रामनवमी : जन-गण-मन के अधिनायक राम....


आपदां अपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो न नमाम्यहम् ॥

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आज का वैश्विक परिप्रेक्ष्य जहां भौतिकतावाद की विभीषिका से जूझ रहा है, एक भाई दूसरे भाई के रक्त से तर्पण के लिए पिपासु भी हो जाते हैं, छोटी-छोटी बातों के लिए झगड़े होते जा रहे है, जहां एक देश दूसरे देश पर उसी प्रकार आक्रामक हो रहे हैं, जैसे कोई बिल्ली शीही को निगलने के लिए आक्रामक होती है। ऐसी परिस्थिति में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामजी आज जितने प्रासंगिक हो गए हैं, उतने पहले कभी नहीं थे।

महाकवि गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा- तामस बहुत रजोगुन थोरा, कलि प्रभाउ बिरोध चहुंओरा। अर्थात, आज चारों ओर विरोध है और इस विरोध को समाप्त करने के लिए यदि कोई निर्विरोध है, तो वह भगवान श्रीराम का व्यक्तित्व है। उनका किसी से कोई विरोध नहीं है- 
उमा जे राम चरन रत, बिगत काम, मद, क्रोध। 
निज प्रभुमय देखहिं जगत, केहि सन करहिं बिरोध।

स्वयं मां कौशल्या कहती हैं- राघव सुतहीं करो अनुरोधु, धर्म जाइ अरु बंधु बिरोधु।
आज जैसे भयानक वातावरण में भगवान राम की बहुत अधिक आवश्यकता भी है और उपयोगिता भी। इस भय के वातावरण में यदि कोई अभय दे सकता है, तो वह भगवान श्रीराम ही हैं। आदिकवि वाल्मीकि कृत रामायण के युद्धकाण्ड के 18वें सर्ग के 33वें श्लोक में भगवान राम प्रपन्न को अभय देने की प्रतिज्ञा करते हैं, सकृद्रवप्रपन्नाय तव अस्मिइति चयाचते। अभयम् सर्व भूतेभ्यो ददामि एतद् व्रतम् मम।। अपने प्रपन्न को भगवान राम त्रिलोक में सबसे अभयदान दे देते हैं। इसलिए यदि किसी को भयमुक्त शांत गगन में जीना है, तो उसे दयानिधान श्रीराम की शरण लेनी ही पड़ेगी, क्योंकि वह अभय के आश्रय हैं।


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किसी भी परिस्थिति में भगवान राम असत्य नहीं बोलते हैं। सत्य के बल से असत्य पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। वे विजयी हैं। वे कभी भी पलायन नहीं करते हैं।

एक ओर, जहां देश की सीमाओं की चर्चा आती है. कुछ लोग हमारी सीमाओं को सीमित करने में लगे हैं, तो कुछ देश संकीर्णताओं में उलझे हुए हैं। ऐसी परिस्थिति में यदि भगवान राम के व्यक्तित्व को देखा जाए, तो उन्होंने पूरे विश्व को अपने राज्य की सीमा माना है- 
भूमि सप्तसागर मेखला। एक भूप रघुपति कोसला॥ 

भगवान राम अनुभव और परंपरा को बहुत महत्व देते हैं- अभिवादनशीलस्य नित्वं वृद्धोपसेविनः। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम।। इसलिए सभी मनुष्य उनसे आयु, विद्या, वश और अल का आशीर्वाद पाते हैं। सत्तेन लोका न जयति अर्थात उनके समक्ष जीतने के लिए कुछ शेष बचा ही नहीं, क्योंकि- सत्येन लोकान्जयति, द्विजान् दानेन राघवः। गुरुन्छुश्रूषया वीरो धनुषायुधिशास्त्रवान्।। अर्थात् भगवान राम सत्य से लोक को जीतते हैं, दान से ब्राहमणों को जीतते हैं, सेवा से गुरुजनों को प्रसन्न करते हैं और एक ही धनुष से संपूर्ण शत्रुओं को जीत लेते हैं।

गोस्वामी तुलसीदासजी के राम एक स्वाभिमानी, कर्तव्यपरायण, सत्यनिष्ठ, चरित्रवान, उदार और शौर्वसंपन्न व्यक्तित्व हैं। वह कहते हैं- कहउं सुभाउन कुलहि प्रसंसी। कालहु डरहिं न रन रघुबंसी। किसी भी परिस्थिति में भगवान राम असत्य नहीं बोलते हैं। राम निरंतर सत्य से असत्य पर विजय प्राप्त करने का ही प्रयास करते रहते हैं। राम विजयी हैं, पराजयी नहीं, वह कहीं भी कभी भी पलायन नहीं करते, इसलिए उनके लिए विजय मंत्र में कहा जाता है श्री राम जय राम जय जय राम । हे श्रीराम। आप हमारे काम को जीतिए। जय राम, आप हमारे क्रोध को जीतिए। जय राम, आप हमारे लोभ को जीतिए। आपकी कृपा से मैं समग्र विजय को प्राप्त कर सकूं।

संपूर्ण भारत के प्रति जो राष्ट्रवाद का एक नवीन आरोप प्रस्तुत हुआ है। वह भगवान राम की ही देन है। युद्ध में संपूर्ण धरातल के मानदंड को यदि देखा जाए, मैं तो यही कहूंगा, यदि इस लोक में पुरुष के सार का एकमात्र वेत्ता प्रकट हुआ है, तो उसका नाम है भगवान राम। यदि हम राम शब्द की व्युत्पत्ति ही करें, तो स्पष्ट हो जाता है, राति मंगलम इति रामः, जो सर्वत्र मंगल देता रहता है. उसी को राम कहते हैं।

मैं तो अपने राष्ट्रगान में भी रामगान ही देखता हूं। राष्ट्रगान की यदि सामान्य व्याख्या की जाए, तो लगता है कि यहां अधिनायकवाद आ कैसे गया ? क्योंकि अब तो अधिनायकवाद चला गया है। फिर जन-गण- मन अधिनायक जय कैसे कहा गया ? कुछ लोगों ने कहा महाकवि रवींद्रनाथ टैगोर ने अंग्रेज शासक जॉर्ज पंचम की प्रशंसा में यह गीत लिखा था, बाद में उसी को राष्ट्रगान मान लिया गया। मैं कहता हूं, यहगीत भगवान राम को समर्पित है। जन-गण-मन के अधिनायक भगवान राम हैं। भगवान राम ही भारत भाग्य के विधाता हैं। पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा, द्राविड, उत्कल, बंग, विंध्य-हिमाचल, यमुना, गंगा और सागरों की उछलती लहरें-तरंगें, ये सब भगवान राम के नाम से जग रही हैं। ये भगवान राम से आशीर्वाद मांग रही हैं। संपूर्ण भारत भगवान राम के जय की गाथा गा रहा है। भगवान राम ही जन-गण के मंगलदाता और भारत के भाग्य विधाता है। यहां सात बार जय कहने का तात्पर्य यह है कि रामजी सातों काण्ड में विजयी हो रहे हैं और सात समुद्र पर विजय का डंका बजा रहे हैं।

हमारे रामजी अवतार भी है और अवतारी भी। साकेत लोक में वह अवतारी हैं और अवध में अवतार हैं। यह भी पूर्ण हैं और वह भी पूर्ण हैं। साकेत वाले साकेत विहारी रामजी भी पूर्ण हैं और अवध वाले अवध विहारी रामजी भी पूर्ण हैं। अवतारी की अपेक्षा अवतार ज्यादा सुंदर लगता है। साकेत विहारी रामजी के अपेक्षा श्री अवध विहारी रामजी ज्यादा सुंदर लगते हैं। ऐसा क्यों होता है, इसे समझने की जरूरत है। साकेत विहारी रामचंद्र जी पिता हैं और अवध विहारी रामचंद्र जी पुत्र हैं, बालक हैं। साकेत वाले रामजी सबको गोद में लेते हैं और अवध वाले रामजी सबकी गोद में जाते हैं। 

श्रीरामचरितमानस में चौपाई है- बहु उळंग कबहु बर पलना। मातु दुलारइ कहि प्रिय ललना।। साकेत वाले रामजी पालने में नहीं झूलते। अवध वाले झूलते हैं। यहां यह ध्यान रहे, साकेत लोक जाने की सबको अनुमति नहीं है, साकेत वाले रामजी को पाना कठिन है, पर हमारे अवध वाले रामजी सबको सुलभ हैं, वह सभी पर अपनी कृपा की व कर रहे है।
आज रामनवमी के मंगलमय पर्व पर मैं यही कहूंगा- यदि इस देश को विकसित भारत बनना है, यदि अखंड संप्रभुतासंपन्न भारत बनाना है, तो इस देश को राम-सापेक्ष राष्ट्रवाद को अपनाना पड़ेगा।
-जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी,  
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