली की मूर्ति पर गुलाब के फूल की माला चढ़ाएं। इसके अलावा भोग में बूंदी या बेसन के लड्डू अर्पित करें। 

✔ जीवन की तमाम समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए हनुमान जयंती के दिन हनुमान मंदिर जाकर घी या तेल का दीपक जलाएं। फिर वहीं बैठकर 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें. ऐसा करने से हनुमान जी प्रसन्न होंगे और आपके ऊपर अपनी कृपा बरसाएंगे.

✔ कुंडली के दोष दूर करने के लिए हनुमान जयंती पर हनुमान मंदिर जाकर उड़द के 11 दाने, सिंदूर, चमेली का तेल, फूल, प्रसाद आदि चढ़ाएं इसके बाद हनुमान चालीसा का पाठ करें लाभ होगा। 

हनुमानजी जन्मोत्सव : सरल पूजन विधि
तथापि, चैत्र पूर्णिमा (
23 अप्रैल) को दो अवधि काल विशेष है- प्रातः 9:03 बजे से दोपहर 1:58 बजे तक एवं दूसरा रात्रि 8:14 बजे से लेकर रात्रि 9:35 बजे तक। 
हनुमान जयंती पर प्रातःकाल स्नानादि के बाद बजरंगबली की पूजा का संकल्प लें। हनुमान जी की पूजा अबूझ मुहूर्त देखकर ही करें। सर्वप्रथम उत्तर-पूर्व दिशा में चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। हनुमानजी के साथ श्रीराम जी के चित्र की स्थापना करें। हनुमानजी को लाल और राम जी को पीले फूल अर्पित करें। लड्डू अर्पित करें। ततपश्चात  श्रीराम के मंत्र ॐ राम रामाय नमः जाप करें। 
 
देवताओं में शिवजी के बाद बजरंग बली ऐसे देवता हैं, जो अपने भक्तों पर अतिशीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। अतः हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए उनके कुछ बीज मंत्र हैं। हनुमान जन्मोत्सव के दिन बजरंगबली की पूजा से पहले इस मंत्र का जाप करें। माना जाता है, इस मंत्र का पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से जप करने से महाबली हनुमान प्रसन्न होकर भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं-

हनुमत कृपा प्राप्ति हेतु- 
ॐ हं हनुमंते रुद्रात्मकाय हुं फट्
सुख-समृद्धि के लिए
यदि जीवन में सुख, शांति और समृद्धि चाहते हैं तो हनुमान जन्मोत्सव के दिन 11 बार इस मंत्र का जाप करें। हनुमान जी प्रसन्न होकर आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी करेंगे।  
ॐ नमो भगवते पंचवदनाय पश्चिमुखाय गरुडानना मं मं मं मं मं सकल विषहराय स्वाहा।।

शांति के लिए 
परिवार में किसी प्रकार की समस्या बनी रहती है, जिसके कारण सबका मन अशांत रहता है, तो हनुमान जन्मोत्सव के दिन आपको भगवान हनुमान के इस मंत्र का 11 बार जप करें- 
ॐ नमो भगवते पंचवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रें ह्रौं ह्रः सकल भूत प्रमथनाय स्वाहा ।।

उन्नति के लिए 
जीवन में प्रगति और सफलता के लिए हनुमान जन्मोत्सव पर हनुमान मंदिर की छत पर लाल रंग का पताका लगाएं और नीचे दिए गए मंत्र का 11 बार जप करें-
ॐ नमो भगवते पंचवदनाय ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रूं रूं रूं रूं रूं रुद्रमूर्तये सकलजन वशकराय स्वाहा।।

हनुमान जन्मोत्सव का दिन ऋण (कर्ज) से मुक्ति हेतु सर्वोत्तम माना जाता है। अर्थात, यदि आप ऋण से ग्रसित है और उससे मुक्ति नहीं मिल रही या आप सोच रहें हैं- कर्ज से कैसे छुटकारा पाया जाए, तब हनुमान चालीसा का पाठ करके हनुमान मंदिर में नारियल रखना अच्छा माना जाता है।

हनुमान जयंती पर इन चीजों के प्रयोग व दान का विशेष महत्व है- तांबा, मतान्तर से सोना, केसर, कस्तूरी, गेहूं, लाल चंदन, लाल गुलाब, सिन्दूर, शहद, लाल पुष्प, शेर, मृगछाला, मसूर की दाल, लाल मिर्च, लाल पत्थर, लाल मूंगा,  

 आटे के बने दीपक को बड़ के पत्ते पर रखकर जलाएं। ऐसे पांच पत्तों पर पांच दीपक रखें और उसे ले जाकर हनुमानजी के मंदिर में रख दें। ऐसा हनुमान जयंती के बाद कम से कम 11 मंगलवार को करें।

 हनुमान जयंती की रात को हनुमानजी के मंदिर में दो दीपक जलाएं और हनुमान चालीसा का 11 बार पाठ करें। पहला देसी घी का छोटा दीपक लगाएं। दूसरा 9 बत्तियों वाला एक बड़ा दीप लगाएं जिसमें सरसों का तेल हो और दो लौंग डाली गई हो और जो रातभर जलता रहे। छोटा दीपक आपके दाहिनी हो एवं बड़ा दीपक हनुमानजी के सामने। ऐसा आप हनुमान जयंती के दिन करें। अवश्य ही कुछ ही समय में आपको कर्ज से मुक्ति मिल जाएगी। अगर कर्ज नहीं है तो धन का आगमन बिना बाधा के होने लगेगा।

 बरगद के पेड़ का एक पत्ता लें। इसे अच्छे से साफ करके पत्ते को भगवान हनुमान के सामने रख दें। पूजा करें और उसके बाद इस पत्ते पर केसर से प्रभु श्री राम का नाम लिखें। पूजा समाप्त होने के बाद इस पत्ते को अपने पर्स में या फिर पैसों के स्थान पर रख रख दें। ऐसा करने से आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार आने लगेगा। 

अन्य उपाय (हनुमान जन्मोत्सव चैत्र पूर्णिमा के दिन)
हनुमान जी का अभिषेक
हनुमान जी का अभिषेक करने से भक्तों को भगवान हनुमान की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है,

हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाएं
सिंदूर भगवान हनुमान को प्रिय है। इस दिन हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाने से भक्तों को उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है,

हनुमान चालीसा का पाठ
हनुमान चालीसा भगवान हनुमान की स्तुति का एक बहुत ही शक्तिशाली पाठ है। इस दिन 11, 21, 51, या 108 बार हनुमान चालीसा का पाठ करने से भक्तों को भगवान हनुमान की कृपा प्राप्त होती है,

बजरंग बाण का पाठ
बजरंग बाण भगवान हनुमान की स्तुति का एक और शक्तिशाली पाठ है. इस दिन बजरंग बाण का पाठ करने से भक्तों को भगवान हनुमान की शक्ति और संरक्षण प्राप्त होता है,

चमेली के तेल का दीपक जलाएं
चमेली का तेल भगवान हनुमान को प्रिय है. इस दिन हनुमान जी को चमेली के तेल का दीपक जलाने से भक्तों को उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है.

हनुमानजी को फल व मिठाई चढ़ाएं
फल और मिठाई भगवान हनुमान को प्रिय है. इस दिन हनुमान जी को फल और मिठाई चढ़ाने से भक्तों को उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है.

हनुमानजी के मंदिर में जाएं
इस दिन हनुमान जी के मंदिर में जाकर दर्शन करने से भक्तों को उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है। 

उक्त ज्योतिषीय उपायों से भगवान हनुमान की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है. मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और बुरी शक्तियों से सुरक्षा मिलती है. स्वास्थ्य, धन, और समृद्धि में वृद्धि होती है. जीवन में खुशियां और सफलता प्राप्त होती है, अगर इसे करते समय आप पूर्ण श्रद्धा-विश्वास रखें। आप इन उपायों को करते हैं, तो आपको निश्चित रूप से भगवान हनुमान की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होगा। 

प्रभु श्रीराम के परम भक्त हनुमान जी को उनके जन्मोत्सव के दिन सामान्यतः कुछ उपाय करने चाहिए, तो कुछ कदापि नहीं करने चाहिए- 
• हनुमान जी की घी या चमेली के तेल से आरती करें,
• सिन्दूर और लाल रंग का चोला अर्पित करें,
• प्रसाद के रूप में बूंदी, बेसन के लड्डू और इमरती चढ़ाएं, ये भोग हनुमानजी को बहुत प्रिय होते हैं,
• बजरंगबली को प्रसन्न करने के लिए लौंग और इलाइची चढ़ाएं, इससे शनि दोष कम होता है,
• हनुमानजी राम भगवान के परम भक्त हैं, इसलिए हनुमान जयंती पर श्रीराम की विधिवत पूजा करें। 

ये काम कदापि न करें-
• भगवान राम की पूजा का ध्यान रखें, क्यूंकि ऐसा नहीं करने से बजरंगबली रुष्ट हो सकते हैं.
• हनुमान जन्मोत्सव पर बंदरों को खाना खिलाएं और भूलकर भी बंदरों को परेशान न करें,
• हनुमान 
जन्मोत्सव के दिन किसी के बारे में बुरा न बोलें,
• हनुमान 
जन्मोत्सव के दिन भूलकर भी किसी का अपमान न करें, ऐसा करना बजरंगबली को अप्रिय हो सकता है,
• इस दिन हनुमानजी की पूजा के दौरान पंचामृत या चरणामृत का उपयोग न करें। 

(उक्त सभी उपाय साधकों, कर्मकांडी विद्वानों, ज्योतिषियों, मान्यताओं पर आधारित हैं। आप किसी विद्वान कर्मकांडी, ज्योतिषी से मार्गदर्शन भी ले सकते हैं।)

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पंचमुखी हनुमान जी के पांच मुख का रहस्य 
पंचमुखी हनुमानजी के पांच मुख पांच अलग-अलग दिशाओं की ओर है, जिनका इनके अलग-अलग महत्व बताए गए हैं। 

ऐसे बने पंचमुखी हनुमान
रामायण के प्रसंग के अनुसार, लंका युद्ध के समय जब रावण के भाई अहिरावण ने अपनी मायावी शक्ति से स्वयं भगवान श्री राम और लक्ष्मण को मूर्छित कर पाताल लोक लेकर चला गया था। जहां अहिरावण ने पांच दिशाओं में पांच दिए जला रखे थे। उसे देवी का वरदान था कि जब तक कोई इन पांचों दीपक को एक साथ नहीं बुझाएगा, अहिरावण का वध नहीं होगा। अहिरावण की इसी माया को समाप्त करने के लिए हनुमान जी ने पांच दिशाओं में मुख किए पंचमुखी हनुमान का अवतार लिया और पांचों दीपकों को एक साथ बुझाकर अहिरावण का वध किया और भगवान राम और लक्ष्मण उसके बंधन से मुक्त हुए।

पांचों मुखों का महत्व
पंचमुखी हनुमान जी के पांच मुख पांच अलग-अलग दिशाओं की तरफ हैं, जिनका अलग-अलग महत्व है-
वानर मुख- यह मुख पूर्व दिशा में है एवं दुश्मनों पर विजय प्रदान करता है।
गरुड़ मुख- यह मुख पश्चिम दिशा में है तथा जीवन की रुकावटों और परेशानियों का नाश करता है।
वराह मुख- यह मुख उत्तर दिशा में है तथा लंबी आयु, प्रसिद्धि और शक्तिदायक है।
नृसिंह मुख- यह दक्षिण दिशा में है, यह डर, तनाव व कठिनाइयों को दूर करता है।
अश्व मुख- यह मुख आकाश की दिशा में है एवं समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करता है।

पूजा विधि
पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र को सदैव दक्षिण दिशा में लगाना चाहिए। मंगलवार और शनिवार बजरंगबली की पूजा का विशेष दिन होता है, इस दिन लाल रंग के फूल, सिंदूर और चमेली का तेल अर्पित करने का विशेष महत्व है। इसके साथ गुड़ व चने का भोग लगाना चाहिए। इस दिन सुंदरकाण्ड या हनुमान चालीसा का पाठ करना बहुत फलदाई है। इसके अतिरिक्त घर के दक्षिण-पश्चिम कोने में पंचमुखी हनुमान का चित्र लगाने से सभी तरह के वास्तुदोष मिट जाते हैं।भवन क़े मुख्य द्वार पर पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा लगाने से बुरी आत्माएं प्रवेश नहीं करतीं ।

पंचमुखी क्यों हुए हनुमान
श्रीराम के अनुज लक्ष्मण का महा बलशाली मेघनाद के साथ बड़ा ही भीषण युद्ध चला. अंतत: मेघनाद मारा गया. रावण, जो अब तक मद में चूर था राम सेना, विशेषकर लक्ष्मण का पराक्रम सुनकर थोड़ा तनाव में आया। रावण को कुछ दुःखी देखकर रावण की मां कैकसी ने उसके पाताल में बसे दो भाइयों अहिरावण और महिरावण की याद दिलाई. रावण को याद आया कि यह दोनों तो उसके बचपन के मित्र रहे हैं। 
लंका का राजा बनने के बाद उनकी सुध ही नहीं रही थी. रावण यह भली प्रकार जानता था, कि अहिरावण व महिरावण तंत्र-मंत्र के महा-पंडित, जादू टोने के धनी और मां कामाक्षी के परम भक्त हैं। रावण ने उन्हें बुला भेजा और कहा कि वह अपने छल बल, कौशल से श्री राम व लक्ष्मण का सफाया कर दे. यह बात दूतों के जरिए विभीषण को पता लग गयी. युद्ध में अहिरावण व महिरावण जैसे परम मायावी के शामिल होने से विभीषण चिंता में पड़ गए।

विभीषण को लगा, भगवानश्री राम और लक्ष्मण की सुरक्षा व्यवस्था और कड़ी करनी पड़ेगी. इसके लिए उन्हें सबसे बेहतर लगा कि इसका जिम्मा परम वीर हनुमान जी को राम-लक्ष्मण को सौंप दिया जाए। साथ ही वे अपने भी निगरानी में लगे थे। राम-लक्ष्मण की कुटिया लंका में सुवेल पर्वत पर बनी थी. हनुमान जी ने भगवान श्रीराम की कुटिया के चारों ओर एक सुरक्षा घेरा खींच दिया। कोई जादू-टोना या तंत्र-मंत्र का प्रभाव न हो। मायावी राक्षस इसके भीतर नहीं घुस सकता था। 

अहिरावण और महिरावण श्रीराम और लक्ष्मण को मारने उनकी कुटिया तक पहुंचे, पर इस सुरक्षा घेरे के आगे उनकी एक न चली। असफल हो गए। ऐसे में उन्होंने एक चाल चली. महिरावण विभीषण का रूप धर के कुटिया में घुस गया। राम व लक्ष्मण पत्थर की सपाट शिलाओं पर गहरी नींद सो रहे थे. दोनों राक्षसों ने बिना आहट के शिला समेत दोनो भाइयों को उठा लिया और अपने निवास पाताल की और लेकर चल दिए।

विभीषण लगातार सतर्क थे. उन्हें कुछ देर में ही पता चल गया, कि कोई अनहोनी घट चुकी है. विभीषण को महिरावण पर शक था, उन्हें राम-लक्ष्मण की जान की चिंता सताने लगी। विभीषण ने हनुमान जी को महिरावण के बारे में बताते हुए कहा कि वे उसका पीछा करें. लंका में अपने रूप में घूमना राम भक्त हनुमान के लिए ठीक न था सो उन्होंने पक्षी का रूप धारण कर लिया और पक्षी का रूप में ही निकुंभला नगर पहुंच गये।
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निकुंभला नगरी में पक्षी रूप धरे हनुमान जी ने कबूतर और कबूतरी को आपस में बतियाते सुना। कबूतर, कबूतरी से कह रहा था- अब रावण की जीत पक्की है. अहिरावण व महिरावण राम-लक्ष्मण को बलि चढा देंगे. बस सारा युद्ध समाप्त। कबूतर की बातों से ही बजरंग बली को पता चला, कि दोनों राक्षस राम लक्ष्मण को सोते में ही उठाकर कामाक्षी देवी को बलि चढ़ाने पाताल लोक ले गये हैं। हनुमान जी वायु वेग से रसातल की और बढे और तुरंत वहां पहुंचे।

हनुमान जी को रसातल के प्रवेश द्वार पर एक अद्भुत रक्षक (पहरेदार) मिला. उसका आधा शरीर वानर का और आधा मछली का था. उसने हनुमान जी को पाताल में प्रवेश से रोक दिया। द्वारपाल हनुमान जी से बोला, मुझ को परास्त किए बिना तुम्हारा भीतर जाना असंभव है. दोनों में लड़ाई ठन गयी. हनुमान जी की आशा के विपरीत यह बड़ा ही बलशाली और कुशल योद्धा निकला। 

दोनों ही बड़े बलशाली थे. दोनों में बहुत भयंकर युद्ध हुआ, परंतु वह बजरंग बली के आगे न टिक सका। अंत में हनुमान जी ने उसे हरा तो दिया, पर उस द्वारपाल की प्रशंसा करने से नहीं रह सके। हनुमान जी ने उस वीर से पूछा- हे वीर ! तुम अपना परिचय दो। तुम्हारा स्वरूप भी कुछ ऐसा है, कि उससे कौतुहल हो रहा है. उस वीर ने उत्तर दिया- मैं हनुमान का पुत्र हूं और एक मछली से पैदा हुआ हूं। मेरा नाम है मकरध्वज। 

हनुमान जी ने यह सुना तो आश्चर्य में पड़ गए। वह वीर की बात सुनने लगे। मकरध्वज ने कहा- लंका दहन के बाद हनुमान जी समुद्र में अपनी अग्नि शांत करने पहुंचे। उनके शरीर से पसीने के रूप में तेज गिरा। उस समय मेरी मां ने आहार के लिए मुख खोला था. वह तेज मेरी माता ने अपने मुख में ले लिया और गर्भवती हो गई. उसी से मेरा जन्म हुआ है. हनुमान जी ने जब यह सुना तो मकरध्वज को बताया कि वह ही हनुमान हैं। 

मकरध्वज ने हनुमान जी के चरण स्पर्श किए। हनुमान जी ने भी अपने बेटे को गले लगा लिया और वहां आने का पूरा कारण बताया. उन्होंने अपने पुत्र से कहा कि अपने पिता के स्वामी की रक्षा में सहायता करो। मकरध्वज ने हनुमान जी को बताया, कि कुछ ही देर में राक्षस बलि के लिए आने वाले हैं. अच्छा यही होगा, कि आप रूप बदल कर कामाक्षी कें मंदिर में जा कर बैठ जाएं। उनको सारी पूजा झरोखे से करने को कहें। 

हनुमान जी ने पहले तो मधुमक्खी का वेश धरा और मां कामाक्षी के मंदिर में घुस गये. हनुमान जी ने मां कामाक्षी को नमस्कार कर सफलता की कामना की। फिर पूछा- हे मां ! क्या आप वास्तव में श्रीराम और लक्ष्मण जी की बलि चाहती हैं ?

हनुमान जी के इस प्रश्न पर मां कामाक्षी ने उत्तर दिया- नहीं। मैं तो दुष्ट अहिरावण व महिरावण की बलि चाहती हूं। यह दोनों मेरे भक्त तो हैं पर अधर्मी और अत्याचारी भी हैं। आप अपने प्रयत्न करो। सफल रहोगे। 

मंदिर में पांच दीप जल रहे थे। अलग-अलग दिशाओं और स्थान पर। मां ने कहा- यह दीप अहिरावण ने मेरी प्रसन्नता के लिए जलाये हैं। जिस दिन ये एक साथ बुझा दिए जा सकेंगे, उसका अंत सुनिश्चित हो सकेगा। इस बीच गाजे-बाजे का शोर सुनाई पड़ने लगा। अहिरावण, महिरावण बलि चढाने के लिए आ रहे थे। हनुमान जी ने अब मां कामाक्षी का रूप धरा। जब अहिरावण और महिरावण मंदिर में प्रवेश करने ही वाले थे, कि हनुमान जी का महिला स्वर गूंजा।

हनुमान जी बोले- मैं कामाक्षी देवी हूं और आज मेरी पूजा झरोखे से करो। झरोखे से पूजा आरंभ हुई। ढेर सारा चढ़ावा मां कामाक्षी को झरोखे से चढ़ाया जाने लगा। अंत में, बंधक बलि के रूप में राम लक्ष्मण को भी उसी से डाला गया. दोनों बंधन में मूर्छित (बेहोश) थे। 

हनुमान जी ने तुरंत उन्हें बंधन मुक्त किया। अब पाताल लोक से निकलने की बारी थी, पर उससे पहले मां कामाक्षी के सामने अहिरावण महिरावण की बलि देकर उनकी इच्छा पूरी करना और दोनों राक्षसों को उनके किए की सजा देना शेष था। हनुमान जी ने मकरध्वज को कहा, कि वह अचेत अवस्था में लेटे हुए भगवान राम और लक्ष्मण का विशेष ध्यान रखें और उसके साथ मिलकर दोनों राक्षसों के विरुद्ध युद्ध करने लगे। 
पर यह युद्ध सहज न था। अहिरावण और महिरावण बडी कठिनाई से मरते, तो फिर पाँच-पाँच के रूप में जीवित हो जाते। इस विकट स्थिति में मकरध्वज ने बताया कि अहिरावण की एक पत्नी नागकन्या है। अहिरावण उसे बलात हर लाया है। वह उसे पसंद नहीं करती पर मन मार के उसके साथ है, वह अहिरावण के राज जानती होगी। उससे उसकी मौत का उपाय पूछा जाये। आप उसके पास जाएं और सहायता मांगे। 

मकरध्वज ने राक्षसों को युद्ध में उलझाये रखा और उधर हनुमान अहिरावण की पत्नी के पास पहुंचे. नागकन्या से उन्होंने कहा- यदि तुम अहिरावण के मृत्यु का भेद बता दो तो हम उसे मारकर तुम्हें उसके चंगुल से मुक्ति दिला देंगे। अहिरावण की पत्नी ने कहा- मेरा नाम चित्रसेना है। मैं भगवान विष्णु की भक्त हूं। मेरे रूप पर अहिरावण मर मिटा और मेरा अपहरण कर यहां कैद किये हुए है, पर मैं उसे नहीं चाहती. लेकिन मैं अहिरावण का भेद तभी बताउंगी, जब मेरी इच्छा पूरी की जायेगी। 

हनुमान जी ने अहिरावण की पत्नी नागकन्या चित्रसेना से पूछा- आप अहिरावण की मृत्यु का रहस्य बताने के बदले में क्या चाहती हैं ? आप मुझसे अपनी शर्त बताएं, मैं उसे अवश्य मानूंगा। 

चित्रसेना ने कहा- दुर्भाग्य से अहिरावण जैसा असुर मुझे हर लाया. इससे मेरा जीवन खराब हो गया. मैं अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलना चाहती हूं. आप अगर मेरा विवाह श्रीराम से कराने का वचन दें, तो मैं अहिरावण के वध का रहस्य बताऊंगी। 

हनुमान जी सोच में पड़ गए। भगवान श्रीराम तो एक पत्नी निष्ठ हैं। अपनी धर्म-पत्नी देवी सीता को मुक्त कराने के लिए असुरों से युद्ध कर रहे हैं. वह किसी और से विवाह की बात तो कभी न स्वीकारेंगे। मैं कैसे वचन दे सकता हूं ? फिर सोचने लगे, यदि समय पर उचित निर्णय न लिया, तो स्वामी के प्राण ही संकट में हैं. असमंजस की स्थिति में बेचैन हनुमानजी ने ऐसी राह निकाली कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। 

हनुमान जी बोले- तुम्हारी शर्त स्वीकार है पर हमारी भी एक शर्त है। यह विवाह तभी होगा जब तुम्हारे साथ भगवान राम जिस पलंग पर आसीन होंगे, वह सुरक्षित रहना चाहिए। यदि वह टूटा तो इसे अपशकुन मांगकर वचन से पीछे हट जाऊंगा। जब महाकाय अहिरावण के बैठने से पलंग नहीं टूटता, तो भला श्रीराम के बैठने से कैसे टूटेगा ! यह सोच कर चित्रसेना तैयार हो गयी. उसने अहिरावण समेत सभी राक्षसों के अंत का सारा भेद बता दिया। 

चित्रसेना ने कहा- दोनों राक्षसों के बचपन की बात है. इन दोनों के कुछ शरारती राक्षस मित्रों ने कहीं से एक भ्रामरी को पकड़ लिया. मनोरंजन के लिए वे उसे भ्रामरी को बार-बार काटों से छेड़ रहे थे। 

भ्रामरी साधारण भ्रामरी न थी. वह भी बहुत मायावी थी किंतु किसी कारणवश वह पकड़ में आ गई थी. भ्रामरी की पीड़ा सुनकर अहिरावण और महिरावण को दया आ गई और अपने मित्रों से लड़ कर उसे छुड़ा दिया। 

मायावी भ्रामरी का पति भी अपनी पत्नी की पीड़ा सुनकर आया था. अपनी पत्नी की मुक्ति से प्रसन्न होकर उस भौंरे ने वचन दिया था, कि तुम्हारे उपकार का बदला हम सभी भ्रमर जाति मिलकर चुकाएंगे। ये भौंरे अधिकतर उसके शयनकक्ष के पास रहते हैं. ये सब बड़ी भारी संख्या में हैं. दोनों राक्षसों को जब भी मारने का प्रयास हुआ है और ये मरने को हो जाते हैं, तब भ्रमर उनके मुख में एक बूंद अमृत का डाल देते हैं। उस अमृत के कारण ये दोनों राक्षस मरकर भी जिंदा हो जाते हैं. इनके कई-कई रूप उसी अमृत के कारण हैं. इन्हें जितनी बार फिर से जीवन दिया गया, उनके उतने नए रूप बन गए हैं. इसलिए आपको पहले इन भंवरों को मारना होगा। 

हनुमान जी रहस्य जानकर लौटे. मकरध्वज ने अहिरावण को युद्ध में उलझा रखा था. तो हनुमान जी ने भंवरों का खात्मा शुरू किया. वे आखिर हनुमान जी के सामने कहां तक टिकते। जब सारे भ्रमर खत्म हो गए और केवल एक बचा, तो वह हनुमान जी के चरणों में लोट गया. उसने हनुमान जी से प्राण रक्षा की याचना की. हनुमान जी पसीज गए. उन्होंने उसे क्षमा करते हुए एक काम सौंपा। 

हनुमान जी बोले- मैं तुम्हें प्राण दान देता हूं, पर इस शर्त पर कि तुम यहां से तुरंत चले जाओगे और अहिरावण की पत्नी के पलंग की पाटी में घुसकर जल्दी से जल्दी उसे पूरी तरह खोखला बना दोगे। 

भंवरा तत्काल चित्रसेना के पलंग की पाटी में घुसने के लिए प्रस्थान कर गया. इधर अहिरावण और महिरावण को अपने चमत्कार के लुप्त होने से बहुत आश्चर्य हुआ, पर उन्होंने मायावी युद्ध जारी रखा। भ्रमरों को हनुमान जी ने समाप्त कर दिया फिर भी हनुमान जी और मकरध्वज के हाथों अहिरावण और महिरावण का अंत नहीं हो पा रहा था। यह देखकर हनुमान जी कुछ चिंतित हुए। 

फिर उन्हें कामाक्षी देवी का वचन याद आया. देवी ने बताया था, कि अहिरावण की सिद्धि है कि जब पांचो दीपकों एक साथ बुझेंगे, तभी वे नए-नए रूप धारण करने में असमर्थ होंगे और उनका वध हो सकेगा। हनुमान जी ने तत्काल पंचमुखी रूप धारण कर लिया। उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख। उसके बाद हनुमान जी ने अपने पांचों मुख द्वारा एक साथ पांचों दीपक बुझा दिए। अब उनके बार-बार पैदा होने और लंबे समय तक जीवित रहने की सारी आशंकाएं समाप्त हो गयी थी. हनुमान जी और मकरध्वज के हाथों शीघ्र ही दोनों राक्षस मारे गये। इसके पश्चात उन्होंने श्रीराम और लक्ष्मण की मूर्च्छा दूर करने के उपाय किए। 

दोनो भाई की मूर्छा समाप्त हुई। चित्रसेना भी वहां आ गई। हनुमान जी ने कहा- प्रभो ! अब आप अहिरावण और महिरावण के छल और बंधन से मुक्त हुए। पर इसके लिए हमें इस नागकन्या की सहायता लेनी पड़ी थी. अहिरावण इसे बलपूर्वक उठा लाया था. वह आपसे विवाह करना चाहती है. कृपया उससे विवाह कर अपने साथ ले चलें. इससे उसे भी मुक्ति मिलेगी। 

श्रीराम हनुमान जी की बात सुनकर चकराए. इससे पहले कि वह कुछ कह पाते हनुमान जी ने ही कह दिया- भगवन आप तो मुक्तिदाता हैं. अहिरावण को मारने का भेद इसी ने बताया है. इसके बिना हम उसे मारकर आपको बचाने में सफल न हो पाते। कृपा-निधान इसे भी मुक्ति मिलनी चाहिए, परंतु आप चिंता न करें। हम सबका जीवन बचाने वाले के प्रति बस इतना कीजिए, कि आप बस इस पलंग पर बैठिए बाकी का काम मैं संपन्न करवाता हूं। 

हनुमान जी इतनी तेजी से सारे कार्य करते जा रहे थे, कि इससे श्रीराम जी और लक्ष्मण जी दोनों चिंता में पड़ गये. वह कोई कदम उठाते कि तब तक हनुमान जी ने भगवान राम की बांह पकड़ ली। हनुमानजी ने भावावेश में प्रभु श्रीराम की बांह पकड़कर चित्रसेना के उस सजे-धजे विशाल पलंग पर बिठा दिया। श्रीराम कुछ समझ पाते, कि तभी पलंग की खोखली पाटी चरमरा कर टूट गयी। 
पलंग धराशायी हो गया
। चित्रसेना भी जमीन पर आ गिरी हनुमानजी हंस पड़े और फिर चित्रसेना से बोले- अब तुम्हारी शर्त तो पूरी हुई नहीं, इसलिए यह विवाह नहीं हो सकता। तुम मुक्त हो और हम तुम्हें तुम्हारे लोक भेजने का प्रबंध करते हैं।

चित्रसेना समझ गयी कि उसके साथ छल हुआ है
 उसने कहा, कि उसके साथ छल हुआ है मर्यादा पुरुषोत्तम के सेवक उनके सामने किसी के साथ छल करें, यह तो बहुत अनुचित है मैं हनुमान को श्राप दूंगी। 
चित्रसेना हनुमानजी को श्राप देने ही जा रही थी, कि श्रीराम का सम्मोहन भंग हुआ। वह इस पूरे नाटक को समझ गये उन्होंने चित्रसेना को समझाया- मैंने एक पत्नी धर्म से बंधे होने का संकल्प लिया है। इस लिए हनुमान जी को यह करना पड़ा उन्हें क्षमा कर दो क्रुद्ध चित्रसेना तो उनसे विवाह का हठ (जिद) किए बैठी थी। 

तब श्रीराम ने कहा- मैं जब द्वापर में श्री कृष्ण अवतार लूंगा तब तुम्हें सत्यभामा के रूप में अपनी पटरानी बनाउंगा
। इससे वह मान गयी। हनुमानजी ने चित्रसेना को उसके पिता के पास पहुंचा दिया. चित्रसेना को प्रभु ने अगले जन्म में पत्नी बनाने का वरदान दिया। भगवान विष्णु की पत्नी बनने की चाह में उसने स्वयं को अग्नि में भस्म कर लिया। श्रीराम और लक्ष्मण, मकरध्वज और हनुमान जी सहित वापस लंका में सुवेल पर्वत पर लौट आये। (स्कंद पुराण और आनंद रामायण के सार कांड की कथा)

पंचमुखी हनुमानजी का चित्र कहां लगाएं ?
श्रीराम भक्त हनुमान अपने भक्तों को राहु-केतु और शनि जैसे ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचाते हैं। हनुमानजी से प्रेत, पिशाच बहुत डरते हैं और उनके भक्तों के निकट भी नहीं आते। हनुमानजी के अनेक रूप हैं, परन्तु पंचमुखी हनुमानजी के रूप का कुछ विशेष महत्व बताया गया है, जिसका विशेष प्रभाव होता है-
घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा में भगवान हनुमान की पंच-मुखी (पंच स्वरूप वाली) मूर्ति या चित्र लगाएं। नियमित रूप से उनकी पूजा करें। इसके प्रभाव से आपको कभी आर्थिक संकट से नहीं जूझना पड़ेगा।
- वास्तुशास्त्र के अनुसार, हनुमान जी का चित्र आप अपने घर या दुकान में दक्षिण दिशा की ओर लगाएं। यह दिशा हनुमान जी के चित्र के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। इससे घर और दुकान दोनों में पॉजिटिव ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है।
- आप घर में सदैव पंचमुखी वाले हनुमान जी की चित्र अवश्य लगाएं। इससे आपके घर के सभी दोष, नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है। भगवान का आशीर्वाद सदैव आप पर बना रहता है।
- घर के मुख्य द्वार पर पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा लगाएं। इससे नकारात्मक शक्ति प्रवेश नहीं कर पाती।
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